Fokatiya - 1 in Hindi Fiction Stories by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR books and stories PDF | फोकटिया - 1

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फोकटिया - 1

वो जो दोस्त था

राजीव की ज़िंदगी में कोई बड़ी बात नहीं थी। वह न कोई बड़ा बिज़नेसमैन था, न सेलिब्रिटी, और न ही किसी खास खानदान से ताल्लुक रखता था। लेकिन फिर भी, उसमें कुछ खास था—वो अपने लोगों के लिए हमेशा खड़ा रहने वाला इंसान था।

आज की दुनिया में, जहां रिश्ते मतलब से जुड़ते हैं, राजीव उन पुराने किस्म के लोगों में से था, जो दोस्ती को निभाने का हुनर रखते हैं। राजीव दिल्ली की एक सरकारी नौकरी में कार्यरत था—ठीक-ठाक सैलरी, एक टू-व्हीलर, और जनकपुरी के पास एक छोटा सा किराए का फ्लैट।

दिनभर ऑफिस, ट्रैफिक, और वही रोज़मर्रा की रूटीन। मगर इस थकी हुई रूटीन में जो थोड़ी ताजगी थी, वो थे उसके कुछ पुराने दोस्त, जिनमें सबसे खास था—कमल।

कमल, उर्फ़ “फोकटिया”, उसका बचपन का दोस्त था। दोनों एक ही स्कूल में पढ़े, एक ही गली में बड़े हुए, और कॉलेज भी साथ किया। मोहल्ले में अक्सर कहा जाता, “राजीव जहाँ होगा, वहीं कमल होगा।” एक दौर था जब उनकी दोस्ती मिसाल मानी जाती थी।

मगर मिसाल बनते-बनते, वो दोस्ती एकतरफा होती गई।

कमल की एक आदत थी—पैसे खर्च करने से डरना। कॉलेज में कैन्टीन हो, फिल्म का टिकट, या कोई बर्थडे गिफ्ट—कमल हर बार बहाना बना लेता और राजीव बिना शिकवा के निभा लेता। कमल के बहाने भी बड़े दिलचस्प होते: कभी उसका फोन डिस्चार्ज, कभी Paytm बंद, तो कभी EMI का दबाव।

राजीव तब इन बातों को हल्के में लेता था, “यार, छोड़ो, दोस्त है।” मगर धीरे-धीरे ये आदत बन गई।

कमल हर बात में यही करता—बर्थडे पार्टी हो, शादी हो, ऑफिस पार्टी हो—वो पहुंचता जरूर था, लेकिन खाली हाथ। हर बार वही डायलॉग, “अरे यार, गिफ्ट-विफ्ट जरूरी थोड़ी है, असली चीज़ है प्यार।”

राजीव पहले हँसता था, फिर झुंझलाता, फिर आदत डाल ली।

फिर एक दिन, जिंदगी ने करवट ली। राजीव के पिताजी को हार्ट अटैक आया। अस्पताल, इलाज, दवाइयाँ—हर तरफ खर्चा। राजीव बुरी तरह फँस गया। बहुत सोचकर पहली बार उसने कमल से मदद माँगी।

“भाई, थोड़ा टाइट है। कुछ दिन के लिए 10 हज़ार उधार चाहिए। महीने भर में लौटा दूंगा।”

कमल ने लंबी चुप्पी के बाद कहा, “भाई, खुद की भी बहुत टाइट चल रही है। मम्मी के लिए फ्रिज लेना है। EMI भी है। पॉसिबल नहीं है अभी।”

जिस इंसान को राजीव ने सालों तक बिना मांगे सब कुछ दिया, उसका जवाब इतना ठंडा था कि राजीव भीतर से टूट गया।

“ठीक है भाई, कोई बात नहीं,” कहकर उसने फोन रख दिया।

उस दिन के बाद राजीव ने पीछे मुड़कर देखना शुरू किया। उसे याद आया कि कैसे कमल ने कभी किसी की मदद नहीं की। हर बार किसी और की मेहनत पर मौज करता था। हर खर्च के वक्त उसके पास बहाने होते थे या शरारती मुस्कान।

कमल के लिए दोस्ती का मतलब था—सुविधा।

उसे याद आया, कैसे उसकी बहन की शादी में कमल सिर्फ खाने के लिए आया था और वहाँ भी सबसे पहले बुफे लाइन में लगा था।

राजीव ने धीरे-धीरे कमल से दूरी बनानी शुरू कर दी—फोन कम करना, मिलने से बचना, चैट ‘सीन’ पर छोड़ना। कमल को फर्क पड़ा, लेकिन वो समझा नहीं।

“भाई, तू बड़ा बिज़ी हो गया है,” कमल ने तंज कसा।

राजीव मुस्कराया, “हाँ, लाइफ में जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं।”

कमल को अब समझ आ रहा था कि राजीव हाथ से निकल रहा है। वो ‘ATM दोस्त’ अब रिस्पॉन्ड नहीं कर रहा था।

इस पूरे दौरान, राजीव ने खुद से सबसे बड़ा सबक सीखा:

“अगर किसी रिश्ते को सिर्फ एक तरफ से खींचा जाए, तो वो टिकता नहीं।”

उसे यह भी समझ आया कि ज्यादा अच्छा बनना कई बार अपने साथ ज़ुल्म करना होता है।

उसने खुद से वादा किया: अब हर रिश्ता इज्ज़त और बैलेंस के साथ निभेगा—वरना नहीं।

कमल अब उसके लिए सिर्फ एक दोस्त नहीं, बल्कि एक सबक था—एक आईना, जिसमें उसने देखा कि कब ‘ना’ कहना शुरू करना ज़रूरी होता है।

और यही ‘ना’ उसकी आज़ादी की पहली सीढ़ी थी।