The 13th Door - 1 in Hindi Horror Stories by Vijeta Maru books and stories PDF | 13वां दरवाज़ा - 1

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13वां दरवाज़ा - 1

एपिसोड 1: पहला कदम

गांव का नाम था भैरवपुर। चारों ओर ऊँचे पेड़ों से घिरा, एक ऐसा गांव जहां शाम ढलते ही लोग अपने दरवाज़े बंद कर लेते थे। गांव के बाहर एक पुरानी, टूटी-फूटी हवेली थी — राय हवेली। गांववालों का मानना था कि वहां कुछ "अनदेखा" रहता है। कोई आत्मा, कोई साया... या शायद कुछ और।

आरव, एक नवोदित पत्रकार, शहर से भैरवपुर इसी कहानी की तह तक पहुँचने आया था। दादी बचपन में हवेली की कहानियाँ सुनाया करती थीं — "उस हवेली में बारह दरवाज़े हैं, पर तेरहवां दरवाज़ा कभी मत खोलना। वो जो एक बार खुला, फिर कभी बंद नहीं हुआ..."

“सिर्फ एक कहानी है,” आरव ने खुद से कहा। “मैं पत्रकार हूँ, मुझे सच्चाई चाहिए। डर नहीं।”

गांव में पहुँचते ही आरव को लोग अजीब नज़रों से देखने लगे। वह शिवा, एक स्थानीय लड़के से मिला, जो कभी हवेली के पास नहीं गया था, पर उसे रास्ता दिखाने को तैयार हो गया।

“भैया, लोग कहते हैं जो तेरहवां दरवाज़ा खोलता है, वो पागल हो जाता है... या गायब,” शिवा बोला।

“मैं सिर्फ़ देखना चाहता हूँ। कोई दरवाज़ा मेरी हकीकत नहीं बदल सकता।”


हवेली के बाहर
अगली सुबह, धुंध से घिरी हवेली के सामने दोनों खड़े थे। हवेली के चारों ओर बेशुमार बेलें लिपटी थीं, जैसे वो हवेली को जकड़े हुए हों। हवा में सड़ांध थी — जैसे कुछ पुराना, सड़ा हुआ दफन हो।

हवेली का दरवाज़ा बिना किसी आवाज़ के खुद खुल गया।

“दरवाज़ा तो खुला है…” शिवा पीछे हट गया।

अंदर घुप्प अंधेरा था। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें थीं — अधजली, धूल से ढकी। हर कमरे के आगे एक भारी लकड़ी का दरवाज़ा था, जिस पर नंबर खुदे हुए थे – 1 से लेकर 12 तक।

"तेरहवाँ दरवाज़ा कहाँ है?" आरव बुदबुदाया।


दादी की डायरी
एक पुराने कमरे में आरव को एक लकड़ी की अलमारी मिली। अंदर एक धूल भरी डायरी रखी थी – उसकी दादी की।
डायरी में लिखा था:

"13वां दरवाज़ा कोई जगह नहीं, एक रास्ता है। जो उसकी तरफ़ जाता है, वो लौटकर खुद नहीं आता – कोई और बनकर आता है..."

आरव की सांसें थम गईं। तभी कमरे की एक दीवार से हल्की खटखट की आवाज़ आई।


तेरहवाँ दरवाज़ा
आरव ने दीवार को छूआ। अचानक, दीवार की परत हटी और एक छिपा हुआ दरवाज़ा सामने आया – लोहे का बना हुआ, काले निशानों से भरा। उस पर लिखा था:
“तेरहवाँ दरवाज़ा – चेतावनी: इसे खोलने वाला अपनी पहचान खो देगा।”

दरवाज़े पर भारी जंजीरें थीं। लेकिन जैसे ही आरव ने हाथ बढ़ाया, एक ठंडी लहर उसके शरीर से गुजर गई। दरवाज़े की जंजीरें खुद-ब-खुद खुलने लगीं।

शिवा डर से कांप रहा था, “भैया, वापस चलो... ये जगह ठीक नहीं है!”

पर आरव अब रुकने वाला नहीं था।


पहली दस्तक
आरव ने दरवाज़े को हाथ लगाया। उसी पल, दरवाज़े पर एक काली हथेली उभर आई — जैसे किसी ने अंदर से छूआ हो। हवेली के अंदर की हवा सर्द हो गई, दीवारों से एक धीमी सी आवाज़ गूंजने लगी:
"तू आया है... बहुत देर कर दी..."

आरव पीछे हट गया, पर दरवाज़ा अब अपने आप खुल रहा था।

अंदर एक संकरी सीढ़ी नीचे जा रही थी। सीढ़ियों के नीचे से एक अजीब सी रोशनी चमक रही थी — न पीली, न लाल... बल्कि काली रोशनी, जैसी आरव ने पहले कभी नहीं देखी थी।

“शिवा! रुको यहीं। मैं नीचे देख के आता हूँ।”


अंत नहीं, शुरुआत
आरव ने पहला कदम नीचे की सीढ़ियों पर रखा। हर कदम के साथ उसकी साँसें भारी होती जा रही थीं। दीवारों से कानों में कुछ फुसफुसाहटें गूंज रही थीं:

“तुम सब एक जैसे हो...”
“अब वापस नहीं जा सकते...”

जैसे ही उसने आखिरी सीढ़ी पर कदम रखा, उसके सामने एक कमरा था — चारों तरफ़ शीशे लगे हुए, जिनमें सिर्फ़ उसका चेहरा नहीं, बल्कि उसके पीछे खड़े साए दिखाई दे रहे थे।

और तभी दरवाज़ा ज़ोर की आवाज़ से बंद हो गया।


🔚 एपिसोड 1 समाप्त
(अगले एपिसोड में: "आईना जो झूठ नहीं बोलता")