Tu tha, Magar Mera nahi - 1 in Hindi Love Stories by Hindi kahaniyan books and stories PDF | तू था, मगर मेरा नहीं - 1

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तू था, मगर मेरा नहीं - 1



उपन्यास का नाम:
तू था, मगर मेरा नहीं


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अध्याय 1: जब बचपन ने नाम लिया — रानी

स्थान: गाँव - सरोई, शहर - प्रयागपुर

गाँव सरोई की मिट्टी में एक अलग सी सादगी थी। यहाँ के लोग सीधे-सादे थे, दिल के भोले भाले और उन्हीं लोगों में एक था रवि — एक मेहनती, ईमानदार और भावुक दिल का लड़का। बचपन से ही उसकी आँखों में दो सपने पलते थे: एक, बड़ा होकर अपने माँ-बाप को वो दुनियां की सारी खुशी देने जो मां- बाप अपनी ओलाद से चाहते है और दूसरा, रानी से शादी करना

 कुछ ही दिन पहले रवि के गली में एक परिवार रहने आया था । 

रवि की मम्मी ने रवि बाहर जा कर पड़ोसी की लड़की के साथ खेल । 

रवि बाहर गया तो देखा , रानी उसके घर के सामने आम के पेड़ के नीचे बैठी गुड़ियों से खेल रही थी । रवि उस वक़्त पाँच साल का था — और जैसे ही उसने रानी को देखा…
कुछ उसके भीतर हल्का सा काँपा।

रवि (धीरे-धीरे खुद से):
"ये कौन है...? इतनी प्यारी लड़की…"

तभी रानी पास आई, और कहा —

रानी: "तू यहीं रहता है? तेरा नाम क्या है?"

रवि: "...र-रवि।"

रानी (हँसते हुए): "अरे वाह! मेरा नाम रानी है।"

और बस, उस एक नाम के बाद,
रवि के सारे खेल अब उसी नाम के हो गए।

........

हर शाम जब बच्चे खेलते:

पकड़म-पकड़ाई: रवि जानबूझकर धीमा भागता, ताकि रानी उसे पकड़ सके।

लुकाछिपी: वो छिपता नहीं था, रानी को ढूँढने जाता था।

कंचे: अपनी सबसे चमकदार गोली रानी को दे देता था।

दूल्हा-दुल्हन का खेल: यही खेल एक दिन रवि के दिल की हकीकत बन गया…



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💍 एक दिन... जब रवि दूल्हा बना और रानी उसकी दुल्हन

गली के बच्चों ने तय किया — आज “दूल्हा-दुल्हन” खेलेंगे।
रवि को दूल्हा बनाया गया, और रानी… उसकी दुल्हन।

रानी ने मम्मी की पुरानी चुनरी ओढ़ी,
आँखें झुकाईं… और खड़ी हो गई।

रवि ने उसकी ओर देखा —
और उसे कुछ हुआ…
जैसे किसी परी का रूप सामने खड़ा हो।

रवि (धीरे से):
"अगर खेल में तू मेरी दुल्हन बन सकती है...
तो असल में क्यों नहीं?"

सारे बच्चे हँसने लगे —
"रवि को रानी से प्यार है!"

रवि चुप रहा।
उसके लिए ये हँसी कोई मज़ाक नहीं थी।
वो तो उस दिन सच में...
प्यार कर बैठा था।

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रवि ने कभी रानी से कुछ कहा नहीं,
पर हर रोज़ रानी की राह देखता रहा।

जब वो स्कूल से आती —
रवि छत से नीचे झाँकता।

जब रानी हँसती —
रवि का दिल खिलता।

जब रानी उदास होती —
रवि का मन भी बुझ जाता।

रवि (अपने दिल में):
"तू मुस्कराती रह…
तेरे नाम से ही मेरी साँसें चलती हैं..."

देखत देखत दोनों ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉलेज जाने लगे ... 
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कॉलेज की पहली सुबह — 

गाँव के खेतों से निकलकर शहर की सड़कें नई थीं, लेकिन दिल में एक पुराना सपना था।
रवि और रानी अब दोनों कॉलेज में थे — नया माहौल, नए चेहरे… लेकिन रवि के लिए रानी अब भी वही थी।

पहली सुबह थी कॉलेज की।
बस से उतरते ही चारों ओर शोर, सायकिलों की घंटियाँ, किताबों की गंध…
और उस शोर में भी रवि की नज़रें सिर्फ़ रानी को ढूँढ रही थीं।

वो आई — सफेद सलवार-कुर्ते में, बालों में चोटी, माथे पर हल्की सी बिंदी और हाथ में किताबें।
रवि उसे देख कर मुस्कराया। लेकिन ये मुस्कान अब छुपी हुई थी —
क्योंकि वो जानता था, अब वो बचपन वाला खेल नहीं रहा…


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 कॉलेज का पहला दिन था लेकिन रवि के लिए आखिरी उम्मीद जैसा

कॉरिडोर में लड़कों की भीड़ थी, लड़कियों की फुसफुसाहटें —
और बीच में रवि चुपचाप बैठा था, अपनी पुरानी कॉपी के आखिरी पन्ने पर रेखाएँ खींचते हुए।

रवि (मन में):
"तेरे साथ कॉलेज आना तो हो गया…
अब क्या मैं तेरे दिल तक पहुँच भी पाऊँगा?"


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 रानी — बदलती जा रही थी... धीरे-धीरे, लेकिन साफ़-साफ़

वो पहले जैसी तो थी,
लेकिन अब उसकी आँखों में नए चेहरे की तलाश झलकती थी।

कभी वो अपनी सहेली नेहा के साथ ज़्यादा बातें करती,
कभी कुछ नए लड़कों से धीरे-धीरे हँसकर बात करने लगी थी।

रवि बस दूर से देखता —
उसकी आदत थी अब छुपकर जीना।


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और तभी 

कॉलेज में एक नाम सबसे तेज़ था —
रोहन मिश्रा।
स्टाइल, कॉन्फिडेंस, और वो आँखें… जैसे शिकार तलाश रही हों।

वो उन लड़कों में था जो हर लड़की की नज़र में चुपचाप बैठा राजा बनना जानता था।
और उस दिन… जब उसकी नज़र रानी पर पड़ी,
तो जैसे शिकारी को शिकार पसंद आ गया।


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रवि की नज़रों के सामने… कुछ टूटने लगा

रानी बेंच पर बैठी थी, किताब खोल रही थी।
रोहन ने पास से गुजरते हुए उसे देखा —
और एक धीमी सी शायरी कही…

रोहन (धीरे से):
"तेरी आँखों में जो मौसम है,
वो बारिश से भी ज़्यादा भीगा हुआ लगता है…"

रानी चौंकी नहीं। वो मुस्कराई।

रवि वहीं दूर खड़ा था…
उसकी आँखों में कुछ फूटा — लेकिन आवाज़ नहीं निकली।

रवि (अपने आप से):
"ये कौन है...? और रानी क्यों मुस्करा रही है…?"

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रात में रवि मंदिर गया — अकेला।
और पहली बार, उसने भगवान से कोई चीज़ माँगी…

रवि (आँखें बंद करके):
"भगवान…
अगर मेरा प्यार सच्चा है,
तो उसे किसी गलत हाथ में मत जाने देना…
वरना मुझे बचा लेना… मैं टूट जाऊँगा।"


कभी-कभी शब्द सिर्फ़ कविता नहीं होते —
वो किसी की मासूमियत को पिघलाने का औजार भी होते हैं।
रोहन को ये बात बख़ूबी आती थी।


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कॉलेज की लाइब्रेरी के पास, नीम के पेड़ की छाँव में
रानी अकेली बैठी थी — किताब में आँखें और मन जाने कहाँ...

तभी पीछे से एक आवाज़ आई —
रोहन:
"कभी वक्त मिले तो आईने से पूछना,
तेरे चेहरे से खूबसूरत क्या चीज़ है?"

रानी चौंक गई।
मुड़ी — देखा, रोहन खड़ा था… वो मुस्कराया।

रानी (हल्की मुस्कान के साथ):
“तुम हर किसी से ऐसे ही बात करते हो?”

रोहन (धीरे से):
“हर कोई तेरी तरह नहीं दिखती…”


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पहले सिर्फ़ लाइब्रेरी में बातें…
फिर कैंटीन में साथ चाय,
फिर पार्क में शाम की मुलाकातें…
और फिर वो बबूल के पेड़ के नीचे बैठकर शायरी सुनना,
जहाँ रोहन रोज़ नया जाल बुनता।

रोहन:
"तुझे देखकर ये एहसास हुआ,
कि इश्क़ लिखना भी इबादत होता है।"

रानी हँसती, मगर कहीं न कहीं उसके मन में वो शायरी उतरने लगी थी।


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 और रवि...? वो बस दूर खड़ा सब देखता रहा

वो पहले मंदिर जाता था,
अब लाइब्रेरी की कोने वाली खिड़की से रानी को देखता था — रोहन के साथ।

रवि (मन में):
"उसके चेहरे पर जो मुस्कान है…
क्या वो मेरे बिना भी पूरी हो सकती है?"

सीमा — रवि की एक पुरानी सहेली, सब समझ रही थी।
उसने एक दिन कहा —

सीमा:
“कुछ कह ले, वरना पछताएगा।”

रवि:
“मैं चिल्ला भी लूँ, तो भी वो सुनती नहीं।
वो अब उसकी शायरी में खो चुकी है…
और मेरी खामोशी उसे कभी दिखती नहीं थी।”


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एक दिन बारिश की हल्की बूँदें गिर रही थीं।
रवि कॉलेज की सीढ़ियों पर बैठा था,
भीगे कपड़ों में, हाथ में वो स्केचबुक…
जहाँ उसने रानी की कई झलकियाँ बनाई थीं — बचपन से लेकर आज तक।

पन्ना पलटा, और लिखा —

रवि (डायरी में):
"जिसे देखने से दिन बनता था,
अब उसे देखना सीने में चुभता है।

क्या मोहब्बत इतनी चुभ सकती है?"


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रानी को अब रोज़ किसी का मैसेज आता,
कभी गुलाब की इमोजी, कभी शेर की लाइन।

वो हँसती थी।
रोहन उसे अब "रानी" नहीं, "जिंदगी" कहकर बुलाता था।

और रवि…
वो हर दिन मंदिर जाकर एक ही दुआ करता —

"या तो वो मुझे मिल जाए…
या मेरी मोहब्बत उसे धोखे से बचा ले…"
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शाम की हवा में हल्की सी ठंड थी।
कॉलेज की छत से सूरज डूबने की कोशिश कर रहा था,
और मैदान में कुछ चेहरे ऐसे मिल रहे थे —
जिनमें दिल की बातें आँखों से हो रही थीं।


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अब वो सिर्फ़ शायरी नहीं करता था,
वो रानी के सामने बैठकर उसकी हर बात में रुचि दिखाता —
मानो दुनिया में रानी से बढ़कर और कुछ नहीं।

रोहन:
"तू जब बोलती है ना रानी…
तो लगता है जैसे किताबों की कहानियाँ ज़िंदा हो गई हों।"

रानी (हँसते हुए):
"तुम्हें हर लड़की में कविता दिखती होगी…"

रोहन (धीमे स्वर में):
"सच कहूँ? सिर्फ़ तू ही कविता है… बाक़ी सब तो बस पन्ने हैं।"

रानी थोड़ी चुप हुई।
उसे अच्छा लगा —
किसी ने उसके अंदर की लड़की को देखा,
ना कि सिर्फ़ बाहर की सुंदरता को।


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वो दीवार के पीछे से देख रहा था —
रानी की मुस्कान, और रोहन की बातें।

रवि (मन में):
"ये वही है जो बचपन में मेरी दुल्हन बनी थी…
अब किसी और की बातों में खो गई है।"

सीमा (रवि और रानी की सहेली) उसके पास आई —

सीमा:
"चल अब तो कह दे… नहीं तो बहुत पछताएगा।"

रवि (कठोर होकर):
"अब कहने का क्या फायदा?
जिसे शायरी पसंद है,
वो मेरी चुप्पी से क्या इश्क़ करेगा?"


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अगले दिन, कॉलेज के बाद,
रानी और रोहन गाँव के उस पुराने बबूल वाले खेत में पहुँचे।

वहाँ सिर्फ़ हवा, खामोशी… और थोड़ी सी रुमानियत थी।

रोहन (रानी की ओर झुकते हुए):
"क्या मैं तेरा दोस्त ही रहूँगा…
या कभी तेरे दिल के सबसे क़रीब भी आ सकता हूँ?"

रानी (साँस लेते हुए):
"मैं… मैं नहीं जानती… 

रोहन:
"चलो ठीक है , कल कॉलेज में मिलते है 


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वो दूर से सब देख रहा था।
खेत के एक कोने में, झाड़ियों के पीछे,
उसका दिल काँप रहा था…

रवि (बुदबुदाते हुए):
"अब तू बता क्या करूँ भगवान…
जिसे मैं खुद से ज़्यादा चाहता हूँ,
वो किसी और को 'जान' कह रही है…"

उसके हाथ में अब भी वो स्केचबुक थी —
जिसमें रानी की हँसी, उसकी आँखें, और वो दिन जब उसने पहली बार “दुल्हन” कहा था।


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रवि ने उस स्केचबुक को बंद किया…
और अपने आँसू पोछ लिए।

अब उसका प्यार
चिल्लाने की हिम्मत नहीं रखता था…
सिर्फ़ दुआओं में छिपने लगा था।


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रानी आज अकेली नहीं थी —
वो रोहन के साथ कॉलेज की पीछे की बेंच पर बैठी थी।
सामने के पेड़ की छाँव, हल्की धूप की रेखा,
और एक मुस्कराता शिकार…

रोहन:
"मैं आज कोई शायरी नहीं सुनाऊँगा,
आज मैं सीधा अपने दिल की बात कहूँगा।"

रानी (मुस्कराते हुए):
"अरे वाह! आज शायर क्या सच्चा आशिक बन गया?"

रोहन:
"अगर तुझे हँसी में टालना होता,
तो तेरे साथ इतना वक़्त न बिताता।
मैं तुझसे… मोहब्बत करता हूँ, रानी।
दिल से। पूरी तरह।"


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 रानी स्तब्ध रह गई…

वो कुछ कह नहीं पाई।
हवा जैसे रुक गई थी।
उसकी उंगलियाँ किताब के पन्नों पर थीं — लेकिन ध्यान कहीं और।

रानी (धीरे से):
"मैंने कभी इस बारे में नहीं सोचा…"

रोहन:
"तो सोच ले…
कल तक सोच ले।
अगर तेरे जवाब में 'हाँ' है,
तो मैं ज़िंदगी को उसी दिन नाम दे दूँगा।"

रानी (नज़रें झुकाते हुए):
"ठीक है… कल बताऊँगी।"


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कॉलेज की दूसरी मंज़िल की खिड़की से खड़ा होकर देख रहा था ।

उसके हाथ में स्केचबुक थी,
जिसके कोने पर लिखा था:
“रानी = मेरी कविता”

उसकी आँखें नम थीं,
पर चिल्लाया नहीं,
कहा भी नहीं —
बस दीवार के सहारे बैठ गया… टूटकर।


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 रवि अपने आप से 

"मैंने उसे तब चाहा जब वो खुद को जानती भी नहीं थी…
और आज, जब वो खुद से मोहब्बत करने लगी,
तो वो मेरी नहीं रही।"


रवि ने अपनी डायरी खोली, और लिखा:

> “शायरी करने वाला, उसका दिल जीत गया…”
“…और मैं, जो बस उसे मुस्कराते देखता रहा,
अपनी ही खामोशी में हार गया।”




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अगले दिन: 

रोहन ने उसे गुलाब दिया
रानी ने गुलाब लिया —
लेकिन आँखें बंद कर लीं।
मानो खुद से पूछ रही हो —
"क्या ये वही है, जिसे मेरा दिल चाहता है?"


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रवि वहीं पेड़ के पीछे खड़ा था —
हाथ में वो गुलाब,
जो उसने कभी देना चाहा…
पर हिम्मत कभी हुई ही नहीं।


रानी सोच में थी…
रोहन इंतज़ार में…
और रवि, बस… फिर से पीछे छूट गया।


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🌙 शाम के छह बजे थे। कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी। रानी पैदल घर लौट रही थी — मन में हल्की मुस्कान, दिल में अजीब सी हलचल। कुछ छन पहले ही उसने रोहन को "हाँ" कहा था। दुनिया कुछ और लगने लगी थी। हाथों में किताबें थीं, पर दिल में इश्क़ की नई किताब खुल चुकी थी।


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रीता, रोहन की पहली मोहब्बत थी। गाँव से कुछ दूर रामपुर कस्बे की रहने वाली, सुंदर, पढ़ी-लिखी, और स्वभाव से सरल। रीता और रोहन की मुलाकात एक इंटर-स्कूल फंक्शन में हुई थी। रीता वहाँ कविता पाठ करने आई थी और रोहन मंच संचालन कर रहा था। रोहन को पहली ही बार में रीता की आवाज़ और उसकी मासूम मुस्कान से मोहब्बत हो गई थी।

धीरे-धीरे बातचीत बढ़ी, मुलाकातें हुईं और दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब आ गए। रोहन ने उसे वादा किया था — “तू ही मेरी दुल्हन बनेगी।” रीता ने भी पूरी निष्ठा से रोहन को अपना प्रियतम मान लिया था।


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कुछ महीनों बाद, जब रोहन का कॉलेज बदल गया और वह रानी के कॉलेज में आ गया — तो उसका ध्यान रानी की तरफ़ जाने लगा। रानी की खूबसूरती और मासूमियत ने उसे आकर्षित कर लिया।

धीरे-धीरे रोहन ने रीता से दूरी बनानी शुरू कर दी — फोन कम करने लगा, मिलना बंद कर दिया। रीता ने कई बार पूछा, लेकिन रोहन हर बार टालता रहा।


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गाँव से पाँच किलोमीटर दूर, रामपुर कस्बे में रीता की एक सहेली निधि उसी कॉलेज में पढ़ती थी जहाँ रानी और रोहन।

एक दिन निधि ने सोशल मीडिया पर रानी और रोहन की एक साथ फोटो देखी। फोटो में दोनों बाइक पर थे, नीचे कैप्शन था:

> "तू मुस्कराए, तो मेरी दुनिया हरे रंग सी लगती है। 💕"



निधि ने तुरंत स्क्रीनशॉट लिया और रीता को भेज दिया।

📱 रीता (फोन पर काँपती आवाज़ में): "ये कौन है रोहन...? तू अब भी मेरा है या नहीं?"




अगली सुबह रीता ने साफ़ शब्दों में कहा — "तू आज शाम मेरे घर आ… अकेला। और अगर सच न बोला, तो मैं जान दे दूँगी।"

रोहन पहुँचा। रीता के कमरे में अब भी उसकी दी हुई किताबें, उपहार, और दीवार पर वो कविता टंगी थी जो रोहन ने कभी रीता के लिए लिखी थी।

रीता: "तू भूल गया? ये सब तेरी मोहब्बत की निशानी है। अब तू रानी के साथ हँस रहा है?"

रोहन (नज़रे झुकाकर): "रीता… बात इतनी सीधी नहीं है। तू मेरी पहली मोहब्बत थी, लेकिन रानी… उससे मैं मजबूरी में जुड़ गया।"

रीता: "अब भी तू नहीं सुधार और मुझसे शादी नहीं करी तो में पुलिस में FIR कर दूंगी । तूने मेरे साथ सम्बन्ध बनने के बाद मुझे शादी से इनकार कर रहा है ।

रीता ने अपने और रोहन के साथ वो एकांत में बिताए पल की कुछ फोटो दिखा कर उसे ब्लैकमेक करने की कोशिश की 

रोहन (दबाव में): "ठीक है… मैं तुझसे शादी करूँगा, लेकिन एक-दो दिन की मोहल्लत दे । मुझे घर वालों को बताना होगा , पैसे इक्कठा करना होगा , दूर शहर में रहने का जुगाड करना होगा रोहन के कुछ बना दिया 

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रीता के घर से निकलते हुए रोहन मन में सोचने लगा:

> "अगर रीता से शादी करनी ही है, तो मुझे बहुत सारे पैसे की जरूरत होगी कहा से लाऊंगा इतने पैसे । तभी उसके मान में रानी का खाया आया उसके पता था रानी उससे सच प्यार करती है , उसे बेवकूफ़ बनाना आसान है। बस एक झूठी दर्दभरी कहानी सुनानी होगी।"


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रानी के पास खुद का मोबाइल नहीं था। लेकिन उसकी भाभी का कीपैड का फोन था जो वह कभी-कभी दोस्तों से बात करने के लिए माँगती थी।

रोहन को ये बात पहले से पता थी। इसलिए उसने रात 8 बजे कॉल किया — यही समय होता जब रानी अकेले छत पर होती और भाभी का फोन उसके पास होता।

 फोन बजा... रानी ने उठाया।

रानी: "हैलो…?"

रोहन( रोटी हुई आवाज में ) : रा... रानी 

रानी(घबराती हुई) : क्या हुआ रोहन ? तुम रो क्यों रहे हो ।?

रोहन (रुआँसी आवाज़ में): "रानी… मेरी माँ बहुत बीमार है। दिल का दौरा पड़ा है। डॉक्टर कह रहे हैं कि अगर आज ऑपरेशन नहीं हुआ तो कुछ भी हो सकता है…"

रानी (काँपते हुए): "हे भगवान! रोहन, तू कहाँ है? मैं आ रही हूँ।"

रोहन: रानी मुझे पैसे की जरूरत है । 

रानी: कितने पैसे चाहिए ऑपरेशन के लिए 

रोहन: 59,000 हजार 

रानी: इतने पैसे का इंतजाम कैसे होगा ।

रोहन(रोते हुए): लगता है अब मेरी नहीं बचेगी । 

रानी: रोहन तू रो मात में कुछ करती हु ।

रोहन: "थी है रानी । 


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रानी के मन में सिर्फ़ एक चीज़ थी — रोहन की सलामती।

> "अगर उसकी माँ को कुछ हो गया, तो रोहन टूट जाएगा… और फिर हम दोनों क्या रहेंगे?"



रात 11 बजे। सब सो चुके थे। रानी ने दादी का पुराना बक्सा खोला — जिसमें थोड़ी नकदी और दो सोने की बालियाँ थीं।

गुल्लक से ₹7,000 निकाले, माँ की अलमारी से पूजा के ₹12,000, और बक्से से ₹39,000 के गहने बेचकर नकद करवा लिए।

कुल राशि: ₹58,000।


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वो रोहन को रेलवे स्टेशन के पास बुलाती है। एक पुराना थैला हाथ में…

रानी (भीगी आँखों से): "ले रोहन… सब कुछ तेरे लिए। मेरी मोहब्बत की आखिरी जमापूंजी।"

रोहन (झूठी मुस्कान में लिपटी जीत): "तेरी मोहब्बत ही काफी है… पर ये पैसे मेरी माँ की जान बचाएँगे।"


रानी वहीं बैठी रही… स्टेशन के उस कोने में, जहाँ कोई उसका सब कुछ लेकर, कभी न लौटने के लिए निकल गया था।



🌄 सुबह का वक्त था। रानी अभी तक बिस्तर से उठी नहीं थी। उसकी आँखों में रोहन की मुस्कराहट, उसकी बातें और वो स्टेशन वाला आख़िरी आलिंगन अब भी ताज़ा था। उसे नहीं पता था कि उसका सबसे बड़ा सपना आज उसका सबसे बड़ा धोखा बनने जा रहा है।

तभी सहेली सीमा दौड़ती हुई आई — हाथ में मोबाइल था, चेहरा घबराया हुआ।

**सीमा (हड़बड़ाकर):**
"रानी! तूने सुना? रोहन… रोहन रीता के साथ भाग गया!"

**रानी (हँसते हुए):**
"तू फिर मज़ाक कर रही है, ना?"

**सीमा:**
"नहीं रानी, ये सच्चाई है! पूरे गांव में बात फैल गई है। रीता नाम की लड़की के साथ रोहन भाग गया।"

रानी को यक़ीन नहीं हुआ। उसने सीमा से फोन छीना और रोहन का नंबर डायल किया —

 "जिस नंबर पर आप कॉल करने का प्रयास कर रहे हैं वह बंद है..."

**रानी (धीरे से):**
"शायद नेटवर्क नहीं है… या उसका फोन डिस्चार्ज हो गया होगा।"

लेकिन भीतर से उसकी साँसें टूटने लगी थीं।

रात को जब उसके दादा और पिता आपस में बात कर रहे थे —

**दादा:**
"बगल के गाँव का कोई रोहन, किसी रीता को ले भागा… बदनामी तो होनी ही थी।"

**पिता:**
"अरे, हमने तो सुना वो रानी के साथ भी घनिष्ठ था… भगवान बचाए ऐसे लड़कों से।"

रानी ने जैसे ही ये सुना 

अगले ही पल… चक्कर खाकर ज़मीन पर गिर पड़ी।

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घर वाले जल्दी से उसे डॉक्टर के पास के गले 

🏥 डॉक्टर ने कहा — पानी की कमी है, घबराने की बात नहीं। मैने पानी चढ़ा दिया है कोई घबराने वाली बात नहीं है। 

घर वाले ने इस बात पर जड़ा गौर नहीं किया उन्हें लगा कि गर्मी के मोशन ये सब आम बात है ।

लेकिन रानी अब वो रानी नहीं रही थी। वो एक पिंजरे में बंद परिंदा बन गई थी।

🍽 उसने खाना छोड़ दिया।
👁 बात करना छोड़ दिया।
💔 हँसना छोड़ दिया।

वो सिर्फ़ दीवार को घूरती रहती… जैसे किसी अदृश्य रोहन को तलाश रही हो।

ये हालत को देखते हु घर वालों ने सीमा से पूछा कि रानी ऐसा बरताव क्यों कर रही है । 

सीमा ने रोहन और रानी के बारे में सब बता दिया । 

धीरे धीरे पैसे वाले बात भी परिवार में सब को पता लग है । लेकिन सबको रानी की जान की परवाह थी इसी लिए कैसी ने कुछ नहीं कहा। 

सहेलियाँ आतीं, माँ पुचकारतीं, दादी दुलारतीं… लेकिन रानी अब सिर्फ़ एक चुप्पी थी।

सीमा रोज़ आती, चुपचाप बैठती। एक दिन उसने रवि से कहा:

**सीमा:**
"वो ज़िंदा तो है, पर जैसे हर साँस उसे मार रही है।"

**रवि:**
"तू बस उसके पास बैठा कर… मैं दूर से उसे देख लूँगा, वही काफी है।"

रवि मंदिर जाता, उसके नाम का दिया जलाता… और हर सोमवार को उपवास रखता। रानी नहीं जानती थी — पर रवि जानता था, **वो वो मोहब्बत नहीं माँगता था … वो बस उसका सुकून चाहता था। । 


कई बार रानी ने अपनी जान देने की कोशिश कर लेकिन किसी न किसी कारण से वो आसफल रही । 
उस दिन सब खेत पर गए थे। 

पंखे की कुंडी देखी… स्टूल खींचा…
एक चिट्ठी लिखी:

> "माँ, बाबूजी… माफ़ करना। रोहन ने जो लिया वो पैसे नहीं, मेरी साँसें थीं। मैं अब थक गई हूँ।"

लेकिन तभी —
सीमा खिड़की से अंदर आई।
रानी की आँखें खुलीं… और वो फूट-फूट कर रोने लगी।


रोज सीमा आती और रानी को हसने की , उससे बाते करने की , बचपन वो दिन ,रोहन से पहले कैसे थी वो ये साब याद दिलाने की कोशिश करती। 

इस हादसे को लगभग साल बीतने वाला था । रानी अब धीरे धीरे पहले जैसे होने लगी थी , घर में बोलनी लगी थी , सहेली से फुसफुसाने लगी थी ।



एक दिन सीमा ने रानी से पूछा:

**सीमा:**
"अगर कोई तुझसे आज भी मोहब्बत करता हो… तुझसे कुछ नहीं चाहता, बस तेरा साया भी उसे काफी लगे… तो क्या तू उसे पहचान पाएगी?"

**रानी (थोड़ा मुस्कराकर):**
"प्यार अब यकीन जैसा लगता ही नहीं…"

**सीमा:**
"कोई है… जो हर रोज़ तेरे लिए दुआ करता है। हर बार तुझसे बात करने के लिए मैं उसी के कहने पर आती हूँ।"

**रानी:**
"कौन?"

**सीमा:**
"रवि।"

रानी चुप हो गई। उसकी आँखें भीग गईं, पर वो कुछ नहीं बोली।

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एक दिन सुबह की हल्की धूप में रानी छत पर बैठी थी। चेहरे पर अब भी गहराई थी, पर आँखे अब सूनी नहीं थीं। सीमा के शब्दों ने कुछ दरारें डाली थीं उस दीवार में, जिसे रानी ने अपने इर्द-गिर्द खड़ा कर लिया था।

📍 अचानक नीचे से आवाज़ आई:

रवि: "रानी… हाल चाल ठीक है?"

रानी चौंकी, कई महीने बाद रवि सामने आया था।

रानी (धीरे से): "ठीक हूँ।"

रवि:तुमसे कुछ बात करनी थी ।

रानी: तो ऊपर छत पर आआ जाओ 

रवि ऊपर आ कर रानी से :- 

रवि: " मेरे तुमसे बचपन से प्यार...... 

 इतना सुनते ही रानी उठी और चुपचाप चली गई।

अगले दिन रानी अपनी दादा जी के लिए खाना ले कर खेत में जा रही थी तभी रवि की नजार उस पर पड़ी । रवि भाग कर उसके पास आया 

रवि : कैसी हो 
रानी: ठीक हूं 

रवि: तुम तो मेरी पूरी बात सुने बिना ही उठ कर चली गई 
रानी: बोलो क्या है तुम्हारी बात । 

रवि: बस एक बात कहनी थी… बचपन से तुझसे प्यार करता हूँ। रोहन जैसा नहीं हूँ। तुझसे शादी करना चाहता हूँ।"

रानी: देखो रवि में फिर से किसी की वजह से अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करना चाहती। में तुम्हे आज आखरी बार समझा रही हु। आज के बाद तुमने मेरा रास्ता रोका तो में तुम्हारी शिकायत पुलिस को दे दूंगी 

इतना कहने बाद रानी वहां से चली गई 

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रात को रवि अपने आँगन में बैठा था । मन में तूफान था, आँखों में आँसू। फिर उसने एक पत्र लिखा:

> "रानी, बचपन में तेरे साथ दुल्हा बना था, दिल तब ही दे बैठा था। रोहन जैसा नहीं हूँ — तुझसे शादी करना चाहता हूँ, जीना चाहता हूँ। अगर इस बार भी मेरे प्यार को ठुकराया… तो शायद कल मेरी साँसे न मिलें। अगर हाँ है, तो इस नंबर पर फोन कर देना…
नबर :- 8X3186X5XX



 यह पत्र उसने एक छोटे बच्चे से रानी तक पहुँचवा दिया और अगले ही दिन रवि शहर चला गया — बिना कुछ कहे।


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शाम को रानी ने वो पत्र पढ़ा। आँखों से आँसू बहने लगे। लेकिन रोहन की यादें फिर डराने लगीं।

📞 उसने फोन नहीं किया… लेकिन तभी सीमा आई:
रानी: ने पत्र के बारे में सीमा को बताया 
सीमा : तो तू फोन कर रही है उसे।
रानी: नहीं मैने फैसला किया है कि में फोन नहीं करूंगी 
सीमा: तू पागल है किया , तुझे पता है उसने तेरे लिए कितन कष्ट सह है । 

रानी: कैसा कष्ट? 

सीमा(गुस्से से): "वो जो तुझे हर दिन देखता था, मंदिर में मन्नतें माँगता था… वो रवि था। रोहन के जाने के बाद तू टूटी थी, लेकिन रवि हर रोज़ तेरे लिए जी रहा था।" उसी के कहने पर हर रोज तेरे पास आती थी 

रानी कुछ देर तक चुप रही… फिर धीरे से माँ का फोन उठाया… और उस नंबर पर कॉल मिलाया पर रबी ने फोन नहीं उठाया । 1,2,3,4 बार मिलाया… घंटी जाती रही लेकि किसी ने फोन नहीं उठाया  

रानी घबराते हुए सीमा से कहते है , सीमा कहानी मैने फोन कर में देरी तो नहीं कर दी , कही उसने कुछ कर तो नहीं लिया , वो ठीक तो होगा , 
 
सीमा : तू परेशान मत हो कही काम में व्यस्त होगा तू रात को आराम से फोन करियो वो जरूर उठाएगा । 


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रानी की आँखें नींद से भरी थीं, लेकिन मन बेचैन था। वो चाहती थी रवि को एक मौका देना, पर डर अब भी था।

📱फोन मिलाया… "घंटी गई लेकिन फिर कैसी ने फोन नहीं उठाया । 

एक चुप्पी… एक लंबी साँस… और एक धीमी सिसकी…

रानी(अपने मन में ): "रवि… कहीं तू भी तो नहीं गया न हमेशा के लिए?"

उसी रात आसमान में एक तारा टूटे कहता हैं

 जब कोई सच्चा प्यार तन्हा रोता है — तो खुदा भी उसे देखता है… और चुपचाप कुछ बदल देता है।

(क्रमशः...)