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नीचे बड़े गार्डन के पंडाल में मेज़-कुर्सियों का इंतजाम भी था और दूसरी ओर फूलों से घिरे खाली स्थान पर डाइनिंग टेबल पर स्वच्छ श्वेत चादरों से ढकी मेज़ों पर सादी कटलरी सजा दी गई थी| आशी ऊपर से ही सब ओर दृष्टि घुमाती और एक निराश आह उसके मुँह से निकलकर वातावरण में समा जाती| अभी वह नीचे भी नहीं जाना चाहती थी| नौ बजे मौन का समय था और दस बजे से यज्ञ आदि का कार्यक्रम् ! फिर पुस्तक लोकार्पण, जो वह मनु और अनन्या से करवाना चाहती थी लेकिन वहाँ तो वे लोग थे ही नहीं!
आज लोग अधिक थे इसलिए संत श्री के कमरे में न जाकर पंडाल में कुर्सियों पर बैठकर ही मौन करने का प्रोग्राम था| कुछ लोग पुस्तकें नीचे ले जाने आशी के कमरे में आए और उसे सूचना दी कि सब तैयारी हो चुकी है| सुहास बहन ने उसको नीचे बुलाया है| आश्रम का सूना वातावरण आज जैसे उत्सव के उल्लास से भर गया था|
आशी मरे हुए कदमों से नीचे की ओर चली और जाकर नीचे सब लोगों के साथ बैठ गई| सुहास सदा की तरह सामने तख्त पर मौन करने बैठी तो सब उसके साथ अपनी कुर्सियों में आँखें मूंदकर बैठ गए| कोई हलचल नहीं, कोई आवाज़ नहीं, किसी प्रकार का शोर नहीं!
मौन अपने समय पर समाप्त हो गया था और कुछ ही दूरी पर हवन के लिए बनाए गए स्थान पर सब अतिथि जाकर अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे| आशी के भीतर भीषण मौन पसरा हुआ था| स्थानीय गायत्री समाज के योग्य पंडितों ने यज्ञ आरंभ कर दिया| जो आश्रम मौन के आश्रय में रहता था आज वहाँ वैदिक ऋचाओं की पावन ध्वनि वातावरण में पसरने लगी थी|
संत श्री के अनुयायी इस नए वातावरण में एक नवीनता महसूस कर रहे थे| लगभग एक घंटे के बाद ऋचाओं की मौन संवेदना सबके मन में भर उठी | एक अलौकिक आनंद से सबके मन तृप्त थे|
कुर्सियों मेज़ों से एक मंच भी तैयार किया गया था| माँ शारदे की ताजे पुष्पों से सजी बड़ी सी प्रतिमा एक ओर मेज पर सुसज्जित थी| सुहास ने कब ये सब तैयारियाँ कर ली थीं, आशी को आश्चर्य हुआ| उपस्थित महानुभावों द्वारा दीप प्रज्वलन हुआ और माँ वीणापाणि की वंदना से पंडाल गुँजरित हो उठा|
यह तो अनन्या का स्वर था! आशी ने मुड़कर देखा और हतप्रभ रह गई| कब, कैसे? माँ की प्रतिमा की साइड में माधो से लेकर दीना जी का पूरा परिवार उपस्थित था| माँ की प्रार्थना के मध्य कुछ भी बोलने का कोई अर्थ नहीं था| प्रार्थना समाप्त हुई और पुस्तक के लोकार्पण की विधि शुरू हुई| पुस्तक का लोकार्पण मनु और अनन्या के द्वारा ही हुआ। यही तो आशी की इच्छा थी| तालियों की गड़गड़ाहट की ध्वनि पंडाल में प्रसरित हो गई| आशी की आश्वस्ति भरी आँखें भीनी हो गईं, शून्य से शून्य तक का लोकार्पण उन्हीं के द्वारा हो रहा था जिनके लिए आशी बेचैन थी|
पुस्तक का पृष्ठ खोलते ही उसमें से दीना जी की तस्वीर मुस्कुराई ---
पापा! क्षमा, आप जहाँ भी हैं
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उसके नीचे लिखा था ;
उन सभी को अंत:करण से समर्पित जिन्होंने मुझे ढेरों प्यार दिया और जिन सबका मैंने दिल दुखाया
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अब तक वहाँ उपस्थित सबके हाथों में पुस्तक पहुँच चुकी थी| सुहासिनी माइक से एक अजनबी से दो शब्द कहने की प्रार्थना कर रही थी|
ये क्या? मार्टिन की आवाज़ गूंजने लगी—
“यह ईश्वर का संकेत है जो इस पुस्तक का निर्माण हुआ| आशी एक बेहद बुद्धिमान इंसान है, अपने काम के प्रति बेहद समर्पित| मैंने उनके साथ काम करके उनके ‘पैशन’को समझा और फिर समझा उनके चरित्र को! माना, सिचवेशन अलग थी लेकिन किसी भी बात को खोलकर बताना जीवन को जीने के लिए आवश्यक है| मैं पूरे वर्ष भर से आशी के साथ ही था| आशी अपना प्रॉजेक्ट बीच में छोड़कर आई है, अब इनके अंदर का गुबार निकल गया है| मैं समझता हूँ, अब ये अपने मानसिक बोझ से हल्की हो गई हैं , अब ये फ्रांस जाकर अपना छोड़ा हुआ काम पूरा कर सकें, मैं यह दुआ करता हूँ| ”अँग्रेज़ी के उच्चारण से हिन्दी बोलने वाले उस विदेशी व्यक्ति की सराहना में सबने खुले दिल से तालियाँ बजाईं|
वह चुप हो गया था, पंडाल में तालियाँ तो गड़गड़ाईं लेकिन कितने लोग बात समझ पाए होंगे, यह प्रश्नचिन्ह सबकी आँखों में तैरते दिखाई दे रहे थे| आशी की आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी| सुहास ने उसे कुछ कहने के लिए कहा| वह क्या कहती? उसने अपने हाथ में पुस्तक पकड़कर सबके सामने हिला दी| वह सब कुछ उस पुस्तक में कह चुकी थी|
माधो की गोद में साल भर की प्यारी मुस्कुराती बच्ची थी|
“आशी उसकी ओर बढ़ी---”
“बिटिया---:”कहकर उसने बच्ची को अपनी गोदी में भींच लिया|
“बीबी---आशी---छोटी आशी है यह, मालिक की छोटी आशी ! ”एक बार फिर आशी की आँखों में से पानी प्रवाहित होने लगा|
अब तक सब अतिथियों को पंडाल के दूसरी ओर जहाँ भोजन की व्यवस्था थी, उधर की ओर ले जाया गया था| दीना-परिवार के सब लोग डबड़बाई आँखों से आशी के सामने थे| आशी को सब कुछ एक स्वप्न, छल सा प्रतीत हो रहा था| उसे मार्टिन का बार-बार अहसास होना अब कुछ संकेत दे रहा था|
“मैं आशी को अपना जीवन-साथी बनाना चाहता हूँ---”अनिकेत के बाबा-माँ के सामने मार्टिन करबद्ध खड़ा था|
वहाँ उपस्थित दीना परिवार के सभी सदस्यों की आँखें आशी के चेहरे पर आकर चिपक गईं थीं|
अपने सीने में बच्ची को दबाए आशी ने मार्टिन की ओर देखा और धीमे से अपनी आँखें नीचे कर लीं|
“माधो ! तुमने भी चीटिंग की? ”पास खड़े माधो को देखकर आशी बोल उठी |
“बीबी! चीटिंग तो मैंने मनु साहब के साथ भी की न, आपके साथ मिलकर---”
वह बिफरने वाली आशी आज कुछ नहीं बोल सकी| दीना जी के सभी संबंधी गई रात होटल में ही पूरी कहानी से परिचित हो चुके थे, वे मार्टिन से भी मिल चुके थे| उन्हें पता चल गया था कि आशी बीबी का पता ठिकाना जानते हुए भी माधो आशी के साथ मिलकर खेल खेलता रहा था| अब मनु को समझ में आया था कि इस वर्ष के बीच माधो कई बार गाँव जाता रहा था| आशी के पास आबू में आना ही उसका गाँव जाना होता था|
“ये लीजिए साहब ---”माधो ने अचानक मनु के हाथ में एक फ़ाइल पकड़ाई|
“ये---? ”मनु आश्चर्यचकित था|
“वही फ़ाइल जो आशी बेबी के फ़ंक्शन के दिन आपने जाने किसको पकड़ा दी थी---”
मनु ने फ़ाइल खोली जिसमें आशी ने अपनी अधिकांश प्रापर्टी के कागज़ात मनु व अनन्या के नाम ट्रांसफर कर दिए थे| एक और फ़ाइल थी जिसमें बची हुई प्रापर्टी संत श्री के आश्रम के नाम थी|
“मुझे लगता है आशी का इधर का सब काम पूरा हो गया है| अब आशी मेरे साथ अपना प्रॉजेक्ट पूरा कर सकती है| ”मार्टिन ने कहा फिर कुछ रुककर बोला;
“आई थिंक वी कैन डू टुगैदर—”
आशी ने कुछ नहीं कहा, बस एक बार फिर से मार्टिन की प्रेम से छलकती आँखों में देखकर अपनी आँखें नीची कर लीं| उसके हाथों से छोटी आशी को माधो ले गया था| उधर भोज शुरू हो चुका था और इधर घर के सब सदस्यों ने आशी को घेर लिया था| आशिमा, रेशमा तो उससे चिपटकर ज़ोर से रो पड़ी थीं | आशी ने अचानक अनन्या को अपने से लिपटा लिया| अनन्या की मम्मी, अनिकेत की मम्मी और मि.भट्टाचार्य ने आशी के सिर पर हाथ रखकर उसे आशीषों से नहला दिया|
अचानक आशी मनु का हाथ पकड़कर अनन्या के हाथ में देते हुए बोली;”हमेशा खुश रहना और पापा की सभी इच्छाओं को पूरा करना| मैं जानती हूँ तुम सब बच्चे पापा के कितने करीब थे और उनके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थे, बस मैं ही उनकी नालायक बेटी रही, अब बहुत देर हो गई है लेकिन पापा! आप जहाँ भी हों, वहीं से मुझ तक अपनी क्षमा पहुँचा देना| ”
आशी ने अपनी बहती आँखों को पोंछ लिया; “हम कभी कभी मिलते रहेंगे| ”
मार्टिन ने आशी की ओर हाथ बढ़ाया, उसने एक हिचक के साथ अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया|
शून्य में अब बहुत से आकार दिखाई देने लगे थे ! !
समाप्त
डॉ.प्रणव भारती
pranavabharti @gmail.com