दीपावली सिर्फ पर्व परम्परा नहीं सामाजिक समरसता प्रकाश -
दीपावली शब्द कि उत्पत्ति संस्कृतिक मतलब लाइन या श्रृंखला पद्म पुराण स्कंध पुराण का दीपावली का उल्लेख है ।
दीपावली का अर्थ एवं उद्भव इतिहास -
दिए को स्कंध पुराण में सूर्य का प्रतिनिधि करने वाला माना गया है जो जीवन के प्रकाश ऊर्जा का दाता है ।
सूर्य हिन्दू कलेंडर के अनुसार कार्तिक मास में अपनी स्थिति बदलता है इसे यम एवं नचिकेता के साथ भी जोड़ा जाता है।
नचिकेता कि कथा में सही बनाम गलत ज्ञान बनाम अज्ञान सच्चा धन बनाम छणिक धन आदि के विषय मे बताती है।
दीपावली का इतिहास रामायण से भी जुड़ा है ऐसा विश्वासः है की भगवान राम चन्द्र जी द्वारा माता सीता को रावण कि कैद से मुक्त कराने एव अग्नि परीक्षा के उपरांत 14 वर्ष के बनवास को व्यतीत कर अयोध्या लौटे जिसकी खुशी में अयोध्या वासियों द्वारा दीपकों की श्रीखला बना कर दीपावली अपनी प्रसन्नता व्यक्त की गईं तब से दीपावली का त्यौहार प्रचलित है।
दीपावली के और भी ऐतिहासिक एव पौंर्णिक तथ्य है जो दीपावली के त्यौहार परम्परा के कारक कारण के तथ्यों के रूप में स्वीकार किये जाते है।
ऐसा कहा जाता है कि दीपावली यक्ष एव गंधर्व का उत्सव हुआ करता था ऐसी मान्यता है कि दीपावली के दिन यक्ष अपने राजा कुबेर के हास विलास में बिताए और अपनी यक्षणियो के साथ आमोद प्रमोद करते ।बाद में यह त्योहार सभी वर्गों ने मनाना शुरू कर दिया।
सभ्यता के विकास के चलते बाद में धन देवता कुबेर की वजाय धन देवी लक्ष्मी कि पूजा होने लगी क्योकि कुबेर की मान्यत केवल यक्ष जातियों तक ही सीमित थी लक्ष्मी जी की मान्यता देव एव मानव जातियों में भी थी।
भौम सम्प्रदाय द्वारा कुबेर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन प्रारम्भ किया गया गणेश जी रिद्धि सिद्धि के दाता के रूप में प्रतिष्ठित किये गए।
कुबेर लक्ष्मी गणेश कि दीपावली
कुबेर जी मात्र धन के अधिपति है जबकि गणेश जी सम्पूर्ण रिद्धि सिद्धि के दाता है जिस प्रकार लक्ष्मी जी धन की अधिष्ठात्री के साथ साथ ऐश्वर्य एव सुख सबृद्धि कि स्वामिनी है बाद में लक्ष्मी गणेश का संबंध निकटतम कुबेर की बजाय माना गया।
माना जाता है कि दीपावली के दिन ही लक्ष्मी एव विष्णु का विवाह हुआ था
समुद्र मंथन में दीपावली के दिन ही धन्वंतरि एव लक्ष्मी जी का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था उसी दिन देवी काली का भी प्रदुर्भाव हुआ था इसी दिन काली एव लक्ष्मी की पूजा को दीपोत्सव कहते है।
भगवान विष्णु ने राजा बलि से दान में तीन पग में तीनों लोकों को दान में मांग लेने के बाद उसकी दान शीलता से बहुत प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राज्य दे दिया साथ ही साथ वरदान दे दिया कि उसकी याद में पृथ्वी वासी हर वर्ष दीपावली मनाएंगे तभी से दीपावली की परम्परा का शुभारंभ हुआ।
एक तथ्य यह भी है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बना दिया इंद्र ने स्वर्ग सुरक्षित जानकर दीपावली मनाई।
ऐसी मान्यता है कि चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करने के बाद भगवान राम सर्व प्रथम भाई भरत के नंदी ग्राम आश्रम गए वहाँ कुछ दिन रुकने के बाद अयोध्या भरत के साथ लौटे इस अवसर पर अयोध्या वासियों ने दीपो की श्रृंखला बना कर भाइयों का स्वागत वंन्दन अभिनानंदन किया तभी से दिपावली त्यौहार कि परम्परा चली आ रही है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण ने दीपावली के एक दिन पहले अत्याचारी नरकासुर का वध किया था जिसे नर्क चतुर्दसी भी कहा जाता है इसी खुसी में दूसरे दिन गोकुल वासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई ।दूसरी मान्यता श्री कृष्ण द्वारा सत्यभामा के लिए पारिजात बृक्ष लाकर देने से जुड़ी है।श्री कृष्ण द्वारा इंद्र पूजा का विरोध एव गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट परंपरा प्रारम्भ कि गयी।
ऐतिहासिक तथ्य-----
सिंधुघाटी सभ्यता 8000 वर्ष पुरानी है स्प्ष्ट है ईशा से 6000 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी में लोग रहते थे ।सिंधुघाटी सभ्यता कि खुदाई में पके हुए मिट्टी के दीपक एव 3500 ईसा पूर्व मोहनजोदड़ो सभ्यता कि खुदाई में प्राप्त भवनों में दीपकों को रखने हेतु ताख बनाये गए थे मुख्य द्वार को प्रकाशित करने हेतु आलो कि श्रृंखला थी मोहनजोदड़ो सभ्यता में प्राप्त मिट्टी कि एक मूर्ति के अनुसार स्प्ष्ट होता है कि उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी मूर्ति में मातृ देवी के दोनों तरफ तो दीप जलते दिखाई देते है।
सांमजिक एव सांस्कृतिक महत्व---
दिवाली विशुद्ध रूप से सांस्कृतिक एव धार्मिक अवधारणाओं पर निर्भर होती है दीपावली विश्व के सभी भू भागो पर भारतीयों द्वारा मनाई जाती है हमारा दायित्व है कि पीढ़ियों को अपनी संसास्कृतिक विरासत सौंपे जिससे कि हमारी संस्कृति अक्षय एव अक्षुण्ण रहे दिवाली पांच दिनों तक मनाई जाती है।
दीपावली पर घर की सफाई का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि जहां साफ सफाई होती है जिसका वैज्ञानिक कारण यह है कि वर्षा ऋतु कि समाप्ति के बाद ऋतु परिवर्तित होती है जिससे अनेक हानिकारक कीड़े मकोड़े समाप्त हो जाते है।
धन बैभव की देवी लक्ष्मी का आगमन एव वास होता है बहुत स्प्ष्ट है कि दीपावली साफ सफाई के सांस्कृतिक संस्कार का सामाजिक त्योहार है।
सफाई में पुराने घरेलू वस्तुओं को हटा कर नई वस्तुएं लाई जाती है घर एव दीपो को बिभन्न रंगों से रंगा जाता है घर को बिभन्न तौर तरीकों से सजाया जाता हैं।
दीपावली में बाजारों में रौनक रहती है नए नए परिधान घर के सदस्यों के लिए खरीदे जाते है आतिश बाजी की भी परम्परा है लेकिन पर्यावरण को ध्यान में रखते हुये इको फ्रेंडली दीपावली पर अधिक जोर है वर्तमान समय की आवश्यकता है।
दीपावली पर रंगोली बनाई जाती है घर पर दीपों से सजाया जाता है लक्ष्मी गणेश की पूजन होता है पूरी रात दीपक जलाते है मान्यता है कि सुख सम्पमन्ता कि देवी लक्ष्मी का आगमन होता है तरह तरह के मिष्टान्न पकवान बनाये जाते है एक दूसरे को सभी समाज वर्गों के लोग बधाई देते है एव सभी द्वेष दम्भ भूल कर एक दूसरे से मिलते हैं।
दिवाली को रमा शामा कहते है यह अद्भुत त्योहार है सिर्फ हिन्दू धर्म अनुयायियों को नही दीपावली सभी धर्म समाज मे समभाव का सांचार करता है समाजिक समरसता एव सौहार्द के वातावरण का निर्माण करता है एक दूसरे को मिठाई भेंट कर सामाजिक वैमनस्य में भाई चारे के सांचार करते है।
दीपावली त्योहार नही बल्कि त्योहारों कि एक बृहद श्रृंखला है जिसका शुभारम्भ दीपावली से तीन दिन पूर्व धन तेरस से होता है इस दिन लोग अपनी शक्ति के अनुसार नए नए समान खरीदते है जिसमे वर्तन आभूषण एव वहान मकान आदि प्रमुख है एवं स्वस्थ देवता धन्वंतरि कि पूजा होती है इसे धनतेरस के नाम से जाना जाता है ।
धनतेरस के बाद छोटी दीपावली इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने दैत्य नरकासुर का वध किया था इस दिन एक दिया यमलोक का जलाया जाता है ।
छोटी दीपावली के अगले दिन दीपावली का मुख्य पर्व मनाया जाता है घर की साफ सफाई रंग रोगन अपनी शक्ति के अनुसार लोग करते है ।
घर मे बिभन्न प्रकार की रंगोली बनाई जाती है घरों को सजाया जाता है एव घर के सभी सदस्य नए नए परिधान पहनकर लक्ष्मी गणेश का पूजन करते है और दीपकों की शृंखला से घर को सजाया जाता है बच्चे बूढ़े जवान सभी मिलकर आतिश बाजी करते है एव समाज के सभी वर्गों के लोग एक दूसरे को मिठाईयों का उपहार देते है एव मिलते है।
दीपावली के दूसरे दिन को पड़वा के रूप में मनाया जाता है इस दिन बाज़ार बन्द रहते है इसी दिन भगवान श्री कृष्ण के द्वारा इंद्र कि पूजा के बदले गोवर्धन पूजा कि परम्परा के अंतर्गत गोवर्धन पूजा होती है छप्पन भोग बनते है और पूजन होता है जिसे अन्नकूट कहते हैं ।
भारत के कुछ भागों में पड़वा को गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है और दीपावली के तीसरे दिन गोवर्धन कूटने कि प्रथा है इसी दिन भैया दूज का त्योहार मनाया जाता है बहने भाईयों को आशीर्वाद देती है ।
भैया दूज के एक दिन बाद कायस्थ कुल कलम दावात की पूजा करता है एव भगवान चित्रगुप्त कि पूजा होती है ।
दीपावली के नौवें दिन अक्षय नौमी बहुत विशिष्ट त्योहार मनाया जाता है इस दिन लोग आँवले के बृक्ष के नीचे भोजन बनाते है एव करते है मान्यत है कि ऐसा करने से व्यक्ति निरोग एव स्वस्थ रहता है अक्षय नौमी के दो दिन बाद एकादसी का व्रत एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है जिसमें लोग पूरे दिन उपवास करते है गन्ने कि नई फसल का रस गंजी ,आदि आहार करते है एकादसी के तीन दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा का अति महत्वपूर्ण त्योहार मनाया जाता है इसी दिन गुरुनानक देव जी का अवतरण दिवस भी मनाया जाता है लोग गंगा आदि पवित्र नदियों एव सरोवरों में स्नान करते है एव पूजन वंन्दन के साथ साथ दान पुण्य कर्म करते है।
दीपावली उत्सव कि दीपो कि एक श्रृंखला है जो समाज के सभी वर्गों धर्मो के लिए सद्भावना समरसता का सांचार करता है एव ब्रह्मांड के सभी प्राणियों जातियों समाज को एक सूत्र में पिरोने का शाश्वत सूत्र है दीपावली पर्व श्रृंखला कि तरह ही पर्व कि महत्वपूर्ण श्रृंखला जिसमें वृक्ष , पहाड़,नदी,आदि प्राणी के लिए महत्पूर्ण प्राकृतिक अवयव आयाम कि महत्ता का पूजन कर स्वीकारोक्ति है।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश