साठ का दशक शुरू होते- होते फ़िल्मों में विश्वजीत, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर आदि भी अपनी जगह बनाते हुए दिखे किन्तु टॉप पर अपनी मंज़िल ढूंढने का दम- खम जिन नायकों में दिखाई दिया वो मुख्य रूप से राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त और मनोज कुमार थे।
ये गीत- संगीत भरी मादक मनोरंजक फ़िल्मों का ज़माना था। इसी मधुरता के चलते इसे फ़िल्मों का स्वर्ण युग भी कहा जा रहा था।
राजेन्द्र कुमार ने एक के बाद एक हिट फ़िल्मों की झड़ी लगा दी। उनकी अभिनीत फ़िल्मों का आलम ये था कि उन्हें "जुबली कुमार" की संज्ञा दी जा रही थी।
सातवें दशक की ढेर सारी सफल फ़िल्मों ने राजेन्द्र कुमार को अपने समय का नंबर एक हीरो करार दिया। उस दौर की लगभग हर हीरोइन ने उनके साथ काम किया। राजेन्द्र कुमार एक ऐसे हीरो साबित हुए जिनके अभिनय की तारीफ कभी किसी फिल्म समीक्षक ने नहीं की पर दर्शकों ने उनके दीदार के लिए बॉक्स ऑफिस हिला दिया। जुबली कुमार कहे जाने वाले इस एक्टर ने मदर इंडिया, आस का पंछी, गूंज उठी शहनाई, दिल एक मंदिर, ससुराल, आरज़ू, मेरे महबूब, सूरज, पालकी, तलाश, गोरा और काला, गांव हमारा शहर तुम्हारा, आई मिलन की बेला, संगम, आप आए बहार आई, साजन बिना सुहागन जैसी हिट और सुपरहिट फिल्मों में काम किया। पर्दे पर राजेंद्र कुमार के गाए हुए गाने भी बेहद लोकप्रिय हुए।
उनके बाद शिखर की यही सफलता सुनील दत्त ने भी पाई। उन्हें भी अपने वक़्त का नंबर वन सितारा माना गया। उन्होंने फ़िल्मों में एक लम्बी पारी खेली। मदर इंडिया में अत्यंत प्रभावशाली अभिनय के बाद फिल्म में इनकी मां की भूमिका निभाने वाली चोटी की नायिका नर्गिस ने इनके साथ शादी कर ली। सुनील दत्त ने मुझे जीने दो, ग़ज़ल , खानदान, मिलन, रेशमा और शेरा, हीरा, वक्त, गबन, गीता मेरा नाम, नागिन, हमराज जैसी कई फ़िल्मों में अपने अभिनय के जौहर दिखलाए। ये बाद में राजनीति में भी आए।
राजकपूर की भांति पहले हीरो और फिर फ़िल्म निर्माता के रूप में भारी ख्याति मनोज कुमार के हिस्से में भी आई। एक समय उन्हें भी सर्वश्रेष्ठ कहा गया।
वो कौन थी, गुमनाम, पूनम की रात मनोज कुमार की रहस्य रोमांच पर आधारित सफ़ल फिल्में थीं। रोमांच से रोमांस पर आते हुए भी इस खूबसूरत सेक्सी दिखने वाले नायक को देर नहीं लगी। पत्थर के सनम, दस नंबरी, संन्यासी, अनीता, पूरब पश्चिम, हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में जैसी ब्लॉक बस्टर फ़िल्में मनोज कुमार की कामयाबी की कहानी कहती रहीं। अपने दौर की लगभग हर बड़ी तारिका के साथ मनोज ने काम किया। इसी के साथ - साथ मनोज के भीतर बैठे लेखक, निर्देशक, निर्माता ने भी अपना असर दिखाना शुरु कर दिया और उन्होंने बाद में बेहद सुरुचिपूर्ण व उद्देश्य पूर्ण फ़िल्मों की बदौलत भी अपार लोकप्रियता पाई। बेईमान, पहचान, रोटी कपड़ा और मकान, उपकार की सफ़लता के रास्ते मनोज क्रांति, क्लर्क, कलयुग की रामायण और शिरडी के साईं बाबा जैसी फ़िल्मों से भी जुड़े।
फ़िल्म इतिहास में चोटी के सितारों के क्लब में एक कुर्सी उनके नाम की भी है। उन्होंने फ़िल्मों में एक लंबी पारी खेली।
इन तीनों नायकों को ही मधुर संगीत वाली मनोरंजक, साफ़ सुथरी पारिवारिक फिल्मों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।