"मैडम सौम्य..?
"मैडम सौम्य.. उठिए...?
"Wakeup Madam! it's already afternoon.
एक बड़े से आलीशान कमरे के आलीशान किंग साइज़ बेड पर सो रही सौम्य को उठाने केलिए उसकी केयर टेकर मीरा उसे आवाज़ें लगा रही थी। अभी दोपहर के 2 बज रहे थे और सौम्य अब तक सो रही थी।
"Wakeup Madam!
"उठ जाएं! सर जा चुके हैं। खिड़की के पर्दे हटाते हुए वो ये उसे बताती है जिसे सुनते के साथ सौम्य की आंख खुल जाती है।
सफ़ेद मखमली साटन कि चादर में लिपटी हुई वो अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर मचलती हुई कहती है।—"ओह! मीरा..! मेरा पूरा बदन टूट कर चूर हो रहा है। मैं उठ नहीं पाऊंगी आज।
उसकी आवाज़ में जो दर्द भरा था मीरा उसे सुन कर कहती है —"मैं समझ सकती हूं आपका दर्द। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं। उठना तो आपको पड़ेगा ही फिर से इस दर्द को सहने के लिए। काश मैं आपके लिए कुछ कर पाती।
"कर तो रही हो तुम इतना कुछ मेरे लिए। सौम्य कराहती आवाज में ये कहती है। आज अगर तुम यहां न होती तो मेरा क्या होता। तुम्हीं तो रोज़ मुझे उठने की हिम्मत देती हो।"
उसकी आंखे साफ़ ज़ाहिर कर रही थी बेरहम रात का फसाना। मानो जैसे वो हुआ हो उसके साथ जिसमें उसकी मर्ज़ी शामिल न हो। वो उठती है जैसे तैसे कर तो चादर उसके जिस्म के परतों से होकर सरक जाती है।
अभी उसके बदन पर सिवाय इस चादर के कुछ नहीं था। चादर सरकते ही उसके जिस्म पड़े निशान उसके दर्द का फसाना बयां कर रहे थे। उसकी गर्दन से लेकर जिस्म के हिस्से हिस्से पर लाल दांतों के काटने के निशान पड़े थे। उन निशानों को देख लगता था मानो जैसे किसी भूखे भेड़िए ने उसे नोच खाया हो।
अधमरी सी हालत में वो एक ज़िंदा लाश कि तरह उठकर खड़ी होती है तो मीरा फ़ौरन से चादर उठाकर उसके जिस्म को ढक देती है ये कहते हुए कि "आप में बहुत हिम्मत है जो आप ये सब कुछ बर्दाश्त कर रही हैं। कोई ओर होती तो मर जाती। इसपर सौम्य कहती है फीकी मुस्कान के साथ "मर तो मै उसी दिन गई थी जब इस दरिंदे की बात मानकर कॉन्ट्रैक साइन किया था। अब तो बस तुम मेरी लाश देख रही हो।
"अब तो जो होना था हो गया अब यही आपकी किस्मत है। अब इस पर अफसोस कर के भी क्या फायदा। चलिए आपका गर्म पानी तैयार है बाथ टब में। वो उसे लेकर बाथरूम आजाती है और उसके जिस्म पर से चादर हटाकर उसे टब में बिठा देती है।
बाथरूम बेहद आलीशान था। बाथटब के चारों ओर फूल बिछे हुए थे जिसकी खुशबू से पूरा माहौल महक रहा था। ड्रिंक्स, सॉफ्ट म्यूज़िक, के साथ जिस्म को राहत पहुंचाने वाला धुआं सौम्य को सुकून दे रहा था तभी वो अपना सर तब के किनारे टिका लेती है आंखों को बंद करते हुए।
वो जैसे ही अपनी आंखे बंद करती है उसकी आंखों के आगे वो सारे मंज़र घूमने लग जाते हैं जो बेहद तकलीफ़ देह थे।
उन मंजरों को देख वो झट अपनी आंखे खोल लेती है। उसकी आंखों में नमी भरी हुई थी जिसे देख मीरा कहती है आप बार बार क्यों उन यादों के साए में घिर जाती है। भूल जाएं जो भी हुआ।
"काश के ये सबकुछ भुलाने जैसा होता। काश के मैं अपनी आंखे बंद करती और खोलते ही ये सब कुछ पहले जैसा हो जाता। काश के मैं उस दिन इस दरिंदे से टकराई ही नहीं होती।
"आख़िर क्या हुआ था सौम्य के साथ? कौन है जिसने उसकी ऐसी हालत बना दी है? जानने के लिए पढ़ते रहें"
("obsassed with you" )
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