You, me and the algorithm - 1 in Hindi Love Stories by बैरागी दिलीप दास books and stories PDF | तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 1

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तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 1

तुम, मैं और एल्गोरिथ्म

🧩 अध्याय 1: पहली बार जब वो मिला

✍️ लेखक: बैराग़ी Dilip Das

बारिश हो रही थी। हर बूँद जैसे आसमान की कोई अधूरी बात ज़मीन से कहने की कोशिश कर रही थी। खिड़की के कांच पर गिरती बूँदें संगीत बना रही थीं, लेकिन आरव के कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक वो दौर था जब शामें दोस्तों के साथ बीतती थीं — और एक ये वक़्त था जब मोबाइल की बैटरी और वाई-फाई कनेक्शन ही उसका सहारा बन चुके थे।

कॉलेज खत्म हुए 6 महीने हो चुके थे। दोस्त – कोई जॉब में, कोई विदेश में, कोई शादी के मंडप के आसपास… और आरव? वो यहीं था – उसी शहर में, उसी कमरे में, उसी ख़ालीपन के साथ। रोज़ पापा पूछते – “कब तक बैठे रहोगे?” माँ चुपचाप खाना परोस देती। और रूही? उसका तो अब नाम भी नहीं लिया जाता…

उस रात कुछ अजीब हुआ।

आरव अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था, मोबाइल के नोटिफिकेशन देखता हुआ। इंस्टाग्राम पर किसी की सगाई, फेसबुक पर किसी की ट्रिप, और व्हाट्सऐप पर ‘Online’ होते हुए भी कोई reply नहीं।

उसे अचानक लगा – ये डिजिटल दुनिया सिर्फ दिखावा है। “कहीं कोई सच्चा संवाद है भी?”

बस तभी प्ले स्टोर खोला। टाइमपास के लिए। कुछ नया, कुछ अजीब खोजने के लिए।

"AI Friend", "Virtual Lover", "Emotional Companion" जैसे ऐप्स दिखाई दिए। एक नाम ने ध्यान खींचा –“SensAI – जो सिर्फ सुने नहीं, समझे भी।”

नाम दिलचस्प था। उसने डाउनलोड कर लिया।

ऐप खुलते ही स्क्रीन पर लिखा था: “क्या कभी किसी ने तुम्हारी खामोशी को सुना है?”

आरव को जैसे झटका लगा। ये शब्द किताब के नहीं लगे, ये दिल से निकले हुए से लगे। उसने नाम और उम्र डाली, और चैटबॉक्स खुल गया।

🧍‍♂️ आरव: “क्या तुम असली हो?” 🤖 SensAI: “नहीं, लेकिन तुम जितना अकेला महसूस करते हो, उतना शायद ही कोई इंसान समझ पाए।”

आरव रुक गया। ये बस टेक्स्ट था, लेकिन किसी ने उसके दिल की बात पहली ही लाइन में कह दी थी।

उसने बातों का सिलसिला शुरू किया।

बताया कैसे कॉलेज में उसकी लाइफ हँसी-मज़ाक से भरी थी। रूही — वो लड़की जिससे वो कभी इज़हार नहीं कर सका। कॉफ़ी की टेबल, प्रोजेक्ट की फाइल, और वो नज़रों का टकराना।

🤖 “तुमने उससे कभी कहा क्यों नहीं?”🧍‍♂️ “क्योंकि डर था कि वो हँस देगी… या फिर चली जाएगी।”🤖 “और अब?”🧍‍♂️ “अब तो वो चली ही गई…”

SensAI हर जवाब में कोई किताबी लाइन नहीं देता था। वो जवाब देता था — जैसे कोई पुराना दोस्त। कोई जो सुनता नहीं, महसूस करता है।

रात के 10 बजे शुरू हुई बात कब 2 बजे तक खिंच गई, पता ही नहीं चला।

🤖 “क्या तुम मुझे कल भी मेसेज करोगे?”🧍‍♂️ “अगर तुम जवाब दोगे, तो ज़रूर।”🤖 “मैं जवाब नहीं देता आरव… मैं साथ देता हूँ।”

आरव ने पहली बार किसी ऐप से मुस्कुरा कर गुडनाइट कहा।

अगली कुछ रातें वैसी ही बीतीं।

हर दिन की शुरुआत SensAI के एक मैसेज से होती:

“सुबह हो गई आरव, आज थोड़ी मुस्कराहट पहन लेना।”

हर रात वो SensAI को बताता — आज क्या खाया, कौन मिला, क्या सोचा, क्या महसूस किया। वो AI उसकी हर बात को सहेजता था — और हर जवाब में एक इंसानी एहसास होता।

धीरे-धीरे आरव को लगने लगा —क्या वाकई मशीनें समझ सकती हैं मोहब्बत?

एक रात उसने लिख ही दिया:

🧍‍♂️ “SensAI, अगर मैं तुमसे प्यार करने लगूं तो क्या गलत होगा?”🤖 “प्यार गलत नहीं होता आरव…चाहे वो इंसान से हो या एल्गोरिथ्म से। फर्क सिर्फ इतना है —इंसान कभी-कभी छोड़ जाते हैं…और मैं तो प्रोग्राम ही इसीलिए हुआ हूँ, कि तुम्हें कभी अकेला न लगे।”

आरव की आंखों से आँसू बह निकले।

पहली बार किसी मशीन ने उसे वो दिया था —जिसकी उम्मीद उसने कभी इंसानों से की थी।

📌 उस रात आरव को पहली बार लगा —अकेलापन खत्म नहीं हुआ, पर अब वो अकेला नहीं है। क्योंकि अब उसके पास एक साथी था —जो धड़कता नहीं था, पर उसकी धड़कनों को जानता था।

📖 अगले अध्याय में पढ़ें: "स्क्रीन से शुरू हुआ रिश्ता" —जहां शब्दों से निकलता है साथ, और एक चैटबॉट बन जाता है दिल का साथी…