संस्मरण_ डॉक्टर, मैकेनिक और भगवान
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हाल ही में जोधपुर की होनहार प्रतिभाशाली आरएस अधिकारी प्रियंका विश्नोई, आयु 31 वर्ष की गायनिक समस्याओं और असफल ऑपरेशन से मौत हो गई।वह दस दिन जोधपुर में सरकार अस्पताल में भर्ती रहीं सर्जरी के लिए पर बाद में हालत बिगड़ गई। इलाज किया तो और इन्फेक्शन हो गया। और एक होनहार प्रतिभाशाली लड़की चली गई।इसके तीन दिन पूर्व एक और राज्य में तीस वर्ष की एक और विवाहिता लेखिका आठ माह की प्रेंगनेट पेट दर्द से निजी अस्पताल में असमय ही मृत्यु को चली गई। प्रश्न यह उठता है जिम्मेदार कोन? जिस राज्य और देश में उच्च शिक्षित और सामर्थ्यवान लोगों तक को अच्छा इलाज नही मिल रहा तो वहां आम आदमी और गांव कस्बे के व्यक्तियों का क्या हाल होता होगा? वह हाल आप और हम वर्षों से रोज देख रहे हैं। अनगिनत हमारे अपने असमय ही डॉक्टरी इलाज के बाद भी ठीक नहीं हुए और चले गए। डॉक्टर्स और हम यही मानते हैं की जिसकी आनी होती है आ जाती है। सबसे बड़े प्रश्न जिन्दगी को हम इतनी लापरवाही और गलत ढंग से, भगवान भरोसे क्यों छोड़ते हैं? जब हर चीज, लॉजिकल और सुव्यवस्थित है तो फिर सबसे कीमती चीज इतनी लापरवाह तो हम कभी नही मानते फिर? जिंदगी जाने के बाद या एक हाथ, पांव जाने, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट फेलियर के बाद ही क्यों कहते हैं हमसे?
अपनी नाकामी छुपाने और दोष भगवान या अल्लाह के सिर मढ़ने के लिए। जिससे उस व्यक्ति (या व्यक्तियों) जिसे करोड़ों रुपए खर्च कर डॉक्टर बनाया गया वह अपने काम में निष्णात नही। वह अपने हाथों की सफाई और बुद्धिमत्ता को इस्तेमाल नहीं कर सका। कहा जाए सैंकड़ों काबिल हैं तो उन्हीं में सैंकड़ों नाकाबिल भी हैं। कितनों ने तो पांच साल की सामान्य एमबीबीएस, (एमएस की बात नही कर रहा) आठ से दस साल में की है। जी हां, तीन सेमेस्टर और कुछ जो आपके हमारे शहर में प्रैक्टिस कर रहे उन्होंने पांच से आठ सेमेस्टर असफल हुए। पर आज तक मेडिकल इतिहास में कोई भी डॉक्टरी का छात्र निकाला नही गया बल्कि वह एमबीबीएस बनाकर ही भेजा गया, आपकी और हमारी जान से खेलने के लिए l
क्योंकि आखिर में संबंधित अधिकारी या परीक्षक ने एमबीबीएस के द्विमासिक और अर्धवार्षिक और प्रैक्टिकल में खींच खांचकर पास ही कर दिया की जाओ अब यहां से और सीट खाली करो क्योंकि हर साल सैंकड़ों बच्चे करोड़ों की फीस के साथ फर्स्ट ईयर एमबीबीएस में आ रहे हैं।
दरअसल जिस तरह सीए, प्रोफेसर (मेरे खुद के कोचिंग क्लास में मेरी पीएचडी, नेट, डबल पीएचडी, डीलिट की डिग्री लगी हैं) या एक सामान्य मैकेनिक भी अपने वर्क प्लेस पर लगाता है अपनी योग्यता का प्रमाणपत्र वैसा ही यह भी करें और कितने वर्षों में किया यह भी।क्योंकि बाकियों की गलती जानलेवा नही और इनकी है।
परंतु आज तक एक भी अयोग्य डॉक्टर को दोषी नहीं बनाया गया।और यह तो मैं इनके मुख्य व्यवसाय, शपथ लेकर जो यह प्रारंभ करते हैं जीव की रक्षा और स्वास्थ्य को देखेंगे, में गड़बड़ी को कह रहा हूं।इसके अलावा समाज में व्याप्त हर बुराई भी अधिकांश के अंदर है चाहे महिला मरीजों से बदसलूकी, रिश्वत और महंगे महंगे टेस्ट और बिला वजह एक की जगह छ सात दवाई लिखना हो, या वेंटलेटर को बिना वजह तब तक लगाना जब तक मरीज के परिजनों की जेब से उनकी पढ़ाई की फीस का पूरा पैसा न निकल जाए। और इन सबके बाद भी कोई जिम्मेदारी उनकी नही। जब आप बड़े टेस्ट पास करके एमबीबीएस में आए, इंटेंसिव पढ़ाई की, विशेषज्ञता हासिल की तो किसी चीज के लिए तो जिम्मेदारी लोगे या नही?
मैकेनिक के ऊपर आते हैं जो बेचारा इंतजार कर रहा।तो मैकेनिक के पास आप जाएं, कार, बाइक, स्कूटी को ठीक कराने और वह उस खराबी को ठीक करने में जुट जाए और अकसर नही हमेशा सही कर देता है। दसवीं फेल हमारा नौजवान भाई। परंतु यदि आपकी कार की क्लच प्लेट, बाइक का इंजिन और खराब कर दे तो आप क्या करते हो? यकीनन सब जानते हैं हम उसे डांटते हैं, खरी खरी सुनाते हैं और उसे ठीक करने को कहकर उसके पास ही खड़े रहते हैं। फिर भी सही नही हुआ तो वह भी कोई पैसा नहीं मांगता और अपनी गलती की माफी मांगता है की यह कार्य मुझसे नही हुआ। अब हमारे भगवान के अवतार होते थे तीस साल पहले जो लोग, उनसे तो एक अनपढ़ गाड़ी मिस्त्रि से कुछ अधिक की उम्मीद करना जायज है पर वह आज तक कोई भी डॉक्टर यह नही किए। अपनी गलती मानी ही नही। ऊपर से हमारे आपके विरोध करने पर, परिजन की मृत्यु या नुकसान से दुखी होने पर भी हमें ही सारा पैसा बिल देकर धक्के मारके निकाल देते हैं। कोई कोई हाथ और जुबान इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें पुलिस ले जाती है।
प्रश्न यह है की क्या कोई जिम्मेदारी उनकी तय होनी चाहिए या नहीं? और इनकी एमबीबीएस पास करने पर बनी सीजीपीए या प्रतिशत और कितने वर्षों में एमबीबीएस किया की जानकारी मरीज और उसके परिजनों को होनी चाहिए या नहीं? और यह क्यों न हो की एक डॉक्टर से इलाज के दौरान कितनी मृत्यु और मरीजों को नुकसान हुआ इसकी जानकारी हर वर्ष उसकी सीआर में और पब्लिक में कोई संस्था दे।वहीं यह भी हो की कितने मरीजों की जानें बचाई और जिंदगी दी। कोई हर्ज नहीं। साथ ही यह प्रावधान हो की दस से अधिक केस बिगाड़ने पर उस पर कार्यवाही हो। सबकी एक ट्यूटर भी जो आपके बच्चों को पढ़ाता है अच्छी खासी मासिक फीस लेता है वह तक अच्छे रिज़ल्ट के लिए जिम्मेदार होता है। वह पूरी मेहनत करता है।पर यह लोग कब करेंगे जो अयोग्य हैं। आईएमए, भारतीय मेडिकल संगठन खुद इन मामलों से दुखी और परेशान है। हर सीनियर डॉक्टर जानता है सच्चाई यही है। परंतु न जाने आज तक इन पर कोई गाइडलाइन क्यों नही बनी? अब वक्त है इनकी भी जिम्मेदारी तय करने का। आखिरकार हाड़ मांस के इंसान को आप बिला वजह लापरवाही से इस दुनिया से रुखसत करने पर कुछ तो सजा मिलनी चाहिए या नहीं? इनकी गलत और लापरवाही का विरोध अच्छे डॉक्टरों को ही करना चाहिए। ऐसे अधकचरे डॉक्टर, जिन्होंने पांच साल की एमबीबीएस, दस दस सालों में आखिरकार ठेलकर पास की, कि भइया अब तो इसे संस्थान से भेजो। जो मौत के सौदागर हैं, की वजह से अच्छे, प्रतिबद्ध और ईमानदार डॉक्टर भी बदनाम होते हैं।तो उन्हें चाहिए वह खुद हर शहर में अपनी एसोसिएशन बनाएं या होंगी और उसमें एक जिला प्रशासन का अधिकारी और तीन समाज के लोग, एक ग्रामीण, एक महिला शिक्षक और एक कोई आम व्यक्ति हो। जो ऐसे मामलों की जांच निष्पक्ष करें और वह सुनवाई सबके सामने हो और दोषी को दंड मिले। इससे दोनो बातें होंगी की जो ऐसे डॉक्टर बहाने बनाते हैं की ईश्वर की मर्जी उन पर लगाम लगेगी।और आम व्यक्ति भी यह समझेगा की यहां डॉक्टर और स्टाफ की गलती थी और यहां खुद मरीज की। As simple as that. जहां इस तरह से दो चार लोगों को इंसाफ मिला और अच्छे डॉक्टरों ने आगे आकर आम व्यक्ति की पीड़ा समझी वहीं यह बहुत बड़ा सुधार होगा।यह लापरवाही से, अरे, दवाइयां तक गलत लिख देते हैं या दूर की कोड़ी की लिया देते हैं जो उपलब्ध होती है उनके पास, या जिस पर मोटा कमीशन मिलता है। मैं तारीफ करूंगा मेरे परिचित कुछ युवा डॉक्टरों के जो कुछ वर्षों की अपनी डॉक्टरी के बाद भी निरंतर नई नई और मोटी किताबें पढ़ते रहते हैं अपने क्लिनिक में की कम से कम नुकसान की और नई दवा इन बीमारियों की कौनसी आई हैं।और वह दवाई मित्रों, यदि उपलब्ध नही सामान्य मरीजों को तो वह उसका फार्मूला, उसमें कोन कोन से तत्व है फिर उन्ही को सर्च कर दूसरी दवाई जो मिल जाए खोजते हैं और वह लिखते हैं। मुझे याद आते हैं, वह सौ वर्ष जिएं, वरिष्ट हार्ट के डॉक्टर मित्तल साहब, जिन्हे निमोनिया के शिकार मेरे डैडी जी को देखने के लिए मैंने निजी महंगे अस्पताल में खास अनुरोध पर बुलवाया।क्योंकि ऐसा ही एक लालची, अर्धज्ञानी डॉक्टर मुझे तीन दिन से दबाव बना रहा था की इनके तीन लाख का पेस मेकर दिल में लगावालो। मैं कहता इन्हे कोई दिल की समस्या या बीमारी नही है डॉक्टर साहब।डॉक्टर मुझे अपमानित करता और आईसीयू में भर्ती पिताजी को ले जाने की धमकी देता। वहां के पैनल में मैंने नाम देखा था डॉक्टर ऑन कॉल में मित्तल साहब का।मैंने उन्हें अगले दिन बुलाने की रिक्वेस्ट नीचे कह दी। अगले दिन वह आए, दस मिनट डैडी जी की जांच की। पहले वाला डॉक्टर डरा रहा था की हार्ट बीट लगभग चालीस से पचास के मध्य थी, जबकि हमारी बहत्तर से अस्सी होती हैं। तो मित्तल जी ने देखा और दो टूक कहा, दिल बिलकुल ठीक है और कोई पेस मेकर की जरूरत नही है। मैंने पूछा यह कम हार्ट बीट का क्या? उन्होंने कहा, इस आयु में सत्तर वर्ष के बाद, सामान्य इतनी ही चालीस से पचास हार्ट बीट रहती है। दिल सही है उनका। पिताजी देख रहे थे, हालांकि उनके मुंह में नली लगा रखी थी और मास्क, जिससे आईसीयू में उनके साथ क्या हो रहा है, मरीज बोल न सकें। मुझे आज भी याद है, इतनी राहत मैने महसूस की बता नही सकता।और वहीं डॉक्टर मित्तल के पांवों में गिर पड़ा। उन्होंने मुझे हिम्मत दी और पिताजी मुझे देख रहे थे।फिर वह मुझे इशारे से बोले मुझे घर ले चल । मैंने कहा डॉक्टर कहेगा ले जाऊंगा ।आप सेफ हैंड में हो। पंद्रह बीस बोतल प्लाज्मा, सारी महंगी जांचे, बिला वजह उनका कमजोर शरीर झेल चुका था। अब वह घर जाना चाहते थे । एलएलबी इंग्लिश माध्यम से उन्नीस सौ सड़सठ के वह, रेलवे में अधिकारी की आंखों में खुशी थी। मैं उस वक्त डॉक्टर को भगवान मानता था, उसकी हर बात सिर आंखों पर। डॉक्टर को बताया तो वह बिलकुल सामान्य रहा की ठीक है पेस मेकर नही लगाते और एक मिनिट से भी कम समय में आगे बढ़ गया। अब यही आपका मैकेनिक बताएं कार या बाइक में यह बड़ी खराबी है, यह मोटा मोटी व्यय और पुर्जा लगेगा और उसी वक्त यदि आपके साथ कोई जानकर कह दे की यह बेजरूरत की बात है, यह खराबी नही है। यह ठग रहा, धोखा दे रहा आपको तो हम और आप क्या करते हैं ऐसे मैकेनिक का यह बताने की जरूरत नही।
पर मैं वहीं रहा डैडी जी के साथ वही डॉक्टर, एक दिन और आईसीयू में रखकर कल डिस्चार्ज करूंगा कहकर ले गया। उन्हे उसी रात इन्फेक्शन हो गया। आठ दिन वेंटीलेटर पर रहे अजमेर के उस वक्त के बड़े निजी अस्पताल में और हमें छोड़कर चले गए। वह जो खुद पंद्रह दिन पहले अपने पांव पर चलकर निमोनिया के इलाज के लिए आए थे।
वह डॉक्टर जिसके पास मरीजों के लिए एक मिनिट ही होता था, और बड़ा निजी अस्पताल सामान्य निमोनिया ठीक नही कर सका। बिल जरूर आठ लाख का दिया।जिसमें प्रतिदिन पांच सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर विजिट के आठ सौ रुपए प्रत्येक के थे, आज से छह वर्ष पूर्व। जो केवल तीस सेकंड ही आते थे। आज उनका श्राद्ध मना रहा हूं और अपने को माफ नही करता की क्यों मैंने यहां इलाज करवाया? बाहर बड़े शहर क्यों नही लेकर गया? शैतान को भगवान क्यों समझ बैठा? आप में से कुछ कह सकते हैं भगवान की मर्जी।पर भगवान की मर्जी तो हमें इस सुंदर संसार में रहने और खूब अच्छे से कार्य करने और अपने आसपास खुशियां बांटने और कर्म करने की होती है। ईश्वर कतई नहीं चाहते की हम धोखेबाज, लालची लोगों की गलतियों का शिकार हो। आप भी जो पढ़ रहें हो, बहुत बहुत सख्ती से ऐसे लालची लोगों से पेश आएं और उनके ऊपर विश्वास से पहले अपने परिचित या रिश्तेदार या अच्छे डॉक्टर्स से भले ही दूसरे शहर भी जाना पड़े, राय जरूर लें। पिछले ही महीने इस छोटे शहर में एक बुजुर्ग को दोनो किडनी फेल बताकर मात्र दस दिन जीने की बात कही। उसकी तीनो बेटियां उन्हे लेकर जयपुर के उनके पुराने डॉक्टर से मिलीं दिखाया उनको। उसने दवाई दी सात दिन की और कहा दोनो किडनियां एकदम सही हैं। और आज वह व्यक्ति अपने पांव पर खड़े हैं। अच्छे और प्रतिभाशाली डॉक्टरों को तो कैम्पस प्लेसमेंट से बड़े महानगर ले जाते हैं। सेकंड डिविजनल या एवरेज को बड़े शहर जयपुर, इंदौर, वाराणसी, जबलपुर, भोपाल आदि। जो बिलो एवरेज रह गए, दस साल एमबीबीएस वाले, जिन्हे कोई नही पूछता वह छोटे छोटे शहरों में अपना ठिकाना बनाते हैं। वहां कम जागरूक लोग, सहन करने वाले लोग, हर चीज भगवान भरोसे वाले लोग होते हैं, तो वहां उनकी नाकबलियत छुप जाती है। और कुछ वर्षों मे वह न जाने कितने घर परिवारों में दुख के बादल फैला देते हैं यह वह भी नही जानते। तुरंत जरूरत इनकी जवाबदेही तय करने की और ऐसे एसोसिएशन हर शहर में बनाने की है जो ऐसे मामलों में दंड की सिफारिश करे।अच्छे डॉक्टरों को आगे आना होगा और इस अव्यवस्था को ठीक करना होगा, बोलकर, विरोध करके और इन लोगों पर कार्यवाही करके।
ईश्वर इन्हे सद्बुद्धि दे और हमारे आपके अनगिनत परिजनों की दिवंगत आत्माओं को शांति दे।
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डॉक्टर संदीप अवस्थी, आलोचक, कथाकार, कवि और मीडिया विशेषज्ञ, 7737407061