Awakening of Kalki: End of Kali in Hindi Mythological Stories by Krishna books and stories PDF | कल्कि का जागरण : कली का अंत

The Author
Featured Books
Categories
Share

कल्कि का जागरण : कली का अंत



वो युग था जब सत्य, धर्म और करुणा, केवल ग्रंथों में रह गए थे।
धरती पर अराजकता का नंगा नृत्य चल रहा था। मनुष्य का मन कुत्सित हो चला था। पशुता, लालच, वासना और झूठ ने देवों के बनाए संतुलन को चूर कर दिया था। इस कलियुग में जन्म लिया था एक राक्षसी आत्मा — कली।

कली, कोई साधारण असुर नहीं था। वह अंधकार का अवतार था। वह जहाँ जाता, वहाँ मनुष्यों में द्वेष, शोषण, लालच, और क्रूरता भर जाती। उसकी एक दृष्टि से हज़ारों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती। उसने न सिर्फ इंसानों को, बल्कि प्रकृति को भी अपने अधीन कर लिया था। नदियाँ सूखने लगीं, पेड़ झुलस गए, धरती कराह उठी।

राजा, मंत्री, साधु, यहाँ तक कि देवताओं के कुछ गुप्त सेवक भी उसके प्रभाव में आकर भ्रष्ट हो गए थे।

पूरी पृथ्वी भय में जीने लगी थी। कली ने एक घोषणा की थी —
"अब इस युग में कोई सत्य का रक्षक नहीं। धर्म मर गया। और जिसे जगाना है, वो कल्कि — अब वो भी नहीं जागेगा!"


धरती के इस अंधकार में एक गाँव था — चन्द्रपुरी। यह गाँव भी कली के डर से थर्रा रहा था, परंतु वहीं रहती थी एक सुंदर, सरल, पर दृढ़ संकल्प वाली कन्या — मीरा। उसके स्वभाव में करुणा थी, पर आँखों में ज्वालामुखी छिपे थे।

मीरा को सपनों में एक ही चेहरा दिखाई देता था — एक शांत, उज्जवल नेत्रों वाला तपस्वी। हर बार वही कहता,
"जब समय आएगा, तू मुझे पहचान लेगी।"

एक दिन गाँव पर कली के सैनिकों ने आक्रमण कर दिया। गाँव जलने लगा। मीरा भागते हुए घने जंगलों की ओर चली गई। कई दिनों तक भूखी-प्यासी भटकने के बाद वो एक गुफा में पहुँची, जहाँ बैठा था वही तपस्वी, जिसे वह सपनों में देखती थी।

वह शांत था, समाधि में लीन। ना गर्मी का असर, ना बारिश की चिंता। उस पर एक आभा थी — जैसे समय भी उसे छू नहीं सकता।
मीरा ने उसे कई दिनों तक देखा। उसे जल दिया, फल दिए, उसकी आँखों में देखती रही — पर कोई प्रतिक्रिया नहीं।

वो सोचती — “कौन है ये? क्यों मुझे इसकी तरफ खिंचाव है?”
धीरे-धीरे उसे यह एहसास हुआ... यही है कल्कि।


एक दिन जंगलों में बिजली सी कड़कती है। आकाश में काली रेखाएँ खिंचती हैं। कली को पता चल गया — कल्कि जागने वाला है।

उसने आकाश में सेना भेज दी। गगन में उड़ते राक्षसों का दल मीरा और तपस्वी पर झपटता है।

मीरा ने अब ठान लिया — "अब कुछ करना ही होगा!"

वह तपस्वी के सामने बैठती है, और आँखें मूँदकर अपने हृदय की आवाज़ से पुकारती है —
"हे कल्कि! धर्म के रक्षक! उठिए! अब देर नहीं है। माँ पृथ्वी आपको पुकार रही है।"

वह करुणा, प्रेम और क्रोध के आँसुओं से पुकारती है।
और फिर — वह घड़ी आती है।

गुफा में प्रकाश फूट पड़ता है। एक महान तेजोमय ऊर्जा से वह साधु उठता है। उसकी आँखें सूर्य समान चमक रही थीं। आवाज़ गूंजती है —
"मैं आ गया हूँ। अब अंधकार का अंत निश्चित है।"

कल्कि ने अपने तप से एक दिव्य घोड़ा उत्पन्न किया — "देवदत्त", और एक दिव्य तलवार — जो अधर्म को छूते ही उसे भस्म कर दे।


कली और कल्कि आमने-सामने थे।
वहीं मैदान बना — जहाँ अब कोई समय नहीं था, केवल युद्ध था।

कली ने अपनी सातों शक्तियाँ बुला लीं — अहंकार, मोह, लोभ, वासना, हिंसा, छल और अधर्म।
कल्कि अकेले थे — लेकिन धर्म की अग्नि से जलते हुए।

तलवारें टकराईं। आकाश टूटने लगा।
कली का तांडव इतना तीव्र था कि सातों समंदर सूखने लगे।
धरती काँप उठी। पहाड़ चूर हुए।

पर कल्कि रुके नहीं। उन्होंने अपने एक वार से कली के छद्म रूपों को नष्ट किया। पर कली अमरता का वरदान लेकर आया था।

मीरा वहीं युद्ध देख रही थी। उसने देखा, कल्कि अब थकने लगे हैं।

मीरा ने हिम्मत से कदम बढ़ाए। वह कली के सामने खड़ी हो गई।
"मैं तुम्हारे उस अंधकार को चुनौती देती हूँ जो प्रेम को मिटा देना चाहता है।"

कली ने उस पर हमला किया — पर तभी, कल्कि ने अंतिम प्रहार किया — एक ऐसा वार जिसमें धर्म, प्रेम और बलिदान की शक्ति थी।

कली चीखा, फटा — और फिर सदा के लिए मिट गया।

जैसे ही वह मिटा — आकाश से 25 वर्षों तक लगातार वर्षा हुई।
सूखे समंदर फिर भर गए। धरती ने फिर से साँस ली।
प्रकृति ने फिर से नृत्य किया।


कल्कि अब फिर से शांत हो गए। उन्होंने अपना अस्त्र छोड़ दिया।
मीरा ने उनसे पूछा,
"क्या आप अब सदा के लिए चले जाएँगे?"

कल्कि बोले —
"जहाँ धर्म संकट में होगा, मैं फिर आऊँगा। पर तब तुम जैसे किसी हृदय की करुणा मुझे फिर जगाएगी।"

मीरा ने मुस्कुराकर उन्हें देखा, और धीरे से कहा —
"अगर प्रेम सच्चा हो, तो कल्कि हर युग में जागेगा..."