“इतिहास को केवल एकतरफा नजरिए से नहीं देखना चाहिए। टीपू सुल्तान एक बहादुर शासक थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ पूरे भारत में सबसे ज़्यादा और लगातार संघर्ष किया। उन्होंने न केवल मुसलमानों, बल्कि बहुत से हिन्दू सरदारों और मंदिरों की रक्षा भी की।”
. हिन्दू मंदिरों को संरक्षण दिया:
टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्टनम् के रंगनाथस्वामी मंदिर को सुरक्षा दी थी।
मेलकोट, नंजनगुड़ और कलाले जैसे मंदिरों को उन्होंने दान दिए थे।
कई हिंदू पुजारियों को वेतन और ज़मीनें दी गईं।
2. हिन्दू अधिकारियों को उच्च पद:
टीपू के दरबार में कई उच्च अधिकारी हिंदू थे, जैसे कि पुरनैया (मुख्य मंत्री) और शामा अय्यर।
ये लोग प्रशासन और वित्त के प्रमुख स्तम्भ थे।
3. अंग्रेजों का सबसे बड़ा दुश्मन:
अंग्रेज टीपू से डरते थे, क्योंकि उन्होंने चार बार अंग्रेज़ी सेना को टक्कर दी।
वो चाहते थे कि भारतीय राजा आपस में लड़ें और अंग्रेज राज करें। आज भी कुछ इतिहासकार उनके खिलाफ उसी अंग्रेज़ी दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहे हैं।
4. धार्मिक सहिष्णुता के उदाहरण:
टीपू ने खुद श्रीरंगपट्टन के मंदिरों में पूजा-अर्चना की अनुमति दी।
उन्होंने यहूदियों और ईसाईयों को भी संरक्षण दिया था।
टीपू सुल्तान और हिन्दू धर्म के प्रति सम्मान
🔹 1. श्री रंगनाथस्वामी मंदिर (श्रीरंगपट्टनम्)
टीपू सुल्तान का मुख्य किला श्रीरंगपट्टनम् में था।
वहाँ स्थित श्री रंगनाथस्वामी मंदिर एक प्रसिद्ध विष्णु मंदिर है।
टीपू ने न सिर्फ इसे बचाया, बल्कि मंदिर की मरम्मत और सुरक्षा के लिए आदेश भी दिए।
उन्होंने मंदिर की उत्सव सामग्री (जैसे रथ और आभूषण) को वापस करने के लिए आदेश दिए, जो युद्ध में जब्त कर लिए गए थे।
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🔹 2. मेलकोट मंदिर को सोने और चांदी का दान
मेलकोट (Melukote) में स्थित चेलुवनारायण स्वामी मंदिर (भगवान विष्णु का मंदिर) को टीपू ने सोने की एक थाली और चांदी के दो दीपक दान में दिए थे।
उन्होंने पुजारियों को सम्मानपूर्वक ज़मीन और अनुदान दिया।
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🔹 3. नंजनगुड़ मंदिर की मरम्मत
नंजनगुड़ में श्रीकंठेश्वर मंदिर (भगवान शिव का मंदिर) को भी टीपू सुल्तान ने दान और संरक्षण दिया था।
उन्होंने मंदिर की छत की मरम्मत के लिए सरकारी कोष से पैसा दिया।
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🔹 4. हिंदू मंत्रियों को सम्मान
उनके प्रधानमंत्री पुरनैया (Purnaiya) हिन्दू ब्राह्मण थे और बहुत सम्मानित अधिकारी थे।
शामा अय्यर और नरसिंह राव जैसे कई अन्य हिन्दू भी उनके प्रमुख सलाहकार थे।
इन सभी को उन्होंने मंदिरों में पूजा और धर्म के पालन की पूरी स्वतंत्रता दी थी।
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🔹 5. धार्मिक आयोजनों में भागीदारी
कुछ विवरणों में यह भी मिलता है कि टीपू सुल्तान हिन्दू त्योहारों और आयोजनों में खुद भी हिस्सा लेते थे, या अपने प्रतिनिधियों को भेजते थे।
उन्होंने कभी भी मंदिर पूजा या हिन्दू देवी-देवताओं की मान्यता को रोकने की कोशिश नहीं की।
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✅ निष्कर्ष
टीपू सुल्तान एक कट्टर धार्मिक शासक नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष सोच वाले और व्यावहारिक नेता थे।
उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं, मंदिरों और पुजारियों का सम्मान किया और उनकी रक्षा की।
> 🔸 टीपू ने अपने धर्म का पालन किया, पर दूसरे धर्मों को भी सम्मान दिया।
🔸 वे अंग्रेजों से देश और संस्कृति की रक्षा करने वाले वीर योद्धा थे – न कि किसी धर्म विशेष के विरोधी।
"टीपू सुल्तान को केवल मजहबी चश्मे से देखना नाइंसाफी होगी। वे एक राष्ट्रवादी, आधुनिक सोच वाले, और बहादुर शासक थे। उनकी असली पहचान अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष और न्यायप्रिय शासन है, न कि किसी विशेष धर्म का विरोध।"