How can you hide anything from your friend? in Hindi Love Stories by Wajid Husain books and stories PDF | दोस्त से कैसा पर्दा

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दोस्त से कैसा पर्दा

वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानीनवाबों की गली नवाबों के लिए जानी जाती थी। वक्त की तरह लगातार बनते- बिगड़ते नवाबों की यहां भरमार थी। इन नवाबों में एक मशहूर नवाब थे, नाम था, खलील खां। ज़मींदारी निकल जाने के बाद इनके वंशजों के पास एक इंच भी ज़मीन नहीं बची पर इनके अजीबोगरीब किस्से बचे हैं, ज़्यादातर उदास कर देने वाले, डरावने और हंसाने वाले...। आज भी यहां एक कहावत मशहूर है, 'वह ज़माने गए जब ख़लील ख़ां फाख़्ता मारते थे।' -नर्गिस पहली लड़की थी जो  उनकी ज़िंदगी में आई थी। उस समय वह सोलह बरस के थे और नर्गिस उनसे कुछ- एक साल बड़ी थी। वह हैदराबाद की रहने वाली थी और दिल्ली के मिरांडा हाउस में उनकी बड़ी बहन के साथ पढ़ती थी। किसी छुट्टी वाले दिन उनकी बहन ने उसे घर पर बुला लिया। नर्गिस आई तो बुर्का पहने हुए थी लेकिन उनकी बहन की ज़िद पर उसने बुर्का उतार दिया। उसका परिवार के सदस्यों से परिचय कराया गया। ख़लील खान के लिए तो यह बेहद लुभावना मंज़र था। बुर्क़ा उठाने की कला भी वैसा ही शानदार नज़ारा पेश करती है, जैसा की रंगीन बत्तियों से जगमगाते स्टेज से पर्दा उठने पर दिखता है। ख़लील खां पर उसकी पहले छाप ऐसी पड़ी कि लगा उससे सुंदर लड़की कोई दूसरी हो ही नहीं सकती। उसका रंग गोरा और बाल घुंघराले भूरे थे। वह अंग्रेजी इतनी अच्छी बोलती कि उसमें कोई स्थानीय लहजा नहीं झलकता था। लेकिन उसकी उर्दू में साउथ इंडियन हिंदी का बड़ा मोहक पुट होता था। सबसे ज्यादा प्रभावित तो वह उसके चुलबुले स्वभाव से हुए थे। वह यह सोच- सोच कर हैरान होते कि यह लड़की इतनी शोख और चटपटे स्वभाव की कैसे हैं?उनके घर पहली बार आने के कुछ ही दिनों बाद वह और उनकी बड़ी बहन उसे फिल्म दिखाने ले गए। नर्गिस उनके बराबर बैठी हुई थी। जैसे ही बत्तियां बुझी, उसने उनकेहाथ पर अपना हाथ रख दिया। वह खुशी से पागल हुए जा रहे थे। उसके बाद तो उन्हें अपनी बहन की परवाह नहीं रह गई थी। एक बार नर्गिस को उनके घर शाम बिताने की परमिशन मिल गई। वह उसे लेने गए लेकिन घर लाने की बजाय कार से उसे क़ुतुब मीनार दिखाने ले गए। उन दिनों नई दिल्ली की आबादी बहुत कम थी और महरोली का इलाका तो एकदम वीरान था फिर वह दोनों एक दूसरे का हाथ थामें रहने और प्यार भरे चार शब्दों के अदल-बदल से आगे नहीं बढ़ सके। वह इस बात को लेकर चौकस थी कि शादी से पहले मर्द को रिझाने के लिए नज़दीकियों की क्या सीमा होनी चाहिए।फिर एक दिन ख़लील खां को पता चला कि नर्गिस ने पढ़ाई छोड़ दी और वह हैदराबाद वापस चली गई। वह उदास रहने लगे थे और उनका मन किसी काम में नहीं लगता था। उनकी दिलचस्पी लाल आंखों वाले लक्खा कबूतरों में भी नहीं रही थी जो उन्हें कबूतर बाज़ी प्रतियोगिता में शील्ड दिलाते थे।जुम्मे के दिन खलील खां का डेली रूटीन बदल जाता था।  जमील उनके बदन की मालिश करता फिर वह नहाने के लिए हमाम जाते थे। मालिश करते समय वह जमील से हंसी मज़ाक करते रहते थे। एक दिन जमील ने उन्हें गमगीन देखकर मज़ाक़िया लहजे मे पूछा, 'छोटे नवाब, ऐसा लगता है, आपकी फाख़्ता उड़ गई?'जमील ने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था, 'अबे तू उसे कैसे जानता है?' ख़लील ख़ां ने हैरानी से पूछा।जिस दिन आप उसे फिल्म दिखाने नटराज टॉकीज ले गए थे, मैं वहां पोस्टर देख रहा था। मैंने बुर्के में से उसकी एक झलक देखी थी। ख़ुदा क़सम जन्नत की हूर थी। फिर कहा, 'छोटे नवाब, ग़म क्यों करते हैं, एक फाख्ता उड़ गई, दूसरी मार लीजिए।''उन्होंने उदास लहजे में कहा, 'यही तो गम है, नवाबों की लड़कियां फाख्ता नहीं होती, मिट्टी का थुआ होती हैं।' ख़लील ख़ां की उदासी उनकी अम्मी से बर्दाश्त नहीं हुई। वह शादी को हर मर्ज़ की दवा समझती थी।' लिहाज़ा उन्होंने उनकी शादी सकीना से कर दी। वह एक नवाब की इकलौती बेटी थी और नाज़-नखरो से पली हुई थी। उनकी शादी धूमधाम से हुई फिर वह रात भी आ गई जिसका उन्हें शिद्दत से इंतज़ार था। फूलों की सेज पर सजी दुल्हन उनका इंतज़ार कर रही थी। उन्हें कमरे में दाख़िल करते समय अम्मी ने सोचा, 'यह बेवकूफ न जाने क्या क़हर ढाएगा?' अत: उन्होंने चेताया, 'ख़लील, बहू बेगम मैदा की लोई है, एहतियात से छूना, मैली न हो जाए।''अम्मी जान आपने हमें नातजुर्बेकार समझ रखा है?' यह सुनकर, कभी ना हंसने वाले उनके अब्बू भी हसीं न रोक सके थे। उन्होंने सच ही कहा था, सिनेमा हॉल में नर्गिस ने उनका हाथ अपने हाथ में लिया था और क़ुतुब मीनार पर उनके नज़दीक आने की सारी हदें पार कर दी थी। वह सोचने लगे थे कि उनकी बीवी भी नर्गिस की तरह पहल करेगी पर वह गठरी बनी बैठी रही। उसने उनकी तरफ नज़र उठाकर देखा भी नहीं। 'कितनी बेतहज़ीब है?' यह सोचकर उनके माथे पर बल पड़ गए। 'मुझे ही पहल करना चाहिए।''बहु बेगम घूंघट उठाओ।' उन्होंने गुस्से में कहा। उसने घूंघट नहीं उठाया और सिमट गई। ख़लील खां सोचने लगे, 'ज़िद्दी भी है, मेरा कहा नहीं मान रही है। उन्होंने उसे चेताया, 'घूंघट उठाओ, नहीं तो मैं हेकड़ी निकाल दूंगा।'बहु बेगम ने धीरे से कहा, 'दुल्हन का घूंघट शोहर उठाता है। खलील खां ने कहा, 'फिर तुम मुझसे कहना, दुल्हन की जूतियां शोहर उठाता है।' वह उसे रोता छोड़ कमरे से बाहर निकल आए और बड़बड़ाते हुए दूसरे कमरे में सोने चले गए। धीरे-धीरे यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई और लोग उन्हें नामर्द समझने लगे। इस सब ने उन्हें झकझोर दिया था, लिहाज़ा उन्होंने अपने को एक कमरे तक सीमित कर लिया था।अगले जुम्मे को मालिश के लिए, जमील उनके घर आया।  उन्हें उदास देखकर उसे बहुत दुख हुआ। उसने उनसे कहा, 'छोटे नवाब, मैं आपको एक मशवरा दूं तो छोटा मुंह बड़ी बात होगी।'तू भी कह दे जो तेरे दिल में है।'  आप उस लड़की से निकाह कर लीजिए जिससे आप मोहब्बत करते थे। आपको अपनी मोहब्बत भी मिल जाएगी और लोगों के मूंह भी बंद हो जायंगे।''बात तो पते की कर रहा है।' उन्होंने चांदी का सिक्का उसकी ओर सरकाते हुए कहा। नर्गिस का पता ठिकाना याद करने लगे। उन्हें याद आया, एक दिन बातों- बातों में उसने कहा था, वह जहांगीराबाद में नवाब साहब की हवेली में रहती है।फिर एक दिन वह हैदराबाद पहुंच गए। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर उन्होंने तांगे वाले से जहांगीराबाद में नवाब साहब की हवेली चलने को कहा। तांगे वाले ने हवेली के सामने अपना तांगा रोक रखा था और जो कोई भी दिखता उससे नर्गिस का पता पूछता पर निराशा हाथ लगती। एक राहगीर ने उन्हें मशवरा दिया, 'नजीबन तवायफ की लड़की दिल्ली में पढ़ती है और हॉस्टल में रहती है। आप उससे पूछिए, वह उसे जानती होगी।' तभी किसी ने हवेली के गेट पर लगी कॉल बेल बजा दी जिसे सुनकर नर्गिस गेट पर आई। उसने बड़ी अदा से ख़लील ख़ां को आदाब पेश किया और अंदर तशरीफ लाने को कहा। उन्होंने उसे देखकर मुंह फेर लिया और तांगे वाले से वापस चलने को कहा। रास्ते में तांगेवाले ने उनसे कहा, 'इसकी मां नवाब अख्तर की रखैल थी। उनके मरने के बाद उसने यह हवेली और उनकी जायदाद कब्ज़िया ली।वह ट्रेन की बर्थ पर बैठे सोच रहे थे, 'मैं कितना बौड़म हूं, एक करप्ट लड़की की तुलना बीवी से कर रहा था।' मैंने उससे घूंघट उठाने को कहा, वह मेरे बारे में क्या सोच रही होगी? इसी उधेड़बुन में उनका सफर कट गया। घर पहुंच कर वह सकीना के कमरे में गए। उससे कहा, 'मैं तुम्हें एक राज़  की बात बताना चाहता हूं और उसे अपने और नर्गिस के बीच का सब कुछ बता दिया। सकीना ने धीमे से कहा, 'जो शौहर बीवी के सामने ज़िंदगी की किताब दोहरा देता है, वह सच्चा दोस्त होता है। उसने मुस्कुरा कर घूंघट उठा दिया और कहा, 'दोस्त से कैसा पर्दा...?'वह उसके मोती जैसे दांत देखते रहे, फिर कहा, 'वल्लाह, तुम जितनी खूबसूरत हो उतनी ही समझदार भी हो और उसे अपने आगोश में ले लिया।'348 ए, फाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बायपास, बरेली (उ प्र) 243006, मो: 9027982074 ई मेल wajidhussain963@gmail.com