लाल आंखों वाला कीड़ा...
अब आगे................
श्रुति के इस तरह चिल्लाने से विवेक उस कीड़े को उसके पंखों से पकड़कर कर ऊपर उठाकर देखता है.... विवेक उस कीड़े को हवा में ही लटका रखा था और वो कीड़ा और जोर जोर पंख फड़फड़ा कर शांत हो जाता है....
विवेक उस कीड़े को देखता हुआ बोला..." श्रुति ठीक कह रही है, , ये बड़ा अजीब सा इंसेक्ट है..... श्रुति इसके बारे में सर्च तो कर .....
विवेक के कहने पर श्रुति उसकी फोटो क्लिक करके इंटरनेट पर सर्च करती है लेकिन उसके बारे में कुछ नहीं पता चलता....
श्रुति : इसके बारे में तो कोई इंफोर्मेशन नहीं है...?
विवेक : ऐसा कैसे हो सकता है...?... सबके बारे में बताया होता है। ये क्या कोई दूसरी दुनिया से आया है....
विवेक अभी उसके बारे में बात ही कर रहा था कि कंचन उस कीड़े को गौर से देखती हुई बोली...." विवेक ये है तो बड़ा अजीब...इसकी आंखे लाल है और पंख भी हल्के लाल से है , ऐसा लग रहा है जैसे इसे मैंने देखा है...." कंचन की ये बात सुनकर विवेक और श्रुति दोनों की नजरें उसपर टिक जाती है.... श्रुति उत्साहित होकर पूछती है...." बता फिर जल्दी..."कंचन कुछ बता पाती उससे पहले ही हितेन कहता है..." हम सब पहुंच चुके हैं अब जो बात करनी है बाद में करना..."
विवेक कहता है..." ठीक है... श्रुति पीछे देखो वो कंटेनर है न इसे (कीड़े को).. उसमें डाल दो.... इसके बारे में पता करके रहूंगा , अब मैं किसी को इतने हल्के में नहीं रह सकता.... तुम तीनों अंदर चलो कल सुबह घर जाना अभी रात बहुत हो गई है... आराम कर लो कल चले जाना...और कंचन इसके बारे में बताना....
कंचन : हां...
विवेक के कहने पर तीनों चौधरी मैंशन में आते हैं....
अब सब की कार पहुंच चुकी थी सब अंदर पहुंचते हैं...सुविता जी और मालती जी सबको देखकर कहती हैं..." बच्चों आज रात तुम सब यही रूको जाओ रात बहुत हो चुकी है इसलिए सब डीनर करो और रेस्ट करो..." सुविता जी की बात पर सब हां मैं सिर हिलाते हैं फिर वहां से सभी फ्रेश होने चले जाते हैं थोड़ी ही देर में सब लोग डाइनिंग टेबल पर आ चुके थे.... मालती जी नौकरों को खाना लाने के लिए कहता फिर सबको खाना परोसती हैं....
इधर सब खाना खाने लगते हैं उधर तक्ष अदिति के भेष में उसके कमरे में इधर से उधर घूम रहा था... उसके चेहरे पर परेशानी के निशान दिख रहे थे और अपने आप से बड़बड़ाता हुआ बोला......" ये उबांक कहां रह गया.... इतना सा काम करने में इतना समय .....आज शिकार पर भी जाना था...." तक्ष परेशान होकर इधर उधर घूम रहा था कभी बाहर जाता , कभी अंदर आता रात होने के कारण उसके अंदर बदलाव होने लगते हैं तभी एक छोटी सी बोतल निकालता है और उसकी दो घूंट पी लेता है फिर जाकर लेट जाता है....
उधर विवेक और बाकी सब खाना खाकर स्टडी रूम में बैठे हुए थे... विवेक उस कीड़े को दिखाते हुए कहता है..." कंचन बताओ इसके बारे में..."
कंचन : हां बताती हूं....
कंचन अपने पर्स से अपना फोन निकालकर उसमें से एक फोटो दिखाती हुई कहती हैं...." देखो मैं इसके बारे में कह रही थी...." सब फोन को गौर से देखते हैं लेकिन जूम करने की वजह से पिक्सल्स क्लियर नहीं होने की वजह से किसी को साफ समझ नहीं आता और कंचन से पूछते हैं..." इसमें क्या है...?... कुछ समझ नहीं आ रहा है..." कंचन फोन को देखकर कहती हैं......" इसमें क्लियर नहीं दिख रहा है... विवेक वो वीडियो क्लिप दिखाओ जरा ...." विवेक हां में सिर हिला कर फोन उसकी तरफ करता है..... थोड़ी देर वीडियो देखने के बाद कंचन वीडियो पाॅज करके उन्हें दिखाती है....
कंचन : देखो ध्यान से... मैं कार में इस वीडियो को काफी बार देख चुकी हूं जिसमें तुम दोनों के अलावा ये अजीब सा कीड़ा ही मुझे हर बार दिखा है.... मुझे ये कुछ अजीब नहीं लगा लेकिन जब ये ही कीड़ा हमारी कार में दिखा तब मुझे बहुत अजीब लगा जैसे ये कोई सिक्रेट कैमरा हो जो हर पल हम पर नजर रखता हो.....
कंचन की ऐसी सुनकर सब हैरानी से उस वीडियो को देखते हैं और तीनों वीडियो क्लिप में इसी कीड़े को देखकर हैरानी से कहते हैं...." कंचन तू बिल्कुल ठीक कह रही है...ये जरूर कोई मिस्ट्रीरियस चीज है...." लेकिन विवेक गंभीर होकर कहता है..." कंचन इतना डिपली मैंने कभी सोचा नहीं न इस वीडियो पर कोई खास गौर किया लेकिन तुम्हारी बात बिल्कुल सही है। ये जरूर उस तक्ष का भेजा गया कोई जासूस है जो हम पर नजर रखने के लिए भेजा होगा..."
हितेन विवेक के गंभीर भाव को देखकर उसका साथ देते हुए कहता है. ...." तू बिल्कुल ठीक कह रहा है..ये जरूर तक्ष का कोई जासूस है... लेकिन उसे कैसे पता चला कि हम उसके बारे में जान चुके हैं..."
विवेक : वो एक पिशाच है और वो इतनी आसानी से मेरा पीछा करना नहीं छोड़ेगा । वो जरूर जानने की कोशिश करेगा की मैं अदिति को दोबारा से पाने के लिए कुछ भी करूंगा.....
कंचन : अब सब बात समझ आ रही है, की तुम दोनों की फोटोग्राफ इसने ही क्लिक की है...
श्रुति कंचन की बात को मजाक में लेते हुए कहती हैं..." वट नानसेंस ये कोई डिवाइस थोड़ी है , जो इसमें कैमरा लगा होगा, देख विवेक के पकड़ने से ही ये कैसा अधमरा इस जार में पड़ा है....
कंचन : तू नहीं समझेगी.... विवेक इसे मार दो...
कंचन की इस बात से विवेक उसे हैरानी से देखता है....
विवेक : इसे मार दूं....?
मरने की आवाज सुनकर वो कीड़ा जोर से फड़फड़ाने लगता है और उस कंटेनर का ढक्कन खुल जाता है. ... हितेन उसे पकड़ने की कोशिश करता है लेकिन जैसे ही उसका हाथ उसके पंख से लगता है वो नीचे गिर जाता है और दर्द से चिल्लाने लगता है.....वो कीड़ा वहां से उड़ जाता है और विवेक हितेन को संभालता हुआ कहता है...." तुझे इस कीड़े के छूने से ही चोट कैसे लगी गई...?... मैंने तो इसे कंटेनर में बंद किया था मुझे कुछ नहीं हुआ...."
तीनों हैरानी से विवेक की तरफ देखते हैं...........
…................to be continued...........
आखिर हितेन को उस कीड़े के छूने से ही चोट क्यूं लगी....?
जानेंगे अगले भाग में....
आपको कहानी कैसी लगी मुझे रेटिंग के साथ जरुर बताएं....