धारा ने कर पार्किंग लोट में खड़ी की और दौड़ती हुई साउथ वेस्ट एयरलाइंस के कॉरिडोर में पहुंची तभी उसके फोन की घंटी बजी। वह समझ गई मान्या की फ्लाइट लैंड कर गई है।
"मामा हम लैंड कर गए हैं!"
"ओके मैं एयरपोर्ट पर ही हूं"
कहकर उसने फोन बंद कर दिया और लगी इंतजार करने आउटर सर्किल पर। बयालिस की उम्र में गोरी चिट्टी धरा तीस वर्ष की युवती लगती थी। जींस और टॉप पहने छरहरी काया व स्मोकी बाल जो कंधे से थोड़ा नीचे तक खुली लटों में बिखरे रहते थे उसके गौर वर्ण और गुलाबी चेहरे को और खूबसूरत निखार देते थे। हर वक्त मुस्कुराता चेहरा जिसकी आभा उसकी आंखों की चमक बढ़ा देती थी जो उसके सौंदर्य को दुगना कर देते थे। कानों में एक -एक मोती के स्टड व एक डायमंड की रिंग। पास से गुजरता आदमी उसे पलट कर फिर देखता था ऐसा उसके साथ प्रायः घटता रहता था। वह स्वभाववश अपने चेहरे पर सदा एक मीठी मुस्कान ओढ़े ही रहती थी।
तभी देखती है कि सामने से बहुत स्मार्ट मान्या ग्रे पेंट कोट सूट में आ रही है साथ में मिनी फ्रॉक में छोटे कद की ब्लैक ब्यूटी भी आ रही है। मान्या की हाइट अपनी मां जितनी पांच फुट चार इंच थी, और वह भी चेहरे पर वही चिर स्मित मुस्कान ओढ़े हुए थी।
"मामा यह मार्था है! जिसके बारे में मैं आपको बता रही थी फोन में!"
"हेलो मार्था वेलकम! "
"हेलो आंटी यू लुक सो यंग!"
तीनों बातें करती हुई ट्राली लेकर पार्किंग लौट में पहुंच गईं और कार में बैठ गई। घंटे भर में वह घर पहुंच गई थीं। मार्था बात करने में चुलबुली व अपनत्व लिए हुई थी। वह मान्या के साथ सैन फ्रांसिसको घूमने आ गई थी। उनकी लॉस एंजेलिस में ऑफिस मीटिंग थी वह फिनिक्स से वहां आई थी। धरा को यह संतोष था कि उसकी बेटी उसके साथ प्रसन्न है। नहीं तो वह हंसना ही भूल गई थी, जब से उसके पापा उनको छोड़ सिधार गए थे। दो-तीन दिनों तक मान्या और मार्था घूमती रहीं। मान्या उसे वाइनरिज़(अंगूर के बागान) दिखाने ले गई थी। आर्ट पैलेस म्यूजियम, गोल्डन गेट ब्रिज, हाफ मून बीच यह सब दिखा कर वह उसे बाहर खाना भी खिलाती रही। फिर भी धरा ने टोटिया (मैदे की रोटी )में पनीर भुर्जी डालकर रोल बनाकर उसे खिलाए जिसकी वह कायल हो गई थी। राजमा चावल भी उसे बहुत पसंद आए थे। हम भारतीयों की आदत है कि हम विदेशियों को अपना खाना अवश्य खिलाते हैं। शायद भारतीय खाने की प्रशंसा पाने के लिए और अपनी ईगो शांत करते हैं कि हम भी किसी से कम नहीं हैं।
खैर , वह वापस जा रही थी। एस एफ ओ एयरपोर्ट से प्लेज़ेंटन सबर्ब में जाने के लिए समुद्र के ऊपर बना ब्रिज आधा घंटे की ड्राइव है। मार्था के लिए यह अनुभव नया था और वह अत्यंत उत्साहित थी यह देखकर। वापस जाते हुए धन्यवाद करके वह विनम्रता और शालीनता से उन मां- बेटी के हाथ चूम कर गई थी और फिनिक्स आने के लिए निमंत्रित कर गई थी। जहां सूखे- सपाट पहाड़ थे। जब कि सैन फ्रांसिस्को प्राकृतिक संपदा से भरा पड़ा था।
मार्था के जाने के पश्चात दोनों के बीच चुप्पी का साम्राज्य छा गया था। घर पहुंच कर दोनों अपने-अपने बेडरूम में चली गईं थीं।सामने ख्यालों की गहरी रात थी। धरा पुनः अतीत की स्मृतियों में विचरने लग गई थी। यश के साथ उसका जीवन बिना कॉमा लगे फुल स्पीड में दौड़ रहा था। मान्या उनके जीवन की ईश्वर प्रदत अनुपम सौगात थी। पढ़ाई मन लगाकर करती थी और वह गर्व से जी रहे थे कि तभी एक गाज गिरी। यश की कार का ट्रैश(कचरे)के भारी ट्रक से एक्सीडेंट हो गया था और वह वहीं स्पॉट पर उनको रोता बिलखता छोड़कर चला गया था। मान्या पापा की जुदाई सह नहीं पाई थी,पूरी शोक में चली गई थी। हाल तो धरा का भी यही था लेकिन मान्या के कारण उसने धीरज का दामन थाम स्वयं को और उसको भी संभाला। उसके जीवन का अंधेरा कभी कुछ कहता लगता तो कभी खामोश हो जाता था। तब वह छाती के द्वार खटखटाती थी। दिल की दीवारों को नाखूनों से खरोंचती थी। और यादें दबे पांव आकर बदन पर रेंगती थीं। तब दिन बरस बन जाते थे,बिताए नहीं बीतते थे। यश की स्मृतियों में भी धरा को यश की गंध आती थी। जैसे नींबू काटने पर मुंह में खटास आ जाती है। जब कभी उसे जोर से रोना आता तो दोनों हथेलियों से अपने होठों को भींच लेती थी कि कहीं मान्या न सुन ले।
मान्या ने इंटरनेशनल बिजनेस में ग्रेजुएशन की तो उसको अच्छी जॉब मिल गई थी। उसका ध्यान बंट गया था और धरा ने एक स्टोर मैनेजर की पोस्ट खाली होने पर वहां अर्जी दी। उसकी स्मार्टनेस पर उसे भी नौकरी मिल गई थी। अब मां बेटी को एक दूसरे से आंखें चुरा कर रोने का समय कम ही मिलता था। जिंदगी पुनः जी उठी थी। 'ढाक के वही तीन पात' ।धरा का सोशल सर्कल अच्छा था। उसकी सखी- सहेलियां कभी कभार आ जातीं लेकिन फोन पर संबंध अवश्य बनाए रखती थीं। उसे ज़िंदादिली से जीना सिखाती थीं। फिर भी एकांत में दबे पांव एक क्षण आता था स्मृति का क्षण। तब-- जब ख्यालों की रात बहुत गहरी होती थी और वह टूट कर बिखर जाती थी।
यूं ही वक्त सरक रहा था कि एक दिन यश के नाम से एक चिट्ठी आई जिस पर यश के पुराने घनिष्ठ मित्र रघुवंश का नाम लिखा हुआ था। यह चिट्ठी अमेरिका से ही थी। जबकि अब केवल भारत से भी कभी-कभार किसी की चिट्ठी आती थी। रघुवंश ने यश को सूचित किया था कि उसकी पत्नी जेनिफर (अमेरिकन)का निधन हो गया है। वह अपने दोस्त की सहानुभूति की आस में था लेकिन धरा ने धैर्य पूर्वक उत्तर दिया कि उनके दोस्त यश भी नहीं रहे हैं। धरा का पत्र मिलते ही रघुवंश ने फ्लाइट पकड़ी और सैन फ्रांसिस्को आ गए। दोनों दोस्तों के परिवार टूट गए थे वह भी एक ही समय। रघुवंश के आने पर यश और धरा की शादी की एल्बम निकाल कर वह इकट्ठे बैठ कर देख रहे थे। यश है कि नहीं है विश्वास करना दुरूह हो गया था। दो दिन होटल में रुक कर रघुवंश वापस चले गए थे लेकिन उनकी उपस्थिति ने बहुत ढांढस बंधाया था धरा और मान्या को। कुछ पल ऐसे भी होते हैं जो भविष्य से टूटे हुए होते हैं फिर भी सांसों में बस जाते हैं, प्राणों में धड़कते हैं। इन सब से गुजरते हुए एक समय आता है जब वह इंसान आगे बढ़कर कुछ सोच पाता है। धरा यही सब सोचते हुए नींद के गार में उतर गई थी।
अगले दिन रघुवंश का फोन आया तो धारा ने सोचा पहुंचने का फोन आया होगा लेकिन फिर हर दिन उसका हाल-चाल मान्या के विषय में पूछना चलता रहा। उसकी बेटी माला के विषय में भी बातचीत होने लग गई थी। क्रिसमस के बाद रघुवंश माला को लेकर पुनः सैन फ्रांसिस्को आ गए थे। मान्या भी घर पर थी। माला का फाइनल ईयर था ग्रेजुएशन का। हम उम्र लड़कियों का आपसी तालमेल बैठ गया था। माला अपनी मां जैसी गोरी थी लेकिन उसके बाल काले थे पापा के जैसे और आंखें भी मोटी- मोटी पापा जैसे आकर्षक थीं। बेहद खूबसूरत! धरा मान्या की ओर से निश्चिंत हो गई थी। मान्या रघु अंकल में अपने पापा की झलक देखती थी। दोनों दोस्तों की आदतें एक जैसी थीं, जिन्हें वह नोट करती थी। उसे अपना घर भरा हुआ अच्छा लग रहा था। चार दिनों में ही दोनों के चेहरे खिल से गए थे। माला को भी धरा आंटी डीसेंट लगीं। वह उसे बहुत भा गई थीं, क्योंकि वह कोई भी बात उस पर थोपती नहीं थीं।
मान्या अपने पापा को बहुत मिस करती थी। उसके मैनेजर साहिल सैनी का सामीप्य ऑफिस में उसे एक सहारे के रूप में लगता था। दोनों एक दूसरे को पसंद करने लग गए थे और अब तो डेट्स पर भी जाने लग गए थे। उधर मां को लगा कि वह दिल से ज़ख्मी बेटी को मना नहीं कर पाएगी, तो वह चुप्पी साध गई थी। कई बार यादों से उभरे ज़ख्मों के जवाब में एक रिक्तता होती है जिसे भरना सुनने वाले के जिम्मे होता है। उसकी सोच के अनुसार साहिल सैनी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व का छै फीट ऊंचा, हल्की मूंछ वाला युवक था जो मान्या को बहुत पसंद करता था। मान्या की पीली पड़ी चेहरे की रंगत अब अपना रूप बदल रही थी। वह गुलाबी आभा में तब्दील हो रही थी। मां को बेटी के चेहरे पर हल्की मुस्कान थिरकती देखकर सुकून मिलता था। उससे रहा नहीं गया। धरा ने रघु को फोन पर सारा राज़ बता दिया। अगले ही दिन रघु फ्लाइट लेकर उसके पास आ पहुंचा। इस बार वह होटल ना जाकर घर पर ही आ गया था। सांझ ढले मान्या जब ऑफिस से घर आई तो रघु अंकल को सामने पाकर खिल गई। उसके चेहरे की गुलाबी रंगत देखकर रघु ने पूछ ही लिया,
"जिंदगी में कोई आ गया है क्या मान्या, तुम्हारा चेहरा भेद खोल रहा है।
"जी हां अंकल, मेरा बॉयफ्रेंड है। मैं डेट कर रही हूं आजकल उसके साथ।"
अमेरिका में बच्चे झूठ बोलकर कोई बात छुपाते नहीं हैं। वह खुली किताब की तरह होते हैं। उसके विषय में एक दो बातें पूछ कर रघु शांत हो गए थे। मान्या की उम्र की आहटें उसकी गति बता रही थीं। रघु ने एक बड़े रेस्टोरेंट में अगली रात डिनर के लिए मान्या को कहा कि वह साहिल को भी इनवाइट कर ले उससे मिलकर उन्हें हार्दिक प्रसन्नता होगी, धरा भी साथ थी। बहुत ही सरल स्वभाव का लगा था साहिल बच्चों सा निश्छल। रघु और धरा दोनों को वह पसंद आ गया था। रघु निश्चिंत वापस चले गए थे।
माला की मई में ग्रेजुएशन थी। रघु बहुत उत्साहित थे। वहीं हाल के बाहर माला ने पापा को बॉब से मिलवाया। वह बौब से डेटिंग कर रही थी। बौब माला का सीनियर था, उसी यूनिवर्सिटी से पढ़ कर गया था। अब नॉर्थ कैरोलिना में टेक्निकल कंपनी में कार्यरत था। दोनों को माला की ग्रेजुएशन की प्रतीक्षा थी। उसने अपने पापा से कहा,
"पापा, अब मैं वयस्क हो गई हूं और शादी के लिए तैयार हूं! बौब को इसी दिन का इंतजार था। आपकी सहमति हो तो हमारी शादी करा दीजिए।"
रघु ने बॉब के अमेरिकन माता-पिता को बुलवाया और चर्च से तारीख ले ली फिर सबको निमंत्रण भेज कर खबर कर दी। नियत समय पर सब रिश्तेदार और दोस्त पहुंच गए। मान्या और साहिल भी, मस्ती के रंग में रंग रहे थे। दूधिया सफेद डिजाइनर गाउन में माला कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी। माला और बॉब शादी के बंधन में बंध गए। हवाओं में शादी की सुगंध छाई हुई थी। पांच सितारा होटल के हाल में सभी जोड़े नृत्य करने के लिए माला और बॉब के आसपास थिरक रहे थे। मान्या ने पेस्टल पर्पल शिफॉन के गाऊन के साथ कान में डायमंड के लंबे लटकन व गले में पतली सोने की चेन डाली हुई थी। साहिल की बांह में हाथ डाले हुए वो सबसे अलग लग रही थी। धरा ने सिंपल ज़री की प्लेन साड़ी के साथ गले में लंबी डबल सोने की चेन पहनी थी। कानों में डायमंड के सॉलिटेयर थे । जिससे उसका चेहरा दमक उठा था। रघु उसके रूप को निहारता ही रह गया। उसका जी चाहा कि वह धरा को प्रपोज कर दे लेकिन उसके लिए उसे बेटी से आज्ञा लेनी थी। रघु ने जैसे ही माला से बात की,वहअपनी मां की अनुपस्थिति में पापा का किसी और का हो जाना सह नहीं पा रही थी। अब उसे पापा पर अपना एकछत्र अधिकार लगने लगा था। नई मां को घर में स्वीकार करना उसके लिए बहुत दुस्सह; कदम था लेकिन अपनी अनुपस्थिति में पापा का एकाकीपन सोच कर उसने काफी ना नुकर के बाद हामी भर दी।
वहीं मान्या ने यह सुनते ही उत्साहित हो मां को दोनों बाहों में भर लिया और बोली,
"मुझे रघु अंकल पापा जैसे लगते हैं मामा! मैं दोबारा से पापा पाना चाहती हूं! मुझे मालूम है वह आपको बहुत प्यार से रखेंगे। हां मां!!"
उधर धरा सोच रही थी--यादें! जो अतीत से जुड़ी एक धरातल पर घटी होती हैं। जिनकी प्रविष्टि पर आपका पूर्ण स्वायत्त अधिकार होता है; आप उनमें आकंठ डूब सकते हैं फिर चाहे आप रोएं या हंसे! संतुष्ट हों या दर्द में डूब जाएं। यदि आप कोई ठोस कदम उठा लेते हैं तो खुशियों की क्या गारंटी? कहीं जमाने भर का दर्द आपकी झोली में न डल जाए! लेकिन रघु का रवैया और अपने होने का एहसास उसे हरदम देते रहना। धरा को सकारात्मक रुख़ अपनाने की ओर प्रेरित कर रहा था। रघु ने जैसे ही सबके सम्मुख उसे प्रपोज किया, तो वह षोडिशी सी लजा गई।
लोकल आर्य समाज में धरा की बहन जिसे फ्लोरिडा से बुलाया गया था,व सारे परिवार के समक्ष रघु ने धरा की मांग भरी और मंगलसूत्र डाल दिया। धरा सहमी सी गई। ना मालूम उसके भीतर कौन से अंधड़ चल रहे थे जो वह बाहर शांत वह संयत थी, पर भीतर के कोलाहल को समेट नहीं पा रही थी। इधर मान्या संतुष्ट हो गई थी कि मां को सुरक्षित हाथों में सौंप कर अब वह सुहागन बनकर घर से विदायगी कर सकती है। वे सब एक नए रूप में घर वापस जा रहे थे। धरा
ने अपनी प्यारी सखी- सहेलियों को
फोन पर खुशखबरी दी और अपनी फ्लाइट भी बताई। वे लोग इकट्ठी होकर एयरपोर्ट पर फूल और बुके लिए उन्हें लेने आ पहुंची थीं।
अगले दिन वही सूना घर गोल्डन और जामुनी फूलों और गुब्बारों से दुल्हन जैसा सजा हुआ था। दीवारें मुस्कुरा रही थीं और आंगन नाच रहा था। मान्या और साहिल भी इतनी जोर के म्यूजिक में हर्ष विह्वल हो सबके बीच थिरक रहे थे। इसके साथ ही मान्या की शादी की तारीख अगले इतवार की पक्की कर दी गई। इनकी शादी पंजाबी रीति- रिवाज से होनी थी। साहिल के माता-पिता और छोटा भाई भी तीसरे दिन पहुंच गए थे; इंडिया से मान्या की शादी का डिजाइनर लहंगा- चोली वगैरह लेकर। मान्या प्रफुल्लित थी कि उसकी शादी की वेदी पर मम्मी सुहागन बन नए डैडी के साथ बैठकर कन्यादान करेगी।
सारे रीति रिवाजों के साथ मान्या का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। मान्या की नव ब्याहता मां नए पापा के साथ खूब जंच रही थी और मान्या मन ही मन मां को सुहागन देखकर पुनः जी उठी थी। उसका जोश परम पर था। अतीत का कोहरा छंट गया था और अब समक्ष था निरभ्र आसमान! जहां रात्रि में सितारों की ओढ़नी टंकी थी। सोमवार को विदाई हुई। वह अपने ससुराल परिवार के साथ मां की ओर से बेफिक्र हो लॉस एंजेलिस चली गई थी।
धरा ने सारा बिखरा घर कार्डबोर्ड के डिब्बों में समेटा। और बाकी चीजें अपनी फ्रेंड्स को दे दीं। क्योंकि रघु एक बड़ी कंपनी का सी ईओ था, उस का घर तो पहले से ही सेट था। वो बात और है कि ना जाने यह डब्बे कब खुलेंगे? या कभी खुलेंगे भी कि नहीं। सब के जाने के बाद अपने आंचल में ढेरों खुशियां समेटे अतीत की सुधियों को दरकिनार रख वह रघु के होने से निश्चिन्त हो भविष्य में उड़ान भरने चली थी।
उधर साहिल के मम्मी पापा और छोटा भाई रोहन एक महीना उनके साथ रहकर भारत वापस चले गए थे। मान्या हफ्ते में तीन दिन फ्लाइट लेकर अपने पुराने ऑफिस में सैन फ्रांसिस्को जाती थी। वह अपने ट्रांसफर के चक्कर में लगी थी। इससे साहिल कभी-कभी खीझ जाता था। उसका मेन ऑफिस लॉस एंजेलिस में ही था। वह तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए उनकी कंपनी में गया था जब मान्या से मुलाकात हो गई थी और वह मुलाकात ही आज उन्हें करीब ले आई थी। बाकी दिनों में मान्या 'वर्क फ्रॉम होम'यानी घर से ही काम कर रही थी। एक दिन साहिल ने मान्या से कहा, "चलो ,आज डिनर बाहर करने चलेंगे, मैं आठ बजे शाम को आ जाऊंगा तुम तैयार रहना।"
मान्या घर से काम कर रही थी। उसे पता ही नहीं चला कब आठ बज गए। साहिल के पहुंचने तक वह तैयार नहीं हो पाई थी साहिल ने आकर गुस्से में उसके हाथ से लैपटॉप छीन लिया। वह कोई जरूरी मैसेज कर रही थी। वह भी गुस्से में चिल्लाई,
"यह क्या किया तुमने साहिल? मैं काम कर रही थी! सब गड़बड़ कर दिया!"
यह सुनकर साहिल ने गुस्से से लैपटॉप जोर से पलंग पर फेंक दिया। इस पर मान्या अपने लैपटॉप को उठाकर जोर-जोर से रोने लग गई। इतना गुस्सैल है साहिल! उसके स्वभाव का यह गुण तो उसे मालूम ही नहीं था। उसने डिनर के लिए रेडी क्या होना था? सारा माहौल ही डरावना और कुटिल बन गया था। साहिल के ऐसे रूप की उसने कल्पना भी नहीं की थी। वह बहुत डर गई थी। खड़ी-खड़ी कांप रही थी। फिर बाथरूम में जाकर उसने मुंह- हाथ धोया और सॉरी! सॉरी! बोलकर साहिल को प्यार करना चाहा तो उसने उसके हाथों को झटक दिया। मरती क्या करती? वह चुपचाप बाहर बरांडे में जाकर बैठ गई। वह मनन कर रही थी कि अब क्या करे? क्या मां को फोन करे? नहीं, वह मां को बेचैन नहीं कर सकती। उसे स्वयं यह सब कुछ सहना होगा।
वक्त के साथ धीरे-धीरे जिंदगी पुनः ढर्रे पर चल पड़ी थी कि एक दिन साहिल की कमीज का एक बटन टूटा हुआ था। वह जोर से चिल्लाया, "तुमसे एक बटन भी नहीं लगाया जाता मान्या!"
इस पर मान्या ने कहा," मैंने देखा नहीं था। तुमने कहा है तो अब लगा दूंगी।"
तभी साहिल ने अलमारी में से उसका एक टॉप हैंगर समेत उतारा और कैंची से उसके सारे बटन काट दिए। यह देखकर मान्या काम छोड़कर भागी और उसका हाथ पकड़ा तो उसने कैंची उसके हाथ पर दे मारी। मान्या का हाथ जख्मी हो गया था। वह अनदेखा करके ऑफिस चला गया लेकिन मान्या का दिल बुरी तरह ज़ख्मी हो गया था। अपने जख्मों को दिल में छुपाए दोनों की पटरी फिर से बैठने लगी थी कि एक दिन सूप में नमक कुछ ज्यादा हो गया। जो कि ठीक हो सकता था। लेकिन उसने वह सूप का कप मान्या की प्लेट के खाने पर उड़ेल दिया। कुछ मान्या के कपड़ों पर भी गिरा। 'ढाक के वही तीन पात'! वह ज़रा सी भी गलती होने पर कुछ बोलने का मौका ही नहीं देता था और अपना रिएक्शन कर देता था। मान्या को बहुत परेशानी होने लग गई थी। वह उससे डरने लग गई थी।
एक इतवार को मान्या बहुत तन्मयता से 'अलेक्स हेली' का उपन्यास "रूट्स" पढ़ रही थी। तभी साहिल ने कहा,
"राघव और रिया की शादी की आज साल गिरह है। चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ। अभी चलना है। मैं फ्रेश होकर आया।"
उसने आकर देखा कि मान्या अभी भी लेटी हुई उपन्यास पढ़ने में तल्लीन हैं और उसने कपड़े भी नहीं निकाले थे। यह देखकर उसे बहुत गुस्सा आया। उसे जब भी गुस्सा आता था तो वह आपे से बाहर हो जाता था। उसने बाथरूम से लिक्विड सोप कंटेनर उठाया और लेटी हुई मान्या के ऊपर चढ़कर बाएं हाथ से मान्या का मुंह पकड़ा और दाहिने हाथ से उसके मुंह के भीतर लिक्विड सोप भरने लगा। स्वयं उसकी बाहों पर चढ़कर बैठ गया था। मान्या तड़प उठी। उसने दोनों टांगों से उसको पीछे से धक्का दिया। उपन्यास उसके हाथ से छूटकर वहीं गिर गया था। पास में पड़े फोन और टेबल से कार की चाबी लेकर वह दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर भागी ।और कार लेकर मेन रोड पर आ गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करने जा रही है। वह बेध्यानी में मम्मी की एक पुरानी सहेली के घर चल पड़ी, जहां वह कभी यहां आने पर पापा के साथ गई थी। 'संगीता आंटी'। उनके घर पहुंच कर उसने उन्हें अपनी शारीरिक प्रताड़ना के विषय में सब कुछ बताया और फिर ढेरों उल्टियां कर- कर के सोप से मुंह खाली किया।
संगीता और उसके पति राजेश, धरा से पूछे बिना कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे। रात दस बजे धरा को फोन लगाया, तो वह तड़प उठी और खूब रोने लगी। रघु ने सारी बात पूछी। उन दोनों के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई और सुबह की पहली फ्लाइट लेकर वह लोग संगीता के घर पहुंच गए। चूंकि मान्या ने लव मैरिज की थी , वह स्वयं को दोषी मान रही थी और भयभीत हुई बैठी थी। लेकिन मां का तो कलेजा फटा जा रहा था। वह निश्चिंत थी कि
उसकी 'जाई'(बेटी) खुश है। पर यहां तो उस पर हुए जुल्म की हद ही हो गई थी। वह लोग मान्या को लेकर साहिल के पास गए। केस पुलिस में जा सकता था, लेकिन रघु ने उसके पापा से इंडिया में बात की और उन्हें सब बातों से अवगत कराया। साहिल को दोषी करार देते हुए तलाक का फैसला कर आए। धरा के तो हाथ- पैर फूल रहे थे। सब कुछ रघु ने संभाला हुआ था। घर आकर धरा ने रघु से कहा
" तुम्हें अपने पाशर्व में पाकर मैं पूर्णता का अनुभव कर पा रही हूं। तुम ही हमारे रक्षा कवच हो और आत्मविश्वास से भरकर यह फ़ैंसला ले पा रहे हैं हम तुम्हारे होने से ।"
डॉ वीणा विज 'उदित'