अरुण ऑफिस में था तभी फोन आया।उसने उठाया उसकी माँ का था
"हां माँ।"
"तू घर आ जा।"
"क्यो माँ?"
"तुझसे बात करनी है।"
"तो कर ले।"
"अरे फोन पर नही।तू घर आ तब बात करेंगे।" और माँ ने फोन काट दिया था।
ऑफिस से छुट्टी होने के बाद अरुण शाम को घर पहुंचा था।अरुणा आज पहले आ गई थी।वह उससे बोला,"अरुणा में गांव जा रहा हूँ।"
"अचानक।सुबह तक तो ऐसी कोई बात नही थी।"अरुणा बोली।
"माँ का फोन आया था।"अरुण बोला,"माँ ने बुलाया है।"
"क्यो।,अरुणा बोली।
"यह तो नही बताया।"
"लौटोगे कब?अरुणा ने कहा था
"छुट्टी तो एक सप्ताह की ली है, और अपना ध्यान रखना फोन करती रहना।"और अरुण चल दिया था।अरुण व्रन्दावन का रहने वाला था।जब वह पांच साल का था तब उसके पिता का देहांत हो गया था।उसके पिता एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे।और पिता के गुजर जाने पर अरुण के लालन पालन की जिम्मेदारी मां पर आ गयी थी।उसकी माँ लीला की उम्र ही क्या थी।लोगो और रिश्तेदारों ने उससे कहा था,"अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है।पूरी जिंदगी अभी तुम्हारे सामने है।तुम दूसरी शादी कर लो।"
"नही मैं दूसरी शादी नही करूंगी।अपने पति की याद के सहारे बेटे को पालकर अपना जीवन गुजारूंगी।"
और उसने दूसरी शादी करने से इनकार कर दिया था।उसकी माँ ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी। लेकिन सिलाई का काम जानती थी।
वृंदावन एक हिन्दू धार्मिक स्थल है।यहाँ यो तो अनेक मन्दिर और धार्मिक स्थल है, लेकिन मुख्य रूप से बांके बिहारी का मंदिर है।प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु बांके बिहारी के दर्शन के लिय आते हैं।लीला ने पोशाक का काम शुरू किया।वह कान्हा और अन्य भगवान के विभिन्न साइज के तरह तरह के वस्त्र बनाने लगी।उसने कई दुकान वालो से सम्पर्क किया जो उसके वस्त्र खरीदने लगे।उसके बनाये वस्त्र पसन्द आने लगे तो बाहर के व्यापारी सीधे उसके पास आने लगे।औऱ इस तरह उनका खर्च चलने लगा।लीला अपने बेटे को पढ़ाने लगी।वह चाहती थी, उसका बेटा खूब पढ़े और अच्छी नौकरी करे।आअरुण शुरू से ही पढ़ने मे तेज था।वह हर क्लास में अच्छे नम्बर से ही पास होता था।वह सोच रहा था तभी डिनर सर्व होने लगा था।राजधानी एक्सप्रेस में चाय, नाश्ता, लंच, डिनर सब कुछ ट्रेन में ही मिलता है।डिनर से पहले वेटर शूप का कप दे गया था।अरुण की साइड की लोवर सीट थी।
ट्रेन अपनी गति से दौड़ी जा रही थी।और कुछ देर बाद खाना आ गया था।वह खाने लगा।खाने के बाद आइस क्रीम आ गयी थी।
और बड़ोदरा आने पर ट्रेन रुकी थी।वह भी प्लेटफार्म पर उतरकर घूमने लगा था।प्लेटफार्म पर यात्रियों की गहमा गहमी थी।और सिग्नल होते ही वह ट्रेन में चढ़ गया।ट्रेन चल पड़ी थी।
यात्री सोने की तैयारी करने लगे थे।अरुण ने भी अपनी बर्थ पर बिस्तर लगाया और लेट गया।वह मोबाइल देखने लगा।अरुणा ऑनलाइन थी।उसने चैट बॉक्स खोल
अभी सोई नही
लेटी हूँ
खाना खा लिया
बनाया ही नही
"क्यो"अरुण बोला,"फिर क्या खाया?"
"ब्रेड खा ली थी चाय से,"अरुणा बोली,"और तुंमने?"
"हां, खा लिया।बस अब लेटा हू।"
"कब पहुंचोगे?"
"सुबह आठ बजे।"
"फोन कर देना पहुंचकर।"अरुणा ने कहा था।
"ओ के"अरुण बोला,"अब सो जाओ।नुझे भी नींद आ रही है,"अरुण बोला,"गुड नाईट।"
"गुड नाईट।"
और अरुण ने फोन रख दिया था। और वह सोने का उपक्रम करने लगा।लेटे लेटे न जाने कब उसे नींद आ गयी थी।