kalam parivesh ki shayari in Hindi Short Stories by Parivesh Dhakad books and stories PDF | कलम परिवेश की शायरी

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कलम परिवेश की शायरी

तेरी हर बात में बेशक सलीक़ा था मगर,
हर सलीक़े में छुपा इक इल्ज़ाम भी था।

मैंने हर मोड़ पे तुझसे तअल्लुक़ रखा,
और तेरा हर जवाब, इन्तिक़ाम भी था।

अब “परिवेश” को न कसूरवार समझा जाए,
उसके हर लफ़्ज़ में बस एक सलाम भी था।

                       @कलम परिवेश

 

      ‘’ कहानी बेघर की ’’


बारिश में टूटी हुई छत की कहानी है,

हर कतरा किसी बेघर की ज़ुबानी है।


हमने जो छुपाया था तकिये में रो के कल,

वो दर्द अब छत से टपकती निशानी है।


भीग गए थे ख़्वाब भी उस रात के साथ,

जिसमें सिर्फ़ तन नहीं, रूह भी पानी है।


परिवेश कहे — यूँ भीगते वक़्त न जाना,

वो जो नहीं लौटा, वही ज़िंदगानी है।


                          @कलम परिवेश

 

अब क्या बताएँ आपको क्या क्या बदल गया

परिवेश  रह  गया पुराना ,ज़माना  बदल   गया


हैराँ   हैं  क्यों   हुज़ूर   हमें   देख   कर,  कहें

फितरत  बदल  गई  है  या चेहरा  बदल गया


शर्मो-हया का अब कोई रखता नहीं ख़याल 

जमाने में  आशिकी  का तरीका बदल गया


क़समे  जो खा रहे थे सदाक़त की रात दिन 

तख्त  पे   बैठते   ही   इरादा   बदल   गया


जब  से   हुज़ूर  आप चल पड़े अपनी राह

मंजिल  बदल  गई  कभी,रास्ता बदल गया


परिवेश खड़ी  हैं  अब  भी   परेशानियाँ तो फिर

कैसे  कहें   कि   वक़्त   हमारा  बदल  गया….

                 

                                 @कलम परिवेश

 

     ‘’  स्मृति का संग ‘’


सुख वो कैसा , जो तुझको भुला दे,

दिल को खाली, आँखों को सूना बना दे।


दुख वो प्यारा, जो तेरा नाम रोए,

हर साँस में बस तेरी याद ही होए।


नींद भी रोए जब तू ख्वाब न आए,

जागना अच्छा है जब तेरा नाम मुस्काए।


जले जो सुख में तेरी याद की चिता,

ऐसा सुख जाए, बस दर्द रहे सदा।


क्योंकि उस पीड़ा में भी तेरा साथ है,

हर आँसू में तेरा ही एहसास है।


                   @कलम परिवेश

 

मेरा ख़त तेरा इंतज़ार कर रहा है,

लगता है तू किसी और से प्यार कर रहा है…


स्याही में भीग कर निकले हैं जज़्बात सारे,

क़ाग़ज़ मेरा तुझसे इज़हार कर रहा है  ||   


                                      @कलमपरिवेश

 

न लिबासों में नज़ाकत है, न ज़ेवर की हक़ीक़त है,

मेरे दामन में गर कुछ है तो बस सच्ची मोहब्बत है।


जो सीखा है फ़क़ीरी में, वो ज़िन्दा है निगाहों में,

मेरे लहजे में शोहरत नहीं, थोड़ी सी इबादत है।


नज़र झुकती नहीं मेरी, किसी शोहरत के साए में,

मेरे माथे पे ग़ुरूर नहीं, माँ-बाप की विरासत है।


तुम्हें चाहा है रूहों से, ये सौदा तो नहीं कोई,

मेरे दिल की तिज़ारत में सर्फ़ जज़्बात की कीमत है।


न दौलत है, न रख़सत है, न चाहत में सियासत है,

अगर बसते हो दिल में तुम, तो यही मेरी दौलत है।


                                    @कलमपरिवेश

उस सदमे से,बाहर आने दो
हमे भी ज़रा, मुस्कुराने दो

तुम्हें नहीं रहना, तो ठीक है
हमे तो मोहब्बत,निभाने दो

ना मत करो,ये मेरे अपने हैं
इन्हें तो कुछ याद,दिलाने दो

हम भूल गए सबको याद है
कहानी के,किस्से सुनाने दो

कदम हटा दो ये पागल है
फकीर को सिक्के उठाने दो

जान बच गई है,इश्क में तेरे
एक और बार,आजमाने दो

गम और खुशी में,झगड़ा हैं
हमें सब खुशियां, लुटाने दो

चिराग जलाने से क्या होगा
हम अपना, घर जलाने दो

 परिवेश घुट घुट के क्या ज़िना
इससे अच्छा मर ही जाने दो

              @कलम परिवेश