एक बार की बात है...
राजस्थान के एक शांत, धूल से भरे गाँव "कुंभसर" में एक पुरानी हवेली थी, जिसे लोग “चौधरियों की कोठरी” कहते थे। ये हवेली अब वीरान थी, लेकिन गाँव के बुज़ुर्ग कहते थे कि कभी ये कोठरी रौनक से भरी रहती थी।
पिछले पचास सालों से उस कोठरी के अंदर कोई नहीं गया था। दिन के उजाले में वो महज एक टूटी हुई इमारत लगती थी, लेकिन रात होते ही... कुछ बदल जाता था। बांसुरी की धीमी आवाज़ें, हल्की रोशनी की चमक, और कभी-कभी किसी के रोने की धुंधली सी आवाज़ गाँव के लोगों को डरा देती थी।
गाँव वालों ने उस हवेली के आसपास जाना भी छोड़ दिया था। बच्चों को वहाँ न जाने की सख्त हिदायत दी जाती थी।
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🌸 रागिनी की जिज्ञासा
कहानी की नायिका रागिनी, एक 17 साल की होशियार और जिद्दी लड़की थी। वो एकदम अलग सोचती थी — जो बातें सबको डराती थीं, वही उसे और उत्साहित करती थीं। उसके पिता गाँव के स्कूल में अध्यापक थे और माँ की मृत्यु कई साल पहले हो चुकी थी। रागिनी की परवरिश उसकी दादी ने की थी।
एक दिन जब वह अपनी दादी की पुरानी संदूकें साफ़ कर रही थी, उसे एक पुराना लिफाफा मिला। लिफाफे पर नाम नहीं था, बस अंदर एक नक़्शा और एक पुराना, धुंधला खत रखा था। खत में लिखा था:
> “अगर तुम ये पढ़ रही हो, तो समझ लो कि चौधरियों की हवेली में छिपा वो राज अब तुम्हारे सामने आने वाला है। उस कोठरी की दीवारों में वो कहानी छिपी है जिसे कभी कोई जान नहीं पाया... लेकिन तुम जान सकती हो।”
रागिनी चौंक गई। उसकी दादी ने कभी उस हवेली का ज़िक्र नहीं किया था। फिर ये खत किसका था? और यह नक़्शा उस हवेली का ही था, जो अब वीरान थी।
उसने तय कर लिया — उसे वहाँ जाना है।
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🕯️ हवेली का प्रवेश
अगली दोपहर जब पूरा गाँव खेतों में व्यस्त था, रागिनी अपने स्कूली बैग में टॉर्च, मोबाइल और नक़्शा लेकर अकेली ही निकल पड़ी। हवेली तक पहुँचने में लगभग आधा घंटा लगा। सामने वही जर्जर गेट था, जो अब लोहे की जंजीरों से जकड़ा हुआ नहीं, बस हल्के से टिका हुआ था।
उसने हल्के हाथ से दरवाज़ा धकेला। दरवाज़ा चर्रर्रर्र की आवाज़ के साथ खुल गया।
अंदर घुप्प अंधेरा था। दीवारों पर जाले, टूटे शीशे और फर्श पर धूल की मोटी परत। लेकिन हवेली के अंदर आते ही उसने कुछ महसूस किया — एक ठंडी हवा जो उसके कान के पास से गुज़री, जैसे किसी ने कुछ फुसफुसाया हो...
रागिनी ने नक़्शा निकाला और आगे बढ़ने लगी।
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🌀 पहला सुराग
हवेली के एक कमरे की दीवार पर अजीब चित्र बने थे। कुछ इंसानी आकृतियाँ थीं, लेकिन उनके चेहरे किसी जानवर जैसे थे — आँखें गोल, जीभ बाहर और पंजे जैसे हाथ।
रागिनी जैसे ही पास गई, दीवार हल्की सी काँपने लगी।
वो घबराई नहीं, उसने दीवार पर हाथ रखा... तभी दीवार बाईं ओर घूम गई — जैसे कोई गुप्त दरवाज़ा खुल गया हो।
पीछे एक और कमरा था, जो और भी अंधेरा था। लेकिन उस कमरे के प्रवेशद्वार पर एक शब्द लिखा था:
> "सत्य"
रागिनी ने जैसे ही उस शब्द को हाथ से छूआ, एक अजीब सी कंपन पूरी हवेली में फैल गई।
और उसी पल...
उसकी टॉर्च बंद हो गई।
अब हवेली में घुप्प अंधेरा था... और फिर वही बांसुरी की आवाज़, इस बार और करीब से।
रागिनी की सांसें तेज हो गईं।
कदम रुक गए।
और तभी... किसी ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा।
📚 आगे पढ़ें भाग 2 में: "दरवाज़े के उस पार"