The Journal's Daughter - Film Review in Hindi Film Reviews by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | द जर्नल्स डॉटर - फिल्म समीक्षा

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द जर्नल्स डॉटर - फिल्म समीक्षा

फिल्म :_ द जर्नल्स डॉटर

स्त्रियों की आवाज दुनिया में कहीं नहीं

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अमेरिकन आर्मी में तीन दशक पूर्व हुए रेप और मर्डर केस की नए सिरे से पड़ताल करती है यह फिल्म। जी हां, सभ्य और विकसित देश माने जाने वाले देशों की सच्चाई, की अन्दर से वह कितने खोखले हैं, हमारे सामने लाती है।

ऐसी फिल्म जो आपकी सोच, विचारों और सबसे बढ़कर स्त्रियों के प्रति आपका नजरिया बदल देगी। यह बताएगी कि पूरी दुनिया में स्त्री एक सी ही है भावुक, प्यार भरी, विश्वास करती और अपनी योग्यताओं, क्षमता को निखार कर योग्य बनती। परंतु इसी यात्रा में वह अनेकों की आंखों में खटकती और उसकी भावनाओं से खेलकर उसे दबाया जाता। पुरुष चाहे जनरल, जज, किसान, आम इंसान हो वह एक जैसा ही होता है। दुनिया , उसके बनाए कायदे, लाभ, नुकसान को देखकर दबने वाला। जॉन ट्रावलटा, यह हॉलीवुड के एक सुपरस्टार थे, जेम्स क्रम्बल जनरल, लेस्ली बेटी, की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है जो इसलिए भी देखी जानी चाहिए कि आर्मी बैकड्रॉप पर फिल्म कितनी बारीकियों से बनती है। हर चीज बेहतरीन ढंग से निर्देशक साइमन वेस्ट ने फिल्माई है।मानो आर्मी ही एक्ट कर रही। सारा माहौल सच से भरा हुआ।

कहानी, परिवेश और संवाद

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कहानी प्रारंभ होती है अमरीकी आर्मी के मुख्य स्टेशन और ट्रेनिंग सेंटर से जहां जनरल कैंपबेल इंचार्ज हैं। कड़े अनुशासन, हर गाड़ी की चेकिंग से लेकर आर्मी के हर प्रोटोकॉल का निर्देशक ने ख्याल रखा है। मन खुश हो जाता है। ट्रेनिंग सेंटर, युद्ध की विभिन्न संभावित तैयारियों के ग्राउंड, वॉच टॉवर, रेस्ट रूम, आर्मी कैंटीन, स्पोर्ट्स ग्राउंड, जिम हर एक हुबहु आर्मी का। सैनिक, अर्डली, मेजर, कैप्टन, कर्नल सबके मध्य एक लड़की का बहुत भयानक ढंग से नग्न अवस्था में हाथ पांव बांधकर कैंप के अंदर रेप और हत्या हो जाती है।बाद में सब पहचानते हैं कि वह कैप इंचार्ज जनरल कैम्पबेल की बेटी एलिजाबेथ है। जो वहीं पोस्टेड थी।

आर्मी का अपना जासूस और सेल होता है, वहां से जासूस बेनर और उसकी सहायक को भेजा जाता है। बारीक जांच होती है, फुटप्रिंट्स आदि लिए जाते हैं। दौर नब्बे के दशक का है, जब अमेरिकन आर्मी में महिलाओं को आने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। तो यह घटना बड़ी चुनौती थी। आर्मी कानून के तहत लोकल पुलिस को जांच की अनुमति नहीं थी। यदि आर्मी अपने स्तर पर अपराधी नहीं पकड़ती तो केस सीधा एफबीआई के पास।

जनरल बहुत दुखी और शोक में होते हैं। जेम्स क्रोमवेल ने इतना सधा हुआ और संतुलित अभिनय किया है कि आप वाह वाह कर उठते हैं। बॉडी लैंग्वेज, भाव, भाषा और आंखों से वह पूरे जनरल के किरदार में उतर गए।

कैंप में जांच होती है पर सैकड़ों फौजियों में कौन कौन जिम्मेदार है, यह तय करना मुश्किल।

जॉन ट्रैवोल्टा, आर्मी जासूस और कैप्टन के रूप में जांच प्रारंभ करते हैं। पर कोई सुराग नहीं।फिर वह मृत लड़की के घर, वह अलग रहती है अपने जनरल पिता से, को अच्छे से तलाशते हैं। कई राज खुलते हैं। डार्क रूम जैसी जगह में कुछ वीडियो कैसेट मिलते हैं। वहीं एक फाइल मिलती है जिससे यह बात सामने आती है कि सात साल लेबनान वार में इस सोल्जर लड़की ने बहादुरी में कई अच्छे अच्छे आर्मी लड़कों को पीछे छोड़ दिया था, इतनी वह जाबांज थी। परंतु वहां वह अपनी यूनिट से बिछड़ गई थी तो पांच चेहरा छुपाए जवानों ने वहीं फील्ड ग्राउंड में उसके हाथ पांव रस्सी से खूंटे से बांध उसका गैंग रेप और मारपीट की थी। तब पापा उसके लेफ्टिनेंट जनरल , कहीं और पोस्टेड थे। यह आर्मी हॉस्पिटल में लहूलुहान भर्ती थी।

जनरल उन्हें समझाता है कि "यह बात यहीं खत्म कर दो।क्योंकि बाहर जाने से अमरीकन आर्मी की छवि खराब होगी।अभी अभी लड़कियों का आर्मी में आना प्रारंभ हुआ है, इस घटना से लड़कियां फौज ज्वाइन नहीं करेंगी। पूरी दुनिया में छवि खराब होगी सो अलग। तुम्हारे सुनहरे भविष्य के लिए भी यही ठीक है कि घटना को भूल जाओ।"

यह डायलॉग वह बिंदु है जहां आप आज भी भारत सहित कई दक्षिणी एशियाई देशों में महिला अपराध, यौन उत्पीड़न में यही स्थिति देख पाते हैं, भले ही कम हो पर हैं तो। ऐसी ही स्थिति अमेरिका जैसे सौ प्रतिशत साक्षर, सुपर पावर और महिला अधिकारों में अग्रणी देश में भी रही।यह नहीं भूलना चाहिए कि सच्ची घटना पर बने उपन्यास पर बनी है फिल्म।

फौज की दुहाई दी गई फौजी लड़की के पिता लेफ्टिनेंट जनरल को। अब पिता क्या करेगा? क्या वह बेटी के लिए लड़ेगा? दोषियों को सजा देगा या क्या? फिल्म का स्क्रीन प्ले और घटना क्रम बेहद सधा है। हॉस्पिटल में पिता बेटी से मिलता है। उससे हिम्मत रखने को कहता है। आर्मी वाली बहादुर लड़की दोषियों को सजा दिलाना चाहती है। पर जनरल पिता कहते हैं, " उस घटना को भूलना होगा। देश और फौज की खातिर।" बेटी , एक शक्तिशाली पिता को ऐसा कहते देख हैरान रह जाती है।घायल लड़की की टूटती आस, भरोसा को लेस्ली स्टीवेंसन अपनी आंखों और हावभाव से जिस तरह दिखाती है वह जहन में उतर जाता है।

पिता जबरदस्ती बेटी पर दवाब बना मामला दबा देता है।

आगे जासूस को जांच में एक मैगजीन मिलती है जिसमें जनरल का फोटो है जिसमें वह चार साल की बिन मां की अपनी बेटी को गोद में लिए फौज के हमलों के बाद शहर में शांति की स्थापना कर रहा है। यह बता रहा की मैं अपनी छोटी बच्ची के साथ शहर में घूम रहा हूं, तो अब यहां सब ठीक है। आम नागरिक भी ऐसे रह सकता है। वह यादगार चित्र था जनरल की बहादुरी और बुद्धिमत्ता का। बेटी उसी बहादुर पापा को देखना चाहती थी। जो उसके साथ हुए घिनौने अपराध के खिलाफ लड़े , उसे इंसाफ दिलाए।

पर होता कुछ और ही है।पिता कुछ नहीं करता और जल्द प्रमोशन पा जनरल बन जाता है।लेकिन वह आर्मी ऑफिसर उसी कैंप में होते हैं जिन्होंने उसका रेप किया था। सात साल बीतते हैं अब वह उसी यूनिट में पर जनरल पापा से अलग घर में रहती है। उसकी जिंदगी बदल गई है।वह दूसरे शहर के मनोविज्ञानी से अपने डिप्रेशन का इलाज कराती है और उन लोगों के नाम भी बताती है।पर दोनों कुछ नहीं कर पाते। अब यह घटना होती है बिल्कुल उसी पहले वाले ढंग पर । बेनर, फौजी जासूस जनरल से मिलने जाता है सवाल जवाब करता है। जनरल पूछता है "तुम आर्मी के रूल मानोगे या सिविल के?" वह कहता है आर्मी के। जनरल गुड कहता है। अर्थात कुछ भी हो मामला बाहर नहीं जाए।

आगे और तहकीकात से कई सुबूत मिलते हैं। वह सहयोगी महिला जासूस भी उस मुख्य अपराधी युवा मेजर को खोज निकालती है। आगे की जांच पड़ताल में और कई खुलासे होते हैं। यहां तक कि जनरल और उसका सहयोगी कर्नल भी शक के घेरे में आते हैं।

यहां यह बात बड़ी शिद्दत से उभरकर आती है कि स्त्री की सुनवाई उसकी मर्जी हमेशा पुरुष ही क्यों तय करता है? हर देश में चाहे भारत हो, हालांकि यहां तो अब काफी आवाजें सुनी जाती हैं।ईरान, सीरिया, तुर्की, सऊदी, इंग्लैंड, अमेरिका, रूस क्यों नहीं हो कहीं सुनवाई ही नहीं होती।आखिर वह कब तक अपनी बात दबाएगी? और बात उठानी भी कौनसी? अपने ऊपर किए जुल्म, अत्याचार, शोषण और जबरदस्ती की जिसे उसके ऊपर ही किया जाता है, पुरुषों के द्वारा। वह आवाज भी न उठाए? मोना गुलाटी की कविता की पंक्तियां हैं, "एक दिन मेरे हाथ में / हंसिया होगा और /उसके नीचे तुम्हारी गर्दन ।"(कथादेश, कविता और स्त्री अंक, अप्रैल पच्चीस )

एक सौ दस मिनट की फिल्म जैसे जैसे आगे बढ़ती है आप अपनी सीट से हिल भी नहीं पाते। कहानी, अभिनय आपको आगे क्या सच्चाई खुलने वाली है, इस रोमांच से बांधकर रखती है।

लड़की का कमांडिंग ऑफिसर जासूस की जांच के दायरे में आता है। उसका वीडियो टेप भी लड़की के सीक्रेट कक्ष में मिला था। उससे सुबूतों और थोड़े दबाव से वह मानता है कि उसके लड़की से स्वेच्छा से संबंध थे। पर उसने खून नहीं किया। आर्मी के वॉच टॉवर की सैनिक बताती है कि उस रात तीन से चार बजे के मध्य तीन आर्मी गाड़ियां आईं थीं। बैनर और उसकी सहयोगी हैरान रह जाते हैं जब वह फॉरेसिक जांच का नतीजा देखते हैं।

वह किस तरह उन तीन आर्मी गाड़ियां और शू फुट प्रिंट से आने वाले लोगों की पहचान करते हैं वह बेहद दिलचस्प है।पता लगता है है जनरल खुद भी उस रात बेटी के बुलावे पर घटनास्थल पर पहुंचे थे। सारा मामला बिल्कुल ही उलटता दिखता है। मानो ऑनर किलिंग हो। पर निर्देशक साइमन वेस्ट की स्क्रिप्टिंग की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने सच्चाई भी दिखाई, मानवीय मूल्यों और पिता पुत्री की स्थितियां भी दिखाई और दोषी कैसे पकड़ा गया यह भी दिखाया। जनरल से अब नए ढंग से पूछताछ होती है।वह मानता है वह दूसरी गाड़ी में गया था। पर बेटी जीवित थी।हालांकि उसने बंधे हुए, पूर्ण नग्न होते हुए भी उसके हाथ पांव नहीं खोले और चला गया।क्योंकि बेटी बार बार उसे अपमानित करते हुए कह रही थी कि, " i want justice . उन दोषियों पर कार्यवाही हो।" उस दृश्य में जनरल की भूमिका में जेम्स क्रोमवेल का बेहद रोमांचक और सधा हुआ अभिनय हर एक को बार बार देखना चाहिए। किस तरह एक रेपड बेटी के पिता की बेबसी, शक्तिशाली जनरल का व्यक्तित्व और अन्याय होते हुए भी देश और तरक्की के नाम पर अब भी बेटी की बात नहीं मानना । जबकि अब सात साल हो गए थे और वह अब जनरल थे।चाहते तो कार्यवाही कर सकते थे। पर वह...बेटी लेस्ली स्टीवेंसन, ने कमाल का अभिनय किया है।कहा जाए स्त्री की लाचारी और बेबसी को आवाज दी है। जो हार नहीं मानती। फिर जनरल अपने सहायक कर्नल को भेजता है वह तीसरी फौजी गाड़ी में आता है। वह कहता है जासूस के सामने की उस वक्त वह मरी हुई पाई थी। और मैं जुबान नहीं खोलूंगा। उसका इशारा इस ओर था कि जनरल ने उसे मार डाला। जनरल उसे घूरता है और डांटता है कि यह क्या बकवास है? मैं अपनी बेटी की हत्या करूंगा?

जासूस निष्कर्ष निकालता है कि लड़की सात साल पहले हुए अत्याचार और बलात्कार की पुनरावृत्ति करती है अपने दोस्त की मदद से। उद्देश्य था अपने पिता को जगाना, उसकी अंतरात्मा को झकझोरना। जनरल उस बार भी कुछ ध्यान नहीं देते। और उसके हाथ पांव भी आजाद नहीं करते और वह राग, तुम यह सब भूल जाओ, अलापते हुए चले जाते हैं।

एक शक्तिशाली जनरल भी जब बेटी के हक के लिए अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में स्टैंड नहीं ले सकता तो बाकी का तो हाल ही छोड़ दो।

यहां यह प्रश्न भी समीचीन है कि स्त्री काफी वक्त तक पुरुष से, फिर चाहे वह पिता, पति, प्रेमी हो, उम्मीद लगाए रही सहयोग की। जब उसे पुरुष से कोई सहयोग नहीं मिला तो फिर नई सदी आते आते उसने खुद अपने हक के लिए लड़ना और आवाज उठाना प्रारंभ किया। यही वजह है कि आज की स्त्री अपने अधिकारों के लिए जागरूक भी है और किसी पर निर्भर नहीं। अधिकांश पुरुष उसका भरोसा खो चुके हैं। राष्ट्र या सेना सर्वोपरि है पर स्त्री के प्रति जघन्य अपराध कोई भी करे उसे दंड मिलना ही चाहिए।

एक अफसर आत्महत्या कर लेता है तो जनरल जासूस बेनर से कहते हैं कि केस क्लोज कर दो अब। उसी ने मेरी बेटी की हत्या की और खुदकुशी कर ली।as simple as that. लेकिन असली हत्यारा कोई और होता है जो सात वर्ष पहले भी मुख्य अपराधी था। जासूस उसे पकड़ लेता है ।

 

अभिनय और निर्देशन

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कहानी और स्क्रीनप्ले ही यूएसपी है। लेकिन साइमन वेस्ट का बहुत कसा हुआ निर्देशन लाजवाब है। एक भी दृश्य और अभिनेता को उन्होंने जाया नहीं किया है। जिस तरह का अभिनय आर्मी के अफसरों और जूनियर में होता है वैसा ही करवाया है। बारीकी और वास्तविकता इतनी की लगता ही नहीं कि आर्मी सेट पर शूटिंग की है। मानो वास्तविक आर्मी की जहां डिप्लॉयमेंट होती है वहीं पर शूट किया है।आर्ट डिजाइन लाजवाब है।

क्लाइमैक्स बेहद चौंकाने वाला है जनरल बेटी के शव को लेकर अपने होम टाऊन जा रहा। सैनिक टुकड़ी बाहर फायर करके अपनी साथी को आखिरी विदाई दे रही। तभी अंदर जॉन ट्रैवोल्टा, जासूस और जनरल, जेम्स क्रोमवेल मिलते हैं।जनरल उसे सेल्यूट करता है कि वास्तविक हत्यारा पकड़ा गया।ऐसी बॉडी लेंग्वेज और ट्रेंड अभिनय मानो सचमुच के जनरल और कैप्टन आमने सामने हैं। दोनों दिग्गज अभिनेताओं का अभिनय लाजवाब है। लगता ही नहीं कि अभिनय कर रहे बल्कि वही किरदार को जी रहे होते हैं।एक एक बारीकी, दफ्तर में जनरल का ओहदा उसका रोबदाब , जासूस का असहमत होते हुए भी उसकी पोस्ट के सामने हां कहना। बेहद कसा हुआ निर्देशन है और अभिनेताओं ने भी उच्च कोटि का अभिनय दिखाया है। लेकिन जासूस वह कहता है जिसके लिए फिल्म बार बार देखी जानी चाहिए, " जनरल आप दोषी है अपनी बेटी की हत्या के। आपने सात साल तक यह बात छुपाई, अभी भी छुपा रहे हैं।जबकि आपको अपराध और उसकी पीड़ित पता थी। यह आर्मी रूल का उल्लंघन है और मैं इसे अपनी रिपोर्ट में लिखूंगा।

यह निष्पक्षता अमरीकी और यूरोपियन देशों में वास्तव में है या फिल्मी है, मैं नहीं जानता पर यह होनी चाहिए। कोई करप्शन नहीं।

"आपकी बेटी को इससे शांति मिलेगी। आप पर कार्यवाही होनी चाहिए।"। जनरल सिर झुका लेता है।एक पिता के तौर पर वह अपने को गिल्ट महसूस करता है।

फिल्म में जनरल की बेटी के रूप में लेस्ली स्टीवेंसन का अभिनय और बातचीत का लहजा काफी प्रभावित करता है।किस किस तरह से लोग हमारे आसपास है यह फिल्म दिखाती है।

एक उम्दा फिल्म जो देखी जानी चाहिए।

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(डॉ.संदीप अवस्थी, फिल्म लेखक और मीडिया विशेषज्ञ, 

देश विदेश से पुरस्कृत

7737407061, 8279272900)