“दीदी, आप इतने परेशान क्यों हो?” अवि ने अपनी दीदी के आंखों ने आंसु की बूंद को अपने हाथ से पकड़कर पूछा।
“तू जा यहां से।“
“क्यों? आप तो मुझसे हर बात शेयर करते हो, तो इस बार क्यों मुझे जाने के लिए कह रहे हो?” 5 साल छोटा है पर फिर भी अपनी दीदी का हमदर्द है, हमसफर है, भाई है, इसलिए और परेशान हो कर सामने सवाल किया।
अवि बचपन से ही अपनी मां से ज्यादा दीदी का दुलारा था और सोलह साल की आरवी भी अपने से 6 साल छोटे भाई को अपना दोस्त ही समझती और कभी प्यारी बहाना भी बन जाती। दोनों खूब मस्ती करते, मम्मी को परेशान करना और फिर नाना या मामा के पीछे छुप जाना। आरवी बड़ी हो गई थी फिर भी जब अवि के साथ होती थी तो 6 साल छोटी बन जाती थी। बचपन से उन दोनों के सबसे प्यारे मामा ही थे जैसे सभी बच्चों के लिए होते है और घर ने बचपन से लेकर आज तक आरवी और अवि के लिए जो भी खिलौने है वह सब मामा के दुलार की ही निशानी है और मामा अच्छा खाना भी दिल खोलके अपने भांजे और भांजी को खिलाते थे। इस साल भी वेकेशन में मम्मी पापा के साथ अवि और आरवी मामा के घर आए थे। मामा के घर कभी आंसु की जगह नहीं थी क्योंकि खुशियों की दुकान मतलब मामा का घर। पर आज आरवी को रोते देख, छोटा सा अवि उनकी दिल की पीड़ा को समझ गया, इसलिए ज्यादा परेशान था।
आरवी ने अवि को परेशान होते देख अपने आप को संभाल लिया, “प्लीज, अवि समझने की कोशिश करो। मैं तुम्हे नहीं बता सकती। तुम बहुत छोटे हो। तुम नहीं समझ पाओगे। प्लीज।“
पर अवि ने भी जिद पकड़ ली थी, “भले ही में न समझ पाऊं पर आपको मुझे कहना चाहिए क्योंकि मेरे टीचर कहते है कि बांटने से दुःख कम होता है। और आप भी कहते होना की हम दोस्त जैसे है, दोस्त तो अपनी हर बात शेयर करता है। आपने मुझसे उस दिन यही कहा था न जब में भी आपको मेरी परेशानी नहीं बताना चाहता फिर आपने कैसे उन लोगों को डांटा था जो मुझे परेशान कर रहे थे। याद है न?”
“हां, मेरे प्यारे से दोस्त पर मैने कहा न कि कुछ बाते तुम नहीं समझ सकोगे, फिर क्यों जिद कर रहे हो? जाओ न खेलो न, मुझे प्लीज परेशान मत करो।“ इतना कहकर आरवी ने अपना मुंह तकिए में छुपा लिया और शायद रोने लगी।
अवि भी आखिर आज जैसे अपनी जिद पर अड गया था। वह गया नहीं। थोड़ी देर सोचा और बोला, “दीदी, तुम्हे भी कोई परेशान कर रहा है? जैसे मुझे वह बदमाश क्लासमेट्स कर रहे थे?”
“हां” आरवी ने मजबूरन कह दिया, सोचा कि यह सुनकर वह चला जाएगा पर अवि ने तो पहाड़ खोदना था, पूरी बात जाननी थी भले ही वह न समझ सके।
“कौन?“ आरवी ने अवि को अनसुना कर दिया, फिर थोड़ी देर बाद बोला, “प्लीज दीदी, बोलो न, प्लीज.......प्लीज..”
“हम जिसके घर में है न....” आंखें गीली करके आरवी बोली पर आगे नहीं बोल सकी।
“कौन? नाना? नानी?” आरवी ना में सिर हिलाती गई और अवि एके के बाद एक नाम लेने लगा
“मामी? मामा?” मामा सुनते ही आरवी ने हा में सिर हिलाया और फिर रोने लगी। “मामा ने डांटा क्या?“ फिर अपने आप बोलने लगा, “ मामा तो कितने अच्छे है वह तो कभी नहीं डांटते फिर भी शायद.....”
“डांटा नहीं, बस......”
“क्या बस?
“उन्होंने मुझको..... एसे... मतलब.... वैसे.... देखा.. ।“ आरवी ने बहुत ही मुश्किल से रोते रोते कहा।
“देखा? कैसे देखा? उसमें इतना क्यों रो रहे हो? वह तो मुझे हररोज देखते है, में भी देखता हु। मुझे तो रोना नहीं आया।“
“ मैने कहा था न कि तुम नहीं समझोगे फिर भी पीछे ही पड़ गए हो, सवाल पे सवाल, एक बार कह दिया तो समझ नहीं आता, कहा न जाओ।“ और गुस्से में आरवी का हाथ उठ गया अवि पर।
अवि सहम सा गया। सच में दीदी की हालत को वह नहीं समझ पाया। आज दीदी बहुत ही अजीब बर्ताव कर रही थी। कभी रोना, कभी चिल्लाना, कभी गुस्सा होना तो कभी थप्पड मारना। फिर भी अवि शांत हो कर वहां खड़ा रहा। थोड़ी देर बाद, आरवी को अहसास हुआ कि उसने पहली बार अवि पर हाथ उठाया।
“आई एम रियली सॉरी , अवि.. आई एम सो सॉरी....प्लीज...”
“बताओ न दीदी, क्यों ऐसा बिहेव कर रहे हो? मुझे बहुत बुरा लग रहा है। आप बोलो में कुछ सवाल नहीं करूंगा, पक्का, प्लीज बोलो न दीदी....प्लीज।“ आंखों में आंसु लाकर, चेहरा मासूम बनाकार, दिल में दीदी को संभाल लेने की असीम शक्ति रखकर और हाथों को दीदी के हाथों पर रखकर अवि ने कहा।
“मुझे नहीं पता कि तुम कैसे समझोगे पर....देखो, दो दिन पहले जब मामा आए थे, तुम्हारे लिए कार लाए थे तब में टेरेस पर थी। खुली हवा ले रही थी। तुम्हे तो पता ही है कि मुझे अकेले टैरेस पे टहलना अच्छा लगता है। तब मामा ऊपर आए....मेरे लिए मेरी फेवरिट बुक्स लाए थे, उन्होंने मुझे दी, में तो खूब एक्साइटेड हो गई थी....और खोल कर पढ़ने लगी, फिर......” आरवी चुप हो गई, आंखे भर आई, आवाज़ जैसे निकल ही नहीं रहा था, दर्द इतना था और अपने से 6 साल छोटे नासमझ भाई को कैसे समझाएं फिर उनके प्यार और केयर के आगे विवश हो कर आगे कहा,
“ मैने मामा को देखा, वह मेरे करीब आ रहे थे... मैने कहा थैंक यू सो सो मच तो मामा ने कहा कि.... सिर्फ थैंक यू से काम नहीं चलेगा....मैने मजाक में कहा कि चाहिए तो पैसे भी....पर वह मजाक के मूड में नहीं थे....कुछ ओर ही मूड में थे, आंखों में अजीब सी चमक थी, होठों पे अजीब सी मुस्कान थी और.......धीरे धीरे मेरे नजदीक आने लगे...मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, में पीछे हटने लगी....मैने हाथों से पीछे धकेला तो.....उन्होंने हाथों को पकड़ लिया....और कुछ.....पर... मैंने अपनी आंखे बंद कर ली पर...कुछ अजीब सा लगा में नहीं समझ पाई और में भाग ने लगी...अपने हाथ छुड़ाकर.....” बहुत रोने के बाद, स्वस्थ हो कर बोली, ”मामा को ऐसे नहीं देखना चाहिए था?”
“कैसे?” अवि कुछ नहीं समझ पाया सिर्फ इतना समझा कि नहीं होना चाहिए था क्योंकि दीदी को अच्छा नहीं लगा।
“कैसे समझाऊं यार? देखो जैसे मम्मी और पापा हसबैंड वाइफ है, राइट? वैसे ही मामा और मामी हसबैंड वाइफ है।“
“तो?”
“तू सुन ना पहले, तो जैसे पापा मम्मी को प्यार से देखते है जब भी वह खुश हो राइट? क्योंकि वह हसबैंड है मम्मी के। और वैसे ही मामा को ऐसा बिहेव मामी के साथ करना चाहिए मेरे साथ नहीं, किसी भी लड़की के साथ नहीं। समझा?”
“हा, मतलब मामा को मामी से ऐसा बिहेव करना चाहिए, पर आप के साथ किया तो आपको बुरा लगा इसलिए आप परेशान हो।“
“यस, सिर्फ में नहीं, किसी भी लड़की को कोई उसकी मर्जी के खिलाफ इस तरह देखे, छुए और इस तरह बात करे फिर कोई भी हो तो उसे अच्छा नहीं लगता।“
“तो आपको मामा को बताना चाहिए न कि आपको अच्छा नहीं लगता। आप कहते थे न कि बचपन में जैसे ही मुझे कोई मम्मी की गोद से उठाता था तो में रोने लगता था क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लगता था तब कोई ओर मुझे छुए। और मेरा रोना देखकर मुझे वापस मम्मी के पास रख देते थे। अगर मामा तुम्हारा रोना नहीं देख रहे है, तो तुम कहो न दीदी, अब तो हम बोल सकते है न।“
अवि के नन्ही सी जबान ने बहुत बड़ी बात कह दी थी पर आरवी अपने शॉक में थी कि इस पर गौर ही नहीं कर पाई और अवि को जाने के लिए कह दिया और कहा कि इतनी ही बात थी अब प्लीज मुझे थोड़ी देर अकेले रहने दो।
इस बात के ओर दो - तीन दिन गुजर गए। इन दिनों में अवि ने देखा कि दीदी बहुत ही बदल गई है, न ठीक से खाती है, न ही पहले की तरह अपने साथ खेलती है, न ही मुस्कुराती है बस कमरे में रोती रहती है। वह पूछे तो और रोने लगती है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
थोड़े दिन बाद, मामा अपनी जॉब जो दूसरे शहर में थी वहा से छुटी होने पर आए शाम को। सब टीवी देख रहे थे – नाना, नानी, मम्मी, पापा भी आज देख रहे थे और आरवी भी एंजॉय कर रही थी शायद या सिर्फ नाटक कर रही हो। इतने में ही मामा आ गए। जब भी मामा आते थे, अवि के घर पर या यहां, बच्चे दौड़ कर जाते थे और हग करते थे यह जैसा हर बार होता था, बड़े होने के बाद भी। कोई अजीब बात नहीं थी। तो अवि तो मामा के हाथ में उसकी सबसे फेवरिट चॉकलेट देखकर उछलता हुआ गया और मामा ने गोद में उठा लिया। फिर आरवी के लिए भी उनकी फेवरिट डिश लाए थे। सबको पता था कि आरवी का बिहेवियर की हमेशा की तरह वह खुशी से गले लगाएगी। पर सबका ध्यान टीवी में था। अवि ने जब चॉकलेट दीदी को दिखाने के लिए देखा तो आरवी को न चाहते हुए भी क्योंकि वह सबके सामने थी उसे हरबार की तरह हग करना पड़ा पर अवि ने देखा कि दीदी के आंखों में आंसु थे और डर भी तो दूसरी ओर मामा के चेहरे पर अजीब सी मुस्कुराहट। अवि ने जोर से चीखा जैसे वह चॉकलेट को खाकर चीखा हो पर वह दीदी को फ्री करना चाहता था क्योंकि उसे तूरंत याद आया कि दीदी को अच्छा नहीं लगता था। आरवी तुरंत रुम में चली गई और पीछे पीछे अवि भी। सबको अजीब लगा कि दोनों बच्चे बिना खाए क्यों चले गए?
“दीदी, प्लीज दरवाजा खोलो न?”
“तू क्यों मेरे पीछे पीछे आता है?” रोते रोते आरवी ने कहा।
“में आपकी हेल्प करना चाहता हु।“
आरवी ने दरवाजा खोला क्योंकि उसे पता था कि अवि अपनी बात मनवाकर ही छोड़ेगा।
“बोल”
“आपको अच्छा नहीं लगता न कि मामा आपके पास आए और आपको छुए, तो में आपको प्रॉमिस करता हु की में हमेशा आपके साथ रहूंगा और आपकी रक्षा करूंगा।“
फिल्मी डायलॉग सुनकर थोड़ी देर के लिए ही सही पर आरवी के चेहरे पर मुस्कान आई। उसे नहीं पता था कि अवि जो कह रहा था वह करके बताएगा। उसे लगा कि वह बस दीदी को बहलाने के लिए कह रहा था।
कुछ दिनों के बाद फिर वहीं दृश्य खड़ा हुआ। मामा सुबह के वक्त आए। हमेशा की तरह बच्चों के लिए उनकी मनपसंद चीजें भी लाए पर आज कोई उनके पास दौड़ते हुए नहीं गया क्योंकि अवि ने आरवी का हाथ पकड़ा हुआ था जैसे वह उनके वचन के मुताबिक रक्षण कर रहा हो। मामा ने अपनी मनपसंद चीज दिखाई तो बच्चे का मन वहां चला गया। उसने वह चीज ले ली पर जब मामा आरवी की ओर बढ़े तो दौड़ कर आरवी के सामने खडा हो गया। और कहने लगा।
“नहीं मामा”
“ अरे क्या? अवि, तुम्हे मिल गई अपनी चीज इसलिए दीदी को नहीं देने देना चाहता क्या?” हंसते हुए मामा बोले और सब हंसने लगे।
“दीदी को नहीं चाहिए।“
“क्या नहीं चाहिए?
“आप उसे हग करोगे वह।“ सब चौक गए, सच है कि बच्चे का मन भी साफ है और उसकी वाणी भी स्पष्ट है।
“क्या बोल रहे?”
“यही की दीदी की अच्छा नहीं लगता कि आप उन्हें छुओ।“ इतना कहते ही आरवी ने इशारा किया कि मत बोलो पर अवि ने नहीं सुनी उसकी बात सब चौक गए यह बात सुनकर।
“क्या बोल रहे हो अवि? तुम्हे पता भी है? पापा ने कहा।
“हां, खुद दीदी ने ही बताया था कि...”
“क्या?” मम्मी ने पूछा
“दीदी ने कहा था कि मामा ने जैसे मामी के साथ बिहेव करना चाहिए वैसे दीदी के साथ किया। दीदी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। दीदी ने यह भी कहा कि किसी भी लड़की को अच्छा नहीं लगता। दीदी बहुत रोती है, डरती है, कुछ खाती नहीं, खेलती नहीं है और फिर भी मामा नहीं समझ रहे है।“
“क्या उल्टा सीधा बोल रहे हो? मामा ने क्या किया... किसी भी लड़की.. क्या?” पापा ने उलझन में पड़कर पूछा।
“सीधा अब आरवी ही बता सकती है। बेटा प्लीज बोलो क्या हुआ, डरो मत, तुम्हारे मम्मी – पापा तुम्हारे साथ है। प्लीज बोलो बेटा।“
“दीदी, प्लीज बोलो, बोलना जरूरी है।“
“मम्मी, दो हफ्ते से पहले....जब में ऊपर....मामा...आए....”
“बोलो, आरू, प्लीज, मेरे बच्चे बोलो क्या हुआ, तुमने जिसने भी परेशान किया है उनको बचाओ मत। तुम्हें कोई परेशान नहीं करना चाहिए। मेरे बच्चे।“
फिर आरवी ने सबके सामने – मामा, नाना, नानी, पापा और मामी के सामने मम्मी के गोद में सिर रखकर धीरे धीरे रोते रोते, कैसे भी करके पूरी बात बता दी।
कुछ देर के लिए सब शांत हो गए क्योंकि सब मम्मी के रिएक्शन का इंतजार कर रहे थे। आखिर मम्मी ने सीधा मामा के पास जाकर उसे तमाचा मारा। वह उनसे बड़े थे फिर भी।
“मुझे पता नहीं चल रहा कि किसका दुःख ज्यादा मुझे है। यह की मेरे बेटी के साथ तुमने हैरेसमेंट किया या मेरे भाई ने किया वह। तुमसे बिल्कुल यह उम्मीद नहीं थी तुम सेक्सुअल हैरासमेंट कर रखते हो।“
“बच्चों के सामने तो इसे शब्दों का प्रयोग....” मामा कहने की जा रहे थे कि मम्मी ने बीच में गुस्सा हो कर कहा,
“तुम्हे उन्हीं बच्चों के साथ ऐसा करने में शर्म नहीं आई और यह मुझे शब्द का प्रयोग करना न करना सीखा रहे हो?... आज के बाद कभी भी मेरे घर में आने की हिम्मत मत करना, आज से तुम मेरे भाई नहीं।“
“इतनी सी बात के लिए.....”
“इतनी सी बात? शायद तुम्हारे लिए यह दो मिनट का विकृति का आनंद होगा, खिलौने की तरह मन किया तो खेल लिया और भूल गए पर इन बच्ची के लिए, यह सहन करना बहुत मुश्किल है, हालत देखी है उनकी? खाना, पीना, सोना, सब जैसे भूल गई हो, जैसे जिंदगी थम गई हो, अभी ही नहीं तुम्हारे जाने के बाद भी तुमने जो किया है वह उनके मन से नहीं जाएगा पता नहीं कितना समय लगेगा मेरी बच्ची को इसमें से बाहर निकलने में।“
पापा तो गुस्से से लाल हो गए थे पर उसने अपनी वाइफ आराधना को ज्यादा काबिल समझा अपने भाई से बात करने में और फिर बोले,
“जो कुछ भी कहना चाहिए, आराधना ने कह दिया में सिर्फ इतना ही कहूंगा कि से सॉरी तो हर, मुझे पता है सॉरी का कोई मतलब नहीं है पर भी जो भी तुमने किया है, तुम आरवी का अपराधी हो।“
आरवी बस नीचे देखकर रो रही थी जैसे ही मामा उनके पास गए की अवि आ गया आरवी और मामा के बीच, और आरवी दो कदम पीछे हट गई। “बेटा, तुमने मुझे गलत समझ लिया, मेरे कोई ऐसे इरादे नहीं थे, तुम आज कल मोबाईल में ऐसा सब देखते हो न इसलिए तुम्हे ऐसा लगा, में तो बस तुम्हे प्यार....”
वह अपनी बात खत्म करे उनके पहले ही नाना ने उनको दो ओर तमाचे लगा दिए। “नालायक बेटे, प्यार और वासना में काफी तफ़ावत होता है। एक तो खूब कुदृष्टि रखता है और ऊपर से बेचारी आरवी को गलत ठहराता है? तुम्हे तो शर्म नहीं आ रही है पर हमें शर्म से पानी पानी कर दिया, इसी हरकत करके। सीखो कुछ इस नादान अवि से बहुत ही समझदारी की बात उसके छोटे से मन में आ गई पर कुछ लोगों को बुढ़ापे तक समझ नहीं आती कि किसकी भी लड़की या बच्ची या औरत से इस तरह से देखना, छूना और अश्लील बातें करनी नहीं चाहिए।“
सब ने तो उनका तिरस्कार कर ही दिया था, सबके मन में उनकी इज्जत के स्थान पर नफरत हो गई थी साथ में मामी भी इस बात से हैरान थी।
कुछ दिनों के बाद, अवि और आरवी अपने घर में अपने कमरे में बैठे थे।
“थैंक्स अ लॉट, मेरे प्यारे रक्षक।“
“सिर्फ थैंक्स से कम नहीं चलेगा, मुझे ढेर सारी चॉकलेट देनी पड़ेगी।“
“अरे, तुम्हारे लिए तो चॉकलेट की दुकान खड़ी कर दूं।“
दोनों हंसने लगे।
“एक फायदे की बात बताऊं?”
“बोलो”
“देखो, अभी तो तुम्हारी पूरे साल की पॉकेट मनी जाएगी। में गोद से यही प्रेम करूंगा कि आप कभी एसे परेशान न हो पर अगर ऐसा हो तो खुद ही कह देना कि अच्छा नहीं लगता, मम्मी पापा को भी पर अगर में बताऊंगा तो फिर चौकलेट का खर्चा होगा फिर मत कहना।“