दीवार के पार
आज सुबह का अखबार देखते हुये आँखें टिक गयी उस समाचार पर जिसने आन्या को हिला कर रख दिया । संदीप के नाम को पढ़ कर आन्या का विचलित होना स्वाभाविक था। समाचार क्या था घमाका था संदीप का नाम उन अपराधियों में शामिल था। जिन्होंने मिलकर अपनी किसी महिला सहकर्मी का न केवल अनेकों बार शारीरिक शोषण किया अपितु जिसमें नाम सार्वजनिक करने की घमकी देना जैसी बातें शामिल थीं। नाम पता वही था शहर भी वही था। आन्या कुछ घंटों तक सोचती रही 'क्या यह वही संदीप है जिसके साथ मित्रता करके वह गौरव महसूस कर रही है।' अभी कुछ वर्षो पहले ही तो संदीप के साथ आनन्द दायक मुलाकात हुई थी और आज तक भी मित्रता वैेसी ही चलती रही है। बीच में उसने बताया वह बिमार है लम्बी बिमारी के बाद उससे एक दो बार ही बात हो पाई थी और आज यह समाचार.....
न जाने क्यों आन्या का मन इस समाचार पर विश्वास करने का नहीं हो रहा था। कुछ घंटे लगे उसे समाचार के विषय में सोचनेे में और अपने मन ही मन समाचार की सत्यता का आंकलन करने में। अंत में आन्या ने फोन उठाया और तुरन्त ही सामने से फोन उठा...। कमजारे आवाज में संदीप उसका मित्र बस इतना ही कहता रहा मुझे फंसाने के लिये यह सब किया गया है मैं निर्दोष हुं और कोई विश्वास करे या न करे तुम तो विश्वास कर ही सकती हो किसी मदद की आवश्यक्ता नहीं है। बस मैं निर्दोष हुं इस बात पर विश्वास करके दोस्ती कायम रखोगी तो मेंरी हिम्मत बनी रहेगी। प्लीज सच्चाई जल्दि ही सामने आ जायेगी। तुम भी जानती हो कॉरपरेट जगत में सब कुछ संभव है। जो लोग इसमें शामिल है उनका झूठ बहुत लम्बे समय तक नहीं टिक पायेगा।
सब कुछ सुनकर आन्या ने ये कह कर फोन रखा था र्प्राथना और विश्वास दोनों अद्रष्य हैं परन्तु दोनों में इतनी ताकत है कि नामुमकिन को मुमकिन बना देती है मुझे तुम पर पूरा विश्वास है किसी मदद की आवश्यक्ता हो तो कहना, अपना ध्यान रखना कह कर फोन रख दिया। पूरे दिन मन खराब रहा कि आफिस जाने का मन भी नहीं हो रहा था। जिन्दगी में हम कितने सही हैं और कितने गलत है यह सिर्फ दो ही जन जानते हैं एक हमारी अर्न्तआत्मा और ईश्वर।
मैं भी अब अपनी दोस्ती का मुल्यांकन करने लगी थी अब तक मेरी सोच इस रिश्ते के बारे में ये थी कि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर अमीर बना देते हैं आन्या को संदीप के साथ की वह पहली व अंन्तिम मुलाकात याद आ रही थी बहुत सोचने पर भी संदीप की कोई भी एैसी बात या हरकत उसे याद नहीं आ रही थी जिससे वह उस पर अंश मात्र भी शंका कर सके, या इस समाचार पर विश्वास कर सके। आन्या ने सिलसिले वार उस पूरी मुलाकात को याद करना आरंम्भ किया.....।
उस दिन पिछले एक घंटे से पांच सितारा होटल की वेटिंग लांज में बैठी आन्या इंतजार कर रही थी | जो पिछले सात वर्षों से उसका मित्र है आन्या स्वयं एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत है। अकेली रहती आन्या को हर कदम सोच समझ कर उठाना है यह बात वह जानती है। अब आन्या माता पिता व अन्य घरवालों के बिना रहना सीख गई थी। उसने अपने फेसबुक मित्र से मिलने का समय दोपहर का सुरक्षा की द्रष्टि से ही तो चुना था। वैसे तो उसके लिये दोपहर को निकलना आसान नहीं था पर दिन में मिलना उसके लिये अधिक सही था आखिर वह अपने फेसबुक ,वाट्स एप, फोन फ्रैन्ड से पहली बार मिल रही थी। कितनी अप्रिय किस्से वह इस तरह की दोस्ती के सुनती आ रही है पर उसे इस दोस्ती को एक सकारात्मक आकार देना था जो वह दे रही थी।
मित्रता उसकी नजर में प्रगाढ से प्रगाढतर होती जा रही थी। खूब हंसी मजाक एक दूसरे की मदद इस सात वर्षो में वह अपने इस मित्र को काफी बार परेशान कर चुकी थी। कभी आफिस के काम के लिये कभी लाइसैंन्स आदि के लिये आखिर उसकी दोस्ती भी तो तभी हुई थी जब वह अपने पुराने शहर में किसी जाने पहचाने चैहरे की तलाश कर रही थी। अब तो आन्या ने अपना शहर भी बदल लिया था पर अपना कोई स्थाई पता न होने के कारण उसके सारे परिचय पत्र उसके पुराने शहर बैंगलोर के ही तो थे। आज दिल्ली जैसे शहर में रहकर वह नये बनवाने के पचड़ो से घबराती थी।
उसके यह काम निबटाने के लिये संदीप जैसा मित्र जो मिला हुआ था। वैसे उसके आफिस में बॉस उसे अनेकों बार अपने पेपर्स में पता बदलवाने के लिये उसके लिये जरूरी मदद का अश्वासन दे चुके थे। इसी वजह से उसकी पहचान कहें या दोस्ती अपने इस फेसबुक फ्रैन्ड संदीप से दिन पर दिन गहरी होती चली गई थी। संदीप का अनेकों बार दिल्ली आना होता था पर आन्या ने कभी पहल नहीं कि मिलने की इच्छा नहीं जताई थी उसे यह मित्रता इसी तरह से रास आ रही थी।क्योंकि आन्या अपने काम के प्रति ईमानदार समर्पित महिला थी। जमाने की हवा से अधिक प्रभावित भी नहीं थी पर आधुनिक थी आन्या के चैहरे से अंदाज नहीं हो सकता था कि विवाह करने की निधार्रित उम्र को वह पार कर चुकी है। सदा जवान रहने के लिये चेहरे का सौन्दर्य नहीं बल्कि मस्तिष्क की उड़ान की जरूरत है।
आफिस में खुशमिजाज पर अपनी सीमाओं में रहने वाली । आन्या के बाँस अकसर उसकी तारीफ करते। सामने होते तो हाँ, हूँ में ही जवाब देते, वैसे आन्या उनके साथ व अपने एक दो कलिग्स के साथ विदेश यात्रा भी कर चुकी थी पर बाँस हमेशा कम ही बात करते थे। आन्या का रंग रूप भले साधारण था पर उसकी असाधारण भाषा शैली, अपने विषय पर पकड़ अपनी बात कहने का तरीका बहुत प्रभाव शाली था। इसी लिये ही तो उसका नाम आफिस के कुशल वक्ताओं में से एक था। कुशल वक्ता बने रहने के लिये नित नई किताबे पढ़ना भी उसकी सहभागी थी। आन्या का एक अच्छा शौक था। आन्या की सोच थी कि ;श्रद्धा ज्ञान देती हैं , नम्रता मान देती है और योग्यता स्थान देती है और ये तीनों मिल जाये ंतो व्यक्ति को अलग पहचान देती है।
होटल के स्वागत कक्ष में वह अकेली तो नहीं थी अनेक लोगों का आना जाना था पर फिर भी उसे अकेलापन महसूस होने लगा था। सोच ही रही थी क्या करे और इंतजार करे या फोन करे। पर याद आया कुछ जरूरी फोन कॉल ही कर ले सोचकर आन्या फोन में व्यस्त हो गई । फोन कॉल निमटा कर वह फेसबुक पर संदीप की वॉल को फिर टटोलने लगी उसने देखा संदीप ने अपनी प्रेाफाईल में सिर्फ नाम अपनी शिक्षा और स्कूल कॉलेज का नाम ही लिखा है और उसकी ही तरह किसी फाइनैन्स कंपनी में कार्यरत है। उसकी पूरी वॉल भगवान की तस्वीरों से धार्मिक स्थानों से व अच्छे समझदारी भरे सुवाक्यों से भरी थी ।
क्या कभी घूमने भी नहीं जाता संदीप? उसके बारे में और जानने की इच्छा जो इतने वर्षो में नहीं जागी पर आज जाग उठी। कैसा होगा उसका घर परिवार आदि आन्या सोचने लगी कितनी बातंे होती हैं। संदीप आन्या के साथ फोन पर अपने काम से जुड़ी या अन्य बातें फिल्मों की, जमाने की ओर न जाने क्या क्या बातें करता पर कभी दोनों ने एक दूसरे के निजी जीवन के बारे में काई सवाल नहीं किया। आन्या घर में अकेली रहती है इसलिये दूसरे किसी का फोन उठाने की नौबत नहीं आई संदीप का फोन उसके अलावा किसी और ने कभी नहीं रिसिव किया। उसी तरह आन्या का भी फोन उसे ही उठाना पडता था। कभी कोई प्रश्न जवाब आदि नहीं हुआ पर आज सोचने लगी आन्या..... पता नहीं कैसा दिखता होगा।
अब उसने सोचना शुरू किया कि किस तरह बात करे अपने इस अनोखे मित्र से कि यह दोस्ती पहले के समान सामान्य दोस्ती ही रहे। उसके सवालों पर भी विचार आने लगे। संभव है आगे पूछ भी ले विवाह के विषय में अब तक कुआरी क्यों हो? माता पिता कब कैसे ओर न जाने कितनी बातें जो वह कभी किसी से करना ही नहीं चाहती थी। जानती भी थी आन्या कि जीवन में आधा दुःख गलत लोगों से उम्मीद रखने से आता है और बाकी का आधा दुःख सच्चे लोगों पर शक करने से आता है। पर दोस्त आमने सामने बैठ कर जब बात करते है तक व्यक्तिगत टच आना स्वभाविक भी है सोचने लगी आज उससे मिलने का निर्णय सही होगा या नहीं?
पढी लिखी आन्या ने स्वय को इस छोटी सोच के लिये टोका, जब तक वह कोई गलत संकेत न दे कोई कैसे उसके साथ गलत व्यवहार कर सकता है मन में निष्चय कर लिया था अब पांच दस मिनट और... फिर वह चल देगी अपने काम पर ,तभी अचानक एक पुरूष आवाज सुनाई दी आन्याजी ...चौक कर देखा था आन्या ने...... दिल की बढ़ी हुई धड़कनों को संयत करती आन्या ने देखा सामने साधारण सा दिखने वाला एक उसी की उम्र का व्यक्ति हाथ में बूके लिये मुस्कुरा रहा है। ओह तो जनाब ने इस लिये अपने प्रोफाईल मे अपना फोटो नहीं डाला....। साधारण दिखना कोई अपराध तो नहीं है इसी तरह के विचार संभव है संदीप के मन में भी चल रहे हों ...हलो... जैसे साधारण संबोधन से एक दूसरे को बैठने को कहते दोनो आमने सामने बैठ गये.... अब आगे क्या बात करें ? आप इस शहर में किसी काम से आये है हॉ... बताया तो था आपको , तभी तो मिलने का कार्यक्रम बना है 'अरे हां...'कहती आन्या चुप हो गयी| सामने तो शाश्वत चुप्पी थी ही कुछ देर बाद आन्या ने पूछा था हो गया तुम्हारा...नहीं सॉरी आपका.. इट्स ओके आप चिन्ता न करें, हॉ मेरा काम हो गया। आप जितना समय चाहे हम बात कर सकते हैं |सोचा वहीं बाते करते है जो हम फोन पर करते थे जी एस टी, टैक्स रिर्टन, अर्थव्यवस्था आदि आदि अन्य नये कानूनों पर कुछ देर बोलने के बाद संदीप ने कहा था।
हम क्या यह बातें करने के लिये मिले थे यह बातें तो हम सदा फोन पर करते ही हैं आन्या सोचने लगी किस उलझन में फंसी है वह आज | फिर आन्या ने अपने चिरपरिचित अंदाज में बोल्ड़ लहजे से कहा था सबसे पहले मैं यह जानना चाहती हुं कि आप मेरे बारे में किस तरह जानने लगे हैं आपने अपना मित्रता का संदेश मुझे ही भेजा था | यह कोई संजोग नहीं था। आज बता ही दो आपका उ६ेश्य क्या था। आन्या को अपने पास की टेबल पर बैठने का इशारा करते हुये संदीप ने उसके कान में कहा था यहॉ इस जगह के बदले क्या अंदर डाईनिंग रूम में हम अपना बाकी समय बिता सकते हैं। आन्या की सहमती पर उसने बहुत अदब से उसे उठने में मदद की और आगे चलने का इशारा किया उसकी इस अदा पर आन्या को समझ आ गया था महिलाओं कि इज्जत करने का तरीका जानता है संदीप। अंदर जाकर एक कोने की टेबल पर आराम से बैठने के बाद संदीप ने सीधा सवाल किया मेरी रिक्वैस्ट को क्या सोच कर स्वीकार किया गया था। मेरी पोस्ट को लाईक देते समय मन में क्या था क्या तुम्हारे मेरे जैसे बहुत से मित्र हैं आदि आदि.... साथ में यह भी कि इनमें से किसी भी सवाल का जवाब जरूरी नहीं है और आन्या ने हल्के हास्य से कहा था संदीप ये ज्यादती है.. सवाल के बदले में सवाल और मोती जैसे दाँतों को दिखाते खिलखिलाते हुये संदीप ने कहा था मन में खुदबदी क्या महिलाओं का ही अधिकार है।
जी नहीं ... और भी काम होतेे है महिलाओं के पास.. और फिर बातों का सिलसिला चल निकला। संदीप ने बताया पढाई और सैटल होने की चिन्ता में विवाह की उम्र निकल गई और फिर न जाने क्यों मिल ही नहीं पाई जिसे मैं सुमझ पाऊं या वह मुझे समझे, किसी को पद प्रतिष्ठा चाहिये, किसी को सुन्दरता, बैंक बैलेन्स, इन सब से परेशान होकर तलाश ही बंद कर दी क्यों कि किसी की भी मांग मेरा परिवार नहीं थी। संदीप इतना सब कह कर जैसे थकान मिटाने लगा।
आन्या विचार करने लगी अब तुम्हारी बारी है आन्या। माता पिता के विषय में कुछ नहीं बताया तुमने? संदीप ने रूआंसा होकर कहा ’’एक हादसे के बाद पिछले दस वर्षेा से बिस्तर पर हैं’’ घर में एक बडी विधवा बहन है जो परिवार को संभाले है ऐसे में साधारण विवाह की बात सोचना भी कितना गलत होगा, आजकल जो पढ़ी लिखी कन्यायें हैं वह अपने कैरियर को ही प्राथमिकता देगीं, इसलिये मेरा परिवार उसकी प्राथमिकता कैसे हो सकती है आन्या सोचने लगी वह भी तेा अपने कैरियर को ही तो प्राथमिकता दिये बैठी है वैसे भी उसे स्वयं विवाह नाम से ही डर लगने लगा था।
संदीप का सीधा सपाट प्रश्न तुम्हारें माता पिता तो ठीक हैं ना ?उसने हल्के फुल्के भाव से कहा था। वह भी सात वर्ष पहले ही दोनों अपना अलग अलग घर बसाने चले गये। तभी तो मित्रों की तलाश के दौरान तुम मिले थे.....। संदीप को अपनी दोस्ती की अहमियत जानकर यह सब सुनना अच्छा लग रहा था। कितनी ही बातें हुई कैसे संदीप को अनेक लडकियों ने अयोग्य समझा, कैसे साफ मना न करके उसमें अनेक कमियां गिनाई गयीं। आन्या और संदीप उस दिन बहुत हंँसे लन्च तक दोनों साथ रहे फिर अगली मुलाकात का वादा करके दौनों अपने अपनी राह पर चले गये।
आज इस समाचार की सत्यता पर उसका मन भी डावां-डोल था। सही गलत का फैसला तो कानून के हिसाब से होगा पर आन्या की अदालत में संदीप निर्दोष था माता पिता बहन के प्रति समर्पित व्यक्ति इस तरह की विकृत सोच भरी हरकत कर ही नहीं सकता आन्या ने अपने मन की अदालत से यह फैसला दे दिया था।
अन्य लडकियों कि तरह आन्या अविवेकी हो कर यह नहीं सोच सकती थी कि पुरूषेंा का क्या भरोसा....आन्या को जीवन में संस्कारों का महत्व पता था। तभी तो कहते हैं इंसान दिवार बनाता है और फिर यह सोच कर परेशान होता रहता हैं कि उस दिवार के पीछे क्या हो रहा है।
प्रेषक प्रभा पारीक