आज यह कहते हुए बहुत खेद है और दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि जिस व्यक्ति ने भारत जैसे विशाल देश के लिए विशाल संविधान लिखा। आज उनकी ही मूर्तियाँ तोड़ी जा रहीं हैं। उनका अपमान किया जा रहा है। यह बहुत असहनीय है, बर्दाश्त करने के लायक नहीं कि जिस महामानव के बनाए कानून पर देश चल रहा है, लोकतंत्र हैं, आजाद हैं। आज उनकी ही मूर्ति देश के अदालतों में लगाने में संकोच है, निंदनीय है। मैं बात कर रहा हूँ भारत के विधि मंत्री संविधान निर्माता भारत रत्न डॉ बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की। बात यह है कि ग्वालियर हाई कोर्ट में उनकी प्रतिमा लगाने को लेकर हंगामा हैं। कुछ वकील हैं जो बाबासाहब अंबेडकर की मूर्ति लगने का विरोध कर रहे हैं। य़ह बहुत चिंता का विषय है कि इस तरह के बेहूदगी और गंदी सोच वाले भारत रत्न की प्रतिमा का विरोध कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि या तो वो अनपढ़ हो सकते हैं या उनके अंदर जातिवाद कूट कूट कर भरा है । यहाँ मानने वाली यह भी बात नहीं है कि डॉ अंबेडकर ने कुछ गलत किया है उन्होंने तो भारत को एक मुक्कमल संविधान दिया है जिसको भारतीय लोग फालो करते हैं।
उनकी समस्या यह है कि संविधान डॉ अंबेडकर ने नहीं बल्कि बी एन राव ने लिखा है। तो बी एन राव को संविधान निर्माता बनाया जाए। जबकि पूरी दुनियाँ जानता है कि भारत का संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर हैं। हाँ इसमे बी एन राव जी का भी योगदान है इसको नकारा नहीं जा सकता। लेकिन उनका योगदान सीमित था। वो एक संविधान सलाहकार थे। उन्होंने संविधान का प्रारंभिक कच्चा मसौदा तैयार किया। जिसको प्रारूप समिति के चेयरमैन डॉ भीम राव अंबेडकर ने कच्चे मसौदे में संशोधित और लेखा जोखा करने के बाद संविधान का निर्माण किए। जबकि प्रारूप समिति में सात लोग थे मगर छह लोग किन्ही कारणों से उपस्थित नहीं थे यह भी बात पूरी दुनियां जानती है इसमे कोई संदेह नहीं है। तो उस समय डॉ अंबेडकर पर पूरा जिम्मेदारी आ गई और उन्होंने अपनी खराब सेहत के बावजूद भी उन्होंने संविधान को मुक्कमल बनाया।
बी एन राव का महत्पूर्ण योगदान:- जबकि बी एन राव जी ने संवैधानिक सलाहकार के रूप में प्रारंभिक मसौदा तैयार किया और कानूनी ढांचों का आधार प्रदान किया। उनकी भूमिका तकनीकी और बौद्धिक थी। लेकिन वे संविधान सभा के बहसों या अंतिम प्रारूप के संपादन में सीधे शामिल नहीं थे।
सामुहिक प्रयास:- संविधान का निर्माण एक सामुहिक प्रक्रिया थी। जिसमें जवाहर लाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद, और सरदार पटेल जैसे अन्य नेताओं का भी योगदान रहा।संविधान सभा के 289 सदस्य भी शामिल थे।
डॉ अंबेडकर की केंद्रीय भूमिका:- डॉ अंबेडकर को "संविधान निर्माता" कहा जाता है क्योंकि उन्होंने प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में संविधान को अंतिम रूप देने, बहस का नेतृत्व करने और इसके दार्शनिक आधार को स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभाई। उनकी सामाजिक- आर्थिक दृष्टि ने संविधान को भारतीय समाज के लिए प्रासंगिक बनाया।
टी टी कृष्णामाचारी का बयान:- प्रारूप समिति के सदस्य टी टी कृष्णामाचारी ने संविधान सभा में कहा था कि प्रारूप का अधिकाशं बोझ अम्बेडकर पर ही पड़ा, क्योंकि अन्य सदस्यों का योगदान सीमित रहा।
लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य होने के बावजूद भी मनुवादी विचार के लोगों को विश्वास नहीं हो रहा। विश्वास तो है पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए डॉ अंबेडकर के योगदान को नाकार रहे हैं। इनका मुख्य समस्या का कारण है आरक्षण। यहाँ सबसे मजेदार बात यह है कि इन्होंने सबसे पहले आरक्षण को खत्म करने की आवाज उठाई। जब उसमें सफल नहीं हुए तब इन्होंने संविधान बदलने की मांग करने लगे और जब इसमे भी असफल रहे तब इन्होंने संविधान निर्माता भारत रत्न डॉ अंबेडकर को ही बदलने चल पड़े। जबकि इनको भली भांति पता है कि संविधान डॉ अंबेडकर ने ही लिखा है।
आरक्षण मुद्दा:- जो लोग अक्सर यह कहा करते हैं कि आरक्षण इनको भीख में दिया गया, आरक्षण इनकी बैसाखी है। तो उनसे मैं कहना चाहता हूँ कि हम आरक्षण के बिना भी अपने आप को उठा सकते हैं। हमारे sc st obc समाज में आईएएस, आईपीएस अधिकारी, वैज्ञानिक हैं जो आरक्षण से नहीं बनते हैं। और आरक्षण हमें भीख में नहीं दिया गया और नाहीं यह हमारी बैसाखी है। आरक्षण हमें जातिगत आधार पर मिला। आज भी हमारे पर अत्याचार हो रहे हैं। आपने हमें तीन हजार वर्ष तक गुलाम बनाए रखा। हमारा सौ में सौ प्रतिशत आरक्षण खाते रहे और जब हमें सत्तर साल से थोड़ा बहुत आरक्षण मिल रहा है तो आपको दर्द हो रहा है।
संविधान खतम करने का मुख्य लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र बनाना, मनुस्मृति लागू करना। क्योंकि बाबासाहब अंबेडकर का संविधान इजाजत ही नहीं देता है कि भारत कोई धार्मिक राष्ट्र बने। उन्होंने भारत को लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्षता वाला देश बनाकर गए। संविधान, आरक्षण और बाबासाहब डॉ अंबेडकर को ख़त्म करने का प्रयास इसलिए किया जा रहा है कि भारत हिन्दू राष्ट्र आसानी से बन सके। लेकिन डॉ अंबेडकर और उनका संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। संविधान के प्रस्तावना में साफ साफ लिखा है कि भारत लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष वाला देश है। इसको हिन्दू तो क्या मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई या कोई अन्य राष्ट्र नहीं बनाया जा सकता। लेकिन मनुवादी लोगों के पेट में खलबली मची है कि भारत कब हिन्दू राष्ट्र बने और कब sc st obc समाज वाले हमारे गुलाम हों। जब डॉ अंबेडकर संविधान सभा में यह पारित करा चुके हैं कि "India that is Bharat" तो ये हिन्दू, मुस्लिम,सिक्ख, ईसाई राष्ट्र की बात कहाँ से आ गई। यही है असली खतरा जो डॉ अंबेडकर और उनके बनाए संविधान पर है।
डॉ अंबेडकर की किताब Pakistan or the partition of India में पाकिस्तान को सम्बोधित करते हुए बताए कि आज पाकिस्तान धर्म के नाम पर बटवारा किया उसका परिणाम बहुत बुरा होगा। वैसे ही अगर भारत जिस दिन हिन्दू राष्ट्र बनेगा तो वह दिन भारत के लिए अभिशाप होगा। उनकी यह कही बात आज सौ प्रतिशत सही साबित हो रहा है।
आज की यह स्थिति देखते हुए यह चेतावनी देनी पड़ रही है कि अगर हम शिक्षित होकर अपने हक अधिकार, संविधान और डॉ अंबेडकर और उनके विचारों के लिए नहीं खड़े होंगे या आवाज नहीं उठाएंगे तो आज तो हमने बाबासाहब डॉ अंबेडकर के संविधान से कुर्सी पा ली है, लेकिन आने वाले पीढ़ियों की कुर्सी बचा नहीं पाएँगे। जब भारतीय संविधान के जनक डॉ बाबा साहब अंबेडकर के प्रतिमा लगने पर विरोध किया जा रहा है तो सोचिए अगर संविधान खत्म हो गया तो क्या हाल होगा। मनुवादी लोगों की यही मंसूबा है। हमारे प्यारे मुल्क और सुन्दर संविधान पर उनकी नजर लग गई है। उन्होंने आरक्षण को खत्म करना चाहा उसमें असफल रहे, संविधान बदलने की मांग की, उसमे भी असफल रहे तो आज संविधान निर्माता ( बाबा साहब डॉ अंबेडकर)को ही बदलने चल पड़े। मतलब इनको कैसे भी करके डॉ भीम राव अंबेडकर, उनका संविधान और आरक्षण खत्म करना है। ताकि ये अपने मन मुताबिक कानून बना सके या मनुस्मृति लागू कर सकें।
भारत के विधि मंत्री संविधान निर्माता भारत रत्न डॉ बाबा साहब भीम राव अंबेडकर अमर रहें।
- Er.Vishal Kumar Dhusiya