Monster the risky love - 61 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | दानव द रिस्की लव - 61

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दानव द रिस्की लव - 61

अघोरी बाबा के पास चलो 

अब आगे................

अघोरी बाबा का  नाम सुनकर सब सवालिया नज़रों से विवेक को देखते हैं.....
हितेन : विवेक अब तू उलझन में मत डाल साफ साफ बता कौन है ये अघोरी बाबा...?...किसकी बात कर रहा है तू...
विवेक : बताता हूं....एक बार जब मैं और अदिति रोज वैली आये थे....याद है...
तीनों एक दूसरे को देखते हैं.... तभी कंचन कहती हैं..." हां मुझे याद है जब तुमने कहा था मुझे अदिति के साथ कुछ टाइम स्पेंड करना है तो तुम काॅलेज से चले गए थे..."
विवेक : हां कंचन....मैं और अदिति यहां आये थे कुछ टाइम रिलेक्स के लिए... लेकिन हमारी इंजाॅयमेंट के टाइम पता नहीं कहां से वो अघोरी बाबा आये और मुझे अदिति से दूर रहने के लिए कहा....
श्रुति : लेकिन क्यूं...?
विवेक : (याद करके).. हां मुझे थोड़ा याद है वो कह रहे थे...इस लड़की से दूर हो जा ...ये पिशाच की भोग्या है और हां (घबरा कर )... उन्होंने कहा ये बहुत जल्द मरने वाली है...
तीनों हैरानी से एक साथ कहते है..." क्या...?... लेकिन उन्हें (विवेक इनकी बात को बीच में ही रोकता हुआ बोला.."उस टाइम मैंने इतना सिरियस नहीं लिया था....हमें जल्दी उनके पास चलना होगा... बाकी के सावलो के जबाव वहीं देंगे..."
हितेन : हमें चलना कहां है...?
विवेक : मेरे साथ चलो... मुझे पता है जगह बस हमें अघोरी बाबा मिल जाए....
श्रुति : लेकिन हमें जाना कहां है....?
विवेक : ...रोज वैली के फैमस कपल पार्क के थोड़ी दूर ही एक बहुत पुराना शिवजी का मंदिर है वहीं जाना है.... चलो...
हितेन : ठीक है जैसा तुझे ठीक लगे चल ....
तीनों विवेक के साथ शिवजी के पुराने मंदिर की तरफ जाने के लिए उसके साथ जाते हैं...... अचानक सबको बाहर जाते देख सुविता जी पुछती ..." तुम सब कहां चली दिये घर नहीं जाना अपना सामान ले आयो जल्दी..."
कंचन : आंटी जी.. हम बस थोड़ी देर यहां वैली देखने  जा रहे थे... इतनी देर मनाने के बाद विवेक हमें बाहर ले जाने के लिए तैयार हुआ है....
सुविता : अच्छा जाओ बच्चों... इसे भी अच्छा लगेगा...और जरा संभलकर रहना जंगली जानवरों से...
विवेक अपने आप से कहता है....." बड़ी मां जंगली जानवर तो यहां से चला गया...".... अच्छा बड़ी मां मैं थोड़ी देर में आता हूं मां को  बता देना..."
सुविता : ठीक है जाओ.....
इधर विवेक और सब रोज वैली कपल पार्क के लिए निकल जाते हैं उधर अदिति गुमसुम सी कार सिट से सिर टिकाए बैठी थी... आदित्य उसका ध्यान हटाने के लिए उससे बातें करता है...
आदित्य : झगड़ा क्यूं कर लिया विवेक से...?....और मेरी स्वीटी मुंह फुलाए बैठी है...
अदिति : भाई याद मत दिलाओ..... मुझे विवेक से बात नहीं करनी...
आदित्य मजाकिया अंदाज में कहता है....." ये बात तो सुन सुन के मैं बोर हो गया.... कुछ नया बता....
अदिति : भाई.....(चिढ़कर कहती हैं)...
आदित्य : अदि ... मैं तुम दोनों को अच्छे से जानता हूं तुम्हारा ये रूठना मनाना चलता रहता है कभी विवेक कभी तेरा इसमें नया क्या है लेकिन आज अचानक ऐसा क्या कह दिया विवेक ने जो तुझे इतना गुस्सा आ गया....
अदिति : भाई उसके बारे में बात मत करो....
तक्ष जो बैक सिट पर बैठा इतनी देर से चुपचाप दोनों की बात सुन रहा था आदित्य को तिरछी नजर से घूरता हुआ कहता है...." आदित्य अदिति को अच्छा नहीं लग रहा है तो क्यूं न कुछ और बात कर लो ....
आदित्य : कह तो तुम ठीक रहे हो अच्छा तो तुम ही अदिति का मूड ठीक कर दो ....
तक्ष : हां ज़रूर.... अदिति आपको पता है... मैं..  हमारे गांव का  बहुत बड़ा पहलवान था....
आदित्य : तुम पहलवान थे... अच्छा मजाक है.... अपनी हालत देखी सिखीया पहलवान
तक्ष : नहीं आदित्य सच में.....
आदित्य : अच्छा है... वैसे फिर तो तुम्हारी लड़ाई होती होगी...
तक्ष : हां बिल्कुल और हर बार मैं ही जीतता था....
आदित्य : फिर तो पक्का तुम्हारी लड़ाई मच्छरों से होती होगी...(आदित्य की इस बात से अदिति हंस जाती है लेकिन तक्ष चिढ़ जाता है)...
अदिति : आपने सही कहा भाई....
आदित्य : थैंक्स तक्ष .....
अदिति : थैंक्स किस लिए कहा भाई...?
आदित्य : मेरी स्वीटी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान लाने के लिए ....
अदिति कुछ नहीं कहती बस चुपचाप विंडो से बाहर देखने लगती है.....उधर विवेक और बाकी सब रोज वैली के कपल पार्क पहुंचकर सीधा कच्चे रास्ते की तरफ बढ़ते हैं....ये रास्ता दिन के समय में भी काफी सुनसान और डरावना था... श्रुति अर्लट बोर्ड पर लिखी गई चेतावनी को पढ़कर सबसे कहती..." गाइज ये एरिया ठीक नहीं है..." विवेक बिना श्रुति की बात को ध्यान दिये आगे बढ़ रहा था श्रुति उसे रोकने के लिए कहती हैं...." विवेक तुम सुन रहे हो न ... यहां क्या लिखा है..."
विवेक झिल्लाते हुए कहता है..." क्या लिखा है यहां सिर्फ इतना ही जंगली जानवरों से सावधान... इसमें इतना घबराने की बात नहीं है....और मेरे लिए मेरी अदिति की जान से बढ़कर कुछ नहीं है...अगर तुम्हें मेरे साथ चलना है तो चलो नहीं तो यहां से वापस लौट जाओ...."
विवेक की इस बात पर श्रुति कुछ नहीं कहती लेकिन कंचन उसे समझाती है....." हम सब साथ है तो इसमें डरने वाली कौन सी बात है..?...और देख अदिति कितनी बदलती जा रही है तो हमें उसे फिर से पहले जैसा करने के लिए तो हेल्प चाहिए न चल अब ..." श्रुति कंचन की बात पर चलने के लिए तैयार हो जाती है....
अब चारों धीरे धीरे पगडंडी जैसे रास्ते से होकर सब एक विरान सी जगह पहुंचते हैं जहां पर एक काफी बड़ा शिव मंदिर था ...यह देखने में ही काफी पुराना लग रहा था इसे देखकर कोई भी कह सकता था यहां कम ही लोग आते होंगे...
विवेक हैरानी से उसे मंदिर को देखता हुआ बोला..." यहां इतना बड़ा शिव मंदिर हो सकता था, मैंने सोचा भी नहीं था..."
हितेन : ओ भाई हम यहां मंदिर को देखने नहीं आये है अघोरी बाबा कहां है...?
विवेक : अरे हां...देखो अंदर ही होंगे...
सब अघोरी बाबा को ढूंढ़ने के लिए पूरे मंदिर में घूम आते पर अघोरी बाबा उन्हें कहीं नहीं मिले...
विवेक : पूरा मंदिर ढूंढ़ लिया आसपास भी कहीं नहीं है तो अघोरी बाबा कहां है...?
 
..................to be continued............
अघोरी बाबा कहां है....?
जानेंगे अगले भाग में....