1. मृतकाल
गाढ़ अरण्य की आड़ में एक वृद्ध; खूबसूरत लड़कियाँ जैसे अपने बालों को सँवारती हैं बिलकुल वैसे वह अपने बालों को सँवारते अपनी चाल में तेजी दिखा रहा था। हालाँकि उसके बाल लड़कियों की तरह तो बिलकुल नहीं थे, खिन्न आए ऐसे बालों का गुच्छा बिलकुल वट वृक्ष की शाखाओं की याद दिलाता था। भूरी मिट्टी से नहाया हुआ शरीर हूबहू नागा साधु की तरह दिखता था, हालाँकि उसने अपनी कमर पर अंगोछा लपेटा था और अंगोछा के ऊपर एक बेल दो काले रंग की किसी अजीब प्राणी की खोपड़ी को छेद कर कमर पर कसी थी। मांस भक्षक प्राणी की तरह नुकीले नाखून उम्र के साथ काले पड़ चुके थे। हाथ में पकड़ी सर्प आकर की लकड़ी और उसके शरीर में कुछ ज़्यादा अंतर नहीं था। साबुन जैसे काले रंगीन टुकड़ों की माला गले में झूलती नज़र आ रही थी। रंगीन टुकड़े लकड़ी के होने की संभावना ज़्यादा थी, क्योंकि पत्थर के टुकड़े उसका गला झेल नहीं पाता। मुंगोल के जंगल की अमूल्य वनस्पति को अपने पाँव तले कुचलते जा रहा था।
मुंगोल, यह शहर अपनी धरती पर तो बिलकुल नहीं है। अंतरिक्ष में असंख्य सितारे और धरती है। पृथ्वी की तरह कई धरती पर जीवन होने की संभावना है। कुछ धरती बिलकुल वीरान है जैसे कि अपने सौर मण्डल में हैं। अंतरिक्ष में तैरता ग्रह अर्पिता और पृथ्वी में काफ़ी समानताएँ थीं, जैसे की मनुष्य, प्राणी, पक्षी, पर्वत, नदियाँ, हवा और पानी। पृथ्वी और अर्पिता धरती के बीच की दूरी अनगिनत हो सकती है मगर रिश्ता दो बहनों की तरह था। बहनों का रिश्ता बरसो पहले कुछ लोग जानते थे, समय के साथ लोग भूल गए और फिर एक नए दौर के साथ कुछ लोग इस रिश्ते को जान चुके थे कि अर्पिता जैसी कोई धरती है और वहाँ भी अपनी तरह इंसान बसते हैं।
अर्पिता धरती पर नौ बड़े शहर थे, जिनमें शैलवंति मशहूर शहर था। नौ बड़े शहर में मुंगोल भी था, जो शैलवंति का एकदम करीबी शहर था और दोनों की दक्षिण में हरी चद्दर की तरह दूर-दूर तक जंगल बिछा था। इन दोनों शहरों के बीच से महाकाय शैल नदी शहर से वन तरफ़ बहती थी, जो दोनों शहर की सीमा अंकित करती थी। पृथ्वी की सापेक्ष में यहां के लोग ज़्यादा गोरे और आँखें नीले रंग की थी जो किसी को भी मोह लेती थीं। यहाँ के लोगों का जीवन व्यवहार काफ़ी पृथ्वी से मिलता था, किन्तु यहाँ के प्राणी, पंछी और पेड़ो में काफ़ी अंतर दिखने को मिलता था। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस धरती पर सूर्य की तरह दो सितारे उजाला बरसाते थे।
पृथ्वी के प्राचीन लेखों में पाया जाता है कि मनुष्य अपनी अलौकिक शक्तियों की मदद से अदृश्य द्वार के जरिए दूसरी दुनिया का सफर करते थे। कुछ लोग इन बातों को मनगढ़ंत कहानी मानते हैं और कुछ लोग इन बातों पर विश्वास भी करते हैं। किन्तु अर्पिता धरती के सारे लोग इस बात पर विश्वास करते है, क्योंकि उन लोगों ने खुद अपनी आँखों से परग्रही को देखा था। शरीर की चमड़ी और आँखों के रंग से वह लोग पता कर लेते कि यह परग्रही है। अनजान परग्रही का यहाँ आना अर्पिता धरती के लोगों के लिए अच्छा या तो बुरा संकेत हो सकता है।
दोनों सितारे आधी धरती सर कर चुके थे। सितारे की रोशनी का प्रतिरोध करते पेड़ दुगने हरे रंग से चमक उठे। पंछी के चहचहाने और खूंखार प्राणी की हुंकार से मुंगोल का जंगल थरथरा रहा था। खूंखार प्राणी खुराक की शोध में करीब पहुँच जाए और पता भी न चले ऐसी घनघोर झाड़ियाँ थीं। कहीं पर धूप ज़मीन पर न पहुँचने के कारण पत्तों पर ओस की बूँदें जमीं थीं। हवा में सुबह की ताजगी और रातरानी के फूलों जैसी खुशबू हवा की लहरों के साथ नाक को चूमती और ओझल हो जाती। धरती के मिलन के लिए तड़पती धूप कई पेड़ो को बेरहमी से चिरती हुई धरती को चूम रही थी। वन के पेड़ एक-दूसरे से ऐसे झिलमिल गए थे कि मानो वे एक-दूसरे को अपनी बाहुपाश में बाँध कर खड़े हो।
अपने लक्ष्य की तरफ़ बढ़ते वृद्ध के चेहरे पर अशांति, जल्दबाजी, चिंतातुर और हल्का गुस्सा तना हुआ था। रास्ता रोकने का प्रयास कर रही टहनियाँ को वह अपनी लकड़ी से चूर-चूर कर अपना गुस्सा उतारने लगा। फुदकते पैर की आहट से पंछी अवाक होकर अपने घोसले में दुबक गए। गहरे वन में ख़ामोशी साथ लेकर चल रहा हो ऐसा व्यतीत होने लगा।
चाल में अचानक रूकावट आई। कान फड़फड़ाने लगे, जैसे कि वह अति सूक्ष्म आवाज़ को सुनने का प्रयास कर रहा हो। आँखों की पुतलियाँ टिमटिमाने लगीं और सर उल्लू की तरह चारों दिशा में घूमने लगा। अनजान गंध नाक को कुरेद कर शरीर में प्रवेश करते ही उसके शरीर में सनसनी दौड़ गई। कुछ कदम दबे पाँव चल कर उसने झुरमुट पर छलांग लगा दी। एक हाथ बिल में और छाती के बल वह जमीन पर फड़फड़ाने लगा, जैसे मरीज को मिर्गी का दौरा पड़ा हो। कुछ वक्त के बाद वह शांत हुआ; बिल से हाथ बाहर आया तो अजीब-सा जीव उसके हाथ में था, जो खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश कर रहा था।
खरगोश की भांति दिखने वाला जीव हलके नीले रंग का था। उसके नुकीले दाँत वृद्ध की चमड़ी उधेड़ने के प्रयास में किकिया रहे थे परन्तु लक्ष्य मुँह से काफ़ी दूर था। खड़े होने के वक्त पर मौके का फायदा उठाकर उस जीव ने वृद्ध की जाँघ पर पंजा दे मारा। छोटे नाखून से उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा। दूसरे हाथ से उसने जीव का सिर पकड़ा और गले पर दाँत गढ़ा दिए। मांस उधेड़ते ही नीले रंग के खून का फुहारा छूट गया। मांस को वह चबाते गया वैसे मुँह नीले खून से सन ने लगा। मृत जीव से निकल रहे खून को उसने कमर पर लटक रही खोपड़ी पर टपकाया। तीन-चार बार मुँह मार कर अपने शिकार को फेंका; हथेली के पिछले हिस्से से मुँह साफ करके आगे बढ़ गया।
वृद्ध अपने घुटनों के बल उसी जंगल में ऊँची सफ़ेद चट्टान के सामने दस-बारह फुट की दूरी पर बैठा था। छोटी घास चट्टान की चारों ओर से लिपटी थी और चट्टान से लिपटी दो-तीन बेल कुछ वक्त पहले वह वृद्ध उखाड़ चूका था। सफ़ेद चट्टान पर काले रंग से पांच कोणीय चित्र उकेरा हुआ था, जिसके अंदर कुछ सांकेतिक अक्षरों का निरूपण किया गया था जिसे समझ पाना मुश्किल लग रहा था। कुछ वक़्त पहले बनाए उस चित्र पर नज़र गढ़ाए; कुछ शब्द एकदम तेजी से फुसफुसाने लगा। काफ़ी वक्त बड़बड़ाने के बाद उसके दिमाग़ का ताप बढ़ गया। चेहरे पर सहसा गुस्सा तन गया।
(अर्पिता धरती पर अर्पि भाषा बोली जाती है और यह संवाद अर्पि भाषा में है)
“दो सौ साल की प्रतीक्षा के बाद अब रह पाना मुश्किल लग रहा है। आज फैसला होकर रहेगा! मृत्यु या मेरी योजना का हल।” धुआँधार वृद्ध बोला।
कुछ क्षण के बाद उसकी आँखें सजल हो गईं, “पचपन बार में आपको पुकार चूका हूँ…काले जादू की किताब गलत है या आप! अपनी योजना में सफल नहीं हो रहा हूँ तो मेरे जीने का कोई मकसद ही नहीं है।” आँखें लपकाते चित्र को घूरता रहा।
“जिंदगी से हार चूका हूँ,” वह खोपड़ी की दरार में उंगली डाल कर कुछ टटोल ने लगा, “काली छाया को यहाँ छोड़कर मैं अपनी शरीर से आजाद हो रहा हूँ। काली छाया ने मुझे जिंदगी से हरा दिया,” ज्वालामुखी के नुकीले पत्थर की तरह एक छोटा नुकीला पत्थर वह खोपड़ी की दरार से निकाल चूका था। एक पल पत्थर को घुरा और तेज़ी से उसने अपने गले पर रगड़ दिया। गले की नसें फट कर बाहर निकल आईं; लहू का फुहारा छूटते ही शव धरती पर लुढ़क गया। वन में अचानक से ख़ामोशी छा गई।
चित्र ने काला धुआँ उगलना चालू कर दिया। काला धुआँ सिमट कर जिन की तरह रूप धारण करने लगा। सहसा उस काली छाया में नीले रंग की तीन ज्योत प्रकट होकर चमकने लगीं। काली छाया से अजीबो-गरीब फुफकार प्रकट होने लगी।
चमत्कार हुआ, मरा हुआ शव जिंदा होकर उठ बैठा। वृद्ध ने हाथ से अपना गला छुआ। गला पहले की भांति सही सलामत था। मैं वापस जिंदा कैसे हो गया। यही सोच रहा था कि तभी उसने हवा में तैरती छाया को देखा । तुरंत उसने अपना सिर जमीन पर टिका दिया।
“बरसो की तमन्ना मेरी आज पूर्ण हुई। मेरे मालिक आपकी जय हो! आखिर में आपने मेरी पुकार सुन ही ली। नई जिंदगी देने के लिए धन्यवाद मेरे मालिक!”
“काली शक्तियाँ ही मेरा जीवन हैं। चुनिंदा लोग ही मृतकाल को गहरी नींद से जगा सकता है। तुझ में कुछ बात तो है जो मुझे यहां तक खिंच लाई।” तैरती छाया से आवाज़ आई।
“मालिक, आपकी सहायता है के लिए मैं सालो से भटक रहा हूँ। कृपया मेरी योजना को सफल बनाने में मेरी मदद करें।” वृद्ध अपने हाथ छाती पर चिपका कर बोला।
“दो सौ साल तुमने मेरी साधना की है; मदद अवश्य मिलेगी। तुम्हें किस प्रकार सहायता चाहिए?”
“अरु तलवार-” इतना सुनते ही हवा में तैरती छाया कांप उठी। आवाज़ आई, “अरु तलवार के बारे में तुम क्या जानते हो?”
“रोशनी की ताकत को ख़त्म करने का वक्त आ गया है। आपको शरीर विहीन करने का बदला में अवश्य लूंगा। एक बार अरु तलवार की शक्ति मुझ में समा जाए…रोशनी को असंख्य धरती से लुप्त कर दूंगा।” वृद्ध क्रोध से थरथराने लगा। सर्प आकर लकड़ी को जोर-जोर से पटकाने लगा।
छाया तैरती वृद्ध की नाक तक पहुंच गई। “असंभव को संभव बनाने की कोशिश!” नीली ज्योत काफ़ी चमक ने लगी थीं।
“अरु तलवार को खंडित करना भी असंभव था; मैंने कर दिखाया। असंभव को भी संभव कर सकता हूँ, यदि आप मुझे अरु तलवार की शक्ति ग्रहण करने का मार्ग दिखाए।”
परछाई वृद्ध की चारों ओर टहलती नज़र आने लगी। “रोशनी…नहीं…नहीं…असंभव…संभव!” मृतकाल बड़बड़ाते वृद्ध के सामने ठहरा जैसे कि वह कुछ सोच रहा हो। “उन शक्तियों को तुम कदापि ग्रहण नहीं कर सकते, यदि तुमने उस तलवार के योद्धा को काबू में पा लिया तो समझो तुमने रोशनी को हमेशा के लिए मिटा दी। परन्तु योद्धा बेकाबू हुआ तो…”
“तो क्या, मेरे मालिक…”
“तुम्हारी जान को खतरा हो सकता है।”
“खतरे को मैं यूँ ही भाँप लेता हूँ। इस बार मुझे सर्व शक्तिमान बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। किन्तु मालिक वह दिव्य अस्त्र इस वक्त कहाँ है?”
परछाई जिनका नाम मृतकाल था, वह तेजी से चट्टान की तरफ़ भागा और ज़ोर से चिल्लाया, “झुको!”
गर्जना भरी आवाज़ से वृद्ध तुरंत अपना सिर ज़मीन पर चिपका दिया। तभी एक तीर उसके ऊपर से गुजरा और पास में एक पेड़ के तने में धंस गया। तीर की आवाज़ आते ही वृद्ध चौक उठा। यह तीर किसने चलाया! तीर चलने की दिशा में उसने नज़र दौड़ाई। दूर दो लड़के खड़े थे। सोलह-सत्रह साल के वह दो लड़कों में से एक के हाथ में धनुष था। सफ़ेद उन के वस्त्र पहने थे जैसे कराटे चैंपियन पहनता है। सिर पर बालों का जुड़ा बना था और उन दोनों में से एक साँवले रंग का लड़का था।
“इन दोनों से कुछ अजीब-सी बू आ रही है, जिससे मेरा शरीर कंपन महसूस कर रहा है। यक़ीनन यह दोनों तुम्हारे काम आ सकते हैं। शायद तुम्हें इनसे मित्रता करनी चाहिए।” मृतकाल अब हवा में थोड़ा ऊँचा उड़ने लगा था।
“यदि ये दोनों में मंजिल है तो मुझे मित्रता करने में कोई आपत्ति नहीं है। यही आप इस तरह मुझसे बात करते रहे और उन्होंने देख दिया तो वह मुझे कदापि अपना मित्र नहीं बनाएंगे। मालिक, देख रहे हो, अभी से यह मेरे शत्रु बनकर आ गए हैं।
“चिन्ता की कोई आवश्यकता नहीं है। वह मुझे देख या सुन नहीं सकते।” मृतकाल हवा में पीछे खिसकता गया और अचानक से चट्टान में समा गया। चट्टान पर बना चित्र अदृश्य हो गया।
उन बच्चों के सामने देखते हुए वह बड़बड़ाया, “दिव्य शस्त्र हासिल करने के बाद वह दिव्य धरती मेरे कदमों में होगी; सालों पहले का बदला पूरा होगा। अर्पिता पर सिर्फ मेरा राज होगा, सिर्फ असुरा का…”
लड़के ने तरकश में से तीर खिंचा और उस इंसान के सामने तान दिया। जैसे ही उसकी पलकें झपकी; उतनी देर में वह असुरा उन दोनों के पास पहुँच गया। अचानक से ऐसे अजीबो-गरीब इंसान को पास देख कर दोनों उछल कर ज़मीन पर गीर पड़े। धनुष हाथ से छूट गया। असुरा कमर से थोड़ा झुक कर उन दोनों के सामने घूरने लगा।
“मलकित, यह अजीबो-गरीब इंसान इतने वक्त में हमारे पास कैसे पहुँच सकता है? कहीं यह कोई शैतान तो नहीं है न?” काली आँख वाले लड़के ने कहा। वह एक हाथ और दो पैरों की मदद से पीछे की तरफ़ खिसक रहा था और एक हाथ से वह मलकित को भी अपने साथ खिंच रहा था।
“उत्कर्ष, तु-तुम डरो मत, यह कोई शैतान नहीं है।” मलकित की जबान बोलते वक्त थरथरा रहीं थी फिर भी वह अपने दोस्त को आश्वासन दे रहा था। वह उत्कर्ष को पकड़ कर ज़मीन पर रेंगते हुए उस बुजुर्ग से दूर जाने लगा।
शैलवंती में असहनीय शरारतों की वज़ह से मलकित और उत्कर्ष को मलकित के पिता ने छह साल की उम्र में युद्ध अभ्यास के लिए दोनों को मुंगोल के जंगल में भेज दिया था। उन्होंने दस साल से अपने घरवालों का मुँह नहीं देखा था। अध्यापक के कहने पर दोनों शिकार करने निकलें थे। शिकार तो उन दोनों के हाथ नहीं लगा, किन्तु वे दोनों जंगल में कहीं भटक गए और उन दोनों का सामना असुरा से हो गया।
“क-कौन हो तुम?” मलकित ने हिम्मत जुटा कर पूछा। लेकिन उसकी जबान अभी भी थरथरा रही थी, “हम तुमसे नहीं डरते!” दोनों डर तो रहे थे फिर भी निडर का भाव प्रकट करते हुए, एक-दूसरे को पकड़ कर खड़े हुए।
धीरे से हँसते-हँसते असुरा की हँसी बढ़ गई और हँसी के ठहाके जंगल में गूंज ने लगें। असुरा आँखें दिखाते बोला, “तू मुझ पर तीर चला रहा था! तू असुरा पर तीर चला रहा था!” वापस खड़खड़ाहट हँस पड़ा। डरावनी हँसी से वे दोनों ज़्यादा डरने लगे थे।
मलकित बोला, “तु-तुम जो भी हो, हम तुमसे डरने वाले नहीं हैं। मेरे पिता को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम हमें डराने की कोशिश कर रहे हो, तो वह तुम्हें कड़ी से कड़ी सजा देंगे।” मलकित ने अपना हाथ कमरबंद पर फँसे खंजर पर लगा दिया। यदि असुरा उन पर प्रहार करे तो वह उसका सामना कर सके।
असुरा ने मलकित की आँखों में देखा। उसका चेहरा डरा हुआ था लेकिन आँखें निडर होने का प्रमाण दे रही थीं। असुरा ने मलकित को कहा, “तुम बहुत तेज़ हो,” फिर उसने उत्कर्ष की तरफ़ देखा, “…और तुम एक परग्रही!”
उत्कर्ष तुरंत बोल उठा, “तुम्हारी आँखें भूरी हैं, इसका मतलब कि तुम भी एक परग्रही हो,” उसने मलकित की तरफ़ सिर घुमाया, “तुम्हारे पिताजी को खबर कर देनी चाहिए, हमारे इलाके में कोई परग्रही घुस आया है।”
असुरा डरने का नाटक करते बोला, “ओह…मैं तो सच में डर गया।…तुम यहाँ पर रह सकते हो और मैं क्यों नहीं…?”
उत्कर्ष बोला, “मैं और मेरी माँ बरसों से यहाँ पर रह रहे हैं लेकिन तुम तो अनजान हो।”
सूंघने का प्रयास करता हुआ असुरा का नाक उत्कर्ष के एकदम करीब पहुंच गया। डरे हुए उत्कर्ष ने मलकित का हाथ कसकर जकड़ लिया। तेज़ी से धड़कते दिल को सांत्वना देते हुए मलकित ने उत्कर्ष का हाथ थाम लिया। “अजीब-सी बू…मन को कुरेद रही है!” असुरा मन में बड़बड़ाया।
असुरा से काफ़ी दूरी बनाने के लिए मलकित तत्पर था। यदि कुछ कदम यह पीछे हट जाए तो मैं इसका सीना तीर से छेद दूंगा, यह सोचते हुए जमीन पर पड़ा धनुष पैर की मदद से उठाने का प्रयास करने लगा।
असुरा ने सिर मलकित की तरफ़ इस तरह से पलटा की मानो उसे साजिश की भनक लग गई हो। मलकित की आँखों से आँख मिलाकर बोला, “ओ लड़के!... तुझे देखकर मुझे उसकी याद आ गई,” सीधे होकर वह किसके के खयालों में खो गया। मौके का फायदा उठाकर मलकित धनुष पैर की मदद से हाथ तक पहुँचा चूका था। असुरा का ध्यान कई ओर दिशा और खयालों में खोया था। मलकित ने तीर निकालने के लिए तरकश की तरफ़ हाथ बढ़ाया।
बिना मलकित को देखे असुरा नरम आवाज़ में बोला, “लड़के! तुम असुरा को कभी नहीं मार सकते। तुम्हें क्या लगता है; मेरी नज़र कई ओर है तो तुम मेरे सीने में तीर घुसा दोगे,” मजाकिया अंदाज में वह हँसा, “कभी नहीं! असुरा के कान तुम्हारी हर एक हरकतों को पकड़ लेता है। लड़के, ऐसी गलती दोबारा मत करना।”
मलकित का हाथ पीछे हट गया, “तुम हमारे मार्ग में बाधा डाल रहे हो। खुद को सुरक्षित चाहते हो तो हमारा रास्ता छोड़ दो।”
“आहा…बिलकुल वही अंदाज…लड़के, तुझ में महान राजा क्रोमाडोर के गुण है। उनकी तरह तुझ में भी महान शक्तियों की झलक दिख रही है। उनकी तरह तुम भी महान राजा बन सकते हो।”
“क्रोमाडोर!” मलकित और उत्कर्ष चकित रह गए। उन दोनों को विश्वास नहीं हो रहा कि इन दोनों के अलावा भी क्रोमाडोर का नाम कोई जानता हो। मलकित बोला, “तुम क्रोमाडोर के बारे में कैसे जानते हो?”
“सुरक्षित करते हुए मुझे तुम्हारा रास्ता छोड़ देना चाहिए,” हँसी के ठहाके लगाते असुरा चल पड़ा।
“सालो से क्रोमाडोर के नाम की उलझन मेरे मन को कुरेद रही थी; तुम यूँ ही बताए बिना नहीं जा सकते।”
“देखो मलकित वह जा रहा है। सालो पहले तुम्हें अजीबो-गरीब आवाज़ सुनाई दे रही थी उसका जवाब शायद इनके पास ही होगा।”
सालो पहले क्रोमाडोर के नाम से अजीब आवाज़ सुनाई देती थी। यक़ीनन असुरा उसी क्रोमाडोर की बात कर रहा था। मलकित की बेचैनी ने असुरा का साथ न छोड़ ने का प्रण ले लिया; जब तक क्रोमाडोर की जानकारी न मिल जाए। काफ़ी दूर पहुँचे असुरा के पीछे मलकित ने दौड़ लगा दी और उत्कर्ष उसके पीछे। “सुनिए! कृपया मुझे क्रोमाडोर के बारे में बताए।”
“शैलवंति के पहाड़ की ऊँची चोटियाँ तुमने देखी ही होगी,” असुरा ने ज़ोर से आवाज लगा कर अपनी चाल तेज़ कर दी, “लड़के, मेरा पीछा छोड़ दे; अब तुम मुझे नहीं पकड़ सकते।” अचानक से छलांग लगाकर झुरमुट में खुद गया।
भागते आकर दोनों झुरमुट की टहनियाँ को हटाकर असुरा को ढूंढने लगे। हाँफता उत्कर्ष बोला, “असुरा अचानक अदृश्य कैसे हो सकता है? कुछ क्षण पहले तो वह इन झुरमुट में कुदा था। तो फिर वह…”
“कहीं वह कोई मायावी तो नहीं था न! हमने आसपास का सारा क्षेत्र छान लिया, किन्तु वह कहीं नज़र नहीं आया। यह कैसे हो सकता है?” दोनों असमंजस में थे। अभी-अभी एक इंसान उनकी आँखों के सामने से अदृश्य हो गया था।
“वह कहाँ चला गया होगा? क्रोमाडोर की पुख्ता जानकारी उसके पास है। हम किसी भी हाल में उसे ढूंढना पड़ेगा।”
“आखिरी में बोले लफ्जों पर तुमने ध्यान दिया, मलकित?”
“हम…शैलवंति के पहाड़ों की ऊँची चोटियाँ! कहीं वह…”
“मुझे यही लगा है।”
“हमें वहाँ चलना चाहिए।”
“क्रोमाडोर को लेकर तुम बहुत चिंतित हो; मैं जनता हूँ। अब तक तुम मुझे उस आवाज़ के बारे में बताते थे वह मुझे झूठ लगता था, परन्तु क्रोमाडोर का नाम दूसरे व्यक्ति से सुनने के बाद मुझे विश्वास होने लगा है। यह वक्त शैलवंति के पहाड़ों में जाने का नहीं है। कुछ क्षण में सितारे डूब जाएंगे; चारों ओर अंधेरा छा जाएगा। पाठशाला का मार्ग ढूँढना चाहिए; रात को जंगली प्राणी के शिकार बनने में वक्त नहीं लगेगा। जिंदा रहे तो बाद में भी हम क्रोमाडोर के बारे में जान सकते हैं।”
मलकित ने सिर हिलाकर हामी भरी और दोनों पाठशाला का मार्ग ढूंढने लगे।
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