21 June World Music Day in Hindi Biography by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | 21 जून विश्व संगीत दिवस

Featured Books
Categories
Share

21 जून विश्व संगीत दिवस

21 जून विश्व संगीत दिवस

राजकपूर पर फ़िल्माए एवं शैलेन्द्र के लिखे गीतों में शास्त्रीय रागों का प्रयोग

नीलम कुलश्रेष्ठ

14 दिसंबर 2024 को फिल्म कलाकार कपूर का जन्मशताब्दी वर्ष पूरा हुआ था । उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए 21 जून विश्व संगीत दिवस पर चर्चा करते हैं राज कपूर की फिल्मों के संगीत की जो उनकी फिल्मों की जान होता था उनका संगीत। हिन्दी फ़िल्मों के शोमैन राज कपूर, जिनके बाद सिर्फ़ संजय लीला भंसाली का नाम लिया जा सकता है, की फ़िल्मों की जान होते थे सुमधुर गीत। इनकी फ़िल्मों के अधिकतर गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखे थे। राज कपूर ने कवि राज शैलेन्द्र जी को सबसे पहले एक मुशायरे में 'जलता है पंजाब' कविता सुनाते हुए देखा था। वह इनके फ़न पर तभी फ़िदा हो गए थे और उन्होंने इन्हें अपनी फिल्म 'आग' के गीत लिखने का प्रस्ताव दे डाला लेकिन शैलेन्द्र को फ़िल्मों में गीत लिखना अपने स्तर को नीचे गिराना जैसा लगा इसलिए उन्होंने मना कर दिया।

कहते हैं कि समय बहुत बलवान होता है। अपनी गर्भवती पत्नी की हालत देखकर, उनके इलाज की व्यवस्था करने में धन की आवश्यकता थी, जो उन्हें राज कपूर तक खींच लाई । ‘आग’ रिलीज़ हो चुकी थी और उन दिनों उनकी दूसरी फ़िल्म'बरसात' पर काम चल रहा था ।फिल्म के दो गीत लिखे जाने बाकी थे। इन गीतों के लिए उन्हें 500 रुपये मिले, जिसमें से एक हिट गीत 'बरसात में हमसे मिले तुम'भी था।'बरसात 'के गीतों के हिट होते ही राज कपूर, गीतकार शैलेंद्र व संगीतकार शंकर जयकिशन की त्रयी ने फ़िल्मी दुनिया में अनेक लोकप्रिय गीत देकर तहलका मचा दिया।

तब हम अपनी उम्र के हिसाब से होश ही सम्भाल रहे थे - बात सन 1966 की है जब राजकपूर, वहीदा रहमान की फ़िल्म 'तीसरी कसम 'रिलीज़ हुई थी। उस समय के लोकप्रिय फ़िल्म गीतकार शैलेन्द्र ने बिहार के सुप्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम 'पर यह फ़िल्म बनाई थी। तब पत्रिकाओं में ही पढ़ा था कि शैलेन्द्र ने अपना सब कुछ धन इस फ़िल्म में लगा दिया था और फ़िल्म फ़्लॉप हो जाने से वे बर्बादी की कगार पर पहुंच गए थे । वर्ष के बीतते बीतते 16 दिसंबर सन 1966 में उनकी मृत्यु हो गई। तो बस तभी से उनकी बदहाल, बीमार तस्वीर दिमाग़ में बैठ गई। उससे अधिक उनके व्यक्तित्व या पहले उनके लिखे गीतों पर कभी ध्यान ही नहीं गया था।

जन्मशताब्दी वर्ष राज कपूर का है और मैं बात शैलेन्द्र की कर रहीं हूँ। मैं कोई ग़लत भी नहीं कर रही क्योंकि राज कपूर की फ़िल्मों की जान होते थे उनके गीत। अधिकतर वे शैलेन्द्र के लिखे हुए होते थे इसलिए शैलेन्द्र से अलग कर राज कपूर की कल्पना ही नहीं की जा सकती। । मुझे शैलेन्द्र जी के माध्यम से राज कपूर को और जानने का मौका मिला था।

कुछ लोग होते हैं जो विरासत का सरंक्षण करते रहते हैं और ऐसे लोगों में से एक थीं साधना भट्ट जो आकाशवाणी, अहमदाबाद की भूतपूर्व निदेशक थीं, जिन्होंने शैलेन्द्र के परिवार के लोगों से मिलकर, कुछ शोध करके उन पर एक पुस्तक लिखी थी. मार्च सन 2023 उसके विमोचन के समारोह में शैलेन्द्र के सबसे छोटे पुत्र दिनेश शंकर शैलेन्द्र मुंबई से आये थे। ऑर्केस्ट्रा के गायक गायिकायें शैलेन्द्र के लिखे गीत, जो अधिकतर राजकपूर की फ़िल्मों के थे, गाये जा रहे थे।

-' किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार ---'

-'आजा सनम मधुर चांदनी में भी आ जाएगी बहार,झूमने लगेगा आसमाँ ---'

-'होठों पे सच्चाई रहती है ---'

-'दुनियां की सैर कर लो ---'

-'मैं आशिक हूँ बहारों का ---

ये वे गीत थे जिनके लिए लोग दीवाने हैं और हम हतप्रभ हो रहे थे शैलेन्द्र के वे रोमांटिक गीत सुनकर--अरे ! ये गीत शैलेन्द्र के लिखे हुए हैं, हर किसी को आश्चर्य हो रहा था क्योंकि दिमाग़ में तो उनकी वही मुफ़लिस सूरत घूम रही थी। बीच बीच में दिनेश शंकर शैलेन्द्र अपने पिता से जुड़े संस्मरण सुनाते जा रहे थे --- उनके पिता ने प्रेम विवाह किया था -- राज साहब शैलेन्द्र का बहुत सम्मान करते थे--- जब शैलेन्द्र का गीत पूरा होता तो वे उन्हें अपने घर बुला लेते थे --- राज साहब नीचे गलीचे पर बैठकर उनसे गीत सुनते थे--उन्होंने फ़िल्म 'तीसरी कसम 'के लिए शैलेन्द्र से कोई पैसा नहीं लिया था ---शैलेन्द्र की मृत्यु से राज साहब बहुत टूट गए थे-- शैलेन्द्र के शव को उनके ही घर में रात में अस्पताल से लाकर कार के गैरेज में रख दिया था और राज साहब सारी रात गैरेज में उनकी मृत देह के साथ ही बैठे रहे थे वगैरह….वगैरह । वगैरहा ----[ अरे बम्बई जैसी जगह उनके घर कार का गैरेज भी था ?]

शैलेन्द्र की मृत्यु सिर्फ़ 43 वर्ष की आयु में हुई थी। उनके बेटों में दिनेश सबसे छोटे थे इसलिए उनको बहुत सी बातें और लोगों से सुनकर विरासत में मिलीं थीं। सबसे बड़ी बात कि राज कपूर और शैलेन्द्र के बीच कुछ अलग किस्म का रुहानी रिश्ता था। शैलेन्द्र ने सबसे अधिक पैसे राज साहब की फ़िल्मों से कमाए थे। उनकी ज़िंदगी में जब कुछ मुसीबत आई तो कुछ लोगों ने कहा कि वे राज कपूर से रुपये मांग लें लेकिन शैलेन्द्र के आत्मसम्मान को ये मंज़ूर नहीं था।उनकी पत्नी की आलमारी साड़ियों से भरी रहती थी तो उन्होंने एक एक साड़ी खोलकर उसमें छिपाये रुपये इन्हें दिए जिन्हें गिनते गिनते सब थक गए और हम शैलेन्द्र से जुड़ा ये सच सुनकर हैरान रह गए कि वे इतने अमीर थे जो बड़े परिवार को चलाने के बाद उनकी पत्नी कुछ रुपये छिपा भी लेतीं थीं। यानी' कोरचे के रुपयों '[पत्नी के छिपाये रुपये ]ने उन्हें मुसीबत से निकाला था।

शैलेन्द्र के ख़ूबसूरत गीतों को लोकप्रिय बनाने में शंकर जयकिशन की धुनों का भी बड़ा योगदान है. गायक मुकेश की आवाज़ तो उन पर इतनी सूट करती थी कि लगता था कि राज कपूर स्वयं गा रहे हैं। सन 1966 में उनकी मृत्यु के बाद 'मेरा नाम जोकर 'के लिए उनके लिखे अंतिम गीत 'जीना यहां, मरना यहां ---'को शैली शैलेन्द्र ने लिखकर पूरा किया था। ये उनके पुत्र नहीं थे। हालाँकि, इनके नाम से लोगों को ये ग़लतफ़हमी हो गई थी।

आइये देखें इनमें से कुछ उन गीतों में, जो स्वयं राजकपूर पर फ़िल्माए गए हैं, में कौन कौन से शास्त्रीय राग रचे बसे हैं ? इस जिज्ञासा का उत्तर देंगे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुप्रसिद्ध संगीत विशेषज्ञ श्री के. एल. पांडेय जी। यह शास्त्रीय संगीत व राग के प्रति जुनून ही है कि, श्री के.एल.पांडेय जी, जो कि भारतीय रेल यातायात सेवा [आई.आर. टी. एस.] के बैच 1978 से सबंधित हैं एवं रेलवे मंत्रालय से अपर सदस्‍य रेलवे बोर्ड के पद से रिटायर हुए हैं.

सन 2007 से कार्यालय में सारे दिन प्रबन्धन के बाद, वह ऑफ़िस से आकर वाद्यकारों की एक टीम के साथ बैठ जाते थे व गीतों को हारमोनियम पर पांच छः बार बजवाकर राग रागनियां खोजते थे व उनका तारतम्य भी नोट करते जाते थे। बीच बीच में उनका स्थानान्तरण भी होता रहा, तो कभी विदेश में होने पर यह काम उन्होंने कॉन्फ़्रेंस कॉल के द्वारा ज़ारी रखा. इसी अथक परिश्रम का परिणाम है कि इन्होंने शास्त्रीय संगीत के व्याकरण को संकलित करके 'सुर संवादिनी और 2000 पृष्ठ की पाँच खण्डों में 'हिन्दी सिने राग इन्साइक्लोपीडिया 'को प्रकाशित किया जिसमें 1931 से 2017 के मध्य बनी 6200 चयनित फ़िल्मों के 20,000 से अधिक गीतों का सम्पूर्ण राग विश्लेषण है और अँग्रेज़ी / हिन्दी द्विभाषीय रूप में जिसका, 1 मई, 2017 को मुम्बई में प्रसिद्ध संगीतकार आनन्द जी द्वारा विमोचन किया गया था ।

आप एक अच्छे कवि एवं लघु कथा लेखक भी हैं जिनके 3 काव्य संग्रह के साथ एक व्यंग संग्रह एवं 3 लघु कथा संग्रह भी प्रकाशित व पुरस्कृत हो चुके हैं। अपने काव्य संग्रह 'बांसुरी 'के लिए आपको रेलवे मंत्रालय का मैथलीशरण गुप्त पुरस्कार मिल चुका है व यहीं से 'मनके 'लघु कथा संग्रह के लिए प्रेमचंद पुरस्कार मिल चुका है।सभी पुरस्कारों का उल्लेख सम्भव नहीं है.

श्री के एल पांडेय जी बताते हैं,'' अब चूँकि राजकपूर स्वयं संगीत के अच्छे जानकार थे और उन्हें कई वाद्य यंत्रों को भी बजाना आता था, तो उन पर फ़िल्माए गए गीतों के शास्त्रीय पक्ष को उत्कृष्ट होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । हाँ, यह अवश्य कि उन्होंने अत्यंत सरल एवं चंचल प्रकृति के रागों का प्रयोग करवाया जैसे की भैरवी, किरवानी, काफ़ी आदि और कठिन एवं गंभीर रागों को अपेक्षाकृत कम प्रयोग में लिया ।''

''आपको लगता है कि शैलेन्द्र को एक गीतकार की तरह वे बार बार अपनी फ़िल्मों के लिए चुनते रहे,तो इसीलिये ये गीत आज भी मधुर लगते हैं ?''

'' जब गीतों में शब्द शैलेन्द्र जी के हों तो बात कुछ और ही हो जाती है । शैलेन्द्र जी के लिखे गीतों में राग, शब्द संरचना, भाव,शंकर जयकिशन का संगीत एवं राज कपूर की अदायगी का वह सम्मिश्रण बना और वे दर्शक एवं श्रोताओं के हृदय में कुछ इस प्रकार बस गए कि सदा के लिए अविस्मरणीय गीत बन गए हैं। ''

''शैलन्द्र और राज साहब की जोड़ी के कितने विभिन्न मूड्स के फ़िल्मी गीत बहुत लोकप्रिय हुए ?''

''शैलेन्द्र के लिखे राज साहब ऊपर फ़िल्माये ४८ गीत बेहद लोकप्रिय हुए हैं जिनमें प्रयोग में लाई शास्त्रीय रागों का मैंने अध्ययन किया है . ''

''जी,ये बहुत अच्छी बात है .नई पीढ़ी के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण कार्य है जिससे वे सीख सके कि अमर गीतों की किस शास्त्रीय राग से क्या भाव अभिनय में प्रगट करने चाहिए। ''

अब ये तो मुमकिन नहीं कि 48 गीतों में बसी राग यहाँ बताई जाएँ। इसलिए राज कपूर पर फ़िल्माये शैलेन्द्र जी के लिखे दस चुनिंदा फ़िल्मी गीतों की विश्लेषित राग की जानकारी पांडेय जी दे रहे हैं ।

1.आ अब लौट चलें - फ़िल्म 'जिस देश में गंगा बहती है '(1960), गायक मुकेश, लता मंगेशकर और साथी । यह अत्यन्त प्रेरणाप्रद गीत है और कहानी के अनुसार डाकुओं की पूरी फ़ौज को समर्पण कर सामान्य जीवन में वापस लौटने को प्रेरित करता है । काफ़ी राग पर आधारित यह गीत फेमस स्टूडियो में मध्यरात्रि के बाद रिकॉर्ड किया गया क्योंकि इसमें 300 से अधिक वादक कलाकारों का प्रयोग हुआ था जो ट्रैफ़िक रोके जाने के बाद बाहर सड़क तक फैले हुए थे ।

2.आवारा हूँ- फ़िल्म आवारा (1952)

मुकेश के गाये मस्ती भरे इस गीत में राजकपूर अपनी ही स्टाइल में हैं जैसे किसी बात की कोई चिंता नहीं । राग भैरवी में निबद्ध यह गीत सभी को अत्यन्त कर्णप्रिय लगता है ।

3.दिल का हाल सुने दिलवाला- फ़िल्म श्री 420(1955]

मन्ना डे एवं साथियों के गाए इस नृत्य गीत में राजकपूर की अदायगी व भौंहों का उतार चढ़ाव बस देखते ही बनती है । व्यंग्यात्मक कटाक्ष के साथ सामाजिक स्थितियों को दिखाते हुए यह गीत बिलावल एवं माँझ खमाज रागों में निबद्ध है ।

4.किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार- फ़िल्म अनाड़ी (1959), गायक मुकेश.

यह दार्शनिक गीत अत्यंत प्रेरणाप्रद है जो जीने के सही मायने बताता है । राग किरवानी पर आधारित यह गीत राजकपूर की उत्कृष्ट अदायगी के साथ फ़िल्म में बहुत सुन्दर लगता है ।

5.मेरा जूता है जापानी- फ़िल्म श्री 420 (1955), गायक मुकेश. राग किरवानी तथा शुद्ध ऋषभ भैरवी पर आधारित यह गीत राज कपूर की मस्त चाल पर दृश्यांकन होने के साथ बहुत सुंदर बन पड़ा है । इस गीत को रूस एवं मध्य एशिया के देशों में बहुत लोकप्रियता मिली ।

6.ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम - फ़िल्म संगम (1964), गायक मुकेश एवं लता मंगेशकर । अच्छे शब्द संयोजन के साथ एक स्त्री के पूर्ण समर्पण के भावों से भरा यह गीत वैजयंतीमाला के नृत्य के साथ अत्यंत मोहक लगता है ।विषाद के भावों से भरे इस गीत को उसकी प्रकृति के अनुरूप राग शिवरंजनी में ढाला गया है ।

7.रमैया वास्तावैया - फ़िल्म श्री 420(1955), गायक मुहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, मुकेश और साथी. शुद्ध ऋषभ भैरवी एवं जौनपुरी रागों में निबद्ध

इस नृत्य गीत में नायिका द्वारा रमैया को घर वापस आ जाने के लिए की जानेवाली पुकार तथा मुहम्मद रफ़ी एवं लता मंगेशकर के गाये गए अंतरों के बाद अंतिम अंतरे में मुकेश की आवाज़ के साथ गीत गाते हुये राज कपूर की एंट्री, गीत में चार चाँद लगा देती है और गीत की अद्भुत लय हर किसी को थिरकने के लिए बाध्य कर देती है ।

8.सजन रे झूठ मत बोलो- फ़िल्म तीसरी क़सम (1966), गायक मुकेश.

राग शुद्ध ऋषभ भैरवी तथा काफ़ी में निबद्ध यह जीवन दर्शन से भरी संगीत रचना और राजकपूर पर पूरे ग्रामीण परिवेश में बैलगाड़ी हाँकते हुए इसका फिल्मांकन देखना एक अविस्मरणीय अनुभूति से कम नहीं होता ।फिर मुकेश की दमदार आवाज़ और मस्ती भरी लय गीत को बार बार सुनने के लिए बाध्य करती है ।

9.ये रात भीगी भीगी ये मस्त नज़ारे - गायक मन्ना डे एवं लता मंगेशकर, फ़िल्म चोरी चोरी (1956). राग आसावरी, शुद्ध ऋषभ भैरवी एवं किरवानी में निबद्ध यह अद्भुत रोमांटिक गीत जहाँ वातावरण में ताज़गी लाता है .वहीं पृष्ठ भूमि में प्रकृति के दृश्य, राजकपूर और नरगिस की अदायगी और गीत गाते हुए एक दूसरे के प्यार डूबी आँखों व चेहरे से भावभीनी अभिव्यक्ति ने इसे अमर बना दिया है।

10.तेरे बिना आग ये चाँदनी - घर आया मेरा परदेसी- फ़िल्म आवारा (1951), गायक मन्ना डे, लता मंगेशकर एवं साथी ।

राग भैरवी में निबद्ध यह रचना वास्तव में दो गीतों के मेल से बनी है । पहले भाग में जहाँ मन्ना डे और साथियों के स्वर भयावह दृश्यों की पृष्ठभूमि में फ़िल्माए गए हैं, वहीं घर आया मेरा परदेसी से लता मंगेशकर की आवाज़ और परिदृश्य में नरगिस तथा साथियों का नृत्य, भारतीय सिनेमा के इतिहास के मील के पत्थर जैसी अद्भुत नृत्य गीतिका को जन्म देता है ।

इन सभी गीतों में राजकपूर एवं शैलेन्द्र के साथ शंकर जयकिशन का संगीत किसी मणि कांचन संयोग से कम नहीं लगता ।

शैलेन्द्र को फ़िल्म जगत में लाने वाले राज कपूर भी उनकी इस कविता को बहुत पसंद करते थे। आइये उन लीजेंड कलाकार राज साहब की पसंदगी को अपनी ज़िंदगी में उतार लें --

' तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत पर यक़ीन कर,

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।

ये ग़म के चार दिन,सितम के और चार दिन

ये दिन भी जाएंगे गुज़र,गुज़र गए हज़ार दिन। '

नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail –kneeli@rediffmail.com