एक पैशाची काला पंख....
अब आगे.............
अदिति की बात सुनकर सब हैरानी से उसे देखते हैं... आदित्य अदिति के पास जाता है...
आदित्य : तू ऐसा क्यूं कहा रही है...?...माना तुम दोनों का झगड़ा हुआ है इसका मतलब ये तो नहीं की तू ऐसा बोलेगी....
अदिति (तक्ष) : भाई बस मुझे कुछ नहीं सुनना....और रही बात विवेक की वो हर समय तक्ष को पिशाच बताता रहता है और आज उसके बानायी औषधि ही काम आई है.....
इशान अदिति को समझाने के लिए उसके पास आता है..." अदिति मैंने माना विवेक गलत सोचता है और शायद उसे समझाना मुश्किल हो लेकिन इसमें इन दोनों की फ्रेंडशिप कहां से बीच में आ गई....."
अदिति कुछ कहती इससे पहले ही कंचन उच्च उसके पास आकर उसे वो विडियो क्लिप दिखाती हुई कहती हैं...." वैसे ये विडियो क्लिप तुझे विवेक दिखाता लेकिन तू कुछ समझने के लिए तैयार हो तब न...देख इसे किसकी गलती से है......."
अदिति (तक्ष)विडियो क्लिप देखकर अपने आप से बड़बड़ाती है...." तो इन्हें सबूत मिल गया... अच्छा हुआ जो मुझे पहले ही पता चल गया नहीं तो अदिति विवेक से नफ़रत करने की बजाय और प्यार में पड़ती......" अदिति (तक्ष) बिना कुछ कहे सीधी शालिनी के पास जाती है...शालिनी जी हितेन के पास बैठी उसके सिर को सहला रही थी.... अदिति को आया देख खुश हो जाती है...
शालिनी : आओ बेटा....(हितेन से कहती हैं)..आज तुझे अदिति ने बचाया है....
हितेन हैरानी से पूछता है..." अदिति तुमने... लेकिन कैसे...?..."
अदिति : उसकी जरूरत नहीं है..... आंटी जी आप इसे घर ले जाइए और डाक्टर आपको बुला रहे हैं जरा देखिए तो सही...
शालिनी अदिति के कहने पर बाहर जाती है लेकिन अदिति (तक्ष) हितेन के पास जाती है और उसके पास जाकर धीरे से कहती हैं....." उस अघोरी और विवेक से दूर रह .... नहीं तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा (अदिति के अचानक बदलाव से हितेन घबरा जाता है)... अभी तो तू बच गया अगली बार ये मत कहना मैंने तुझे चेतावनी नहीं दी..." हितेन जोकि अदिति के बोलने के लहजे से सहमत जाता है उसी डरी हुई आवाज में कहता है......" तततत ..तुम ...अअअदि..दिती ननही हहो....." तक्ष के शैतानी हंसी हंसता हुआ कहता है...." सही पहचाना... मैं तक्ष हूं वही पिशाच जिसके बारे में तुम जानना चाहते हो...." जिसे हितेन सिर्फ अदिति समझ रहा था अचानक जब उसे पता चला तब बहुत घबरा गया । एसी आॅन होने पर भी उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है....
तक्ष उससे कहता है...." शायद मेरी बात तुझे झूठ लग रही है अगर तू चाहे तो मैं अपना असली रूप दिखा सकता हूं...." हितेन तुंरत मना करता है....." नहीं.... तुम.. चाहते.. क्या हो ..?...और वो... कीड़ा..." हितेन की बात पूरी होने से पहले ही तक्ष कहता है....." वो कोई कीड़ा नहीं है.. मेरा सबसे ख़तरनाक हथियार है वो ... चमगादड़ है एक खूनी चमगादड़ जो तेरे खून के साथ साथ तेरी चमड़ी भी खींच लेगी....वो तो सिर्फ उसके पंखो ने तुझे छुआ तब तू यहां पहुंच गया सोच अगर वो उस वक्त अपने असली रूप में होती तो ...."
हितेन सहमी हुई आवाज में कहता है...." आआखिखर....क्क्कया...चचचाहहिएए....तततुमम्हहे ...ममुझझससे...?
तक्ष : अगर अपनी खैर चाहता है तो मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना .... वरना
इतना कहकर तक्ष अपने नुकीले दांतों को उसके सामने दिखाता है......और अपने हाथ में एक धागे में बंधें काले से पंख को उसके सामने करता हुआ कहता है...." इसे पहन ये है मेरा पैशाची पंख.....अब तू मेरी निगरानी में रहेगा...." पहले तो हितेन उस पंख को लेने में हिचकिचाता है लेकिन तक्ष के चिल्लाने पर जल्दी से उसे अपने गले में पहन लेता है.... उसके गले में पहनते ही तक्ष के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ जाती है....
तक्ष : अब तू चाहकर भी किसी को कुछ नहीं बता सकता और उस विवेक के पास जाने की सोचना भी मत .... मुझे तेरे पल पल की खबर पहुंच जाएगी....और हां एक बात और इस पंख को निकालने की सोचना भी मत (तक्ष और कुछ कहता इससे पहले ही कमरें कंचन विवेक के साथ आती है...)
तक्ष वापस नार्मल होता है और वही पास में खड़ा हो जाता है.... विवेक हितेन को ठीक देखकर खुश तो था साथ ही हैरान भी था अचानक जहर का असर अदिति ने कैसे खत्म कर दिया.... (हां विवेक जब रास्ते में ही था तब ही इशान ने उसे काॅल करके सबकुछ बता दिया था)... विवेक अदिति को सामने देखकर खुश तो था लेकिन पहले हितेन को गले लगाता है..... उसके गले लगने से विवेक को अजीब सा लगता है लेकिन इसको इग्नोर कर देता है....
विवेकउससे कहता है ..." तुझे पता है तूने मुझे कितना डरा दिया था , ऐसे कोई अपने बेस्ट फ्रेंड के साथ करता है क्या... हितेन मैं कुछ पूछ रहा हूं...
लेकिन हितेन कोई जबाव नहीं देता बस किसी पुतले की तरफ चुपचाप एक टक अदिति को देख रहा था... विवेक उसकी नज़रों का पीछा करता है जो कि अदिति पर रूकी हुई थी तब उसे ध्यान आता है की अदिति ने ही हितेन को ठीक किया है इसलिए उसे देख रहा है...... अदिति (तक्ष) जोकि हाथ बांधे एक साइड में खड़ी थी, उसके देखकर कंचन धीरे से विवेक से कहती हैं..." विवेक अदिति को मैंने तुम दोनों के वो विडियो क्लिप दिखा दिए थे लेकिन अब इसे इस तरह नाराज नहीं होना चाहिए था...." विवेक कंचन को समझाता है...." कंचन गलती मेरी थी, वो यही सोच रही होगी कि उसे मैं जाकर साॅरी बोलूं ... उसे मैं समझाता हूं..." विवेक अदिति के पास जाता है....
और अदिति से कहता है...." अदिति तुमने ये सब कैसे किया...?.." लेकिन अदिति (तक्ष) कोई जबाव नहीं देती और वहां से जाने के लिए आगे बढ़ती है तभी विवेक उसका हाथ पकड़ लेता है.....
उसके हाथ पकड़ते ही तक्ष के पूरे शरीर में बिजली जैसा करंट दौड़ जाता है और गुस्से में चिल्लाता है...." हाथ छोड़ो मेरा...." लेकिन विवेक की पकड़ ढीली नहीं होती और उसे अपने सामने करता है लेकिन अदिति को इस तरह कांपते देख विवेक परेशान सा हो जाता है.....
तक्ष अपने आप से कहता है....." ये मुझे क्या हो रहा है...?... अपने आप को नियंत्रित नहीं कर पा रहा हूं....
विवेक : अदिति क्या हुआ तुम्हें....?
.......….........to be continued...............
क्या रूद्राक्ष शक्ति के सामने तक्ष टिक पाएगा या आ जाएगा अपने असली रूप में......?
जानने के लिए जुड़े रहिए......
आपको कहानी कैसी लगी मुझे रेटिंग के साथ जरुर बताएं.......