pahalgam ki chikh in Hindi Short Stories by Sudhir Srivastava books and stories PDF | पहलगाम की चीख

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पहलगाम की चीख

आलेख 
पहलगाम की चीख 

      22 अप्रैल' 2025 को पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा धर्म पूछकर की गई 26 पर्यटकों की हृदय विदारक किंतु नृशंस हत्या से देश दहल गया। हत्यारों ने महिलाओं को छोड़ उनके पतियों को मारा, उस पर तुर्रा ये कि जाकर मोदी को बता देना।इस घटना के बाद पूरा देश हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी एक स्वर से इसका बदला लेने के लिए एक स्वर से मांग करने लगे। घटना की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सऊदी अरब की यात्रा को संक्षेप कर वापसी के साथ मैराथन बैठकें शुरू कर दी। क्योंकि पहलगाम की चीख उनके कानों में गूँज रही थी। उन्होंने देश को आश्वस्त किया कि बदला लिया जायेगा,वो भी कल्पना से भी बड़ा। और फिर आपरेशन सिंदूर से उस वादे को पूरा भी किया।
         इस घटना ने जनमानस को झकझोर दिया। वैश्विक स्तर पर इस घटना की निंदा हुई। लेकिन प्रश्न यह है कि इस घटना के पीछे का उद्देश्य क्या था?तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वक्फ संशोधन बिल पास होने और धर्म विशेष के एक झुँड द्वारा किए जा रहे विरोध की आड़ में देश में हिन्दू- मुस्लिम जातीय संघर्ष कराने का मकसद पड़ोसी मुल्क पाक का था। दुनिया जानती है कि आतंकियों को पाक सेना का संरक्षण है।जिसका उदाहरण भी आतंकियों के जनाजे में देखने को मिला।जब आतंकियों को राजकीय सम्मान तो दिया ही गया। सेना के शीर्ष अधिकारियों द्वारा फूल भेजे गए। अनेक बड़े सैन्य अधिकारी कलमा पढ़ते नजर आये।
        आपरेशन सिंदूर से पहलगाम की चीख का बदला जरूर ले लिया गया, लेकिन इसकी टीस उन परिवारों को जीवन भर सालती रहेगी, जिनके अपने बच्चे, पति, पिता, भाई की चीख से पहलगाम दहला था।
        लेकिन इस बात का संतोष जरुर है कि देश का बच्चा-बच्चा, हर नागरिक, स्त्री पुरुष, हर जाति धर्म के लोगों ने एकजुटता दिखाई। विरोधियों तक के सुर बदल गए और सब सरकार की किसी भी कारवाही के साथ खड़े नजर आये। बावजूद इसके कुछ स्वार्थी तत्वों ने बेशर्मी दिखाई। उल्टे सीधे सवाल सरकार को समर्थन की आड़ में उठाये। भड़काऊ पोस्ट भी डाले गये। जवाब में देरी पर सवाल उठाए जाने लगे। सबसे ज्यादा दुख इस बात का हुआ कि जिन्हें इसके पीछे की विवशता की जानकारी है। कि यह गाँव, घर, पड़ोसी, नाली, मेढ़ -डाँड़ का झगड़ा नहीं है कि जोश में होश खोकर कदम उठा लिया जाए। विभिन्न विभागों, तंत्रों के साथ विचार-विमर्श , समन्वय, सुविधा, परिणाम, क्षमता के साथ आम नागरिकों की परेशानियों और जवाब के बाद उत्पन्न होने वाले संभावित राष्ट्रीय/वैश्विक प्रभावों तक पर विचार करना होता है।घर फूंक तमाशा देखने की ख्वाहिश रखने वाले पाकिस्तान को देख लें। जिसने अपने नागरिक विमानों की आड़ लेकर मौत की ओर ढकेलने में भी संकोच नहीं किया। मदरसे के बच्चों को सेकेंड लाइन अप आर्मी कहकर युद्ध में झोंकने की नीति तक बना ली थी। बड़े सैन्य अधिकारियों/राजनेताओं ने अपने परिवारों को विदेश भेज दिया। क्या हमारे देश में एक व्यक्ति ने युद्ध की आशंका से अपने परिवार को विदेश भेजा? 
       ठीक है कि पहलगाम की चीख से हम सब विचलित हैं, लेकिन क्या जानबूझकर अपनी बेवकूफी से सैनिकों/आम नागरिकों को मौत के मुँह में ढकेल देना बुद्धिमानी कहा जाता, कभी नहीं।
      निश्चित ही किसी भी व्यक्ति की मौत दर्द देती ही है, लेकिन तात्कालिक चीख को लंबे समय तक, जानबूझकर और अधिक लोगों तक पहुँचाना कितना सही कहा जाता, यह हम सबको सोचने की जरूरत है।
     सरकार ने ठंडे दिमाग से काम लिया। जनमानस की भावनाओं का सम्मान किया। इसकी भी सराहना होनी चाहिए। सर्जिकल और एयर स्ट्राइक से मोदी सरकार ने अपनी कार्यशैली का उदाहरण पहले से ही दे रखा था।तो हमें सरकार के साथ खड़े होने के साथ विश्वास तो करना ही पड़ेगा।
       पहलगाम की चीख सुनने के बाद सरकार की नई नीति सामने आ गई है। जिससे हम उम्मीद कर सकते हैं कि भविष्य में पुनरावृत्ति के रूप में हमें किसी नये पहलगाम की चीख से दो चार नहीं होना पड़ेगा।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)