love of golden streets in Hindi Love Stories by Rekha Rani books and stories PDF | सुनहरी गलियों का प्यार

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सुनहरी गलियों का प्यार

एपिसोड 1 — दीवारों पर पहली नज़र

🌸 भाग 1: रंगों की शुरुआत

जयपुर का बस स्टॉप शाम को और भी गुलाबी लगता है। हवा में गुलाब जल की महक है, और सामने की दीवार पर जान्हवी पेंट कर रही है — एक अधूरा मोर जिसकी आँखों में उदासी है।  

जान्हवी कोई आम कलाकार नहीं, वह लोक-कला की छात्रा है जो दीवारों से बातें करती है। उसकी ब्रश की हर चाल मानो उसके दिल के अंधेरे को थोड़ी रोशनी देती है।  

उसने उस दीवार को नाम दिया है: “रुकावट की दीवार” — क्योंकि यहीं आकर वो अपने अंदर की रुकी हुई बातें रंगों में बदल देती है।

आज उसके ब्रश की गति धीमी थी। कुछ खो गया था या शायद किसी के लौटने की उम्मीद ठहरी थी। तभी...

> “ये मोर बहुत कुछ छुपा रहा है।”

वह आवाज़ अचानक आई। जान्हवी चौंक कर पीछे पलटी।

एक लड़का खड़ा था — हल्के नीले कुर्ते में, हाथ में पुरानी नोटबुक, और गले में झोला। उसकी आँखें धूप से नहीं, कहानियों से भरी थीं।

> “तुमने इसे अधूरा क्यों छोड़ा?”  
> “क्योंकि कुछ अधूरा ही रह जाए तो वो बार-बार बुलाता है।” जान्हवी ने कहा।

लड़का मुस्कराया — उसका नाम था विराज, और वो जयपुर में पुरातत्व विभाग से जुड़ा एक शोधार्थी था। वह दीवारों की दरारों में इतिहास ढूँढ़ता है, लेकिन शायद खुद की कहानी खो बैठा है।
 भाग 2: दरारों की बात

विराज अब उस दीवार के सामने खड़ा था जिस पर जान्हवी रंग भर रही थी। उसकी आँखें दीवार की दरारों को देख रही थीं — जैसे वे दरारें भी कभी किसी की बात कहती थीं।

> “यह दीवार पुरानी हवेली से जुड़ी है,” उसने कहा।  
> “इसमें एक कविता खुदी थी, शायद 1860 के आसपास की।”

जान्हवी ने हैरानी से उसकी ओर देखा।  
> “तुम इतिहास पढ़ते हो?”  
> “इतिहास नहीं… मैं उन कहानियों को पकड़ता हूँ जो लोगों ने दीवारों पर छोड़ दी थीं।”

जान्हवी को यह बात अजीब लगी, लेकिन सुंदर भी।  
वह सोचने लगी — क्या विराज भी किसी कहानी की दरार से निकला है?

> “तुम्हारे ब्रश की चाल बहुत शांत है,” उसने कहा।  
> “शांत नहीं… थकी हुई,” जान्हवी बोली।

उसकी बातों में जैसे कोई लंबा अधूरा किस्सा छिपा था।

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तभी विराज ने नोटबुक खोली — उसमें एक पुरानी शायरी लिखी थी:

> “उस दीवार के पीछे जो रोशनी थी,  
> वो कभी खिड़की नहीं बन पाई।”

जान्हवी एक पल चुप रही…  
फिर बोली —  
> “तुम हर दरार में रोशनी ढूँढते हो?”  
> “हाँ… और तुम हर रंग में साया।”

दोनों की नज़रें मिलीं — पर कोई मुस्कान नहीं आई।  
वो पहली नज़र अब सवाल बन चुकी थी।

🌸 भाग 3: वो पुरानी पंक्ति

जान्हवी ने विराज की नोटबुक उठाई — उसके पन्नों पर इतिहास नहीं, अधूरी कविताएँ थीं।  
एक पन्ने पर उकेरा था:

> “वो नाम जो दीवार पर लिखा था,  
> मिटा नहीं, बस छुपा लिया गया।”

यह पंक्ति जैसे जान्हवी के दिल को चीर गई।  
उसने एक बार अपनी दीवार पर अपने भाई का नाम लिखा था… फिर खुद मिटाया था।

वो पन्ना धीरे से बंद कर दिया।  
विराज ने देखा, उसकी आँखों में चुप्पी थी।

> “तुम अपने रंगों से कुछ भूलती हो?” उसने पूछा।  
> “नहीं,” जान्हवी ने कहा, “मैं भूलकर बस दोबारा उसे महसूस करती हूँ।”

विराज ने धीरे से कहा —  
> “तुम्हारी दीवारें मुझसे ज़्यादा बोलती हैं।”  

जान्हवी ने हल्की मुस्कान दी — पहली मुस्कान।

> “कभी-कभी दीवारें ही वो कह देती हैं जो लोग नहीं कह पाते।”

तभी बारिश की हल्की बूँदें गिरने लगीं — जैसे जयपुर की फिजा भी कहानी सुन रही हो।

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🌧️ भाग 4: गलियों की दस्तक

जान्हवी विराज को अपनी पसंदीदा गली में ले गई — जहाँ पुरानी हवेलियों की दीवारों पर रंग-बिरंगे पोस्टर थे, और हर दरवाज़ा एक किताब जैसा दिखता था।

वो एक दीवार के सामने रुकी — उस पर लिखा था:  
> “प्यार कोई इमारत नहीं, जो गिर जाए… वो एक आवाज़ है जो दीवारों में भी गूंजती है।”

विराज वहाँ ठहर गया।

> “तुम्हारे साथ चलना मुझे लगता है जैसे हर पुरानी इमारत मेरी बातों का जवाब देने लगी है।”

जान्हवी ने कहा —  
> “मेरे साथ नहीं… तुम्हारी अपनी कहानी के साथ। मैं तो सिर्फ रंग हूँ, जो उसे चमक देती है।”

विराज ने एक तस्वीर ली — वह दीवार, वो पंक्ति, और जान्हवी की छाया।

> “इस तस्वीर में तुम्हारा नाम नहीं होगा, लेकिन तुम्हारी आवाज़ जरूर होगी।”
🌸 भाग 5: वो शाम जो नाम नहीं माँगती

सूरज अब दीवारों के पीछे छुप रहा था। हवा में घुली हल्की ठंडक, और एक दीवार पर ठहरा हुआ रंग — जान्हवी ने विराज को देखा, और बोली:

> “इस जगह को मैं ‘कहानीवाली गली’ कहती हूँ। यहाँ हर दीवार किसी का दिल है।”

विराज मुस्कराया।  
> “तो क्या मेरा दिल भी अब यहाँ लिखा जाएगा?”

जान्हवी ने कुछ नहीं कहा। उसने ब्रश उठाया और दीवार पर एक हल्का साया बना दिया — उसमें कोई चेहरा नहीं था, कोई नाम नहीं… लेकिन विराज ने समझ लिया कि वह उसी का था।

> “तुम्हें किस चीज़ से डर लगता है?” उसने पूछा।

जान्हवी ने धीमे कहा:  
> “इससे कि कोई मेरी दीवारों को पढ़े... और फिर छोड़ दे।”

तभी एक पुराना संगीत वहाँ बजने लगा — किसी नज़दीकी चाय की दुकान पर रेडियो से।  
गीत था:  
> “तेरी यादें वो रंग हैं, जो मिटते नहीं…”

उस गीत में वो शाम की सच्चाई थी।

विराज ने अपना कैमरा बंद किया।  
> “शायद पहली बार मुझे कोई तस्वीर लेने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई… क्योंकि मैं यहाँ हूँ।”

जान्हवी की आँखें भर आईं — लेकिन उसने उन्हें छुपा लिया।

> “कल भी यहीं मिलेंगे?”  
> “अगर दीवार चाहे,” उसने हल्की मुस्कान देते हुए कहा।

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🚪 एपिसोड का समापन:

वो दोनों अलग-अलग रास्तों पर चल दिए — लेकिन वो गली, वो दीवार, और वो अधूरी तस्वीर…  
अब उनकी कहानी की पहली पंक्ति बन चुकी थी।

--- लेखिका: रेखा रानी