'Children's song' and 'Let us sing the praises of letters' in Hindi Book Reviews by Sudhir Srivastava books and stories PDF | शिशु गान' और 'आओ अक्षर के गुण गायें'

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शिशु गान' और 'आओ अक्षर के गुण गायें'

पुस्तक समीक्षा 
बाल सुलभ भावनाओं का शब्द चित्र है द्वय बाल काव्य संग्रह -'शिशु गान' और 'आओ अक्षर के गुण गायें' 

                समीक्षक- सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

         बाल मन को समझना इतना आसान नहीं होता, जितना हम आप मान लेते हैं, बाल मनोविज्ञान को समझने के लिए स्वयं को उस अवस्था में ईमानदारी से ले जाना होता, तब भी हम शायद उनके दृष्टिकोण, वैचारिक चिंतन, उनकी चंचलता और उनकी तात्कालिक आवश्यकता को पूर्णतया समझ ही पायेंगे, इसमें भी संशय ही है।
    एक शायर की बातें श्रृंखला में कवि हरिश्चन्द्र त्रिपाठी 'हरीश' ने निश्चित ही अपने बाल संग्रहों की रचनाओं के सृजन से पूर्व गहन मनन चिंतन करते हुए बाल मनोविज्ञान का गहराई से विवेचन/विश्लेषण किया होगा। तत्पश्चात ही उन्होंने बाल मनोविज्ञान को केंद्र में रखकर बाल कविताओं के सृजन का जोखिम उठाया होगा। बाल मन के अनुरूप सृजन अपेक्षाकृत काफी कठिन है।जो हर किसी लेखक/कवि के लिए आसान नहीं होता। इसीलिए बच्चों के लिए लिखने वालों की संख्या काफी कम है।
        अपने पहले काव्य संग्रह में हरीश जी ने महज चार- चार पंक्तियों में रोचक, ज्ञानवर्धक, धारा प्रवाह और बच्चों में उत्साह जगाने और उनको आसानी से पसंद/ समझ आने वाली कविताएं लिखीं हैं। जिसकी कुछ कविताएं रखता हूँ।
कण-कण में रमते भगवान,
करें सभी उनका गुणगान।
रहे सदा हमको यह ध्यान,
पढ़ - लिख कर हम बनें महान।।

मम्मी ने भैया को भेजा,
लेने शहर से उन चले।
पहनें कोट- पतलून चले-
लगता देहरादून चले।।

नित मंजन कर स्नान करें,
फिर ईश्वर का ध्यान करें।
सत्य-अहिंसा-प्रेम-दयामय-
कण-कण हिंदुस्तान करें।।

आँख खोल जब सूरज झाँके,
छुपा चाँद जब स्नेह लुटा के।
तारे कहाँ बताओ पापा?
कहाँ अंधेरा गया बता के?

संग्रह की अंतिम रचना के रूप में -
ढेरों सारे तेरे खिलौने,
लूले- लंगड़े, बहरे- बौने।
मोल भाव क्या करता लाला-
दे दे मुझको औने-पौने।।

40 कविताओं के संग्रह की सभी रचनाएं बच्चों को पसंद आने वाली ही नहीं हैं, अपितु उनमें कंठस्थ करने की होड़ भी जगाने में सक्षम हैं।
    जबकि दूसरे बाल काव्य संग्रह 'आओ अक्षर के गुण गायें' में हरीश जी ने हिंदी वर्णमाला के सभी स्वर और व्यंजन के प्रत्येक वर्ण से एक - एक रोचक, उत्साहित करने के साथ बालकों को आसानी से समझ और पसंद के अनुरूप सृजन कर संभव एक नया किंतु सफल प्रयोग किया है।
      हरीश जी स्वयं मानते हैं कि प्रस्तुत पुस्तक बाल सुलभ भावनाओं को दृष्टिगत करके लिखी गई हैं जो वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर से संबंधित जानकारी देते हुए भारतीय संस्कृति के अनुपालन में जीवन को सीख देने का गिलहरी प्रयास मात्र है। आज का चपल नौनिहाल यदि इसके स्वर, लय में एकाग्र हो जाता है, तो मैं अपने प्रयास को सफल मानूँगा।
संग्रह की चुनिंदा कविताओं की दो - दो पंक्तियां आपके अवलोकनार्थ उद्धत करना चाहूँगा -
अ से- अजगर 
अजगर करे न कोई काम,
 बैठे भोजन देते राम।।

ई से- ईश्वर 
ईश्वर करता सबको प्यार,
बना दिया अनुपम संसार।।

ऐ -ऐनक
ऐनक सदा लगाता बाबू,
तिल को ताड़ बनाता बाबू।।

घ से घण्टा
घण्टा,शंख बजे घड़ियाल,
जय रघुनन्दन जय गोपाल।।

स से- सड़क
एक बात हम तुम्हें बतायें,
सदा सड़क पर चलना बायें।।

       निश्चित ही हरीश जी ने श्रम साध्य सृजन कर बाल समाज को अमूल्य निधि सौंपने का काम किया है। जो उनके व्यक्तित्व और चिंतन शक्ति को प्रभावशाली सिद्ध करने में मील का पत्थर बना सकता है नहीं,बनाएगा ही।
     ......अंत में बतौर पाठक/अभिभावक/पिता के तौर पर मेरा मत है कि दोनों पुस्तकें अधिसंख्य बच्चों के हाथों में ही नहीं , बल्कि सरकारी/गैर सरकारी विद्यालयों तक जरूर जानी चाहिए। यही लेखक के श्रम की सार्थकता है।
         
गोण्डा उत्तर प्रदेश 
8115285921