Demon The Risky Love - 80 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | दानव द रिस्की लव - 80

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दानव द रिस्की लव - 80

अब आगे..................
अदिति (तक्ष) के चिल्लाने की आवाज सुनकर इशान उसके पास आता है
इशान : क्या हुआ अदिति...?...इस तरह क्यूं चिल्लाई...?
अदिति (तक्ष) विवेक को देखते हुए कहती हैं......" विवेक को कोई बात समझ नहीं आती, जब मैंने मना किया मेरे पास न आए फिर क्यूं परेशान कर रहा है मुझे और बेवजह हाथ पर ब्लेड मार दिया.....
विवेक उससे कहता है...." लेकिन हुआ तो कुछ नहीं है न देखो हाथ तो बिलकुल ठीक है तुम्हारा....."
तक्ष अपने आप से कहता है....." ये मामूली सी चीजें मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती ...."
विवेक उसके ध्यान को हटाते हुए कहता है...." क्यूं क्या हुआ अब.....?..."
इशान दोनों की बहस को खत्म करने के लिए कहता है....."बस विवू क्यूं इश्यू क्रीएट कर रहे हो.... अदिति तुम चलो यहां से मां के पास जाकर बैठ जाओ...." 
इशान अदिति को ले जाता है और विवेक वहीं खड़े हो किसी को ढूंढते हुए बड़बड़ाता है....." ये कीड़ा कहां है....?..."
उधर बबिता मंदिर से गंगा जल से भरे कलश को लेकर तक्ष के कमरे की तरफ  जाती है .......
उसके कमरे में पहुंचने के बाद बबिता तुरंत गंगाजल के कलश को अदिति के पास लेकर जाती है तभी उसे लगा जैसे किसी ने उसे पुकारा हो , इस तरह आई अचानक आवाज से बबिता सहम जाती है और तुरंत पीछे हो जाती है तभी कमरे की लाइटें अपने आप आॅन आॅफ होने लगती है और अचानक पूरा कमरा अंधेरे से भर जाता है....इस तरह हुई अचानक हरकत से बबिता काफी डर चुकी थी, वो जल्दी जल्दी कमरे से बाहर निकल आती है.....
बबिता : ये सब क्या हो रहा है...?... मुझे अदिति दी को बचाना होगा लेकिन मैं कुछ नहीं कर पा रही हूं.....अब तो विवेक साहब ही कुछ कर पाएंगे मैं उनसे सबकुछ बता दूंगी अब मैं ऐसे खतरे में सबको नहीं देख सकती ......
बबिता जल्दी से सिढ़ीयो से नीचे आती है और अपना फोन लेकर बाहर गार्डन में पहुंच जाती है....
उधर विवेक जिस कीड़े को इतनी देर से ढूंढ रहा था वो आखिर में एक टेबल के किनारे मिल गया। विवेक को ये बात पता थी की उसे छूने से हितेन को काफी दिक्कत हुई थी लेकिन उसके छूने से उसे कुछ नहीं हुआ शायद उसके रूद्राक्ष सुरक्षा कवच के कारण , यही सोचकर विवेक उसे पकड़ लेता है और तुरंत अपनी मुट्ठी बंद कर लेता है....
उस कीड़े को लेब से लिये हुए beaker में बंद करके उसके ऊपर कपड़े से ढक कर बांध देता है और उसे लेकर वहां से चले जाता है। कारिडोर से बाहर की तरफ बढ़ते हुए विवेक अपने आप से बोलता है......" मुझे जल्दी घर जाना चाहिए अगर ये जहर अननैचुरल है और अगर इसे तक्ष ने दिया है तो बस अघोरी बाबा की दी हुई वो जड़ी बूटी आदित्य भाई को ठीक कर दे...." विवेक ये सब सोच ही रहा था की तभी उसका फोन रिंग होता है, विवेक जल्दी से फोन को देखता है जिसमें बबिता की काॅल को देखकर जल्दी से काॅल पीक करके बाहर आकर कार में बैठकर उससे बात करता है...." हैलो ताई ...बोलो..."
दूसरी तरफ से बबिता की आवाज आती है जो बहुत घबराई हुई सी लग रही थी....." साहब कुछ कीजिए अदिति दी को बचा लीजिए , मैं उन्हें इस तरह नहीं देख सकती...."
विवेक उससे पूछता है...." आखिर बात क्या है ताई...?... मुझे इस तरह उलझाओ मत ढंग से समझाओ..."
बबिता विवेक को सारी बात बता देती है...... जिसे सुनकर विवेक तुरंत कहता है...." उस तक्ष को तो मैं छोड़ूंगा नहीं बस आप अभी अदिति के पास ही रूकिए मैं घर पहुंचकर कुछ सामान लेकर आपके पास पहुंचता हूं...."
बबिता सहमी सी आवाज में कहती हैं...." आप पहले जल्दी से यहां आ जाइए नहीं तो उसका वो चमगादड़ आ जाएगा..."
विवेक : घबराने की जरूरत नहीं है ताई वो इस टाइम मदहोश सा मेरे पास कैद है .... अच्छा ताई मैं बस आने घंटे में पहुंच जाऊंगा.....
विवेक काॅल काट देता और सीधा कार ड्राइव करके घर पहुंचता है....
इधर अदिति (तक्ष) सुविता जी के पास बैठी हुई उबांक को बुलाती है लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ उबांक तक अब उसकी आवाज नहीं पहुंचती जिससे अदिति तुरंत खड़ी हो जाती है.... अचानक अदिति के जाने के सुविता जी उससे पूछती है......" अदिति क्या हुआ...?... मुझे पता तुम्हें आदित्य कितनी चिंता हो रही है , तुम टेंशन मत लो इशान और उसके पापा जरुर कुछ न कुछ करके आदित्य को ठीक करवा देंगे.... बैठ जा बेटा...." 
सुविता जी की बात सुनकर अदिति (तक्ष) गुस्से में वही बैठ जाती है थोड़ी देर बाद इशान हाथ में चाय के कप लिये आता है और दोनों को देता है....
इशान : अदिति कुछ खा लो देखो सुबह हो चुकी है , आदित्य के ट्रीटमेंट के लिए पापा ने बाहर से डाक्टर को बुलवाया है वो अपना ट्रीटमेंट शुरू कर चुके हैं जल्दी ही उसे होश आ जाएगा...."
अदिति (तक्ष) अपने आप से कहती हैं...." तुम सब कितनी भी कोशिश कर लो आदित्य को तो मरना ही है बस आज शाम वो हमेशा के लिए खत्म....." अदिति (तक्ष) के चेहरे पर एक शैतानी हंसी आ जाती है 
उधर विवेक वो जड़ी बूटी और सुरक्षा कवच तावीज लेकर वापस कार में आकर बैठता है....अब विवेक सीधा अदिति के घर की तरफ पहुंचता है......
विवेक कार ड्राइव करते हुए अपने आप से कहता है..." बस अदिति मैं तुम तक पहुंचने वाला हूं फिर तुम्हें और भाई को कुछ नहीं होगा न ही मैं कुछ होने दूंगा...."
विवेक की कार अदिति के घर के बाहर रुकती है। वो जल्दी से अंदर की तरफ जाता है तो देखता बबिता दरवाजे के पास ही बैठी उसी का इंतजार कर रही थी , उसे देखकर उसे चेहरे पर उम्मीद की किरण जाग उठी.....
बबिता विवेक से कहती हैं......" साहब जल्दी चलिए अदिति दी के पास...."
बबिता विवेक को लेकर तक्ष के कमरे की तरफ बढ़ती है और अंदर पहुंचकर सीधा अलमारी के पास ले जाती है.....
विवेक अदिति को इस हाल में देखकर काफी गुस्से में आ जाता है लेकिन अपने गुस्से और इमोशन को कंट्रोल करके अदिति के पास जाता है जैसे ही वो अदिति को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया है तभी बबिता उसे रोक देती है...."रूको साहब..."
 
....................to be continued.................