छोटी तन्नू पहली बार अपनी नानी के घर आई थी। उसका दिल excitement से भरा था। नानी का घर गांव में था, बड़ा सा आँगन, मिट्टी की खुशबू, और बगीचे में लगा एक पुराना झूला।
रात को नानी ने तन्नू को सुला दिया, लेकिन तन्नू की आँखों में नींद कहाँ थी। खिड़की से बाहर चाँदनी में बगीचा चमक रहा था, और उसी झूले पर कोई बैठा हिल रहा था।
तन्नू ने आँखें मिचमिचाकर देखा।
झूले पर एक सुंदर सी गुड़िया बैठी थी। लाल फ्रॉक, सुनहरे बाल, और हरे काँच जैसी चमकती आँखें। वह धीरे-धीरे झूले पर हिल रही थी।
तन्नू को वो गुड़िया बहुत सुंदर लगी। वो खिड़की से देखती रही। अचानक गुड़िया ने अपना चेहरा उठाया और सीधे तन्नू की तरफ देखने लगी।
गुड़िया की हरी आँखें अजीब सी चमक रही थीं। तन्नू डर गई, लेकिन उसकी नजरें उस गुड़िया से हट नहीं रही थीं।
गुड़िया ने धीरे से अपना हाथ उठाया और इशारा किया –
“आ जाओ…”
तन्नू धीरे से बिस्तर से उतरी, खिड़की खोली और आहिस्ता-आहिस्ता आँगन में उतर गई। उसकी नन्हीं सी पायल की आवाज़ भी रात में गूंज रही थी, लेकिन तन्नू का ध्यान सिर्फ झूले पर बैठी गुड़िया पर था।
जैसे ही तन्नू झूले के पास पहुँची, गुड़िया ने अपनी गर्दन अजीब तरीके से घुमाई, और उसकी आँखों में हरे रंग की जगह काली गहराई दिखने लगी।
गुड़िया धीरे-धीरे झूले से उतरी, और अचानक उसकी छाया लंबी होती गई।
गुड़िया की सुंदर आकृति अब एक लंबी काली परछाई में बदल गई थी।
तन्नू कांपने लगी, उसने पीछे भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर जैसे जमीन में धंस गए।
काली परछाई उसकी तरफ बढ़ी और झुककर फुसफुसाई,
“तुम आ गई… अब मेरी जगह ले लो…”
तन्नू की आँखों से आंसू निकलने लगे, लेकिन आवाज़ नहीं निकल रही थी। काली परछाई ने अपनी लंबी उंगलियाँ तन्नू के कंधे पर रख दीं। उसकी उंगलियों से बर्फ जैसी ठंडक उसके शरीर में उतरने लगी। तन्नू की नजरें झूले की तरफ गईं, अब वहाँ कोई नहीं था।
अचानक झूला अपने आप हिलने लगा, जैसे कोई अदृश्य ताकत उस पर बैठ गई हो।
काली परछाई ने तन्नू को झूले की तरफ खींचा, और एक तेज हवा के झोंके ने उसे घेर लिया। तन्नू की आँखें अंधेरे में डूब गईं…
सुबह नानी की नींद खुली तो तन्नू बिस्तर पर नहीं थी। पूरे घर में खोजने के बाद, नानी दौड़ती हुई बगीचे में गईं। झूला हिल रहा था, और उस पर तन्नू बैठी थी।
उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन उनमें कोई भाव नहीं था। उसके हाथों में वही सुंदर गुड़िया थी, लेकिन अब उस गुड़िया की आँखें काली पड़ चुकी थीं।
नानी ने तन्नू को हिलाया, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी नजरें सीधी पेड़ के पीछे देख रही थीं।
कहते हैं, उस रात से नानी के घर के झूले पर कोई बच्चा नहीं बैठता, क्योंकि रात को जब हवा चलती है, झूला अपने आप हिलता है… और झूले पर तन्नू बैठी होती है, उसकी गोद में वही गुड़िया होती है, और उसके पीछे एक काली परछाई खड़ी रहती है…
“क्या आपने कभी रात में झूले पर बैठी गुड़िया देखी है? पढ़िए इस सच्ची डरावनी कहानी को, और जानिए एक मासूम बच्ची ने कैसे झूले की काली परछाई का रहस्य देखा…”