Shadow Of Darkness in Hindi Thriller by Nitin Sharma books and stories PDF | अंधेरे की परछाई

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अंधेरे की परछाई


(एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर)

शहर का नाम था शिवपुर — एक शांत, छोटा सा शहर जहाँ अपराध बहुत कम होते थे। पर पिछले चार महीनों से सब कुछ बदल चुका था। हर पंद्रहवें दिन एक नई लाश मिलती — गले पर एक जैसे तीन कट, और पास में एक सफेद गुलाब रखा होता। न कोई गवाह, न कोई सुराग।

पुलिस के हाथ खाली थे। मीडिया ने उस रहस्यमयी हत्यारे को नाम दिया —
“गुलाब कातिल।”

थाना प्रमुख ने केस सौंपा — इंस्पेक्टर आरव वर्मा को। आरव शांत स्वभाव का, बेहद विश्लेषणात्मक सोच वाला अधिकारी था। उसने आते ही सभी चार हत्याओं की केस फाइल मंगवाईं। पीड़ित — एक वकील, एक बिल्डर, एक स्कूल प्रिंसिपल और एक पूर्व पार्षद। सभी अलग-अलग वर्गों से थे। आरव को कोई पैटर्न नहीं मिला... पर गुलाब का रहस्य उसे परेशान कर रहा था।

“ये कातिल हत्या को सिर्फ क्राइम नहीं, एक संदेश बना रहा है,” आरव बुदबुदाया।

चार दिन बाद, एक लिफाफा उसके ऑफिस में पहुँचा। बिना भेजने वाले का नाम, बस एक सफेद कागज़ जिस पर लिखा था:

"अगली हत्या शुक्रवार रात 12 बजे होगी। अगर समझ सको, तो रोक लो।"



लिफाफे में एक और चीज़ थी — एक फोटो। एक लड़की, लाल साड़ी में, मंदिर के बाहर खड़ी। तस्वीर के पीछे लिखा था —
"जहाँ लोग भगवान बनते हैं, वहाँ इंसान मरते हैं।"

आरव को याद आया — ये मंदिर शहर से बाहर एक पुराना काली मंदिर है, जो अब वीरान पड़ा है।

शुक्रवार रात, आरव वहाँ अकेले पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा, हवा में कुछ अजीब सी बेचैनी थी। पुराने मंदिर के पत्थरों पर समय की धूल और उपेक्षा की परतें जम चुकी थीं। जैसे ही आरव अंदर दाखिल हुआ, उसे लगा किसी ने उसकी परछाई को पार किया।

“तुम आ गए...” एक धीमी, गूंजती हुई आवाज़ आई।

आरव ने अपनी रिवॉल्वर निकाली और कहा, “बाहर आओ। तुम्हारा खेल अब खत्म हो चुका है।”

अंधेरे से एक आदमी निकला — दुबला-पतला, चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान। हाथ में धारदार चाकू, और जेब में एक सफेद गुलाब।

“नाम क्या है तुम्हारा?” आरव ने पूछा।

“नाम से क्या होता है? मेरे नाम से किसी को फर्क नहीं पड़ा... लेकिन अब मेरी पहचान सबको याद रहेगी,” उसने धीमे से कहा।

“तुमने लोगों को क्यों मारा?”

वो हँसा। “क्योंकि वो मरने लायक थे। उन्होंने मेरी ज़िंदगी तबाह की, मुझे इंसान नहीं समझा। एक-एक कर सबने मुझे कुचला। मैं सिर्फ न्याय कर रहा हूँ। जो कानून नहीं कर पाया, वो मैंने किया।”

आरव समझ गया — ये कोई साधारण हत्यारा नहीं, एक टूटी हुई आत्मा है जो खुद को न्यायाधीश मान बैठा है।

“कौन थे वो लोग?” आरव ने सवाल किया।

“वो वकील जिसने झूठे केस में मुझे सालों तक जेल में डाला। वो बिल्डर जिसने मेरी बहन को नौकरी देने का लालच देकर उसका शोषण किया। स्कूल का प्रिंसिपल — जिसने बच्चों के साथ...,” उसकी आवाज़ कांपने लगी। “और वो पार्षद — जिसने मेरे बाप को आत्महत्या के लिए मजबूर किया।”

आरव के रोंगटे खड़े हो गए। सबूत नहीं थे, पर भावनाएँ सच्ची थीं।

“तो अब क्या? हर गलत आदमी को मारोगे?” आरव ने पूछा।

“हर नहीं। सिर्फ वो जो इंसानियत की आड़ में शैतान बनते हैं। मैं उन्हें दिखाता हूँ कि इंसाफ क्या होता है।”
फिर वो चाकू की नोक पर सफेद गुलाब को घुमाने लगा।

“और वो लड़की?” आरव ने पूछा।

उसने एक गहरी साँस ली, “वो मेरी बहन थी। उसने खुद को मार लिया। तब से हर हत्या में गुलाब उसके नाम करता हूँ।”

आरव ने देखा — वो आदमी टूट चुका था, और उसके भीतर सिर्फ बदला ही बाकी था।

“अब बहुत हुआ,” आरव ने धीरे से कहा और अपनी रिवॉल्वर उठाई।

वो आदमी मुस्कराया — “तुम मुझे मार सकते हो, लेकिन मैं खत्म नहीं हूँ। मेरा दर्द, ये सिस्टम, ये ज़ुल्म... सब जिंदा रहेंगे। और शायद... कोई और मेरी जगह ले ले।”

गोली चली। खामोशी टूट गई।

आरव वहीं बैठ गया, चुपचाप।


एक हफ्ता बाद:

मीडिया में खबर आई — “गुलाब कातिल मारा गया।”

शहर राहत की साँस ले रहा था। लेकिन आरव की रातें अब पहले जैसी नहीं थीं।

एक दिन, उसकी मेज पर फिर से एक सफेद गुलाब रखा मिला। साथ में एक चिट्ठी:

"उसने शुरुआत की थी। अब हम खत्म करेंगे। जल्द मिलेंगे, इंस्पेक्टर वर्मा।"



आरव ने गुलाब उठाया, और खिड़की से बाहर देखा —
अंधेरे की परछाई अब भी ज़िंदा थी।