दिल्ली, पटेल नगर की गलियों में, जहां हर कोचिंग सेंटर एक सपना उगाता है और हर लाइब्रेरी एक कहानी पालती है वहीं से शुरू होती है ये कहानी।
दानिश, उ.प्र. के एक जिले सहारनपुर का एक होशियार, संवेदनशील और थोड़ा चुप रहने वाला लड़का, UPSC की तैयारी करने दिल्ली आता है। उसकी आँखों में एक जुनून है - कुछ कर दिखाने का, सिस्टम में बदलाव लाने का, और अपने गरीब पिता की उम्मीदों को सच करने का।
तो वहीं, आरजू उत्तराखंड के एक छोटे से जिले उत्तरकाशी की एक बेबाक, आत्मनिर्भर और तेज़ लड़की भी उसी मकसद से दिल्ली आई है -अपना और अपने घर वालों का सपना पूरा करने, उसके पिता चाहते थे कि उनकी बेटी एक दिन IAS बने। उसके लिए UPSC सिर्फ करियर नहीं, श्रद्धा है।
दोनों की मुलाकात होती है एक ही लाइब्रेरी में शुरुआत होती है एक पेन मांगने के बहाने, और फिर बातचीत बढ़ती है नोट्स से चाय की टपरी तक। वो मुस्कुराते हैं, हिचकते हैं, छेड़े जाते हैं दोस्तों द्वारा, लेकिन ये सब धीरे-धीरे उन्हें पास ले आता है। फिर आती है रमज़ान की वो रात जब साथ में सेहरी होती है, सिवइयाँ और खजूर खाए जाते हैं, और बिना कहे बहुत कुछ कह दिया जाता है।
वो एक-दूसरे की ताक़त बनते हैं, एक-दूसरे के अकेलेपन का जवाब बनते हैं।
पटेल नगर की गलियों से लेकर तुगलकाबाद के किले तक, उनकी दोस्ती अब इश्क़ के धागे में बंधने लगती है।
इन सबके बीच एक और किरदार है अवनी, दानिश की मुंहबोली बहन, जो लखनऊ में रहकर तैयारी करती है, लेकिन हर मुश्किल मोड़ पर दानिश और आरज़ू को समझाती है, जोड़ती है, और उनके रिश्ते को और मजबूत करती है।
फिर एक दिन दोनों अपने-अपने शहर लौटते हैं। अब मुलाकातें नहीं, बस कॉल और यादें हैं। पर दूरी मोहब्बत को मिटा नहीं पाती। एक PCS परीक्षा के दौरान दोबारा मिलना उन्हें एहसास दिलाता है कि अब ये सिर्फ "क्लोज़ फ्रेंडशिप" नहीं, बल्कि प्यार है।
जैसे-जैसे उनकी मोहब्बत बढ़ती है, वैसे-वैसे समाज और परिवार की बंदिशें भी सिर उठाती हैं।
दानिश की मां उसके लिए एक डॉक्टर लड़की का रिश्ता लाती हैं, वहीं आरज़ू के लिए इंजीनियर लड़का।
मगर दोनों एक स्वर में जवाब देते हैं "हम शादी करेंगे, तो एक-दूसरे से ही।"
अब उनके लिए रास्ता बस एक है सफलता।
वे समझ जाते हैं कि इस रिश्ते को समाज के सामने सही ठहराने के लिए उन्हें खुद को साबित करना होगा।
फिर शुरू होता है वो सबसे बड़ा युद्ध- UPSC का।
प्रिलिम्स, मेन्स, इंटरव्यू हर पड़ाव पर साथ हैं, एक-दूसरे का होंसला बढ़ाते हुए।
और फिर आता है वो दिन जब परिणाम आना था।
आरजू IAS बनती है, दानिश IPS।
अब न सिर्फ उनका सपना पूरा होता है, बल्कि उनका प्यार भी मंज़िल पा लेता है।
शादी होती है - दो अफसरों की, दो आशिकों की, दो आत्माओं की।
फिर ज़िंदगी के नए पड़ाव आते हैं जिम्मेदारियाँ, पोस्टिंग, परिवार की उम्मीदें, लेकिन उनका प्यार इन सब के बीच भी अपना रंग नहीं छोड़ता।
कहानी का अंत होता है उनके बेटे की पैदाइश पर -
दानिश मुस्कराकर कहता है, "मुझे तो बेटी चाहिए थी..."
आरजू शर्माते हुए कहती है, "मुझे चाहिए था बेटा..."
और फिर दोनों एक स्वर में कहते हैं, "अगली बार वो भी होगी।"