कराके की ठंड थी, और आसमान पूरी तरह काले बादलों से ढका हुआ था। हवाएँ ज़मीन पर बर्फीली सिहरन छोड़ रही थीं, और जंगल की गहराई में खड़ी एक उजाड़ हवेली अंधेरे में डूबी हुई थी। केवल एक धुंधली पीली रोशनी हवेली के खंडहर में टिमटिमा रही थी, मानो किसी अनजान शक्ति की मौजूदगी को दर्शा रही हो।उस अंधेरी रात में, घने कोहरे के बीच, हवेली के सामने एक रहस्यमयी शख्स खड़ा था। उसका काला हुड चेहरे को आधा ढँके हुए था, लेकिन उसकी सिल्वर रंग की आँखें धीरे-धीरे गहरी लाल होने लगीं। उन चमकती आँखों में इतनी गहराई और भय था कि अंधेरा भी उनसे कांप उठा।उसकी लंबी कद-काठी को हाई-कॉलर क्लोक और भी प्रभावशाली बना रहा था। ठंडी हवाओं में उसका काला लिबास हवा में लहरा रहा था, मानो अंधकार उसके कदमों को छूकर गुजर रहा हो। उसकी उपस्थिति इतनी भारी थी कि आसपास की काली शक्तियां भी उसकी ऊर्जा को महसूस कर रही थीं।आसमान में काले चमगादड़ उड़ रहे थे, जैसे किसी अनदेखे खतरे की दस्तक दे रहे हों। उनके परों की सरसराहट के बीच रहस्यमयी शख्स ने अपनी आँखें बंद कीं और धीमे स्वर में एक गूढ़ मंत्र पढ़ा। जैसे ही उसने हथेली खोली और उस पर फूँक मारी, आसपास की सभी काली शक्तियां और चमगादड़ हवा में विलीन हो गए।फिर उसने अपना सिर झटका और ठोस लेकिन धीमे कदमों से उजाड़ हवेली की ओर बढ़ने लगा। जैसे अंधकार का राजा अपने शिकार की तलाश में हो। तभी, अचानक, हवेली के विशाल दरवाजे करकराने लगे; तेज़ हवाओं के थपेड़ों के बीच वे अपने आप अंदर-बाहर होने लगे।वह लंबा चौड़ा, काले लिबास में लिपटा हुआ शख्स मेन गेट से हवेली के अंदर दाखिल हुआ। उसकी सिल्वर रंग की खतरनाक आँखों में कुछ सवाल थे, और चेहरे पर एक अजीब-सा गुस्सा झलक रहा था। हवेली के बीचोंबीच एक पुराना लकड़ी का सिंहासन पड़ा था, जिसकी सतह समय की मार से घिस चुकी थी।और उस सिंहासन पर बैठा था एक रहस्यमयी बूढ़ा आदमी—तारक। उसके सफ़ेद बाल और झुर्रियों से भरा चेहरा उसकी उम्र से कहीं ज़्यादा कहानियाँ बयाँ कर रहा था। उसकी आँखों में समय के रहस्यों की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी।तारक ने उस रहस्यमयी शख्स को देखा और गहरी साँस ली। फिर उसने भारी, रहस्यमयी स्वर में कहा—"तो तुम आ ही गए, राजकुमार...चंदवंशी वंश के उत्तराधिकारी।""मुझे पता था कि यह दिन ज़रूर आएगा...तुम अपने सवालों के जवाब ढूँढने एक न एक दिन यहाँ ज़रूर आओगे।"जिसे वो इस वक्त राजकुमार कहकर सम्बोधित कर रहा था, उसने कठोर स्वर में उसे देखते हुए कहा, "मुझे तुम शाप की सच्चाई बताओ। यह सब कैसे शुरू हुआ? और मैं इस सबका हिस्सा क्यों हूँ?" कहते हुए वो अपनी सर्द निगाहों से उसे घूर रहा था।उसकी बात सुनकर तारक हँसा। उसकी हँसी गहरी और डरावनी थी, जैसे वह किसी अनकही कहानी को याद कर रहा हो। फिर तारक गहरी साँस लेकर बोला- "यह सिर्फ़ तुम्हारा अतीत नहीं, बल्कि तुम्हारे पूरे वंश की कहानी है। सुनो, और याद रखना, जो मैं तुम्हें आज बताने जा रहा हूँ, वह तुम्हारी ज़िंदगी बदल देगा।""अगर मौत प्यारी नहीं है तो जल्दी बोलो, वरना मैं तुम्हारी जान अपने हाथों से लूँगा और ये कोई मज़ाक की बात नहीं है समझे?" कहते हुए उसने एकदम गोली की रफ़्तार से आकर तारक के सामने हल्का सा झुकते हुए उसका गला काफी मज़बूती से दबोच लिया था। इस वक्त उसके मुँह के कोनों को चीरते हुए दो नुकीले दांत बाहर आ गए थे।तारक अपनी डरी सहमी नज़रों से उसे देखते हुए अपना लार निगल गया और एक हाथ से उसका हाथ पकड़कर खुद के गले से दूर हटाते हुए जबर्दस्ती मुस्कुराते हुए बोला- "राजकुमार आप यहाँ पर आराम से बैठिए, मैं बताता हूँ ना आपको, चलिए बैठ जाइए, इतना गुस्सा करना अच्छी बात नहीं होती कभी।" फिर वो उसे अपने उस बेकार से सिंहासन पर बिठाकर खुद उसके सामने अपना गर्दन पकड़कर ऊँट की चाल से इधर से उधर टहलने लगा।वो शख्स, जो इस वक्त उसके सिंहासन पर अपने कठोर भाव के साथ विराजमान था, उसे तारक की ऐसी हरकत पर बेहद गुस्सा आ रहा था। उसने अपने मुट्ठियों को मज़बूती के साथ भींच लिया और कठोरता से बोला- "तारक क्या तुम मेरे सब्र का इम्तिहान लेना बंद करोगे? जो कहना है साफ़-साफ़ कहो, मैं यहाँ तुम्हारी पहेलियाँ सुनने नहीं आया हूँ।"जिस पर तारक अचानक से रुक गया और उसे देखते हुए मुस्कुराया। उसकी मुस्कान ऐसी थी, जैसे किसी शिकारी ने अपने शिकार को काबू में कर लिया हो। वो बोला- "यह गरमाहट तो तुम्हारे खून में हमेशा से रही है राजकुमार, खैर इन सब की शुरुआत हुई थी..." कहकर तारक ने पास रखी एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी खींची। बैठते हुए उसने अपने चारों ओर निगाह खुफिया दृष्टि से डाली, जैसे वह युगों पुराने किसी समय को याद कर रहा हो।तो इस कहानी की शुरुआत आज से करीब पाँच सौ साल पहले कुमाऊँ की पहाड़ियों के बीच, एक विशाल और भव्य साम्राज्य—चंदवंशी साम्राज्य से हुई थी।कुमाऊँ की घने जंगलों और बर्फीली पहाड़ियों के बीच बसा चंदवंशी साम्राज्य, जो बेहद खूबसूरत और संपन्नता का केंद्र था। लेकिन कोई नहीं जानता था कि इस साम्राज्य की हर ईंट, हर दीवार अपने भीतर कितने गहरे अंधकार और रक्त की कितने खतरनाक और रहस्यमयी किस्से-कहानियाँ समेटे हुए थी।लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व। युद्धों और राजनीतिक साज़िशों का समय, जब राजाओं के बीच सत्ता और अमरता का जुनून अपने चरम पर था।एक दिन चंदवंशी महल के दरबार में रात का समय था। चंदवंशी महल के विशाल कक्ष में, झूमर की हल्की रोशनी राजा अग्निवीर चंदवंशी के चेहरे पर गिर रही थी। उनके माथे पर चिंता की गहरी रेखाएँ नज़र आ रही थीं। वे अपने सिंहासन पर विराजमान थे, और उनके सामने खड़ा था रक्ताचार्य—एक रहस्यमयी साधु, जिनकी आँखें गहरे काले कुएँ जैसी लगती थीं।दरबार के कोने में खड़े मंत्री और सेनापति फुसफुसा रहे थे।मंत्री १: (धीमे स्वर में) "यह रक्ताचार्य कौन है? इसकी ऊर्जा बहुत अजीब है। मुझे इस पर भरोसा नहीं।"मंत्री २: (डरते हुए) "कहते हैं, यह मृत आत्माओं से बात कर सकता है। लेकिन राजा इसे दरबार में क्यों लाए, ये मुझे समझ नहीं आता।"तभी राजा अग्निवीर ने गंभीर स्वर में, रक्ताचार्य की ओर देखते हुए कहा- "तुमने कहा था कि तुम्हारे पास एक उपाय है जो मेरे राज्य को अजेय बना देगा। लेकिन रक्ताचार्य, याद रखना, मैं अपनी प्रजा के जीवन के साथ कोई समझौता नहीं करूँगा।"रक्ताचार्य ने हल्की मुस्कान के साथ कहा- "राजन, यह उपाय आपके वंश को अमरता का वरदान देगा। आप केवल राजा नहीं, अमर योद्धा बनेंगे। लेकिन याद रखें, हर वरदान की कीमत होती है। देवी चंडिका को संतुष्ट करने के लिए आपको भी एक बलिदान देना होगा।""बलिदान? कैसा बलिदान?" राजा अग्निवीर ने चौंकते हुए कहा।रक्ताचार्य धीमी और रहस्यमयी आवाज में बोला- "एक निर्दोष का रक्त। जो खून यज्ञ कुंड में गिरेगा, वह आपके रक्त-वंश को अमरता का आशीर्वाद देगा। पर राजन, यह खून केवल एक जीवन नहीं है—यह आपके साम्राज्य का भविष्य है।"राजा कुछ पल के लिए गहरी सोच में डूब गया था। वह जानते थे कि उनका साम्राज्य दुश्मनों से घिरा हुआ था। अगर वे कमज़ोर पड़े, तो उनका वंश खत्म हो जाएगा।राजा अग्निवीर आखिरकार बोल पड़े- "अगर यह मेरे राज्य और वंश की सुरक्षा के लिए आवश्यक है, तो मैं यह बलिदान दूँगा। लेकिन अगर तुमने मुझे धोखा दिया, रक्ताचार्य, तो तुम्हारे प्राण भी इस यज्ञ कुंड में चढ़ेंगे।"उसकी बात सुनकर रक्ताचार्य के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई थी जो अग्निवीर नहीं देख पाए थे।इसके बाद गुप्त तहखाने में आने वाले पूर्णिमा की रात को इस अनुष्ठान की तैयारी की गई।यह तहखाना उसी राजमहल के नीचे बना हुआ था। यहाँ पर दीवारों पर अजीबोगरीब चित्र उकेरे गए थे। मशालों की मद्धम रोशनी अंधेरे को छिपाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन यह जगह भयावह और ठंडी थी।यज्ञ कुंड के चारों ओर दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ और चंदन की लकड़ियाँ जल रही थीं। कुंड से उठती धुँआ वातावरण में रहस्य और भय का मिश्रण फैला रही थी।रक्ताचार्य द्वारा यह अनुष्ठान शुरू हुआ और रक्ताचार्य के कहने पर एक ख़ास युवती को आगे लाया गया। वह युवती, जिसे बलिदान के लिए चुना गया था, डर के मारे अपनी जगह पर काँप रही थी।युवती गिड़गिड़ाते हुए बोली- "मुझे छोड़ दो! मैं निर्दोष हूँ। मेरा जीवन क्यों छीन रहे हो? महाराज ये अन्याय है।" कहते हुए उसने अपनी आश भरी नज़रों से अग्निवीर की तरफ देखा, लेकिन उसकी आँखों में अजीब सी चाह नज़र आ रही थी, जो शायद अजय की चाहत थी।तभी रक्ताचार्य निर्ममता से उस युवती से बोला- "तुम्हारा जीवन देवी चंडिका को अर्पित हो रहा है। यही तुम्हारा भाग्य है। शांत रहो।"राजा अग्निवीर और उनके वंशज चुपचाप खड़े यह तमाशा देख रहे थे। उनकी आँखों में अविश्वास तो नज़र आ रहा था, पर यह अनुष्ठान पूरा करना अब उनकी मजबूरी बन चुकी थी।