फिल्म समीक्षा द डिप्लोमेट
“ द डिप्लोमेट “ हिंदी फिल्म इसी वर्ष मार्च के मध्य में रिलीज हुई है . इस फिल्म की कहानी रितेश शाह ने लिखी है . इसका निर्माण टी सीरीज के भूषण कुमार और कृष्ण कुमार , एक्टर प्रोडूसर जॉन अब्राहम व अन्य सह निर्माताओं ने मिल कर किया है जबकि इसके निर्देशक शिवम नायर हैं .
फिल्म की कहानी - “ द डिप्लोमेट “ की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है . इस फिल्म की कहानी का नायक J.P. Singh ( जॉन अब्राहम ) है जो पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद स्थित भारतीय हाई कमीशन में डिप्टी हाई कमिश्नर है . फिल्म की नायिका उज़्मा अहमद ( सदिआ ख़तीब ) हैं . पूरी कहानी इन दोनों और भारत और पाकिस्तान के बीच कम्प्लेक्स रिश्तों के इर्द गिर्द घूमती है .
उज़्मा अहमद एक भारतीय नागरिक है जो पहले से ही विवाहित है . यह शादी टूट गयी थी और अब वह एक बेटी की सिंगल मदर है . उज़्मा की मुलाकात एक पाकिस्तानी नागरिक ताहिर ( जगजीत संधू ) जो एक पठान और टैक्सी ड्राइवर है , से मलेशिया में होती है और उस से प्यार हो जाता है . उसके बहकावे में आकर उज़्मा पाकिस्तानी वीजा पर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनिस्तान के बुनेर में आती है . ताहिर का घर दुर्गम पहाड़ियों के बीच है जहाँ औरतों पर जबरदस्ती और जुल्म होता है और बच्चों को गोलियां चलाना सिखाया जाता है . यहाँ आने पर उसे पता चलता है कि ताहिर की पहले से ही बीबियां और बच्चे हैं . ताहिर बाहर से लड़कियों या औरतों को ला कर वहां बेचने का धंधा करता है . ताहिर ने उज़्मा की उम्र 24 बतायी थी जबकि स्थानियों ने चेक कर उसकी उम्र 28 कहा और ज्यादा उम्र के चलते खरीदने से इंकार कर दिया . ताहिर उज़्मा को भी बहुत मारता पीटता है और जबरन उससे शादी करता है . उज़्मा उर्दू में लिखे निकाहनामे पर साइन कर देती है . उज़्मा द्वारा पीड़ित अन्य औरतें भी वहां पर हैं जो एक तरह से कैदी हैं . उज़्मा किसी तरह वहां से बच कर भागना चाहती है . एक पीड़ित औरत की मदद से वह मलेशिया में अपने किसी मित्र से सम्पर्क कर भागने के लिए सहायता मांगती है . इस के लिए उज़्मा को किसी तरह भारतीय हाई कमीशन पहुंचना जरूरी है .
भारतीय हाई कमीशन जाने के लिए उज़्मा किसी तरह ताहिर को मना लेती है . वहां वह अपनी दर्द भरी कहानी सुनाती है . उसकी कहानी सुनकर JP को अपनी आपबीती याद आती है . जब वह काबुल के भारतीय दूतावास में था . दूतावास पर आतंकी हमले में वह बड़ी तरह घायल हुआ था हालांकि वह बच गया था . आरम्भ में JP और अन्य हाई कमीशन स्टाफ सब उज़्मा को शक की निगाह से देखते हैं . दूसरी तरफ पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी ISI को भी उज़्मा पर शक होता है . पर अच्छी तरह जांच करने पर JP को विश्वास हो जाता है कि उज़्मा की कहानी सच्ची है और उसे सहायता की जरूरत है . वह तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ( रेवथी ) से संपर्क करता है .मंत्रीजी उसे मामले को सावधानी पूर्वक हल करने का निर्देश देती हैं . JP एक सीनियर डिप्लोमेट अधिवक्ता सईद (कुमुद मिश्रा ) से संपर्क कर उज़्मा का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज़ कराता है जिसे पाकिस्तानी टीवी पर भी दिखाया जाता है . ताहिर से बचने के लिए वह उज़्मा को गुप्त जगह पर रखता है .
दूसरी तरफ ताहिर भी कोर्ट में मुकदमा दायर करता है कि भारतीय हाई कमीशन ने उसकी पत्नी को कैद कर रखा है और उससे मिलने नहीं दे रहा है . कोर्ट हाई कमीशन को उज़्मा को सदेह प्रस्तुत करने का आर्डर देता है . JP और उज़्मा दोनों की मुश्किलें बढ़ती हैं क्योंकि उज़्मा की जान को खतरा है . उज़्मा JP से कहती है कि ताहिर को सौंपने के पहले वह उसे जहर दे दे . JP की चालाकी से उज़्मा कोर्ट में प्रस्तुत हो कर ताहिर के जुल्मों की कहानी सुनाती है . कोर्ट उज़्मा को पुलिस के संरक्षण में भारत जाने की अनुमति देती है . ISI और ताहिर इस से क्रोधित होते हैं . रास्ते में ताहिर के आदमी उस पर हमला करते हैं . अंत में बहुत उथल पुथल के बाद JP उज़्मा अहमद को स्वयं भारतीय सीमा अटारी बॉर्डर तक छोड़ने आता है और उज़्मा अपने देश वापस लौटने में सफल होती है .
“ द डिप्लोमेट “ फिल्म का विषय कुछ नया है और उज़्मा अहमद और भारतीय राजनयिक की घटना 2017 की एक सच्ची घटना है . फिल्म में किसी डिप्लोमेट ( राजनयिक ) को विदेश में किन समस्याओं और उलझनों का सामना करना पड़ता है , खास कर जब दोनों देशों के बीच का रिश्ता ख़राब हो , बहुत अच्छी तरह दर्शाया गया है . विदेश में एक राजनयिक को दोनों देशों के कानूनों के अंतर्गत अपनी सूझबूझ और कूटनीति से किस तरह समस्या का समाधान करना पड़ता है , यह पर्दे पर बखूबी देखने को मिलता है .
फिल्म में उज़्मा की भूमिका में सदिआ खतीब का अभिनय सशक्त रहा है . उसने अपने पर हुए जुल्म और पीड़ा को पर्दे पर बखूबी दिखाया है . डिप्लोमेट JP Singh की भूमिका में जॉन अब्राहम की भूमिका भी अच्छी है . फिल्म के दूसरे भाग की तुलना में पहला भाग ज्यादा दमदार रहा है . दूसरे भाग में जॉन की एक्टिंग ज्यादा अच्छी है , बहुत शांत और नपा तुला . सुषमा स्वराज के रोल में रेवथी की भूमिका बहुत छोटी और औसत रही है . अन्य किरदारों में अनेक कलाकारों की छोटी भूमिका रही है .
कुल मिलाकर निर्देशन ठीक रहा है . शुरू में पहाड़ियों के दुर्गम और अच्छे दृध्य देखने को मिलते हैं जो देखने में खैबर पख्तूनिस्तान की लगते हैं हालांकि वे भारत के ही हैं . उज़्मा की पीड़ा और उसके बलात्कार को पर्दे पर उसकी आँखों में छलकते दर्द द्वारा सफाई से पेश किया गया है . पर पूरे फिल्म में उज़्मा के परिवार का दुःख कहीं नहीं दीखता है . फिल्म इस्लामाबाद और पाकिस्तानी बैकग्राउंड पर है हालांकि शूटिंग इंडिया में हुई है . कुछ दृश्य एम्बेसी के रियल हैं . फिल्म अनावश्यक गानों से बची है .
कुल मिला कर ‘ द डिप्लोमेट ‘ एक रोमांचक और देखने लायक फिल्म है . यह फिल्म Netflix पर उपलब्ध है .
मूल्यांकन - निजी आकलन के अनुसार 10 में 7 की हक़दार है .