Stray Boys in Hindi Moral Stories by Anurag mandlik_मृत्युंजय books and stories PDF | आवारा लड़के

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आवारा लड़के

थका हुआ गौरव जब शाम को अपने रूम में आया,आज उसकी आँखें फिर से लाल थी। सारे मोहल्ले वाले और पड़ोसियों में वही हमेशा की तरह कानाफूसी शुरू हो चुकी थी,, जाने क्या करते हैं ये लड़के? मुझे तो इनका मिजाज, रहन सहन, बिलकुल अच्छा नही लगता , बिलकुल आवारा किस्म के है, जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं और इस शहर की फिज़ा बिगाड़ते हैं।। आपकी बच्ची का भी ध्यान रखिएगा भाभी जी, आजकल ज़माने का ठिकाना नहीं है।।
इसी तरह एक दूसरे को हिदायत देते, मन में कईं बातें दबाकर खेर! छोडो हमे क्या करना है...कहते हुए सभी अपने अपने घर के अंदर चल दिए।

पर गौरव की आँखों के सामने नाच रहा था वो खौफनाक मंजर..जिससे वो अभी अभी मुखातिब हुआ था। वो लड़के जो एक हाई प्रोफाइल सोसाइटी में रहते है,,उन्ही के साथ कॉलेज जाने वाली वर्मा जी की बेटी के साथ शराब के नशे में ज्यादती पर उतारू थे,गौरव ने फ़ौरन जाकर मारपीट कर लड़को के चंगुल से वर्मा जी की बेटी को बचाया, उसे ऑटो में बिठाकर मोहल्ले के सामने तक छोड़कर वह ऑटो से उतर गया...और पैदल ही अपने रूम पर आ गया, लड़की के पूछने पर यह कहते हुए कि,,"मेरे साथ जाओगी तो तुम्हारी बदनामी होगी"।
सुबह जब गौरव काम पर निकला.. तो वर्मा आंटी की आँखों में उसके लिए एक इज्जत, आशीर्वाद और धन्यवाद के भाव थे,...सुबह फिर वही घटनाक्रम सामने आया तो गौरव ने वर्मा आंटी को  मोहल्ले वालो की बात काटते हुए सुना....नही मिश्रा जी..."वो आवारा नही है"।

                      ©अनुराग माण्डलीक "मृत्युंजय"

(2)
सदियों पुराने इस ऐतिहासिक शहर के प्राचीन इतिहास पर कोई नजर डालता तो अवश्य ही उसे गर्व की अनुभूति होती। जन जन की आस्था का केंद्र ये शहर यूं तो कहने को प्रदेश की धार्मिक राजधानी कहा जाता था, मगर इसके वर्तमान से रूबरू होता तो प्रशासन की नाकामी और शहर के दुर्भाग्य को कोसता था...मगर यहां भी दो प्रकार की जिंदगियां जीते हुए लोग थे। एक तो था संभ्रांत वर्ग जिन्हे हर प्रकार की सुविधा मिली हुई थी, साफ सुधरी सड़के, गंदगी रहित स्वच्छ वातावरण हर प्रकार से अपने वैभव और विलासिता पर इतराती कॉलोनियां  वहीं एक वर्ग था दिहाड़ी मजदूरों, मिल श्रमिकों, बीड़ी बनाने के कारखानों में काम करने वाले और कचरा बीनकर घर चलाने वालो का ,जहां  चारों तरफ गंदगी और गरीबी पैर पसारकर पड़ी हुई दिखाई देती थी। टूटे फूटे खप्परों और फटे पुराने चिठड़ों से बनी झुग्गी बस्ती थी, जिसकी  एक बहुत बड़ी आबादी नाले के उपरी हिस्से पर रहती और नाले में बहकर आए तरह तरह के कबाड़ के सामानों, टिन के टुकड़ों और मृत पशुओं की खाल निकालकर बेचते और जीवन यापन करते थे।शहर के इस हिस्से को गंदी बस्ती कहा जाता था और बहुत मजबूरी में ही कोई व्यक्ति इधर से निकलना पसंद करता था। ऐसे तो आम दिनों में यहां घुटने से ऊपर अपनी पेंट चढ़ाए बच्चे नाले में घूमते और मस्ती करते दिखाई देते थे मगर बरसात के दिनों में उनकी जान सांसत में आ जाती थी। लोगो को बस यही डर बना रहता था कि जाने कब इस उफनते नाले की लहरें उनकी और उनके बच्चों की बलि ले ले। इसी बस्ती में एक 20 - 22 साल का लड़का रहता था नाम था उसका कमल... नाले के ही सामानों को निकालकर वो भी उपयोगी बनाता और चोर बाजार में बेच दिया करता था। इससे जो भी पैसा आता उसे वह अपने घर चलाने और साथ ही पढ़ने के काम में लगाता था। इसी बस्ती के बाकी लड़को का भी काम तो यही था मगर  पढ़ने जैसे काम में पैसा लगाना उनकी नजर में बिल्कुल व्यर्थ था। कभी कभी त्योहार के दिनों में कुछ विदेशी मेहमान आ जाते जो बातें करने और फोटो खींचने के बदले इन नंगे बदन नालों में घूमने वाले लड़कों को थोड़ा बहुत पैसा दे देते थे। कमल को इन सबसे बेहद चिढ़ थी उसे ये फोटो खींचते विदेशी, उसकी गरीबी का मजाक उड़ाते हुए दिखते थे। उसके मन में इन सबके प्रति एक नफरत पनप रही थी,कभी कभी उस अपनी ही जिंदगी पर पछतावा भी होता। जब वो चोर बाजार की ओर निकलता तो रास्ते में पड़ने वाली एक पाश कॉलोनी की ऊंची ऊंची गगनचुंबी इमारतों को देखकर सोचता की क्या उसे हक नहीं है एक खुशनुमा जिंदगी जीने का? क्या कभी उसके भाग्य में ये दिन भी आएगा? या  फिर ऐसे ही किसी दिन इस उफनते और बदबूदार सड़ांध मारते नाले की बलि चढ़ जाएगा जैसे पिछले साल रवि और उसका परिवार मर गया था। उसे उसकी बस्ती के बाकी लड़के तंज मारते रहते थे कि
"ये देखो कलेक्टर आ गया, अब ये पढ़ लिखकर इस बस्ती पर राज करेंगे"
वो इसे सुना अनसुना कर देता मगर मन में तो टिस रह ही जाती,,
"क्या कर सकता हूं मै, मेरा भाग्य ही ये है, मगर मैं मेहनत करूंगा, इस नर्क से बाहर जाऊंगा, और दिखा दूंगा इन सबको भी की मै भी कुछ हूं। मै भी उसी ईश्वर की संतान हूं जिसकी ये दुनिया, मै सिर्फ नाली का कीड़ा नहीं हूं।" और जब ये विचार उसके मन में आते तो कहीं ना कहीं यथार्थ भी दिल के किसी कोने में बैठा मन की बाते सुना करता और उसकी कड़वी हकीकत से उसे वापस अपनी औकात पर ला खड़ा करता।
यही सोचते सोचते एक बार वह उदास हो गया, उसका मन रूआंसा सा था... उसने अपनी मां को देखा, वह पसीने से लथपथ, बारिश में भीगी लकड़ियों को चूल्हे में फुकनी से हवा देकर जलाने की नाकाम कोशिश कर रही थी, तभी अचानक दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई, कमल ने मुंह उठाकर देखा उसका बाप था, आज फिर शराब के नशे में धुत्त गालियां बकता हुआ चला आ रहा था। 
" क्या हुआ? आज भी पैसे ना मिले, या सबकी शराब पी आए" कमल की मां ने उसके बाप से चिल्लाते हुए कहा...
इतना सुनना था कि नशे में चूर उसके पिता का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया और वह गालियां देते हुए खड़ा हो गया..
"साली मेरे से हिसाब मांगती है? पूछ इस तेरे सपूत से किस पर ये सब मेरा कमाया पैसा लुटाता है..."
इन रोज के झगड़ो से कमल परेशान हो चुका था, अपनी जिंदगी को खत्म करने का ख्याल कई बार उसके मन में आता था...
"उसको गाली देने की जरूरत नहीं है..." कमल की मां ने कहा और वह भी अपनी दीन दशा का खयाल करे बिना उसके सामने खड़ी हो गई... 

"तू ऐसे नहीं मानेगी, आज तेरी अक्ल ठिकाने लगा ही देता हूं...." ऐसा कहकर उसके बाप ने पास ही पड़ी कुल्हाड़ी  पूरे जोर से उसके सर पर दे मारी....
कमल की मां लहूलुहान हो गई, कमल दौड़ा और एक झटके में उसके बाप के हाथ से कुल्हाड़ी छीनी और उसको धक्का देते हुए नीचे गिरा दिया...
बस्ती के बाकी लोग भी ये शोरगुल सुनकर जमा हुए...
किसी ने मदद की तो कमल उसकी मां को कंधे पर उठाए अस्पताल लेकर दौड़ पड़ा... वहां भी उसको भर्ती करने में उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी... ग़रीबी की वह दुर्दिन देखी हुई मूरत जितने दिन ही सकती थी जी....मगर हुआ वही जो होना था, कमजोरी ने इतना जकड़ लिया था कि एक दिन प्राण निकल ही गए।
इधर उसके बाप को हत्या के जुर्म में जेल ले जाकर पटक दिया गया....घर पर अब वह अकेला दुर्दिन काटने को मजबुर भूखा प्यासा अपनी हालत को कोसता पड़ा रहता था...एक दिन वह बस्ती से बाहर निकला चलते चलते सड़क किनारे बाल बनाने बैठे नाइयों के कांच पर नजर पड़ी तो उससे खुद को ही पहचाना ना गया। मातृ वियोग में जलकर वह विक्षिप्त सा हो गया था... बस स्टैंड के सामने पहुंचकर उसने आधे समोसे का एक टुकड़ा देखा पता नहीं उसे क्या हो गया था कि उसने उसे उठाया और खाने लगा...उसके मन में एक बात घूमकर चली गई...उसे लगा उसे कोई जोर जोर से कह रहा है, "यही तेरी नियति है, यही तेरा भाग्य है, तू नाली में पैदा हुआ है नाले की ही भेंट चढ़ेगा.."
उसने जोर से अपने कानो पर दोनों हाथ रखे और कसकर दबाने लगा ..फिर तेजी से उठकर वह पलटा और दौड़कर जा ही रहा था कि  तेजी से आती  एक कार से वह टकराते टकराते बचा...समोसे का वह टुकड़ा जो उसने सड़क से उठाया था, वो वहीं गिर गया...उसकी नज़रों के सामने ही एक गाड़ी उसे दबाते हुए निकल गई....
वह अपने रास्ते पर फिर से चल पड़ा, उसका बदन भूख से टूटा जा रहा था, कुछ खाने को नहीं था, ना ही उसके पास पैसे थे  और  ना ही मानसिक स्थिति वह बची थी कि कोई निर्णय ले पाता...बस स्टैंड की  एक टेबल के नीचे  कोने में वह दुबककर बैठ गया जाने कब उसकी आंख लग गई,सपने में उसे एक रोशनी सा दिखा और एक सुखद अहसास हुआ...जाने कब वो उसमे समाता चला गया...
सुबह हुई तो उस टेबल के आसपास भीड़ लगी थी...लाश को निकाला जा रहा था... नगर निगम की गाड़ी आयी और उसको उठाकर के गई... उसका चेहरा बता रहा था कि मारा है भूख ने...और लोग कह रहे थे कुछ खाकर मर गया..…

©®अनुराग मांडलिक "मृत्युंजय"