Highway in Hindi Classic Stories by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | हाइवे

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हाइवे

डॉ सन्दीप अवस्थी

अंधेरा इतना घना था कि कुछ मीटर दूर का भी नजर नहीं आ रहा था। ऊपर से नवंबर की सर्द रात थी। हाईवे का यह लंबा हिस्सा दो लेन ही था। आधी रात हो चुकी थी। अचानक से शाम को आभा की मम्मी के गंभीर हालात में अस्पताल में भर्ती होने की सूचना मिलते ही वह चलने को बेचैन हो उठी थी। निकलते - निकलते भी दस बज गए थे। 

 गोरखपुर वाराणसी से काफी दूर था फिर भी सुबह तक वह पहुंच जाते। घर को लॉक कर वह दोनों और दसवीं में पढ़ रही बेटी को लेकर निकल पड़े थे कार से। कुछ घण्टे बाद आधे सफर पर संजय ने एक होटल पर कार रोककर सभी ने चाय आदि पी थी। अब वह सब नींद से दूर फ्रेश थे। तभी कार हिचकोले खाने लगी।

"क्या हुआ? पेट्रोल तो है? तुम हमेशा चेक करते हो।” सब ठीकठाक है। पता नहीं क्या हुआ? संजय के सँभालते संभालते भी कार बंद होने लगी। उसने एक किनारे कार की। इतने घने जंगल मे ही खराब होना था इसे। यह इस हाईवे का वह हिस्सा था, जहां काफी दूर तक यही कच्ची पक्की सब रोड थी बस। करीब दो किमी बाद ही वापस सिक्स लेन से यह जुड़ जाती। पर यह ... इसे भी अभी खराब होना था, संजय स्टेयरिंग पर हाथ पटकता बोला। "पापा हम कहाँ है? मुझे बहुत डर लग रहा है, गार्गी, उनकी बेटी बोली। "डरते नहीं बेटा, जल्द चलेंगे यहाँ से "आभा ने बेटी को चिपकाते हुए कहा। संजय दाएं बाएं देखता कार से उतरा। कोई मिस्त्री भी कहाँ होगा रात के दो बजे । क्या रात यहीं बीतेगी? यह सोचकर उसने एक बारगी कार में चिपककर बैठे आभा और गार्गी को देखा। यहाँ इस सब रोड पर वाहन भी कम ही आते थे। बुरे फंसे उसने सोचा। मोबाइल का नेटवर्क भी काम नहीं कर रहा था। "अंदर आओ और बैठकर सुबह होने का इंतज़ार करो, उसकी समझदार, खूबसूरत पत्नी ने कहा। कार में बैठे बैठे झपकी आने लगी, न जाने कितना समय बीता। कार के शीशों पर ठक ठक की आवाज से उनकी तन्द्रा टूटी। देखा आगे एक बोलेरो खड़ी थी। और एक आदमी कांच के बाहर कुछ कह रहा था। आभा बोली नहीं नहीं कांच मत खोलिए, यह लोग ठीक नहीं लगते। उसके हाथ कांच नीचे करते रुक गए। उसने बाहर देखा, अंधेरे में एक आदमी कांच के पास था और दो सामने। बोलेरो कार के आगे तिरछी थी। कांच वाला कुछ कह रहा था। आभा धीरे से बोली, मुझे यह सही आदमी नहीं लगते। रुको, बाहर मत जाओ। पापा, मुझे भी यह सही नहीं लगते।"

नींद का असर सर्दी, कार खराब, और यह मददगार। वह कार का कांच नीचे करने ही वाला था कि टॉर्च की तेज रोशनी पीछे की सीट पर पड़ी। देर तक टार्च दोनों को देखती रही। कभी कभी रोशनी भी कितनी चुभती है। वह उनको देखता कुछ चिल्लाया। और हाथ से इशारा किया। दोनों लोग कार पर झपटे और दरवाजों के हैंडल खोलने लगे। सेंट्रल लॉक था नहीं खुलना था नहीं खुले।

भेड़ियों की तरह वह तीनों मुहँ पर कपड़ा बांधे कार के चारो ओर घूमने लगे। पीछे आभा और गार्गी और सिमट गई। उसने कार के इग्नीशन को फिर कोशिश की। घर्र घर्र की आवाज आई। भगाने की कोशिश कर रहा है यह तो, कोई बाहर से चिल्लाया। फिर हंसने की आवाज आई, करले कितनी भी कोशिश पर बचेगा नहीं। वह तीनों भेड़ियों ने कुछ सोचा। उधर आभा को लग गया था कि यह लुटेरे कुछ भी कर सकते हैं। वह कोस रही थी अपने आपको की क्यो उसने तुरंत चल पड़ने की जिद की? मां को भाई ने भर्ती करवा दिया था। तो वह कल दिन में भी चल सकती थी। उधर संजय कुछ करने की सोच रहा था। तभी एक जोरदार लात दरवाजे पर पड़ी। लेकिन मजबूत गाड़ी थी। कुछ नहीं हुआ। फिर उसने दोनों हाथों का दुथड कार के कांच पर मारा। पर मजबूत कांच हिले भी नहीं। क्या वह सेफ थे? आभा ने एक पल सोचा, फिर पर्स से मोबाइल निकाला। लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस भाग में नेटवर्क नहीं था।

"कुछ नहीं होगा उस्ताद इससे । रुको कुछ करता हूँ। आसपास पत्थर भी नहीं है।" जल्दी कर अबेर हो रही है। वह बोलेरो की तरफ लपका। आभा और गार्गी की चीख निकल गई। उसने बोलेरो से लोहे की एक मोटी छड़ निकाली थी। वह उसे लेकर कार के पीछे जाने लगा कि दूर किसी वाहन की हेडलाइट चमकी। वह ठिठक गए । छड़ वाला सड़क किनारे खेतो में छिप गया। क्या हमें मदद के लिए आवाज लगानी चाहिए? पर कांच नीचे नहीं कर सकते। फिर? उसने कार के पार्किंग सिग्नल ऑन किए। तेज हॉर्न बजाना प्रारम्भ किया। तभी एक तेज आवाज हुई। डंडे की चोट से लाइट टूटकर एक ओर लटक गई। उसकी आंखें सामने खड़े विंडस्कीन के पार खड़े, कपड़ा बांधे व्यक्ति, जो उनका सरगना लगता था, की लाल लाल भेड़िए जैसी आंखों से टकराई। बायीं आंख के ऊपर एक मस्सा था। उसे कुछ स्ट्राइक हुआ। यह मस्सा ....अरे हां, अभी जब वहः मोटल पर रुके थे तो यह तीन लोग उनके आगे आकर बैठे थे और ..... और वह सब बातें समझ गया। उसकी आँखों के सामने हाईवे के लुटेरे थे। न जाने कितनी घटनाएं उसने पढ़ी थी अखबारों में, वह आंखों के सामने घूम गई। मारकर लाशें नहर में फेंक देते हैं। महिलाओ के साथ........ वह सोच नहीं सका। आपादमस्तक कांप उठा। गर आभा ने जिद की थी उसी वक़्त चलने की तो वह मना कर देता। उसे समझदारी दिखानी थी। ऊपर से बेटी को इतना लाड़ करता है वो की उसे भी घुमाने के बहाने साथ ले आया। जबकि वह बेचारी मना कर रही थी की पापा मैं यहीं रह लूँगी। सर्दी में भी उसके माथे और कनपटियों से पसीना बह उठा। तभी नजदीक आती कार तेज रफ्तार से गुजरी। कार वाले ने दो पल भी नहीं देखा की कोई मुसीबत में था। वह तो हवा हो गया।

टॉर्च इस बार चमकी इतने नजदीक से मानो आभा और गार्गी को निगल जाना चाहती हो। घटाटोप अंधेरा हाईवे पर खराब की गई कार और यह तीन भेड़िए। इतने नजदीक पीछे वाले कांच पर वह था कि उसकी मुहँ के तम्बाखू भरे पीले दांत तक दिख रहे थे। वह समूचा ही आभा और गार्गी को निगल रहा था मानो। "हरामजादे, कुत्ते दूर हट, संजय चिल्लाया। हाथों को लहराता। तभी सामने वाले ने स्क्रीन पर हाथ चलाया। एक छेद हो गया। कुल्हाड़ी की तीखी फलक उसे अपने गले में फंसती लगी । "यह सही है उस्ताद। पर साइड के कांच पर चलाओ। इससे तो देर लगेगी और दरवाजा नहीं खुलेगा। और कांच चुभेगा।

विंड स्क्रीन के छेद होते ही गार्गी कसकर मां से लिपट गई। मम्मा, मम्मा, क्या होगा? यह मार डालेंगे हमे। नहीं मेरी बेटी आपको कुछ नहीं होगा। आप बिलकुल मत डरो। कुछ करते हैं हम बेटे।" कहकर व्याकुल हो उसने कार के पीछे वाले कांच से बाहर देखा। उफ्फ कांप गई वह। वहाँ कांच पर चेहरा लगाए वह मुहँ ढके आदमी उसे ही देख रहा था। बेटी को और चिपका लिया उसने। तभी दूर किसी वाहन की लाइट चमकी। कुल्हाड़ी की जगह संबल से कांच तोड़ने को आमादा वह रुके, देखा, " यार यह इबकी बार कोई आए मैं कांच तोड़ दूँगा। " अरे रुक तो सही कोई गाड़ी है, निकलने दे। वेसे भी यह शहरी लोग इतने बेवकूफ होते हैं कि कोई भी मर रहा हो, इनकी बला से।" दूसरा वाला हंसकर बोला, "बाऊ के पास माल मोटा होना चाहिए। कार काफी महंगी लग रही मन्नै ।" मुझे तो पीछे वाला माल चाहिए, यह लाल आंखों वाला, जो नशे में भी था, बोला।

तभी वह गाड़ी पास आती धीमी हुई और साइड में रुकी। क्या हो रहा है ? अभी तक क्यो रुके हो? संजय ने देखा यह तो पुलिस जीप थी। एक वर्दीधारी मोटा कुछ कह रहा था उनसे। उसकी जान में जान आई। वह कार खोलकर बाहर निकलने को हुआ। "रुको, देखो पापा," पीछे से गार्गी ने इशारा किया। वह पीछे देखने मुड़ा और ....... हैरान रह गया। दूसरा पुलिस वाला जीप बंद करके न जाने कब कार की साइड से टॉर्च डालकर अंदर देख रहा था। और उन दोनों से हंस हंसकर बात कर रहा था। "अब तक क्यो नहीं किया काम सूबेदार ?4 बजन लगे हैं। काम करना बंद करवा दूँगा इस रोड पर ।" अरे साहब, कर ही रहे थे कि आप आ गए। अभी रुको, करते हैं आपके सामने ही। " न यह सब मेरे जाने के बाद करियो। हिस्सा कल चौकी पहुंच जाए।" ताकीद कर वहः दोनों पुलिस जीप में निकल लिए। अंदर आभा सन्न रह गई। मुझे काटो तो खून नहीं। गार्गी नहीं टोकती तो मैं कार से बाहर आ रहा था उन पुलिस वालों को देख मदद के लिए। इस धरती पर जिसे जो काम मिला है वह उसे पूरी ईमानदारी से क्यो नहीं करता? हमे अपने बचने की अब कोई राह नजर नहीं आई । अब वह सब और खूंखार हो गए। एक ने कहा इसे समझाते है, उस्ताद, शायद समझ जाए अब तो। "न इब समझावे को टाइम गयो ताऊ। इब तो यह....." । कुल्हाड़ी का तीखा फल क्षण भर चमका और ड्राइवर सीट के कांच में जा धंसा। दो चोटे और हम उसकी गिरफ्त में। मैंने तेज हॉर्न बजाना प्रारंभ किया। लगातार । ब्लिंकर्स टूट चुके थे। तभी फिर किसी गाड़ी की लाइट चमकी। रुक ... इसे निकलने दे। "जल्दी करो उस्ताद अब सब्र नहीं हो रहा। पीछे वाली को पहले मैं ले जाऊंगा खेतन में।" छोकरी ते ले लेना। कहकर उसकी नशे से लाल आंखों में डोरे चमके। तभी वह कार नजदीक आती धीमी हुई। उन्होंने शायद हॉर्न की तीव्र आवाज सुनकर मुसीबत का अंदाजा लगा लिया था। हम तीनों की आंखों में आशा की किरण चमकी। अब शायद बच जाएंगे। वह धीमी होते होते फिर तेज होकर निकल गई पास से।

शायद कुल्हाड़ी और चेहरों पर कपड़ा बांधे इन लुटेरों को देख लिया था उस कार वाले ने। लुटेरों ने भी देखा।" उस्ताद जो करना है जल्दी करलो। वरना दिक्कत हो सकती है। " अरे क्या दिक्कत, जब अभी थानेदार चक्कर लगाकर गया है। गैंग लीडर बोला और फिर कुल्हाड़ी को तैयार करने लगा। आभा और गार्गी आने वाली विपत्ति से घबराकर ऐसे हो गए थे कि अब बेहोश हुए। संजय ने पीछे मुड़कर देखा और सामने कांच पर कुल्हाड़ी चलाने को तैयार आतंक को देखा। यकीनन कुछ मिनटों में कांच टूटने वाला था और फिर.... जो होता है बहुत भयानक होता। "तुम सावधान रहना और मौका देखकर भाग जाना। मैं बाहर जा रहा हूँ। कब तक डरे, सहमे रहेंगे। सामना करना ही अच्छा होगा। इन्हें बातों में लगाता हूँ। अपना पर्स लाओ।" तीखा छुरे सा समय गले पर धार सा चल रहा था। पापा... कहते हुए गार्गी रोने लगी, मत जाओ पापा।" धड़ाम की आवाज हुई। देखा कुल्हाड़ी का फलक निकल गया था। और वह उसे नीचे तलाश रहा था। दो पल मिल गए थे। अच्छा जैसा कहा है वैसा करना यह बायीं ओर ध्यान रखेंगे। तुम्हें दाईं ओर सड़क के पार भागना है।" " और तुम? जब हम भाग जाएंगे तो तुम्हारा क्या हाल करेंगे यह जानते हो?" कहते कहते आभा की आंखे भर आईं। कुछ पल उसे देखता रहा वह। फिर दृढ़ता से बोला ईश्वर ने चाहा तो जरूर फिर मुलाकात होगी। और कोई रास्ता नहीं। यह कांच टूटेगा, कार खुलेगी फिर हम सब .....। अभी मैं उतरकर कार का सेंट्रल लॉक कर दूंगा । तुम पीछे से जब मौका लगे दरवाजे खोलकर भाग जाना। तभी गार्गी, जिसके आंसू सूखे नहीं थे, वह बिटिया बोली, " पापा, दोनों दरवाजे खोलकर भागेंगे तो यह तय नहीं कर पाएंगे कि किसे पकड़े? और हम आगे निकल जाएंगे।" मैंने सोचा और आभा की ओर देखा, " नहीं बेटी को साथ लिए ही जाऊंगी। चाहे जो हो जाए, बेटी पर आंच नहीं आने दूंगी। आभा के चेहरे पर अजीब से भाव थे। उसने पर्स में से फल काटने वाला चाकू निकाल कर अपने सूट की जेब में छुपा लिया था। फलक मिल गया था और उसे वह सड़क पर ठोककर ठीक कर रहा था। एक सामने था और एक ठीक पीछे। "ठीक है फिर मैं निकलता हूँ।" और उसने कार लॉक को चुपके से अनलॉक किया और तेजी से बाहर आया। आते ही सामने वाला झपटा पर उसने कार गेट का सेंट्रल लॉक दबाकर उसे फुर्ती से बंद कर दिया। और हाथ उठाकर सामने बढ़ा। लुटेरे हतप्रभ रह गए। " आप लोग यह सब ले लो पर हमें शांति से जाने दो। आपकी बहुत मेहरबानी होगी।" उसने दोनों हाथों से अपना पर्स और आभा का पर्स सामने किया। तब तक कुल्हाड़ी तैयार करता और पीछे वाले ने उसे घेर लिया था। "उस्ताद, यह तो...... फिर उसने बैग झपट लिया। खोलकर देखा। आभा के पर्स में 500 के नए नोटो की गड्डी देख उसकी आंखें चमकी। फिर उसने मेरी ओर देखा, "श्यामू कवर रखियो।", उस्ताद कहीं नहीं जाने दूँगो इसे। तुम फिक्र मत करो। उसके पर्स को खोला, वह भी नोटो से ठसाठस भरा था। जल्दी जल्दी में वह बीस हजार ही ला पाया था। कपड़े बंधे चेहरे में उनकी आंखें चमकी। फिर चैन, अंगूठी, मोबाइल का नंबर आया। यह मोबाइल तो मैं लूंगा। उस्ताद पिछली बार का इसने लिया था। " अरे पकड़ा जाएगा, उस्ताद समझदार था। 'नहीं उस्ताद वह मुन्ना मोबाइल वाला है न वह इसका लॉक तोड़ लेता है। और फिर कोई चिंता की बात नहीं।" अच्छा ऐसा है तो ले लियो तू। अब ऐसा है बाबू.......अरे अरे... भाग रही है, पकड़ो उन्हें..... कहते कहते वह लपका। लेकिन मैंने उसे अपनी हाथों में पकड़ लिया। उन्हें जाने दो वह निर्दोष हैं। उन्होंने कुछ नहीं बिगाड़ा तुम्हरा। ", तभी पीछे से एक ने कुल्हाड़ी से संजय पर वार किया। ऐसा लगा मानो, शरीर मे आग लग गई हो। शिथिल होकर गिरते गिरते उसने देखा बायीं ओर की झाड़ियों में आभा और गार्गी घुस रही हैं। वह राहत की सांस लेने ही वाला था कि एक ने हाथ में पकड़ा डंडा फेंका। सनसनाता डंडा जाकर खेत में आधी घुस चुकी गार्गी के पैरों पर जाकर लगा। वह लड़खड़ाई संभलने को हुई ...और फिर गिर पड़ी। श्यामू भाग, पकड़ छोरी को। आभा अंधेरे में दूर निकल गई थी। पर गार्गी…….

कुछ मिनटों बाद ही चाकू मेरे गले पर था, गार्गी को कसके एक पकड़ा हुआ था। और तीसरा कार से दोनों सूटकेस को अपनी गाड़ी की डिक्की में रख चुका था। फिर वह मेरे पास आया। कुछ पल मुझहे देखा, और फिर उसके लोहे जैसे सख्त हाथ मेरे मुहँ और शरीर पर पड़ने लगे। गालियाँ बकता वह मुझे पीटता रहा। "साले, हमसे होशियारी दिखाएगा। हम्म। और अब देख तुम्हारी लाशों के भी पता नहीं चलेगा।" मैं खामोशी से पिटता सोच रहा था कोई रास्ता । " बेटी को जाने दे। बच्ची ने तेरा क्या बिगाड़ा है? तुम्हे जो चाहिए था मिल गया।" "उस्ताद, कुछ करो। बहुत दिन हो गए। मैं इसे लेकर जा रहा हूँ। " श्यामु की भूखी निगाहे गार्गी को कसके जकड़ी थी। पापा.... गार्गी चीखी। " हरामजादे, बच्ची को छोड़ दे।" उसने दो पल संजय को देखा और उसके पेट पर जोर से लात जमाई। चुप, अब बोला तो काटके फेक दूँगा।

"क्या श्यामू, जाने दे इसे? काम तो हो गया, माल भी आ गया। " अरे उस्ताद, इतने दिनों बाद तो मिली कोई....... और वह तो भाग गई जो जमी थी।"

0 --- कहकर ° हां, ठीक है तेरी बात पर देख वह अँधेरे में यहीं कहीं होगी। अभी बुलाते हैं उसको वह गार्गी के पास आया। गार्गी सिकुड़कर अपना विरोध दर्ज कराती पर उसके दोनों हाथों को वह जकड़े हुए था। तभी उसने गले पर चाकू रख दिया। पंद्रह साल की गार्गी, जिंसने अभी दुनिया ढंग से देखी भी नहीं थी। और अपने पापा के सामने वह उस तरह मौत के इतनी नजदीक । पापा, मम्मी बचाओ। " उसकी मासूम आवाज रात के अंधेरे में दूर तक गूंजी। "अभी देखो क्या होता है.... कहकर उसने लड़की के बालो को सहलाया और अचानक कसके खींचा। पीड़ा से गार्गी की आंखों में आंसू आ गए। वह उसे खींचता हुआ आगे खेत के सामने ले आया, श्यामू टॉर्च दिखा।" वह क्या करना चाहता था? शायद..... और मैं तड़पा, बेटी चीखने लगी। मैंने कोशिश की छोड़ दो मेरी बेटी को तुम जो कहोगे मैं करूँगा। रहम करो उस पर।" उसने कपड़ा बंधे चेहरे से मुझे देखा, मुस्कराया, कुछ बोला नहीं।

तब तक पुरवड्या चलने लगी थी, वह मुड़ा और जोर से बोला," देख तेरी छोरी की गर्दन चाकू पर है मेरे । तू मुझे सुन रही है, देख रही है। जहां भी छुपी है बाहर आजा। वरना इसका क्या अंजाम होगा, तेरे से छुपा नहीं है। "कहकर उसने गार्गी के बालों को खींचा, गार्गी चिल्लाई," मम्मी मत आना बाहर। यह लोग बहुत खराब हैं।" सारा खेल स्पष्ठ था। बहुत ही खतरनाक, मक्कार लोग थे। मुझे डर लगने लगा कि कहीं आभा आ न जाए वापस। और उसके आगे क्या होगा यह छुपा हुआ नहीं था। कुछ देर तक वह कान लगाए आहट लेता रहा, फिर बोला," देख तेरी छोरी को छोड़ दूंगा, अगर तू आ जाती है। बोल, या छोरी को ही......"। मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। इरादे साफ थे। बड़ी देर से कोई गाड़ी भी नहीं निकली थी। "तू मत आ फिर । आज चलो इसी की बलि चढ़ेगी।" वह मुड़ा ही था कि सामने खेत मे आहट हुई। कुछ झाड़ झंकाड चरमराया। "मैं आती हूँ बाहर, पर मेरी बेटी को छोड़ दो। उसे जाने दो।" दूर से आती आभा की आवाज में माँ की ममता ही नहीं औरत की मजबूरी और बेबसी थी। वह रुका, ठिठका, अपने दोनों साथियों को विजयी भाव से देखा, मेरी ओर देखा फिर बोला "तू बाहर आजा इसे छोड़ता हूँ।" मैंने देख लिया अब कुछ नहीं किया तो भी जान जानी ही है। जान की बाजी लगानी ही होगी। एक मेरे पर कुल्हाड़ी ताने था। दो वहाँ आगे थे। लेकिन गार्गी उनके कब्जे में थी। कुछ करता तो वह उसे मार देते। यह इतने धूर्त होंगे सोचा न था। "बाहर आने के बाद तुमने नहीं छोड़ा तो ? और वेसे भी मेरे पति तुम्हारे कब्जे में हैं। तो मेरी बेटी को जाने दो, मैं बाहर आती हूँ। वरना कुछ ही देर में सवेरा होने वाला है।" वह ठिठक, रुका, सोचा और बोला, चल तेरी ही बात सही।" अरे उस्ताद यह क्या कर रहे हो? श्यामू ने भागकर खेत में जाती गार्गी को देख हड़बड़ी में कहा। "चिंता मत कर रे, वह आएगी, जरूर आएगी, नहीं आई तो ".....उसका स्वर क्रूर हुआ, "विधवा बनकर रहेगी।" यही अवसर देख संजय ने अपने को छुड़ाने के लिए जोर लगाया । "बाबू, यह पहलवान की पकड़ है। ऐसे ना छूटेगी। और हिलडुल मत करियो, वरना मेरा दिमाग चल गया न तो यही मरा मिलेगा।"

"तुम्हारा क्या बिगाड़ा है हमने? सारा माल ले लिया तुमने। अब हमें छोड़ दो। क्या तुम्हारे घर में बहु बेटियां नहीं हैं? वेसे ही हम हैं। रहम करो। चाहे तो कार भी ले जाओ। उनका लीडर कुछ देर अंधेरे में देखता रहा, "जल्दी आती है बाहर की मैं आऊं अंदर?" फिर घुमा और बोला, "देखो बाउजी हम हैं हालात के मारे। हमे भरोसा नहीं कब तक जिन्दे रहेंगे? घरों में खाने को नहीं। भूखे पेट रह रहकर दिमाग कुंद हो गया। मजूरी, हमाली सब की। पर ...." कहकर रुका, ठिठका, फिर गहरी सांस ली, " सब जगह पैसे की माया। तुम लोगो की दुनिया इतनी क्रूर है कि हमारे जैसे लोगो को इंसान ही नहीं मानती। मदद मांगते हैं तो पहले शक करते हो हम पर की यह झुट बोल रहा है। मेरी घरवाली बीमार पड़ी और सरकारी अस्पताल में तड़प तड़प कर मर गई। डॉक्टर पांच हजार रुपए के बिना आपरेशन नहीं कर रहा था। मैंने पांव पकड़े हाथ जोड़े उसके कहा कि पाई पाई दे जाऊंगा करदे ऑपेरशन बच जाएगी। तुझे दुआएं मिलेगी। पर साहब नहीं माना वो। घर से आया ही नहीं। मर गई और साथ में उसके पेट में नन्ही सी जान भी चली गई। " कहकर वह रुका, इशारा किया' यह दोनों तब वहीं बाहर खड़े थे जब मैं एम्बुलेंस के पैसे नहीं होने पर घरवाली को साईकल पर लेकर धीरे धीरे सिर झुकाए जा रहा था। और उसकी लाश कभी टिककर ही नहीं बैठ रही थी। कभी यहां तो कभी वहाँ से झूल रही थी। बहुत चुलबुली थी न, हमेशा हंसती रहती थी। घर में कुछ नहीं होता तो भी हँसके कहती, आज मुन्नी के बापू हम हवा खाकर सोएंगे। "

कहकर वह हंसा, मानो वहः सामने ही हो। फिर आंखे पोछता बोला, 'इन दोनों ने मुझे तब संभाला हाथ बंटाया। क्रियाकर्म तक साथ रहे। और तबसे साथ हैं।" गार्गी जरूर आभा के पास पहुंच गई थी। मैंने देखा, अंधेरा घना था, जरूर तड़के का वक़्त हो रहा था। "पहला नंबर उसी डॉक्टर का लाग्या। " श्यामू बोला, "उसे उस पल्ले वाले हाईवे पर घेरा और तड़पा तड़पाकर मारा। जो सामान था लूट लिया, ताकि मामला लूट का लगे। " तब जब कुछ माल मिला तो घरों में रोशनी आई, पेट मे अन्न गया। पर यह पंडित नहीं माना। बोले कि गलत है। बदला हो गया अब बंद करो । " हम बैठें रहे कुछ समय । पर करते क्या? वही नरक और रास्ते बंद। जो लम्बरदार कहे उसी को सरकारी योजना में काम मिले। हमे नहीं ।

पंडित कुछ किताब विताब पढ़कर आया और बोला कि यह शोषण चलता रहेगा। हमे इसे कम करना है तो ताकत का इस्तेमाल करना होगा। इन सभी अमीरों को मारना होगा।" .... पंडित बोला." तब से यह हम काम कर रहे हैं भैया। और एकाध बार पकड़े गए तो फिर तीन की जगह चार हिस्से होने लगे। अभी गया न वह चौथा हिस्सेदार। " कहकर उसने गुटखा सड़क पर फेंका। अगर मेरी कार खराब न होती तो" संजय तड़पकर बोला। " क्या"? फिर श्यामु ठहाका मारकर हंसा, तुम जब चाय पी रहे थे तो साइड में खड़ी तुम्हारी कार के एग्जास्ट पाइप को मैंने ही लकड़ी के टुकड़े से ब्लॉक किया था। यह देखो.... वह पीछे गया और झुककर पाइप में से लकड़ी के टुकड़े को खींचकर दिखाता बोला, अब तुम्हारी गाड़ी एकदम सही है।" मैं क्षोभ और बेबसी से दांत भींचता रह गया। " वह तो कार ढाबे के साइड में नहीं थी, वरना कार के नीचे घुसकर पेट्रोल नली काटने में यह भी माहिर है, फिर मुश्किल से 1 किमी बाद पेट्रोल खत्म तो कार बंद।" तो तुम अपनी लापरवाही की कीमत चुका रहे हो। उसने कुल निष्कर्ष बताया। तभी

"उस्ताद, वह देखो.... ।" खेत के पीछे खुले हिस्से से कोई आ रहा था। टॉर्च की रोशनी उस तरफ घूमी। आभा , उसकी पत्नी आ रही थी। चेहरे पर अजीब से भाव लिए वह एक मां थी, पत्नी थी। सीता थी, द्रोपदी थी जो फिर दांव पर थी। सैंकड़ो साल से हर ताकतवर, आतताई की जीत स्त्री को कुचले बिना पूरा नहीं होता। वह जो नारी है, धरा है, सृष्टि का आधार है। वह शायद इन आतताइयों को जन्म देने के अपराध का ऋण हर सदी में हर दिन चुकाती है। चुका रही है। उस्ताद के इशारे पर आभा को लेकर श्यामू उसी खेत के अंदर जा रहा है।

कार हाइवे पर आ गई थी। दूर सूर्य की लालिमा दिखाई दे रही थी। नए दिन के आगमन में आसमान धीरे धीरे सज रहा था। उसने कार को फ़ास्ट लेन में डाला और अस्सी के ऊपर कार उड़ती हुई जाने लगी।

उधर खेत के पिछले हिस्से में तीन लाशें पड़ी, मानो बता रही थीं, कभी भी कुछ भी किसी के भी साथ हो सकता है।

"उनको धन्यवाद तो दे देती!",,समय ही कहाँ था? बस जल्द निकलने को ही वह कह रहीं थीं। आभा पीछे की सीट पर बेटी को चिपकाए सुकून से बैठी थीं।

सारा घटनाक्रम मानो उसके साथ हुआ ही नहीं, वह एक बुरा सपना था। जिसमें नारी की पीड़ा दैवीय शक्ति से हरली गई थी।

श्यामू जब और अंदर गया खेत के पिछले हिस्से में उसे लेकर तो मानो उस पर बिजली गिरी। हंसिये के एक ही वार से उस ग्रामीण महिला ने उसके दिल को छिन्न भिन्न कर दिया। जमीन पर गिरने से पहले वह मर चुका था। कुछ देर के बाद जब सब्र नहीं हुआ तो उस्ताद अंदर आया। आने से पहले वह हाथ मुहँ बांधकर संजय और गार्गी को कार में पटक आया। इस बार घायल सिंहनी की तरह वार आभा ने किया। आवाज निकलने से पहले गला आधा कट गया था। तीसरा बाहर था भोर बस होने वाली थी। उसे स्त्री स्वर की पुकार सुनाई दी। अपनी बारी की खुशी में वह अंदर बढ़ चला।

दिशा मैदान को आई वह महिला आभा को हाथ पकड़कर सड़क पर लाई । जा जल्दी से चली जा यहां से। भूलजा यह सड़क यह मोड़। कभी मत आना यहाँ। कहके वह मुड़ी और खेत के पास के रास्ते पर चलती हुई अंधकार में विलीन हो गई ।