Chhav Usi pedh ki thi in Hindi Spiritual Stories by Nirbhay Shukla (Na shukla) books and stories PDF | छांव उसी पेड़ की थी

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छांव उसी पेड़ की थी

 कहानी: "छांव उसी पेड़ की थी"

 

गांव के एक कोने में एक वृद्ध रहते थे नाम था श्री अरुणदास, लेकिन लोग उन्हें "अकेला बाबा" कहते थे। क्योंकि वे ना किसी सभा में जाते. ना प्रवचन करते. बस रोज एक ही पेड़ के नीचे बैठते मौन, शांत, सरल। कई बार लोग पूछते, "बाबा, क्या आप ध्यान करते हैं?" वो बस मुस्कुरा कर कहते, "मैं अब कुछ नहीं करता, अब बस वही करता है जो सब कराता है। एक बार एक युवा आयाँ शहर से, पढ़ा-लिखा, तेज़-तर्रार। उसने बाबा से पूछाः आप इतने वर्षों से मौन क्यों है? क्या आपने परमात्मा को देख लिया?"बाबा बोले नहीं, बस पास रखे एक सूखे पत्ते को उठायाऔर उस युवक की हथेली पर रख दिया.. फिर धीरे से बोले: 'एक समय था जब मैं भी तेरे जैसा प्रश्नों से भरा था। परमात्मा को ढूंढने के लिए पहाड़ों में गया, गुरुओं के पास गया, मन को मारा, शरीर को तपाया... पर मिला कुछ नहीं। और फिर एक दिन, थक हार कर मैं बस इस पेड़ के नीचे बैठ गया... मौन में।" "मैंने पहली बार कुछ चाहना छोड़ दिया। और जैसे ही चाह मरी, वह भीतर प्रकट हो गयाजिसको मैं जीवन भर बाहर ढूंढता रहा।"> "आज मैं कुछ नहीं जानता, पर मैं जो हूं, वह उसी की छाया है।"> "और यह पत्ता... ये भी उसी पैरम की रचना है जैसे तुमे हो, जैसे मैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पत्ता जानता है वह क्या है, हम भूल जाते हैं। युवक की आंखों में नमी आ गई। शब्द नहीं बचे थे। अब उसे गुरु की तलाश नहीं थी गुरु मौन में मिल चुका था।

 

---सारः> परमात्मा बाहर नहीं वह उसी वृक्ष की छांव है, जिसके नीचे तुम जीवन भर बैठते रहे पर कभी आंखें बंद कर के देखा नहीं।

 

आइए जानते हैं मौन है क्या

मौन कोई क्रिया नहीां, एक अवस्था है हम मौन को अतसर बोलना बांद कर देना मानते हैं।लेककन सच्चा मौन तब होता

है,जब मन भी शाांत हो जाए।यह मौन, शाांतत नहीां,बस्कक साक्षी भाव की उर्स्स्थतत है।जहाां अब न ववचार हैं, न भावनाएां

—बस एक जागत

गवाह।हर भावना को देखखएजैसे कोई राहगीर ग

जर रहा हो।ग

स्सा आया? देखखए, र्हचातनए —“ग

स्सा

आया है।”डर आया? बस देखखए —“डर आया है।”आर् भाव नहीां हैं,आर् वो हैं जो इन सबको देख रहे हैं।और वहीां से

मौन जन्म लेता है।

• मौन, जो केवल शब्दों की अन

र्स्स्थतत नहीां, बस्कक एक गहरी आांतररक शाांतत और जागरूकता का प्रतीक है,

आध्यास्त्मक मागप र्र चलने के मलए एक अतनवायप साधना है। जब शब्द थम जाते हैं, तब हमारी आत्मा बोलने लगती

है। मौन एक अदृश्य भार्ा है, जो शब्दों से कहीां अधधक गहरी और सशतत होती है। यह हमें हमारे असली स्वभाव से

जोड़ता हैऔर बाहरी दत

नया की हलचल से म

तत करता है।आध्यास्त्मक दृस्टिकोण से, मौन का अथप मसर्प च

र् रहना

नहीां है, बस्कक यह हमारे भीतर की आांतररक शाांतत और ईश्वर से ममलन का एक मागप है। जब हम शब्दों से र्रे जाते

हैं, तब हमें अर्नी आत्मा की गहरी आवाज़ स

नाई देती है। यह एक साधक के मलए आत्म-अन्वेर्ण का वह समय होता

है, जब वह अर्ने भीतर की गहराईयों में उतरता है और अर्ने अस्स्तत्व के रहस्यों को समझने का प्रयास करता

है।मौन हमें हमारे ववचारों और भावनाओां से र्रे जाकर, श

ुद्ध ध्यान और आत्म-ज्ञान की ओर मागपदशपन करता है। यह

एक स्स्थतत है, जहााँ हम मसर्प "होने" का अन

भव करते ह, ैं त्रबना ककसी मानमसक ववचलन के । जब हम मौन में होते हैं,

तब हम अर्ने भीतर की गहरी शाांतत और सांत

लन को महसूस करते हैं। यह वह स्स्थतत होती है, जब हम स्वयां से

ममलते हैंऔर हमारे ढदल की गहरी आवाज़ स

नाई देती है।मौन का अभ्यास, मन और शरीर दोनों के मलए एक शस्तत

का स्रोत है। यह हमें अर्ने आांतररक सांघर्ों से ऊर्र उठने की क्षमता देता है और हमें अर्ने जीवन के वास्तववक

उद्देश्य को र्हचानने का अवसर प्रदान करता है। मौन की इस अवस्था में, हम बाहरी दत

नया की चकाचौंध से म

तत हो

जाते हैंऔर अर्ने अस्स्तत्व की गहरी वास्तववकता को अन

भव करते हैं।आध्यास्त्मक साधना में मौन एक अद्भ

उर्करण है, जो हमें आत्मा की गहराई में प्रवेश करने की अन

मतत देता है। जब हम मौन रहते हैं, तो हम उन शब्दों

और ववचारों से छु

िकारा र्ाते हैं, जो हमें भ्रममत और बांधधत करते हैं। मौन हमें शाांतत, आांतररक शस्तत, और ब्रह्म के

साथ एकत्व का अन

भव कराता है।मौन की इस स्स्थतत में हमें यह अहसास होता है कक हमारे भीतर वह अनांत शाांतत

और ज्ञान है, स्जसे हम बाहरी सांसार में ढू

ाँ़िते रहते हैं। असल में, हम जो खोज रहे होते हैं, वह र्हले से हमारे भीतर

ही होता है, और मौन हमें उस सच्चाई तक र्ह

ाँचने का मागप प्रदान करता है।