शशांक और अनिका के बीच बातचीत गहराने लगी। एक दिन शशांक ने अनिका से उसकी तस्वीर मांगी। अनिका ने भेज दी, और बदले में शशांक ने भी अपनी तस्वीर भेजी। वो देखकर बोला—"तुम मेरी किस्मत हो।"
कुछ ही दिनों में, उसने कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"
अनिका चौंकी। वो जानती थी कि यह रिश्ता झूठ पर टिका है। लेकिन उसके जीवन में कोई उसे इस तरह समझने वाला नहीं था। साहिल की शराब की लत, उपेक्षा, और अकेलापन उसे तोड़ चुके थे।
दोस्तों से सलाह ली तो किसी ने कहा, "अगर किसी से बात करने से तुम्हें खुशी मिलती है, तो उसे मत छोड़ो।"
और इस तरह शुरू हुआ एक भावनात्मक रिश्ता—झूठ की नींव पर बना सच्चा लगने वाला रिश्ता।
5: पहली मुलाक़ात – छल और सच्चाई का टकराव
साल 2013...
शशांक और अनिका की बातचीत को अब लगभग डेढ़ साल हो गए थे। वीडियो कॉल, चैटिंग, अच्छे-बुरे दिनों की साझेदारी—इन सबने इस रिश्ते को गहराई दी थी।
शशांक हर दिन मिलने की जिद करता, और अनिका बार-बार बहाने बना कर टालती रही।
लेकिन एक दिन, जब एक दोस्त को MBA में एडमिशन दिलवाने के लिए अनिका को शहर जाना पड़ा, उसने भी CET दे दिया और उसे भी दाखिला मिल गया। अब उसके जीवन में स्कूल, पढ़ाई, बेटा और घर की जिम्मेदारियाँ थीं। पर उस सबके बीच एक कोना था जो सिर्फ शशांक के लिए सुरक्षित था।
MBA के बाद उसका आत्मविश्वास और बढ़ा। उसने सोचा कि शशांक से एक बार मिलना चाहिए—कम से कम उस इंसान से, जो उसे सुनता था, समझता था, और जिसका प्यार शब्दों में नहीं, भावों में था।
और एक दिन, उनके मिलने की घड़ी आ गई।
दोनों एक पार्क में मिले। शशांक के हाथ कांप रहे थे, आँखें चमक रही थीं, और होठों पर मुस्कान थी।
अनिका ने जब उसे देखा, तो दिल भारी हो गया—उस लड़के को देखकर जिसे उसने झूठ में उलझा रखा था।
मुलाक़ात संकोच से शुरू हुई, पर फिर दोनों ने ढेरों बातें कीं। शशांक ने उससे कहा, "मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी पत्नी बनो।"
अनिका सन्न रह गई। उसी रात उसने अपने दोस्तों से बात की। और उन्हें बताया कि उसने शशांक से झूठ बोला है।
दोस्तों ने सुझाव दिया—"कह दो तुम्हारी शादी अगले महीने तय हुई है, फिर उसे भूल जाओ।"
अनिका ने दिल पर पत्थर रखकर वही किया।
शशांक रो पड़ा। दिसंबर 2014 में वह अपने देश लौटा और घरवालों के दबाव में शादी कर ली।
6: कबूलनामा और टूटी उम्मीदें
शादी के बाद भी शशांक ने अनिका से संपर्क बनाए रखा। पर अब उसकी बातें बदली हुई थीं—गंभीर, उदास, और सच्चे प्यार से भरी हुईं।
कुछ महीनों बाद, अनिका ने तय किया कि उसे अब सच बोल देना चाहिए।
"मैं तुमसे कुछ छिपा रही थी..."
शशांक ने टाइप किया: "क्या?"
"मैं शादीशुदा हूँ... और मेरा बेटा 10 साल का है। साहिल, मेरा पति, शराबी है।"
कुछ मिनट तक चैट में कोई रिप्लाई नहीं आया।
फिर शशांक ने लिखा:
"तुमने जो भी किया, मैं समझ सकता हूँ। पर मेरा प्यार सच्चा है, और अब भी तुम्हारा है।"
अनिका हैरान थी।
उसे लग रहा था कि शायद अब ये रिश्ता खत्म हो जाएगा।
लेकिन शशांक ने कहा:
"मैं अपने जीवन से सब छोड़ दूँगा तुम्हारे लिए..."
और फिर भी, जब-जब वे मिले, सिर्फ 7-8 बार, उन मुलाकातों में दोनों की आँखों में सुकून होता, और विदाई में बेचैनी।
7: दो ज़िंदगियाँ, दो मोर्चे
2020 में कोविड-19 की दस्तक से सब कुछ बदल गया।
साहिल अब और भी ज्यादा बीमार हो गया। डॉक्टर ने शराब छोड़ने की सख्त हिदायत दी, पर वह नहीं माना। हर दिन घर में गाली-गलौज, चीखना, बेटे को डराना, और अनिका को कोसना।
एक दिन अनिका ने अपने सास-ससुर से बात की और साहिल को रिहैब सेंटर भेजने का फैसला लिया।
उसी दौरान, उसने एक और व्यक्ति से दोस्ती की। वो भी उम्र में छोटा था। बातें हुईं, लेकिन अनिका अब उतनी भावनात्मक नहीं रही। वो समझ चुकी थी कि ऑनलाइन रिश्ते झूठ के धागों से जुड़े होते हैं।
पर शशांक अब भी वहीं था—प्रेम में पिघलता, इंतज़ार करता, शिकायत करता।
8: अनिका का आत्मबोध
शशांक की दूसरी शादी से जुड़ने के बाद, उसके घर दो जुड़वां बेटियाँ पैदा हुईं। लेकिन दुर्भाग्य से, उनमें से एक की मृत्यु हो गई।
शशांक टूट गया। उसने फिर अनिका से मिलने की गुहार लगाई। और जब वे मिले, तो दोनों ने फिर कुछ घंटों के लिए वही सुकून पाया।
लेकिन इस बार लौटते वक्त अनिका ने महसूस किया कि यह प्रेम नहीं, एक बोझ बन चुका है।
अब हर दिन शिकायतें—"तुमने कॉल क्यों नहीं किया?"
"तुम मुझसे प्यार नहीं करती!"
"तुम अपनी जिंदगी में मस्त हो, मैं यहाँ तड़प रहा हूँ!"
अनिका को महसूस हुआ कि शशांक उसे वैसे ही तोड़ रहा है, जैसे साहिल ने किया था—अलग रूप में, अलग भाषा में।
9: अंत या नई शुरुआत?
2023...
साहिल की मृत्यु के बाद अनिका पूरी तरह अकेली हो गई। पिता भी इस दुनिया से चले गए। आर्थिक स्थिति डगमगाई, मानसिक तनाव बढ़ा।
पर माँ ने साथ दिया। और फिर से अनिका उठ खड़ी हुई—जैसे किसी ने राख में से दीप जलाया हो।
शशांक ने मदद की, हां, लेकिन उसकी अपेक्षाएं बढ़ गईं। अब वो सिर्फ प्रेम नहीं चाहता था, अधिकार चाहता था।
और फिर एक दिन, अनिका ने खुद से पूछा:
"क्या मैंने कोई अपराध किया?"
"क्या किसी से बात करना, अकेलेपन में किसी को दोस्त समझना, झूठ बोलना, प्यार पाना—क्या यह सब मेरा गुनाह है?"
और जवाब आया:
"मैं इंसान हूँ, परफेक्ट नहीं। और अब मुझे किसी ऐसे रिश्ते की जरूरत नहीं जहाँ मैं केवल अपराधबोध महसूस करूँ।"
और उसी दिन, अनिका ने चैट में आखिरी बार लिखा:
"मैं ये रिश्ता अब खत्म कर रही हूँ, क्योंकि इसमें मैं कहीं नहीं हूँ—सिर्फ तुम्हारी उम्मीदें हैं और मेरा अपराधबोध।"
लेखक का दृष्टिकोण:
अनिका की गलती सिर्फ यही थी कि उसने अकेलेपन में किसी को अपना मान लिया। लेकिन क्या यह हर स्त्री की कहानी नहीं है?
जहाँ शादी नाम की संस्था में प्यार नहीं मिलता, वहीं सोशल मीडिया पर एक ‘वर्चुअल’ कंधा मिल जाता है।
अनिका गुनहगार नहीं थी।
वो एक इंसान थी—माँ, पत्नी, शिक्षिका और एक स्त्री—जिसे भी महसूस करने का हक है, जीने का हक है।