appointment in Hindi Short Stories by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | मुलाकात

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मुलाकात

डॉ सन्दीप अवस्थी

ऐसा लगता है रोज ब रोज की मुझे कोई बुला रहा है ।रूहें आवाजे दे रही हैं....आ जाओ , आ जाओ । आंख खुल जाती है और मैं चुपचाप दम साधे पड़ी रहती हूं कि यह सपना ही था या .....। कहकर उदास उदास सी निगाह से देखा उसने अपनी रूममेट को। दोनों उस शहर के हॉस्टल में रहकर प्रीमेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रही हैं । दसवीं में ही उन्हें यहां डाल दिया था ।अब वह बारहवीं में हैं और इस साल परीक्षा है। चल उठ लाफ्टर थेरेपी के लिए चलना है। दरअसल यह थेरेपी हॉस्टल की छत पर रोज सुबह पंद्रह मिनट दी जाती थी सहजयोग केंद्र के कृति और नेहा दौरा।इसमे उपदेश आदि नही होते थे बल्कि सिर्फ हास्यरस होता था,पंद्रह मिनट।

दो महीने पूर्व पांच बच्चो से प्रारम्भ हुआ और आज पचास से अधिक बच्चे आते थे। इसे यह विद्यार्थी ही संचालित करते थे। वह दोनों पीछे बैठकर देखते थे। हंसने की सारी गतिविधि होती थीं। रात भर की पढ़ाई आदि की थकान छूमंतर। यही सौम्या और उसकी रूममेट भी थे। पर आज कुछ खास होने वाला था। सौम्या हंस नही पा रही थी।

@@ उसी सुबह एक और घर मे हबड तबड़ का माहौल था। बच्चे स्कूल ,अभि और वह अपने स्कूल और दफ्तर की तैयारी में थे कि झगड़ा हो गया। बात इस बात से प्रारंभ हुई कि तुम्हारी (अभि की)माँ क्यो आ जाती है ,हर चार महीने बाद?? मेरी तो नही आती। तो क्या मना कर दूं?मत आओ, तुम्हे पसन्द नही। अरे वह अपने बच्चे के सुखी संसार को कुछ दिन जीने और महसूस करने आती है। और अभी भी अपना सारा काम खुद करती हैं। तुम कुछ मत करो उनका। मैं बाई लगा दूंगा उनके लिए । हाँ हाँ लगा दो। और गला घोंटडो मेरा और बच्चो का। "अरे इसमे यह सब बात कहाँ से आ गईं?" तब तक वह गुस्से में अपनी टूव्हीलर की चाबी लेकर निकल चुकी थी। शहर के कोलाहल से दूर वह पब्लिक स्कूल था हाईवे पर । जहां ओवरलोड ट्रक,बसेस की भरमार होती थी। और आज उसकी उनसे मुलाकात होनी थी।

@@ मेनहोल सफाई करने के नाम पर खोल तो दिया था परन्तु बंद करना सरकारी महकमे के अफसरों को पसन्द नही था। उस व्यस्त सड़क के आसपास के दुकानदारों ने कुछ पत्थर आदि रखकर निशान बना दिया था। अन्यथा दुर्घटना होने की आदर्श स्तिथि थी। बाबूजी, श्री विकासराव मोहिले, जूनियर इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी में, के पिताजी अपनी साइकिल पर ही चलते थे। कभी कभी तो वह पैदल पैदल ही सायकिल ठेलते घर तक पहुंच जाते। वह आज उस सड़क से निकलने वाले हैं। और शायद उन्ही के इंतज़ार में कुछ आवारा पशु वहाँ इत्मीनान से उनका इंतजार कर रहे हैं। एक यमराज का वाहन भैंसा भी है।

@@ दिन जो है अपनी धीरे धीरे चाल के साथ बीत रहा है उधर वह शिक्षिका अपने सुबह के खराब मूड के साथ क्लास में पढ़ाती है । कई बच्चों को डांट भी दी है। लंच समय में कुछ खास खाना नहीं खाती बल्कि सच तो यह खाना ही नहीं खाती । फिर वह दिन भर के कड़े शेडूल के बाद तीन बजे वापस अपने घर की ओर लौट रही है। सुनसान हाईवे पर बच्चे स्कूल बस में, स्कूटी पर मोटरसाइकिल पर जा रहे हैं। घर पर वह अपने दोनों छोटे बच्चों की बस आने से पहले पहुंचना चाहती है। आज उनके साथ ही खाना गर्म करके खाएगी। अपनी टू व्हीलर पर इन्ही ख्यालों में गुम चली जा रही है । वह भूल जाती है सामने एक व्यस्त चौराहा है इसमें से किसी भी तरफ से कोई भी गाड़ी आ करके उसे टक्कर मार सकती हैं। इसी के साथ वह धीरे-धीरे उस चौराहे के नजदीक पहुंचती जा रही है।

उधर दिनभर की कोचिंग क्लास में कड़ी मेहनत के बाद सौम्या को वास्तव में कुछ खास समझ में नहीं आया । दरअसल वह मानसिक रूप से थकी हुई थी। लगातार अच्छी परफॉर्मेंस का दबाव साथ में माता-पिता की तरफ से चाहे वह कम शब्दों में कहें लेकिन समझती थी उसके ऊपर अच्छा रिजल्ट लाने का दबाब तो है ही ।आखिर उन्होंने उसे अपने कलेजे के टुकड़े को इतनी दूर इस शहर में कोचिंग के लिए दो सालों से भेजा हुआ है। इन्हीं सब ख्यालों में धीरे-धीरे कदम बढ़ाती अपने हॉस्टल की सीढ़ियां चढ़ती हुई न जाने कब सबसे ऊपरी मंजिल पर छत पर पहुंच जाती है। जहां से पूरा शहर छोटे-छोटे डिब्बों जैसे मकानों की शक्ल में दिखाई दे रहा है। वह आकाश की ओर देखती है शायद वहां से कोई रास्ता मिले। फिर नीचे की ओर देखती है एक बार उसका दिल कहता है ऊंचाई बहुत ज्यादा है। वह नहीं जानती कि वह क्या करने जा रही है। लेकिन उसे पता है कि वह जीने का तरीका भूलती जा रही है।

बाबूजी आज बहुत खुश हैं। उनकी छोटी पोती ने कहा है कि आज मेरे लिए टॉफी लेकर आना। तो वह खुशी में और थोड़ा जोश के साथ अपनी साइकिल पर पैडल मारते हुए, सिर झुकाए, घंटी बजाते हुए जा रहे हैं। उन्हें लगता है मानो उस बच्ची के रूप में ईश्वर ने उन्हें सारे जहां की खुशियां देदी है। वह अपना हर्निया अपनी डायबिटीज को भूलकर बस खुश हैं और चले जा रहे हैं । उन्हें यह नहीं पता आगे मुख्य मार्ग पर बड़ा खड्डा और उसके चारों ओर जानवर बैठे उनका इंतजार न जाने कब से कर रहे हैं।

वह अब नवी मंजिल की छत की मुंडेर पर चढ़कर बैठ जाती है। उसने पांव नीचे लटका लिए हैं। उसे बचपन में कही अपनी मां की एक बात याद आती है जब भी वह गिरती थी तो उसकी मां आंखों में आंसू भर लाती थी और कहती थी मेरी बेटी, मेरी राजदुलारी, मेरी नन्ही परी तेरी सारी चोटें मुझे लग जाए ।गुमसुम सी होने पर भी मुस्कुराती है और अपनी मम्मी को याद करती है। उसे लगता है काश मैं अपनी मम्मी के पास इसी वक्त चली जाती । लेकिन ना जाने क्यों इस पंद्रह सोलह साल की उम्र में ही उसके पास सारे रास्ते बंद होते दिखाई देते हैं । बस पढ़ाई पढ़ाई पढ़ाई और उस पर लगातार अच्छा करने का दबाव। क्या यही जिंदगी है? उधर शिक्षिका अपने घर की राह पर जाने वाली सड़क का चुनाव चौराहे से पहले ही कर लेती है। तभी दूसरी तरफ से एक ओवरलोडेड चारे से भरा ट्रक तेजी के साथ गांव से शहर की ओर आ रहा है । शिक्षिका और उस ट्रक में दो पल का ही फासला है । बाबूजी अपनी खुशी को दबाए दबाए चौराहे से पहले केवल उस खड्डे से सौ कदम की दूरी पर हैं और दुकान के बारे में सोच रहे हैं जहां से वह अपनी पोती के लिए पहलीं टॉफी खरीदेंगे। वहाँ बैठा सांड अब खड़ा हो गया है और सामने बैठे अन्य पशुओं को देखकर हौले हौले गुर्रा रहा है ।लग रहा है मानो हर एक की हर एक से मुलाकात होने ही वाली है । इसका इंतजार शायद वही कहीं छुपी खड़ी मौत भी कर रही है।

कोई होना चाहिए जो यह कह सके कि बच्चों यह जिंदगी तुम्हें यूं खोने के लिए नहीं मिली। कितनी ही बड़ी से बड़ी परीक्षा हो किसी भी बच्चे के माता-पिता बच्चा अगर फेल हुआ है तो उसके साथ बुरा सलूक करें यह नही सोचते वह। जिंदगी अगर हमारे लिए एक रास्ता बंद करती है तो सौ रास्ते खोलती है । लेकिन यह बात लाखों-करोड़ों नौनिहालों को बताने वाला कोई नहीं है। शिक्षिका जो अपनी धुन में है और रोज का देखा भाला रास्ता है। लेकिन आज उस ओवरलोडेड ट्रक को ना जाने क्यों गांव से शहर इस अपराहन में पहुंचने की जल्दी है । ट्रैफिक सिपाही को चौराहे पर ना देख कर के तेजी से कर्कश हॉर्न बजाता निकलने की कोशिश में है । कोई उसे समझा देता गांव कस्बे की खाली सड़कों से शहर की व्यस्त सड़कों पर जब वह आता है थोड़ी गाड़ी धीमी कर ले। चारों और देख ले और ईश्वर की बनाई अनमोल जिंदगियों को तबाह होने से बचाले। काश कोई बता पाता कि आवारा जानवर जो बैठे हुए हैं यह ना जाने क्यों लोग इनसे सब लाभ दूध उत्पाद ले लेते हैं लेकिन इनकी भोजन की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी नहीं निभाते और उन्हें ऐसे ही सड़कों पर छोड़ देते हैं । उधर जो नगरपालिका आदि के कर्मचारी हैं वह भी इनको देख कर अनदेखा करके ना जाने सैकड़ों शहरों में कितनी ही बार चले जाते हैं और रोज इस तरह की दुर्घटनाएं होती है । और बाबूजी टॉफी खरीदने के लिए, अपनी पोती की खुशी को अपने दिल में महसूस करते हुए तेजी से बढ़ते आ रहे हैं । ऐसे मासूम लोगों की जिंदगी काश काश कोई बचा पाता। कोई चमत्कार ही होता। पर क्या यह सम्भव है?

......यह सब देखते हुए मुनिवर नारद ने प्रभु की ओर देखकर कहा नारायण नारायण। सृष्टि आपकी,जीव जगत आप ही हो। आप ही जन्म लेते हो आप ही मरते हो। जैसे एक चंद्रमा का प्रतिबम्ब जल से भरे अनगिनत पात्रों में अलग अलग दिखाई देता है । पर वास्तव में आकाश में चंद्रमा एक ही होता है। ऐसे ही हर जीवात्मा में आपका ही प्रतिबिम्ब है। नारायण मुस्कराए और दाएं बैठी देवी लक्ष्मी जी को देखा। देवी निस्पृह भाव से बैठी रहीं। दरअसल वह प्रभु को, अपने स्वामी को कुछ कुछ, अब हज़ारो वर्षो बाद कुछ कुछ समझने लगी थी। कि वह कब किसकी किस्मत का लिखा पलट दे यह कोई नही जानता। कभी कभी वह मृत्युलोक की नारियों का सोचती की वह कैसे अपने पति को बिना समझे या समझने के भृम में तमाम उम्र काट लेती हैं। किसिम किसिम के लोग। नारायण मुस्कराए मानो देवी की बात सुनली हो। उन्होंने उनकी आंखों में कुछ पल देखा, समझा और फिर धरती की ओर निगाह की। धरती पर घटनाक्रम पुनः प्रारम्भ हो गया।

वह ओवरलोडेड ट्रक चलता चलता खड़खड़ाने लगा और बिल्कुल स्कूटी सवार शिक्षिका के पास रुक गया। उधर बाबूजी साईकल आगे बढ़ाने की जगह पास ही की गली में मुड़कर अपनी पुरानी दुकान से टॉफी लेने उतर गए। नारायण नारायण......पर.......नारद मुनि धरती की ओर देखते कुछ परेशान दिखे। भगवान कोई दूसरी फ़ाइल में व्यस्त दिखे। मुनिवर ने पहलू बदला और नारायण नारायण कह माता की ओर देखा। देवी अपनी स्वामी सेवा में लगी हुई निर्विकार भाव से मायामयी सृष्टि के कार्य व्यापार से अलग थलग थी। प्रभु ऐसे खेल अक्सर करते रहते थे। अरे जब बचाना ही है तो संकट में काहे डालते हो ? इस सीधे प्रश्न का उत्तर हमेशा प्रभु इतनी विस्तार से देते की देवी का मन करता कि वह कोप भवन में जा रहे। ढाई हजार वर्ष पूर्व जब शादी को कुछ समय मतलब चार हज़ार वर्ष हो गए थे तो वह एक बार गई थी कोप भवन में। तो प्रभु बुलाना ही भूल गए, गलती मानना तो दूर की बात । इतना एटीट्यूड? नारद मुनि से खबर लगी कि प्रभु टेम्पररी सिंगल होने का आनंद उर्वशी, मेनका, रंभा आदि अप्सराओं की संगत में ले रहे है। हे भगवान भी तो वह कह नही सकती, क्योकि भगवान खुद ही इन्वॉल्व हैं। तो नारद मुनि को ही पटापटुकर भगवान को याद करवाया की धर्मपत्नी कुपित हो कोप भवन में हैं। यह तो यह भी भूल गए कि किस बात पर कुपित हुई थीं मैं ?तो मनाते कैसे? पहले तो नारद को बोले कि वह ही क्यो नही ले आए अपनी देवी माँ को? नारद ने बताया कि यह पति पत्नी का निजी मामला है और वह उसमे नही पड़ेंगे। फिर हैं हैं करके हाथ जोड़ निवेदन किया तो यह कोप भवन में प्रकट हुए। और मासूम सी मुस्कान से कहा चलो मैं तुम्हे लेने आया हूँ। इस तरह आ जाती तो सारी नारी जाति का सर झुक जाता।मैं नही बोली। प्रभु अंततः बोले कि अच्छा अच्छा अब जैसा तुम कहोगी वेसा ही करूँगा। और एक बेशकीमती हीरो से झिलमिलाता हार मेरे गले मे डाल दिया। प्रभु ने ऐसे कई आइटम दो दो के सेट में बनवाए हुए हैं। बहुत काम आते हैं।तो मैं वापस वैकुंठ लोक। वह वर्तमान में आई नारायण नारायण की बेचैन गुहार सुन। नीट मेडिकल परीक्षा की तैयारी करती, वह दुखी सत्रह वर्षीय लड़की आठवीं मंजिल से नीचे गिरती जा रही थी। तीन मंजिले पार भी हो चुकीं थीं। मुनिवर बेबसी से हाथ मलते चलने के लिए खड़े हो गए। अपने सामने कन्या मृत्यु का पाप देखना नही चाहते। देवी ने अब ध्यान से देखाऔर तुरन्त कुपित भाव से परमेश्वर की ओर देखा । जो कहीं और कॉल लगाए मंद मंद मुस्करा रहे थे। जरूर वह चुड़ैल नई अप्सरा प्राजक्ता होगी। नए नए तरीके न जाने कहाँ से सीखकर आती हैं यह आजकल की अप्सराएं। हमे क्या मतलब हमारे पास तो इन जगत स्वामी का बाकायदा पट्टा है। कोई कुछ भी करले स्वामी मुझसे दूर नही हो सकते। नारायण नारायण नारद मुनि कसमसाए क्योकि लड़की गिरती हुई सात मंजिल पार करके बस पूरे वेग से धरती से टकराने वाली थी। और किशोरावस्था में ही जान चली जाती। दैवी माता मुस्कराई यह स्वामी जानते नही की उनकी सारी शक्ति मैं ही हूँ। पर मैं कुछ नही कहती तो यह मुझे भाव ही नही देते। बस यह तो सदियो से पांव ही दाबते बैठी रहेंगी। बस अब आखिरी क्षण बचा है, नारद की आंखे विस्फारित हो भूलोक के इस पल से चिपक गईं हैं। देवी ने शांति से आंखों ही आंखों में नारद मुनि को आश्वस्त किया अपने एक हाथ को प्रभु के पांव से हटा धरती की ओर किया। सुदूर धरती पर एक शहर से आठवीं मंजिल से चुपचाप गिरती अकेली लडक़ी के जमीन पर गिरने से पहले तिरपाल लगा एक ट्रक नीचे आकर खड़ा हो गया। नारायण नारायण कहते मुनिवर ने प्रणाम किया और अंतर्ध्यान हो गए।

अब भी यदि आप ईश्वर को नही मानते तो इंतज़ार करें।

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