Dogali parvarish in Hindi Motivational Stories by Shivangi Pandey books and stories PDF | दोगली परवरिश

Featured Books
Categories
Share

दोगली परवरिश

Double personality से पीड़ित लोग

पाण्डेय जी: राम राम दुबे जी

दुबे जी : राम राम भाई राम राम ।

पाण्डेय जी... बहुत अच्छी व्यवस्था की थी आपने, लव मैरिज थी न लड़के की।

दुबे जी: जी

पाण्डेय जी  : आज कल तो ये कॉमन हो गया है। वैसे सही भी है एक दूसरे को जाने समझे रहते है तो ठीक ही रहता है कलह कलेश तो ना होती ज्यादा।बहु भी बड़ी काबिल है बता रहे थे बच्चे।

दुबे जी: .. जी सो तो है, बिना ढूंढे ही हमें हीरा मिल गया।अच्छा ,  आप भी शादी वादी देख रहे ?

जी देख  तो रहे , कोई नजर में हो तो बताइएगा ।

दुबे जी: जी जी बिल्कुल , दुबे जी मजाक में बोले, अरे बेटे से भी पूछ लिए कि नही ।

पाण्डेय जी: अरे दुबे जी कैसी बात करते है आप , हमने अपने  बच्चों को ऐसे संस्कार ना दिए  जिस रिश्ते पे उंगली रख देंगे शादी वहीं होगी, इत्ता तो हम गर्व से कह सकते है।

. पाण्डेय जी उंगली रख के सामान चुन रहे आप तो ।दुबे जी ने मुस्कुरा कर व्यंग में कहा।

पाण्डेय जी  ( पान थूकते हुए )  हंसे   ह ह ह ह देखिए दुबे जी समाज में हमारी बहुत भारी इज्जत है

दुबे जी: (सर झुका कर धीरे से बोले  ) हां, जैसे हमें कुछ पता ही नही। फिर बड़े उत्साह के साथ बोले हां दुबे जी सो तो है ।

पाण्डेय जी  : हमे ये बिल्कुल पसंद नही मुंह मारते फिरें , इश्क लड़ाते फिरें , मुंह मारने तक तो ठीक है कॉमन है आज तो , फिर शादी करने की जिद्द करें , ये बेहूदगी है बिल्कुल ।इसीलिए पैदा किए थे इज्जत खा जाएं ।

ये बात दुबे जी को जरा चुभ गई    ( थोड़ा गम्भीर लेकिन व्यंग स्वर में बोले )   हमारे तो सारे घटिया निकल गए बताओ जहां मुंह मारा वहीं शादी कर लिए  .. अर्थशास्त्र का प्रोफेसर होके भी दोहरा लाभ ना सिखा पाया । बताओ डबल मुंह मारने को मिल जाता । पता नहीं पाण्डेय जी मेरे बच्चों के अंदर स्वाभिमान, मेरा अपना व्यक्तित्व जैसी घटिया भावना आ गई । खैर , दुबे जी उठे कुल्हड़ फेंका  और मुस्कुराते हुए चल दिए । मन में कोई कविता गुनगुनाए

  " इज्जत बड़ी भारी थी संभाली भी ना गई

गिर गई धम्म से उठाई भी ना गई "

पाण्डेय जी समझ ही ना पाए कि दुबे जी उनके परवरिश के साथ साथ उनके समाज की भी धज्जियां उड़ा कर चल दिए।

पाण्डेय जी : बड़े मस्त मौला आदमी है दूबे जी ।

एक पान अउर लगावा भाए चली घरे दूआरे ।

आज समाज किसी एक का हो जाने , एक का ही स्पर्श जीवन भर संभालने, किसी से प्रेम करने को स्वीकार नही कर पाता मुझे तो आज तक समाज की रीतियां ही समझ न आईं उनके लिए चरित्र की परिभाषा क्या है किसी एक से प्रेम करने उसकी के साथ रहने के फैसले को या इश्क किसी और से करके शादी किसी और से कर लेने को दिल में कोई और जिंदगी में कोई और दोहरी जिंदगी जीते रहो । गांव में मोस्टली मैने लोगों को ऐसा ही कहते देखा है gf bf तो कॉमन है आज कल सबके होते है लेकिन मेरे बच्चे मेरी मर्जी से ही शादी करेंगे उन्हें कौन समझाए तुम्हारी तरह तुम्हारे बच्चे भी खोखले है न तो अपना स्वाभिमान है न कोई वजूद चले जा रहे भेड़ चाल । 

परवरिश ही जो एक व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती है 

अगर परवरिश में हम ये न सीख पाए कि चुनो किसी को तभी जब निभा पाओ क्योंकि तुम जानवर की श्रेणी में नही आते, अगर हम अपने जीवन के फैसले खुद से नही ले पाते 

सही और गलत में फर्क तब नही कर पाते जब मुजरिम अपनों में हो 

समाज की कुरीतियों से नहीं जूझ पाते 

तो आपकी परवरिश भी दोगली है