रात के दो बजे का समय था। चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था। पुलिस जब उस फ्लैट में पहुँची, तो दरवाज़ा खुला पड़ा था और अंदर एक लाश — आकाश की।
ख़ून से लथपथ शरीर, और सामने ज़मीन पर गिरा एक फ्रेम — जिसमें तीन लोग मुस्कुरा रहे थे।
आकाश, श्रेया और विक्रम।
पिछले साल...
श्रेया, एक कॉलेज में प्रोफेसर थी। बेहद खूबसूरत, समझदार और आत्मनिर्भर। उसी कॉलेज में आकाश भी पढ़ाता था। दोनों में नज़दीकियाँ बढ़ीं और धीरे-धीरे प्यार में बदल गईं।
आकाश बहुत ही सीधा-सादा इंसान था — थोड़ा पजेसिव ज़रूर, लेकिन श्रेया उसे समझती थी। दोनों ने शादी की बात शुरू कर दी थी।
लेकिन तभी कॉलेज में एक नया प्रोफेसर आया — विक्रम सिंह।
विक्रम की एंट्री
विक्रम एक करिश्माई, हाज़िरजवाब और आत्मविश्वासी शख्स था। छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया था। पर श्रेया को उससे कुछ अलग ही लगाव हो गया।
विक्रम और श्रेया अक्सर साथ दिखने लगे। प्रोजेक्ट्स, स्टाफ आउटिंग्स और कभी-कभी कैफे में कॉफ़ी।
आकाश को ये सब खटकने लगा था। एक दिन उसने श्रेया से साफ़ पूछ लिया —
"क्या तुम विक्रम से प्यार करने लगी हो?"
श्रेया चुप रही। उसका चुप रहना ही आकाश के लिए जवाब था।
तीनों के बीच तनाव
कुछ हफ़्तों तक श्रेया और आकाश के बीच बहुत लड़ाइयाँ हुईं। एक दिन श्रेया ने घर छोड़ दिया और विक्रम के साथ रहने लगी।
पर विक्रम के लिए ये सब सिर्फ़ एक खेल था। प्यार उसके लिए सिर्फ़ एक रोमांच था, स्थायित्व नहीं। जब उसे लगा कि मामला गंभीर होता जा रहा है, वो धीरे-धीरे श्रेया से दूर होने लगा।
श्रेया टूटी हुई थी। उसने एक रात आकाश को फोन किया —
"माफ़ करना आकाश, तुम सही थे… मैं गलत इंसान को चुन बैठी।"
आकाश ने कहा, "अगर वापस आना चाहो तो मेरा दरवाज़ा हमेशा खुला है।"
हत्या वाली रात
उस रात श्रेया वापस आकाश के घर गई। दोनों ने बहुत देर तक बात की। आकाश ने खाना बनाया, दोनों ने शराब पी।
श्रेया ने कहा, "मैं तुम्हारे पास लौटना चाहती हूँ, लेकिन एक बात है… मैं विक्रम से भी बदला लेना चाहती हूँ।"
आकाश ने ग़ुस्से में कहा, "तो उसे बुलाओ यहाँ। सबकुछ आज ही ख़त्म करते हैं।"
रात के क़रीब 1:30 बजे विक्रम वहाँ पहुँचा। पहले तो बात शांत थी, लेकिन धीरे-धीरे आवाज़ें ऊँची होने लगीं।
और फिर — एक गोली चली।
पुलिस रिपोर्ट
पड़ोसियों ने गोली की आवाज़ सुनी और पुलिस को बुलाया। जब पुलिस पहुँची, तो आकाश की लाश ज़मीन पर थी।
लेकिन घर में ना विक्रम था और ना श्रेया।
जांच शुरू हुई। CCTV फुटेज से पता चला कि विक्रम घर में दाख़िल हुआ लेकिन बाहर कभी निकला नहीं। फिर गया कहाँ?
तीसरा चेहरा
पुलिस ने कमरे की तलाशी ली। एक पेंटिंग के पीछे से एक छोटा-सा दरवाज़ा मिला, जो स्टोर रूम की तरफ़ जाता था।
वहाँ मिली एक और लाश — विक्रम की।
वो सिर पर वार से मारा गया था। और उसके पास ही बैठी थी श्रेया — खून में सनी, बेहोश।
सच क्या था?
श्रेया को होश में लाया गया। उसने जो कहा, वो किसी सस्पेंस फिल्म से कम नहीं था —
"मैं सिर्फ़ दोनों को आमने-सामने लाना चाहती थी, ताकि जो भ्रम था वो टूटे।
पर जैसे ही आकाश को समझ आया कि विक्रम ने उसके साथ खेल किया, उसने गुस्से में पिस्टल निकाल ली।
विक्रम ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन गोली चल गई — और आकाश मर गया।
गुस्से में विक्रम मेरी तरफ़ बढ़ा… मैंने पास ही रखी ट्रॉफी उठाई और उसके सिर पर मार दी।
सब कुछ एक झटके में ख़त्म हो गया…"
फैसला
जाँच के बाद, कोर्ट ने माना कि यह केस सेल्फ डिफेंस और भावनात्मक उकसावे का था।
श्रेया को कुछ साल की सज़ा हुई, लेकिन उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सज़ा — उसकी आत्मग्लानि थी।
अंतिम दृश्य
जेल में श्रेया ने एक किताब लिखी —
"वो तीसरा कौन था?"
उसने लिखा —
"प्यार, जब भ्रम बन जाए… और भ्रम, जब अपराध बन जाए — तब हर दिल एक कातिल बन सकता है।"