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✨ अध्याय 3: फ़ासलों का इम्तिहान
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“मोहब्बत सिर्फ पास रहने से नहीं निभती,
कभी-कभी दूर रहकर भी दिल के तार जुड़ जाते हैं। लेकिन…”
“…अगर खामोशी लंबी हो जाए, तो मोहब्बत भी घुटने लगती है।”
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1. बदले हुए पल
कॉलेज फेस्ट के बाद ज़िंदगी थोड़ी बदल गई थी।
ज़ारिन जब भी क्लास में बैठती, उसकी नज़रें अनजाने में आरिज़ को ढूँढ लेतीं।
लेकिन अब वो दूरी बना रहा था। न तबले की थाप सुनाई देती, न वो मुस्कुराहट मिलती जिसे ज़ारिन अब पहचानने लगी थी।
> “क्या मैं कुछ गलत समझी?”
ज़ारिन खुद से सवाल करती,
“या ये फासला भी कोई इम्तिहान है?”
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2. एक नई दस्तक
वही दिनों में कॉलेज में एक नया स्टूडेंट एडमिशन लेता है — अयान खान।
अयान — लखनऊ के मशहूर कवि का बेटा, खुद भी शायरी का दीवाना।
उसकी एंट्री ज़ारिन की लाइफ में हल्के से हुई…
मगर असर तेज़ था।
> “तुम्हारी आँखें… जैसे किसी मिसरे की आख़िरी पंक्ति हों,
अधूरी पर दिल में उतर जाने वाली।”
पहली बार कोई और ज़ारिन की आँखों की गहराई को यूं बयाँ कर रहा था।
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3. वो पहली बात
आरिज़ और अयान की पहली टक्कर कैफ़ेटेरिया में हुई।
अयान ने ज़ारिन को एक ग़ज़ल सुनाई, और ज़ारिन मुस्कुराई।
दूर खड़े आरिज़ ने ये सब देखा।
वो पास आया, लेकिन कुछ नहीं कहा।
बस एक लम्हे के लिए ज़ारिन की आँखों में देखा —
और बिना बोले लौट गया।
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4. गलतफहमी की दीवार
शाम को नीलो ने ज़ारिन से पूछा —
> “आरिज़ से कब बात हुई आख़िरी बार?”
> “उसी रात… जब उसने मेरी डायरी लौटाई थी।”
ज़ारिन ने कहा।
“उसके बाद ना कोई ख़त, ना कोई बात।”
नीलो ने चुपचाप एक व्हाट्सऐप स्क्रीनशॉट दिखाया —
आरिज़ की प्रोफ़ाइल पिक में किसी लड़की के साथ तस्वीर थी।
> “वो लड़की आरिज़ के साथ अक्सर देखी जाती है... क्या तुम जानती हो उसे?”
ज़ारिन का दिल बैठ गया।
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5. एक रात, एक फैसला
उस रात ज़ारिन ने अपनी डायरी का आख़िरी पन्ना फाड़ दिया।
> “अगर मोहब्बत सिर्फ खामोशी होती है,
तो शायद मेरा इकरार कभी पूरा नहीं होगा।
अब मुझे आगे बढ़ना होगा।”
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6. अयान के अल्फ़ाज़
अगले दिन कॉलेज के लिटरेचर क्लब में अयान की शायरी थी:
> “जिसे खोकर भी कुछ न खोया लगे,
वो प्यार नहीं, एक आदत होती है।”
ज़ारिन ने वो मिसरा बार-बार दोहराया।
क्या आरिज़ सिर्फ एक आदत बन चुका था?
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7. पुरानी थाप, नई धड़कन
एक दिन लाइब्रेरी में अचानक तबले की धीमी थाप सुनाई दी।
वही धुन... वही लय... जो कभी ज़ारिन के दिल में उतरती थी।
वो म्यूज़िक रूम की तरफ भागी।
दरवाज़ा खुला था। अंदर सिर्फ आरिज़ बैठा था।
वो रुक गई।
कुछ कहना चाहा, मगर शब्द गुम थे।
आरिज़ ने नजरें उठाईं —
पर कोई शिकवा नहीं, कोई सवाल नहीं।
बस एक शेर कहा:
> “तुम लौट भी आओ अगर,
तो क्या यक़ीन करूँ…
मोहब्बत फिर भी वही होगी
या बस याद बनकर रह जाओगी?”
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8. जवाब… ख़ामोशियों में
ज़ारिन पास आई, और धीरे से कहा:
> “कुछ बातें जवाब नहीं मांगतीं, बस समझी जाती हैं।”
वो चली गई।
इस बार कुछ टूट चुका था… शायद दिल नहीं, भरोसा।
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9. इम्तिहान की घड़ी
कॉलेज में सेमेस्टर एग्ज़ाम का वक्त आ गया।
हर कोई अपने में मग्न था — मगर आरिज़ और ज़ारिन की किताबों में मोहब्बत के अधूरे पन्ने अब भी जिंदा थे।
एक दिन अयान ने ज़ारिन से कहा —
> “मैं तुम्हें बस महसूस करना चाहता हूँ…
तुम्हारा इंतज़ार नहीं।”
ये लाइन किसी इकरार से कम न थी।
ज़ारिन ने पहली बार मुस्कुरा कर जवाब दिया —
> “कभी-कभी इंतज़ार ही मोहब्बत की सबसे पाक शक्ल होती है।”
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10. आरिज़ की चिट्ठी
एग्ज़ाम के आख़िरी दिन ज़ारिन को लाइब्रेरी की अपनी पसंदीदा किताब में एक काग़ज़ मिला।
आरिज़ की लिखावट थी:
> “ज़ारिन,
मोहब्बत जताने से पहले मैंने उसे महसूस करना चुना।
पर जब जताना चाहा… तुम दूर जा चुकी थीं।
अब अगर फासले ही हमारी तक़दीर हैं,
तो मैं उन्हें कुबूल कर लूँगा…
पर यक़ीन रखना — तुम मेरी हर थाप में जिंदा रहोगी।”
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🌙 अंतिम पंक्तियाँ:
ज़ारिन छत पर खड़ी आसमान को देख रही थी।
बादल छंट चुके थे, चाँद साफ़ था।
> “क्या मोहब्बत हमेशा साथ रहने में ही होती है?”
उसने खुद से पूछा।
शायद नहीं।
कभी-कभी मोहब्बत फासलों में भी सांस लेती है…
और वही उसका इम्तिहान होता है।
क्रमशः---
✅ अध्याय 3 समाप्त