"भूतनी के रिश्तेदार!"*
*अध्याय 1: हवेली में हल्ला*।
छिछोरागंज — नाम जितना अजीब, इतिहास उससे भी ज़्यादा। ये गांव बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा पर एक ऐसा इलाका था, जहाँ न मोबाइल नेटवर्क था, न रोजगार। लेकिन अफवाहें इतनी तेज़ चलती थीं कि व्हाट्सऐप भी शर्मा जाए।
यह गांव सिर्फ दो चीजों के लिए मशहूर था: पहला, यहाँ के *पंडित बबलू बाबा*, जो अपने आप को "ओझा ऑन ड्यूटी" कहते थे, और दूसरा – *ठकुराइन हवेली*।
*ठकुराइन हवेली* का नाम सुनते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। कहा जाता था कि वहाँ एक भूतनी रहती है — *रेखा* नाम था उसका। 1986 में उसका सपना था एक्ट्रेस बनने का, लेकिन ट्रैक्टर एक्सीडेंट में उसकी आत्मा एक्टिंग से पहले ही चल बसी।
अब आते हैं हमारे हीरो पर – *चुन्नीलाल मिश्रा*, उम्र 29 साल, स्टेटस – बेरोजगार, हौसला – आसमान पर। वह दिल्ली में सात साल कोशिश करने के बाद वापस गांव लौटा था। न नौकरी मिली, न शादी का प्रस्ताव। लेकिन किस्मत से उसकी नानी ने एक विरासत छोड़ी थी – वही *ठकुराइन हवेली*।
गांव वालों ने बहुत समझाया,
“अरे चुन्नीलाल, उस हवेली में कोई नहीं जाता… रेखा भूतनी TikTok पर नहीं, सीधा तुझ पर एक्टिंग करेगी!”
चुन्नीलाल हंसा, “अरे भैया, भूत अगर TikTok बना रहा है तो मैं म्यूजिक दूंगा। भूत-भूत कुछ नहीं होता!”
तो जनाब, एक दोपहर गर्मी से परेशान होकर चुन्नीलाल एक रिक्शा लेकर हवेली पहुंचा। हवेली, जो बाहर से इतनी डरावनी थी कि दरवाजे पर लगे *शेर की मूर्ति* भी खुद सहमी हुई लगती थी।
दरवाज़ा खोलते ही धूल के गुब्बार ने स्वागत किया। एक उल्लू छत से उड़कर सीधे चुन्नीलाल के माथे पर बैठ गया।
“ओहो, VIP ट्रीटमेंट!” उसने तंज कसा और अपना बैग अंदर फेंक दिया।
हवेली में बिजली नहीं थी, बस एक पुराना जनरेटर था जो इतना शोर करता था जैसे उसमें भूत खुद बैठकर ढोल बजा रहे हों। चुन्नीलाल ने झाड़ू उठाई और सफाई शुरू की, लेकिन तभी पीछे से किसी औरत की हँसी सुनाई दी।
एक पल के लिए हवा रुक गई। पंखा अपने आप घूमने लगा जबकि वो जनरेटर से जुड़ा ही नहीं था।
चुन्नीलाल – “कौन है बे?!”
कोई जवाब नहीं।
वो सोच ही रहा था कि तभी एक *पुरानी हिंदी फिल्मी धुन* हवेली में गूंजने लगी –
“मैं सोलह बरस की…”
चुन्नीलाल – “अरे! भूतनी भी Lata जी की फैन है क्या?”
फिर अचानक सामने से धुएँ के बादल में एक आकृति उभरी – सफेद साड़ी, चमचमाता ब्लाउज, बड़े बाल, और होठों पर चमकदार लिपस्टिक। वो कोई और नहीं, *रेखा भूतनी* थी।
रेखा –
“तेरा नाम चुन्नीलाल है न?”
चुन्नीलाल –
(गला सूख गया) “हां… पर आप कौन? और इस एंट्री में इतना VFX क्यों था?”
रेखा – “मैं रेखा। 1986 में डायरेक्टर बोला था, 'कल ऑडिशन पे आना', लेकिन उसी रात एक ट्रैक्टर ने मेरी कहानी खत्म कर दी। अब मैं इस हवेली में फंसी हूं… जब तक मेरी अधूरी इच्छा पूरी न हो जाए।”
चुन्नीलाल – “मतलब… आपको रोल चाहिए?”
रेखा –
“हां! एक हिट फिल्म का रोल। फिर चाहे डायरेक्टर भूत हो या तू!”
चुन्नीलाल – “मैं डायरेक्टर? मैं तो अभी तक चाय बनाना ठीक से नहीं सीख पाया!”
रेखा –
“तू ही बचा है अब। गांव वाले पंडित तो मुझे TikTok भूतनी बोलकर झाड़ू दिखाते हैं।”
चुन्नीलाल को समझ में नहीं आया कि हँसे या भागे।
(…अब आगे की कहानी अगले भाग में…)