मीरा मैम और उनका शरारती कृष्ण
(एक अनकही मोहब्बत की मनोवैज्ञानिक प्रेमगाथा)
“क्लास में ध्यान दीजिए... Psychology isn’t about reading minds, it’s about understanding them.”
मीरा ने बोर्ड की तरफ पीठ करके जैसे ही बोलना शुरू किया, एक आवाज़ हल्के से फुसफुसाई —
“But I only want to understand your heart, Ma’am.”
पूरा क्लास सन्न... मीरा ने पलट कर देखा। चेहरा गंभीर था, पर आँखों में हल्की मुस्कान छिपी थी।
"कृष्ण...", उसने नाम लिया।
वो मुस्कुरा कर बोला —
“Present, Ma’am.”
पूरा क्लास हँस पड़ा।
मीरा जी 26 साल की थीं। बेहद पढ़ी-लिखी, शांत, और सौम्य। साइकोलॉजी में गोल्ड मेडलिस्ट। मगर कुछ महीने पहले ही कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया था। उनकी आवाज़ में मिठास थी, चाल में गरिमा थी, और आँखों में एक अजीब सी गहराई।
और कृष्ण?
20 साल का, बेहद होशियार, मगर उतना ही शरारती भी। उसकी बातें ही नहीं, उसकी मुस्कान भी सवाल करती थी। क्लास में पढ़ाई से ज़्यादा मीरा मैम को देखकर मुस्कुराना, उन्हें परेशान करना, उनके आस-पास बैठना — ये उसका रोज़ का रूटीन था।
मीरा ने सोचा, “ये लड़का किसी दिन मेरी क्लास का बंटाधार करेगा।”
लेकिन अंदर ही अंदर, वो मुस्कान उसे अच्छी लगने लगी थी...
दिन बीतने लगे। हर क्लास एक कॉमेडी शो बनती जा रही थी — जिसमें कृष्ण लीड एक्टर था और मीरा जज बनकर मुस्कान रोकने की कोशिश करती थीं।
“मैम, आप साइकोलॉजी पढ़ा रही हैं, तो बताइए ना —
जब कोई आपकी आँखों में देखकर मुस्कुराता है तो दिल क्यों तेज़ धड़कता है?”
मीरा झेंप जातीं।
“Because you’re disturbing the class, Mr. Krishna.”
वो मुस्कुराता,
“मैं तो बस आपसे सीख रहा हूँ, Ma’am — Feelings को कैसे समझा जाए।”
मीरा अब उसे डाँटती नहीं थीं। बस, नज़रें चुरा लेतीं।
रात को डायरी में लिखतीं,
"आज उसने फिर मुस्कराया। कुछ तो है उस आँखों में..."
एक दिन बारिश हो रही थी। कॉलेज में भीड़ कम थी। मीरा स्टाफ रूम में बैठी थी। अचानक कोई पीछे से आकर छाता रख देता है।
“भीग जाइएगा, तो Psychology पढ़ाने वाला कोई और नहीं मिलेगा।”
वो चौंकी — कृष्ण था।
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
“आपके पास आ गया। वैसे भी बारिश में जो सबसे प्यारा लगे, उसी के पास जाना चाहिए ना।”
मीरा की नज़रें झुक गईं। पहली बार, उन्होंने बिना डाँटे उसकी बात का जवाब नहीं दिया।
कॉलेज में ‘Mental Health Awareness Week’ चल रहा था। मीरा ने पूरी तैयारी कर रखी थी। स्टूडेंट्स को प्रेजेंटेशन देना था।
कृष्ण ने मंच पर आते ही कहा:
“आज मैं किसी थ्योरी की बात नहीं करूंगा... आज मैं दिल की बात करूंगा। मनोविज्ञान सिखाता है कि इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरत समझा जाना है। और कभी-कभी, जो हमें सबसे ज़्यादा समझता है... हम उससे प्यार करने लगते हैं।
मैं भी करता हूँ... अपनी टीचर से...”
क्लास हक्का-बक्का। मीरा की साँसे थम गईं।
“मैं जानता हूँ, आप सोचेंगी कि ये गलत है। पर क्या इमोशन्स को क्लासिफाई किया जा सकता है, मैम? क्या मन में उठते भावों को हम रोल नंबर से बाँध सकते हैं? नहीं न...”
मीरा कुछ नहीं बोलीं। उस दिन पूरी रात नींद नहीं आई।
मीरा ने अगले दिन उसे अपने केबिन में बुलाया।
“तुम्हें पता है, ये सब कितना गलत लग सकता है?”
कृष्ण सीधा देखता रहा।
“मुझे फर्क नहीं पड़ता लोग क्या सोचते हैं, मुझे फर्क पड़ता है आप क्या महसूस करती हैं। अगर आप मना करेंगी — मैं पीछे हट जाऊँगा। लेकिन झूठ मत बोलिएगा।”
मीरा चुप थीं। उनकी आँखें गीली थीं।
“तुम जाते क्यों नहीं?”
“क्योंकि आपने मुझे कभी रोका नहीं।”
मीरा ने पलकें झुका लीं। उनका दिल कब का हार चुका था।
अब मीरा कुछ नहीं कहती थीं, लेकिन जब कृष्ण क्लास में नहीं होता, तो उसकी नज़रों को ढूंढती थीं।
कृष्ण अब थोड़ा गंभीर हो गया था। वो समझ गया था कि ये प्यार अब एक जिम्मेदारी है।
उसे पता था, अभी उनका रिश्ता समाज में स्वीकार्य नहीं।
पर वो हर दिन खुद को बेहतर बना रहा था — पढ़ाई में, व्यवहार में, ज़िंदगी में।
मीरा ने कभी इज़हार नहीं किया, पर उसकी मुस्कान अब सिर्फ कृष्ण के लिए होती।
तीन साल बीत गए। कृष्ण की ग्रेजुएशन का आख़िरी दिन था।
मीरा स्टाफ रूम में बैठी थी। दिल भारी था।
कृष्ण आया, उसके हाथ में एक किताब थी — "The Psychology of Love".
“मैं जा रहा हूँ, Ma’am... लेकिन सिर्फ कॉलेज छोड़ रहा हूँ। आपके दिल से नहीं।”
मीरा ने उसकी तरफ देखा। पहली बार, आँसू आँखों में छलक आए।
“क्या तुम वादा कर सकते हो... कि ये सब सिर्फ एक स्टूडेंट की मोहब्बत नहीं थी?”
कृष्ण ने उसका हाथ थामकर कहा —
“ये एक इंसान की मोहब्बत थी... जो सारी ज़िंदगी सिर्फ एक ही नाम जपेगा — मीरा।”
मीरा अब किसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन चुकी थीं। एक दिन गाड़ी में बैठी थीं, रेडियो ऑन किया —
“और अब पेश है हमारे शहर के नए साइकोलॉजिस्ट और बेस्टसेलिंग ऑथर — डॉ. कृष्ण वर्मा। उनकी किताब 'Love, Logic and Meera' ने तहलका मचा दिया है।”
मीरा मुस्कुरा उठीं।
तभी फोन बजा —
“मैम... अब कह सकते हैं ना... I love you?”
मीरा की आँखें भर आईं।
“अब नहीं रोकूँगी, कृष्ण... अब तो तुम्हें हर रोज़ देखना है।”
उन दोनों ने साथ में एक क्लिनिक खोला — जहाँ वो मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों की काउंसलिंग करते थे।
अब मीरा “मैम” नहीं, सिर्फ मीरा थी।
और कृष्ण, अब शरारती लड़का नहीं, एक समझदार प्रेमी — जो दिनभर उसे चिढ़ाता था, और रात को गले लगाकर कहता —
“अब तो तुम सिर्फ मेरी टीचर नहीं, मेरी ज़िंदगी हो।”