Ekanakriti- a sea of emotions in Hindi Book Reviews by Sudhir Srivastava books and stories PDF | एकांकृति- भावों का समंदर

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एकांकृति- भावों का समंदर

पुस्तक समीक्षा **********एकांकृति'- भावों का समंदर —--------               समीक्षक- सुधीर श्रीवास्तव ( यमराज मित्र)       वैसे तो प्रस्तुत 'एकांकृति' युवा कवयित्री अर्तिका श्रीवास्तव का प्रथम काव्य संग्रह है। कंप्यूटर साइंस में बी-टेक और एम. बी. ए.  (फाइनेंस) योग्यताधारी अर्तिका वर्तमान में यूपीडेस्को लखनऊ में सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर हैं। कविता लेखन के साथ साथ विभिन्न प्रकार के आर्ट- क्राफ्ट, मिट्टी की गुड़िया, खिलौने एवं सजावटी सामान बनाने में भी रुचि रखती हैं। मानवीय संवेदनाओं, उत्तम वैचारिकी के साथ उनकी अभिरुचियों का समावेश उनकी लेखनी में मिलता है।     अपने संग्रह की रचनाओं की शुरुआत उन्होंने 'सर्वप्रथम पूर्वजों को प्रणाम' के साथ किया । जिसकी चार पंक्तियां उनके श्रेष्ठ चिंतन का उदाहरण पेश करती हैं -तप मनोबल सहनशीलता यह सब तुम में मिलते थे,पूरा न सही पर थोड़ा तोगुण हम सब में भी आयेगा।'माँ- सदा ही साथ'  में अपनी जन्मदायिनी माँ को समर्पित रचना की हर पंक्ति भावुक करती है -तुम दूर सही, मैं व्यस्त सही पर आज भी मुझको लगता है जो प्यार दिया बचपन में माँवो संग उम्र भर चलता है।अपने 'पिता' की सीख को याद करते हुए अर्तिका लिखती हुई बीते दिनों में विचरती लगती हैं -चाँद सितारे आसमान से, भले न तुमने तोड़े हैं,पर मुझको खुशियां देने को, एक - एक आने जोड़े हैं।ज्ञान हमेशा मिला है तुमसे, हर हाल में खुश रहना है ,पानी पत्थर से टकराओ और दर्द भी तुमको सहना है।'राम से बड़ा राम का नाम' की ये पंक्तियां उनके व्यापक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है -दोनों   अक्षर   मधुर   मनोहर 'रा' और 'म' का हुआ मिलाप,सरल, सुलभ है और सुखकारी जो  धो  जाए  जन्मों  के  साथ।'महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी' की महिमा को बखानते हुए कवयित्री लिखती हैं -रामबोला    कहलाए    वोजन्म लेते ही श्री राम कहा,सुंदर रचना और बुद्धिमत्ता से श्री रामकथा का प्रसार किया।अपनी लेखनी को प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद स्वरूप अपनी भावनाएं प्रकट करते हुए आप लिखती हैं -जिसमें विश्वास की स्वर्णिम किरणें रोज सबेरे आती है,और  मेरे  प्यारे  से  घर  को  रोशन  कर  के  जाती  हैं।विधिवत रचनाओं के क्रम में 'माँ शारदे को नमन' करते हुए 'पहला कदम' बढ़ाते हुए 'मैं क्यों लिखती हूँ' को शब्दों में खूबसूरती से उकेरा है।     'मेरा मन' में आप लिखती हैं -है नहीं आसान खुद को, खो  कर  फिर  से  ढ़ूँढ़ना,खुद से खुद को ही मिलाता, मूर्ख सा यह मेरा मन।'मेरी अधूरी रचना'  की आखिरी लाइनें आमजन के मनोभावों का प्रतिनिधित्व करती हैं -मेरी अधूरी रचना वोपूर्ण होगी उस वक्त हीजब देश मेरा फिर से बनजायेगा चिड़िया सोने की।'सेवानिवृत्ति- एक नई शुरुआत' की शुरुआती पंक्तियां नौकरी पेशा लोगों की पीड़ा को  अपने आपमें जूझने के बाद सेवा निवृत्त के साथ एक नई सुबह के शुरुआत की पहल जैसी लगती है-एक नई शुरुआत करी है मैंने अपने जीवन की,जिसमें चाहत बुन रहा हूँमैं अपने हर रिश्ते की।'वक्त की सोच' का शब्द चित्र खींचते हुए अर्तिका वक्त का प्रतिनिधित्व करती प्रतीत होती हैं -मैं वक्त हूँ, मैं न बख्सूँ किसी को,सुख हो या दुख मैं देता सभी को।नारी शक्ति के बारे में 'वो बहुत प्रेरणादाई है' में आप लिखती हैं -स्त्री वो है वो जननी है खुद दुर्गा रूप में जन्मी है,हर नर को वो अपनाई है वो बहुत प्रेरणादाई है।अंत में कुछ चतुष्पद के साथ आखिरी दो पंक्तियां आमजन को प्रेरित करने की कोशिश करती हैं -"कर्मठता  भी  एक  जूनून  है,इसकी थकान में ही सुकून है।"विविधताओं से भरे संग्रह की रचनाओं में वो सबकुछ मिलता है, जो आम जनमानस को कुछ न कुछ देने का सुंदर प्रयास किया गया है।जो पाठकों को बांधने में सक्षम लगता है। बतौर युवा कवयित्री अर्तिका की दैनिन्दिनी को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि उनके लिए साहित्य साधना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। फिर भी उनके दृष्टिकोण को मद्देनजर रखते हुए यह विश्वास जरुर किया जाना चाहिए कि निकट भविष्य में उनके अन्य संग्रह पाठकों के हाथों होगा ही। समय की बाध्यता को नकारते हुए उनका चिंतन/दृष्टिकोण उन्हें काव्य सृजन को बाध्य करने में सफल होता रहेगा।      प्रस्तुत 'एकांकृति' काव्य संग्रह भावों का समंदर बन नव आयाम के साथ अपनी सार्थकता साबित करते हुए पाठकों की पसंद बनने में सफल होगा। इसी विश्वास के साथ मंगलकामना के साथ अनुजा/कवयित्री को असीम स्नेह, शुभाशीष के साथ...... l गोण्डा उत्तर प्रदेश 8115285921