Chadani ki Zil - 1 in Hindi Love Stories by Yashpal Singh books and stories PDF | चाँदनी की झील - 1

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चाँदनी की झील - 1

हिमालय की गोद में बसा था एक छोटा-सा गाँव — "नीलकुंड", जहाँ सूरज की पहली किरण बर्फ से ढकी चोटियों को चूमती थी, और रात में चाँदनी जैसे दूधिया झील के पानी में घुल जाती थी। कहते हैं उस झील में कोई आत्मा बसी है, जो हर पूर्णिमा की रात उसमें से निकलती है, और चाँदनी की तरह चमकती है।

आरव, दिल्ली का एक युवा संगीतकार, इस गाँव में अपने मन की उलझनों से भागकर आया था। शहर के शोरगुल से थककर, उसे शांति की तलाश थी — या शायद अपने भीतर छिपी किसी अधूरी धुन को पूरा करने की।

उस रात पूर्णिमा थी। झील के पास सबकुछ शांत था — बस उसकी बाँसुरी की मधुर तान गूंज रही थी। बर्फीली हवा में भी उसकी धुन में एक गर्मी थी, एक तड़प।

तभी… एक धीमी सी आवाज गूंजी।

"बहुत दिनों बाद किसी ने इस झील के किनारे इतनी सच्ची तान छेड़ी है…"

आरव चौक गया। सामने झील की पारदर्शी सतह पर, एक लड़की खड़ी थी — चाँदी की रौशनी में नहाई हुई, नीले वस्त्रों में लिपटी, और उसकी आँखों में जैसे सैकड़ों वर्षों का इंतज़ार।

"तुम… कौन हो?" आरव ने धीरे से पूछा।

"मुझे भूल जाओगे," उसने मुस्कराकर कहा, "जैसे हर कोई भूल जाता है। मैं चंद्रिका हूँ — चाँदनी की रूह।"

आरव की साँसें रुक-सी गईं। वो कोई डरावनी आत्मा नहीं थी — वो तो एक कविता थी, एक संगीत की लय, जो उसकी आत्मा से बातें कर रही थी।

"पर तुम यहीं रहो… कुछ देर और…" आरव ने विनती की।

"रहूंगी," चंद्रिका ने कहा, "जब तक चाँद मेरे साथ है, और तुम्हारा दिल मेरे लिए धड़कता है। लेकिन याद रखना — मैं तुम्हें हर सुबह भूलने पर मजबूर हो जाऊँगी… जब तक तुम मुझे पूर्ण रूप से न पहचनो।"



सुबह की हल्की ठंडक में जब सूरज ने पहाड़ियों पर अपनी किरणें बिखेरीं, तो आरव की आँख खुली। उसकी बाँसुरी उसके पास रखी थी, पर कुछ अजीब था। रात की यादें… धुंधली लग रही थीं, जैसे कोई सपना देखा हो — पर दिल गवाही दे रहा था कि वो सपना नहीं था।

"वो लड़की… चाँदनी में चमकती… वो बात कर रही थी मुझसे… नाम क्या बताया था उसने? चंद्र… चंद्रिका?" — उसने मन ही मन दोहराया।

आरव ने पास की झील की ओर देखा, जो अब शांत और सामान्य लग रही थी। वहाँ न कोई रौशनी थी, न कोई आवाज़।

गाँव की कथा

वह गाँव के बुज़ुर्गों के बीच जा बैठा। वहाँ एक चूल्हे के पास बैठा एक बूढ़ा बाबा पुरानी कहानियाँ सुना रहा था।

"बाबा, ये झील इतनी रहस्यमयी क्यों है?" आरव ने पूछा।

बाबा ने अपनी आँखें तरेरते हुए कहा,
"तू नया है यहाँ। क्या किसी ने तुझे 'चाँदनी की रूह' की कहानी नहीं बताई?"

"रूह?" आरव चौंका।

बाबा ने सिर हिलाया, “कई सौ साल पहले एक राजकुमारी थी — चंद्रिका। उसका प्रेमी एक सैनिक था, लेकिन युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई। वो रोज इस झील के पास उसका इंतज़ार करती रही… और एक दिन, खुद भी जल में समा गई।”

"उसकी आत्मा अब पूर्णिमा की रात चाँदनी में नज़र आती है… जिसे सच्चा प्रेम दिखे, बस वही उसे देख सकता है।”

आरव का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

"क्या सच में मैंने उसे देखा था?" उसने सोचा।
अनकही तान

रात में वह फिर बाँसुरी लेकर झील के किनारे गया। उसकी उंगलियाँ धुन को दोहराने लगीं, जो पिछली रात उसने खुद ही बिना सोचे बजाई थी। बाँसुरी की तान हवा में तैरने लगी — और झील की सतह हल्की सी काँपी।

पर चंद्रिका नहीं आई।

बस एक धीमा, अधूरा स्वर हवा में गूंजा:

"राग अधूरा है… और प्रेम भी। पूरी तान से पहले, मैं नहीं आ सकूंगी…"

आरव की आँखें नम हो गईं। वह समझ गया — यह कोई साधारण मिलन नहीं था। यह प्रेम, आत्मा और संगीत की अग्निपरीक्षा थी।