तक्ष ने त्रिशूल लाकेट छू लिया....
अब आगे.........
विवेक तक्ष को उकसाते हुए बोला......" पकड़ो मुझे आओ..."
विवेक की बात सुनकर तक्ष घबरा जाता है लेकिन अपने घबराहट को न दिखाते हुए तक्ष अदिति के पास जाकर उसके हाथ को पकड़कर कहता है....." तुम्हें मुझे पर भरोसा नहीं है अदिति और ये क्या लगा रखा है मेरे साथ... मुझे यहां आना ही नहीं चाहिए था...."
अदिति तक्ष को समझाती हुई बोली..." तक्ष तुम डर क्यूं रहे हो मुझे तुम पर भरोसा है जाओ पकड़ लो उस लाकेट को..."
अदिति के कहने से तक्ष धीरे धीरे आगे आकर... त्रिशूल लाकेट को पकड़कर छोड़ देता है.... विवेक शाक्ड हो गया आखिर इसने लाकेट कैसे पकड़ लिया....
विवेक : नहीं तुम इसे नहीं पकड़ सकते....
अदिति : विवेक तुम्हें हो क्या गया है...?...तक्ष ने लाकेट पकड़ तो लिया है न फिर..
इशान : अदिति ठीक कह रही है विवेक.... तुम बचकानी हरकतें कर रहे हो...
विवेक चिढ़कर कहता..." मैं झुठा नहीं हूं.... इसने फिर कुछ किया है.....(इतना कहकर विवेक वहां से चला जाता है)...
अदिति : विवेक रुको....
मालती : जानो दो उसे बेटा वो ऐसा ही एक बार जो बात ठान लें फिर उसे वो सच मान लेता है....
अदिति फिर विवेक के पास चली जाती हैं....
अदिति : विवेक... क्या हुआ है...?
विवेक : जाओ अदिति यहां से मुझे अभी किसी से बात नहीं करनी.....
अदिति : तुम किसी से नहीं मुझसे बात कर रहे हो....
विवेक : अदिति प्लीज...
अदिति विवेक के सामने आकर उसके चेहरे को अपने हाथ से पकड़कर कहती...." विवेक तुम चाहते हो मैं चली जाऊं... क्या तुम अब अपनी स्वीट हार्ट से बात नहीं करोगे.... क्या हो गया है तुम्हें विवेक....?..."
विवेक : मुझे कुछ नहीं हुआ अदिति जो हुआ तुम्हें हुआ है...तुम ही सबकुछ भुलती जा रही हो....
अदिति : मैं क्या भूल गई विवेक...?
विवेक : तुम्हें बताने का कोई फायदा नहीं है... वो तक्ष कोई इंसान नहीं है..
अदिति : ओह विवेक फिर वही बातें..... तुम्हें तक्ष कहां से इंसान नहीं लगता....खैर छोड़ो ये सब .... पता विवेक मुझे तुम्हारा गिफ्ट, सर्प्राइज बहुत अच्छा लगा......
अदिति विवेक का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन विवेक तो कहीं और ही खोया हुआ था... अदिति विवेक के बिल्कुल नजदीक पहुंचती है...पर इससे भी विवेक को कुछ असर नहीं हुआ.. अदिति तभी विवेक के होंठों पर किस कर देती है... इससे विवेक का ध्यान हटता है और तुरंत अदिति को अपने से दूर कर देता है...
और गुस्से में अदिति से कहता है...." अदिति पागल हो... मैंने मना किया था मेरे पास मत आना... फिर...
विवेक अभी कुछ और बोल ही पाता अदिति की आंखों में आसूं आ जाते... विवेक को अदिति का रोना बिल्कुल पसंद नहीं था ....
विवेक : एम सॉरी अदिति लेकिन तुम ऐसे क्यूं आई मेरे पास...
अदिति : अब मुझे तुम्हारे पास आने के लिए परमिशन लेनी पड़ेगी..... ठीक है...(इतना कहकर अदिति पीछे पलटती ही है तभी चक्कर आने से बेहोश हो जाती है)...
विवेक : अदिति.... अदिति मैंने मना किया था ...अदिति उठो..(बार बार उठाने पर अदिति नहीं उठती तो विवेक उसे उठाकर अंदर लेकर आता है...)
विवेक के इस तरह अदिति को लाने से आदित्य घबरा जाता है....." विवेक क्या हुआ इसे...?..."
विवेक सोच में पड़ जाता है और अपने आप से बोलता है..." क्या बताऊं मैं आपको मेरी किस की वजह से अदिति बार बार बेहोश हो रही है....."
इशान : विवेक कुछ बोलता क्यूं नहीं है...?
विवेक : भ .. भाई... अचानक बेहोश हो गई....
तभी तक्ष पीछे से कहता है..." आदित्य अदिति अचानक बेहोश नहीं हुई है... इसने अदिति पर चिल्लाया था तब अदिति बेहोश हुई है....."
विवेक हड़बड़ा कर बोला...." ये ... क्या बोल रहा है...?
तक्ष : आदित्य मैं सच कह रहा हूं मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है...और बाकी अदिति से पूछ लेना...
आदित्य : अभी तो अदि बेहोश है न .....
तक्ष : रूको मैं शायद इसे ठीक कर सकता हूं..... मैं गांव वाला जरुर हूं लेकिन औषधि के बारे में जानता हूं.... क्या आप थोड़ा सा पानी नमक और काली मिर्च ला देंगी...
कंचन : इससे क्या होगा....?...भाई आप इसे आराम करने दो शायद जल्दी ठीक हो जाए.....
विवेक : और इसकी बात सुनने की जरूरत नहीं है आज जो कुछ भी
आदित्य विवेक को रोकते हुए कहता है..." बस विवेक अब और नहीं....इशान तक्ष की बताए समान को दे दो..."
" हां.... बाबा भाई (नौकर को आवाज लगाता है)...इनको जो चाहिए वो समान इसे दे दो..."
श्रुति विवेक के पास जाकर धीरे से कहती हैं...." विवेक ये कैसे हुआ..?...."
विवेक : मैं तुम्हें नहीं बता सकता....बस मेरी बात को समझना कोई नहीं चाहता...और तुम भी यही कहती हो तक्ष इंसान हैं कोई पिशाच नहीं
श्रुति : ओह विवेक तुम फिर वही बात लेकर बैठ गये.... तुमने खुद भी तो टेस्ट लिया था न .....क्या हुआ कुछ पता चला.... नहीं न...बस ....
विवेक : तुम शांत रहो....ये आज जो भी हो रहा तक्ष की वजह से अदिति बार बार बेहोश हो जाती है....
श्रुति : तुम्हें पता उसका ट्रीटमेंट चल रहा है....(विवेक बिना कुछ कहे श्रुति से दूर जाकर खड़ा हो जाता है)....
विवेक अपने आप से बोलता है..." जो भी हो मैं इस तक्ष का पता करके ही रहूंगा....अब मैं और अदिति को इस हाल में नहीं देख सकता.....
विवेक ये सोच रहा था और तक्ष रसोईघर से सामना इक्ट्ठा कर रहा था.....
उबांक : दानव राज आपको इन सबकी जरूरत कबसे पड़ गई....आप तो उसे ऐसे ही उठा सकते थे....?
तक्ष : हां उबांक... लेकिन अगर मैंने ऐसा किया तो सबको विवेक की बात सच लगने लगेगी....और मैं नहीं चाहता मेरा मकसद पूरा होने से पहले किसी को मेरे बारे में पता चले...
उबांक : दानव राज एक बात समझ नहीं आई....?
तक्ष : कैसी बात...?
उबांक : आपने उस तावीज को कैसे छू लिया.....?
तक्ष एक शैतानी हंसी के साथ कहता है...." उबांक याद करो ...उस तावीज को मेरी अदिति की वजह से छू पाया...
उबांक : मैं समझा नहीं दानव राज.....?
................to be continued.............
आखिर तक्ष त्रिशूल लाकेट को कैसे छू पाया...?
जानेंगे अगले भाग......