marriage to a widow in Hindi Short Stories by Dr Mrs Lalit Kishori Sharma books and stories PDF | विधवा होने के लिए शादी

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विधवा होने के लिए शादी

विधवा होने के लिए शादी
विधवा होने के लिए शादी ऐसा अजब शीर्षक शायद ही अपने पहले कभी सुना हो या आपके विचार में भी नहीं आया होगा की कभी कलयुग में ऐसा भी हो सकता है पर अब हम विश्वास करने को बात है क्योंकि हमारे सामने जीता जागता उदाहरण सोनम और राजा का देखने को मिला है एक कलयुगी लड़की शादी सिर्फ इसलिए करती है कि वह पति की हत्या कर विधवा हो सके और विधवा होने के बाद अपने प्रेमी के साथ शादी कर सके ऐसा दृष्टांत तो अपने राक्षसी समाज में भी नहीं देखा होगा ना सुना होगा लोग मर्यादा मानवता इंसानियत रिश्तो की आत्माएता भावनाओं सभी को तक पर रखकर एक राक्षसी प्रवृत्ति की लड़की ना जाने किन परिस्थितियों में और क्यों हनीमून के समय ही अपने पति को मौत के घाट उतार देती है ऐसी घटनाएं आज की समाज को सोने के लिए बात कर देती है की लड़के लड़कियों की भावनाओं को कैसे पहचाना जाए उनके मन और मस्तिष्क में क्या चल रहा है बी अपना भविष्य किस तरह का चाहती है इसको जाने बिना शादी के संस्कार में उन्हें बांधना निश्चित ही संपूर्ण परिवार के लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा कर सकता है सोनम की कुकर को सुनकर तो शायद हर लड़के वाले अपने बच्चों की शादी करने से घबराने लगेंगे क्योंकि बिना अपराध के ही जब मौत की सजा दे दी जाए तो उसके आगे कहने सुनने समझने के लिए कुछ चीज ही नहीं रहता अतः युवा वर्ग की ओर बढ़ने वाले प्रत्येक बालक और बालिका दोनों को ही मां-बाप का सही संरक्षण उचित मार्गदर्शन प्राप्त होना अत्यंत आवश्यक है अब प्रश्न यह उठता है कि अधिकांश मां-बाप का शायद उत्तर यही होगा कि आज के बच्चे सुना ही पसंद नहीं करते समय ना ही नहीं चाहते निश्चित ही यदि किशोरावस्था मैं पहुंचने पर यदि आप उन्हें समझाने का प्रयास करेंगे तो निश्चित वे आपकी बात नहीं सुनना चाहेंगे क्योंकि तब तक उनके मन और मस्तिष्क में उनकी भावनाओं के अनुकूल अलग ही एक काल्पनिक दुनिया तैयार हो चुकी होती है जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्षों से वह परिचित नहीं होते वह उसे काल्पनिक दुनिया को ही सच मानकर उसी का आनंद उठाना चाहते हैं अतः माता-पिता को चाहिए कि किशोरावस्था के पूर्व ही उनकी बाल्यावस्था से ही यह बच्चे की बहुत प्रारंभिक अवस्था से ही उनमें अच्छे संस्कार डालने का प्रयास करें बचपन से मोबाइल की आदत ना डालें टीवी के सीरियल अनावश्यक दृश्य और मोबाइल की खुरपति बातें हैं उनके मस्तिष्क में गंदी बातों का भैया रोपण ना होने दे उसके पूर्व भी आप अपने सनातन संस्कारों की देव यदि वहां आरोपित कर देते हैं तो निश्चित ही आपका बालक किशोरावस्था और युवावस्था तक भी आपकी बात सुनने समझने की मानसिकता में रहेगा।
अच्छे संस्कारों को अपना कर ही युवा पीढ़ी समाज में सही मार्ग का अनुगमन कर सकती है और अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के साथ ही राष्ट्र को भी एक अच्छा समाज प्राप्त हो सकता है। हम हताश न हो निराश ना हो, सद्भावनाओं के साथ आगे बढ़ते रहे क्योंकि 
इस पथ का उद्देश्य नहीं है 
शांत भवन में टिक रहना 
किंतु पहुंचना उस सीमा पर 
जिसके आगे राह नहीं है ।।
अपने सदविचारों द्वारा स्वयं को समाज को, और राष्ट्र को उन्नत एवं समृद्ध बनाएं। 
जय हिंद जय भारत
डा. श्रीमती ललित किशोरी शर्मा।