शीर्षक: अनजाने रिश्ते
लेखक: Sandeep
भाग 1: वह बारिश वाली रात
मुंबई की चमचमाती सड़कों पर उस रात बादल कुछ ज्यादा ही बरस रहे थे। हर तरफ भीड़ थी, पर एक लड़की उस भीड़ से अलग थी — उसका नाम था शिवांगी।
ग्यारह-बारह साल की उम्र, भीगी सलवार-कुर्ता, और आंखों में गुस्सा इतना कि जैसे पूरे शहर से नफरत हो गई हो। उसने पापा की आवाज़ नहीं सुनी, मम्मी की पुकार नहीं सुनी — बस भागती चली गई। ट्रेन, बस, और फिर न जाने कौन सा पहाड़ों वाला गांव।
शिवांगी का सफर वहीं खत्म नहीं हुआ। एक मोड़ पर भूख, डर और बेहोशी साथ आई, और वो वहीं रास्ते के किनारे गिर गई।
तभी एक हाथ उसके सिर पर पड़ा — "बिटिया... आँखें खोलो..." वो थीं सीमा दीदी। सफेद साड़ी, गर्म आँखें और सादगी से भरा चेहरा।
भाग 2: एक नया घर
जब शिवांगी की आंख खुली, वो एक साफ़-सुथरे कमरे में थी। खिड़की से पहाड़ दिखते थे, नीचे बच्चों की हँसी गूंज रही थी।
सीमा दीदी ने पानी दिया और बिना कुछ पूछे उसके सिर पर हाथ फेरा।
"यही है अब तेरा घर," उन्होंने कहा।
शिवांगी ने कुछ नहीं पूछा, बस आँखें भर आईं।
NGO का नाम था — जीवन दीप। यहाँ वो सब बच्चे रहते थे जिन्हें दुनिया ने ठुकरा दिया था।
भाग 3: समय बीतता है
साल दर साल बीतते गए। शिवांगी अब बड़ी हो चुकी थी — बच्चों की गुरु, बहन, और प्रेरणा।
पर एक टीस अब भी उसके भीतर थी — पापा। वो क्यों नहीं आए? क्या उन्हें फर्क नहीं पड़ा?
दीवाली की रात जब बच्चे दीये जलाते और अपने मम्मी-पापा के नाम बोलते, शिवांगी चुप रहती।
एक बच्चा एक दिन बोला:
"दीदी, आपने अपने मम्मी-पापा का नाम नहीं लिया?"
शिवांगी ने तड़पते हुए कहा:
"कौन से मम्मी-पापा? जो अपने बच्चों को अकेला छोड़ देते हैं? जिन्हें फर्क ही नहीं पड़ता उनके आंसुओं का?"
बच्चा चुप। हवा भी चुप।
भाग 4: गलती से हुआ रिश्ता
एक दिन NGO के पास की सड़क पर एक स्कूटी बहुत तेज़ी से आई और किसी से टकरा गई। टक्कर खाने वाली कोई और नहीं, खुद शिवांगी थी।
स्कूटी वाला लड़का डर के मारे भाग गया। उसका नाम था — देव जोशी। एक गांव का मेहनती, लेकिन जल्दबाज़ लड़का।
देव उस रात सो नहीं सका। और अगली सुबह NGO जाकर छोटे बच्चों की मदद करने लगा — उसे नहीं पता था कि वही लड़की जो घायल हुई थी, अब उसकी आँखों के सामने बच्चों को पढ़ा रही है। और शिवांगी को भी नहीं पता था कि ये वही लड़का था...
भाग 5: नफरत और बदलाव
शिवांगी को देव की मौजूदगी से चिढ़ होती थी। वो उसे हर काम में टोक देती। पर देव चुप रहता। शायद उसके मन में पछतावा सच्चा था।
एक दिन NGO को ज़मीन से बेदखल करने का खतरा पैदा होता है। सब घबरा जाते हैं। देव भाग-दौड़ करता है, ऑफिस जाता है, पुलिस और वकील से मिलता है। धीरे-धीरे शिवांगी का मन बदलता है — वो सोचती है, "क्या हर गलती करने वाला बुरा होता है?"
भाग 6: सच्चाई सामने
दीवाली की रात। वही दीये, वही बच्चे। इस बार देव खुद आता है और शिवांगी से कहता है:
"मैं ही था। जिसने आपको टक्कर मारी थी... भाग गया था... डर गया था। अब खुद से भी नज़र नहीं मिला पा रहा।"
शिवांगी चुप रही। फिर बस एक दीया उसके हाथ में रख दिया:
"जो डर के भागते हैं... वो लौटकर नहीं आते। पर तू लौटा है। शायद किसी रिश्ते की शुरुआत यहीं से हो।"