शाम से रात होने आई थी लेकिन अन्वी के दिमाग से विवान नहीं निकला था। न जाने क्यों उसे देखने की, उसके बारे में जानने की लालसा उसे खूब थी। ऊपर से विवान मानो उसका हाल समझ रहा हो, तभी रात के वक्त वो भी अपनी बालकनी में आ गया था। मगर अन्वी अपनी सोच में ही इतनी गुम थी कि उसे विवान की मौजूदगी का एहसास नहीं हुआ।लेकिन जब उसे एहसास हुआ और उसने अपनी नज़रे उठा कर देखा तो सामने विवान खड़ा था, मगर इस बार भी वो उसका चेहरा नहीं देख पाई थी। क्योंकि विवान की पीठ अन्वी की तरफ थी, ये देख अन्वी बुरी तरह चीड़ गई और पैर पटक कर अंदर चली गई। उसके जाते ही विवान एक बार फिर पलटा और अन्वी की बालकनी की ओर देखता रहा।
कुछ तो था इन दोनों के बीच, एक जो देखने के लिए तड़प रही थी तो दूसरा सामने होकर भी सामने आना नहीं चाहता था।
अन्वी की पूरी रात बेचैनी में गुजरी आखिर उसके दिमाग में विवान को देखने के लिए जंग जो चल रही थी। वहीं विवान भी शायद किसी सोच में रह कर अपनी रात काट चुका था।
अगली सुबह.....
" आज तो उस लड़के को देख कर रहूंगी, चाहे जो हो जाए। लेकिन ये होगा कैसे? छोड़ो, कुछ न कुछ जुगाड निकाल ही लूंगी!" सुबह उठते ही अन्वी ने खुद से कहा ओर बेड से उठ खड़ी हुई और सीधा पहुंच गई बाल्कनी में।
किस्मत की बात थी कि विवान भी बालकनी में था मगर वो पुश उप्स कर रहा था, जिसकी वजह से एक बार फिर अन्वी उसका चेहरा देखने से चूक गई थी। सुबह की खिलती धूप में विवान का मस्क्युलर शरीर अलग ही चमक रहा था, जिसे अन्वी बिना पलके झपकाए बस देखी जा रही थी।
" क्या मिलता है इस लड़की को बालकनी में खड़े होकर? शाम में तो बैठती ही है, अब सुबह सुबह भी यही खड़ी हो गई?" अन्वी की मां ने हॉल से उसे बाल्कनी में खड़े देख कर कहा।
" सुकून मिलता है मां! एक अनजाना सुकून...." अपनी मां की आवाज सुन वो वहां से अंदर की ओर आते हुए बोली।
जिसे सुन अन्वी की मां ने चीड़ कर उसके सर पर हल्की चपात लगा कर कहा.. " तेरा सुकून तो समझ नहीं आता। कभी चाय पीने में तुझे सुकून मिलता है तो कभी बालकनी में। ना जाने किस का असर आ गया है तुझ पर!"
अपनी मां की बात सुन अन्वी कुछ पल के लिए कही गुम सी हो गई, मानो किसी सोच की दुनिया में।
" अब कहा खो गई? एक तो समझ नहीं आता ये लड़की बार बार किस गृह पहुंच जाती है।" अन्वी को शांत देख उसकी मां ने उसके कंधे हिलाते हुए कहा।
" नहीं कुछ नहीं। आप बताओ, क्या काम है? कुछ तो काम होगा तभी इतना शोर मचा रखा है घर में।" अन्वी ने आंखे रोल करते हुए कहा। मगर वो अब भी अपनी उस सोच में कही उलझी हुई थी।
अन्वी की बात सुन उसकी मां ने उसके सर पर दोबारा चपात लगा कर कहा..." कोई काम नहीं है,, बस सामने वाले घर में गुप्ता जी का भतीजा रहने आया है तो बस उसके लिए नाश्ता लेकर जाना है वहां।"
" सामने वाले घर में?" अपनी पलकों को बार बार झपकाते हुए अन्वी ने बे- यकीनी से पूछा।
" हा भाई! इसमें इतना हैरान होने की क्या बात है? गुप्ता जी ने बताया था उनका भतीजा अकेला रहेगा और अभी कोई मेड भी नहीं रखी होगी उसने। इसलिए तू जाकर नाश्ता दे आना!" हॉल से किचेन की तरफ बढ़ते हुए उसकी मां ने जवाब दिया।
अन्वी को लगा मानो उसकी बरसो की मुराद पूरी होने वाली थी। एक ही दिन में वो उस लड़के को देखने के लिए कितना उतावली थी, लेकिन यहां तो उसकी मां ने अनजाने में ही उसकी मदद कर दी।
कुछ ही देर में अन्वी नहा धो कर तैयार खड़ी थी। उसकी मां ने नाश्ते को लंच बॉक्स में करके उसके हाथ में थमाते हुए कहा..." उसे बोलना नाश्ता कर ले, अगर मना करे तो भी जिद्द करके देकर आना और बोल देना मेरी मां ने बड़े प्यार से बनाया है। अब जाओ और फिर आकर तुम भी नाश्ता करना!"
अपनी मां की बात पूरी सुनते ही अन्वी बिजली की रफ्तार से वहां से सीधा विवान की बिल्डिंग में पहुंच गई। उसने नीचे बैठे गार्ड से विवान का फ्लोर पूछ कर कंफर्म किया और पहुंच गई सीधा विवान के फ्लोर पर। बिना वक्त जाया किए उसने डोर बेल बजाई....
" आ रहा हु!" अन्दर से मर्दाना आवाज आई। उस आवाज को सुनते ही एक पल के लिए अन्वी थम सी गई, उसे अपने शरीर में कपकपाहट महसूस होने लगी।
वो जो विवान को देखने की उत्सुकता थी अब कही गायब सी होने लगी, दिल की धड़कन मानो रेस कर रही थी। अभी वो फिर अपने ख्यालों में गुम हुई की किसी ने दरवाज़ा खोल दिया, और अन्वी के हाथ से टिफिन ...!!